प्रश्न - *दीदी जी सादर प्रणाम, एक प्रश्न पूछना चाहता हूं।वह यह कि हमने तीस साल पूरा कर लिया है गायत्री परिवार में जुड़ कर, किन्तु हमारे यहां प्याज लहसुन नहीं छूट पा रहा है, मैं कई बार छोड़ दिया हूं बोलने से भी पत्नी का आदत नहीं छूट पा रहा। शान्ति कुंज भी दर्शन कर लिए फिर भी नहीं छूट रहा है कृपया कुछ उचित मार्गदर्शन करने की कृपा करेंगे इन्हीं आशा विश्वास के साथ आपका अपना गुरु भाई*
उत्तर - आत्मीय भाई,
प्याज और लहसन खाने से पाप और पुण्य का कोई लेना देना नहीं है। भगवान इसका सेवन करने वाले पर न प्रशन्न होते है और न हीं इसको खाने वालों पर क्रोधित होते हैं।
*आप केवल ब्राह्मण, जैन और साधनारत लोग क्यों प्याज और लहसुन नहीं खाते, इसे स्वस्थ मानसिकता से समझो*
प्याज और लहसुन के बिना कई लोगों को खाना बेस्वाद लगता होगा लेकिन साधक और ब्राह्मण इससे दूरी बनाकर चलते हैं। ब्राह्मण प्याज और लहसुन से परहेज क्यों करते हैं, ऐसा प्रश्न तुम्हारी तरह अनेक युवाओं के दिमाग में भी ये सवाल कभी न कभी कौंधता ही होगा। कुछ लोग इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हैं, लेकिन कुछेक इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी बताते हैं।
*फूड कैटगराइजेशन:*
आयुर्वेद में खाद्य पदार्थों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है - सात्विक, राजसिक और तामसिक। मानसिक स्थितियों के आधार पर इन्हें हम ऐसे बांट सकते हैं...
👉🏼 *सात्विक:* शांति, संयम, पवित्रता और मन की शांति जैसे गुण
👉🏼 *राजसिक:* जुनून और खुशी जैसे गुण
👉🏼 *तामसिक:* क्रोध, जुनून, अहंकार और विनाश जैसे गुण
👉🏼 *ये हैं वजह:*
👉🏼 *उत्तेजक खाद्य:* प्याज़ और लहसुन तथा अन्य ऐलीएशस (लशुनी) पौधों को राजसिक और तामसिक रूप में वर्गीकृत किया गया है। जिसका मतलब है कि ये जुनून और भावनात्मक आवेग में वृद्धि करते हैं।
*अशुद्ध उत्तेजक भावनाओ में वृद्धि*: कुछ लोगों का ये भी कहना है शास्त्र के अनुसार लहसुन, प्याज और मशरूम ब्राह्मणों के लिए निषिद्ध हैं, क्योंकि आमतौर पर ये अशुद्ध उत्तेजक भावनाएं और विचार बढ़ाते है। ब्राह्मणों को विचारों में पवित्रता और हृदय में शांति बनाए रखने की जरूरत होती है, क्योंकि वे देवताओं की पूजा करते हैं जोकि प्रकृति में सात्विक (शुद्ध) होते हैं।
*सनातन धर्म के अनुसार*: सनातन धर्म के वेद शास्त्रों के अनुसार प्याज और लहसुन जैसी सब्जियां प्रकृति प्रदत्त भावनाओं में सबसे निचले दर्जे की भावनाओं जैसे जुनून, उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देती हैं, जिस कारण अध्यात्मक के मार्ग पर चलने में बाधा उत्पन्न होती हैं और व्यक्ति की चेतना प्रभावित होती है। इस कराण इनका सेवन नहीं करना चाहिेए।
🙏🏻 *साधारण शब्दों में यह समझो कि भोजन के स्थूल भाग से शरीर और सूक्ष्म प्रभाव से मन का निर्माण होता है। नमक खाना कोई पाप नहीं होता। लेकिन खीर बनाते समय नमक का प्रयोग तो नहीं कर सकते है न...इसी तरह साधक जिस प्रकार की परमशान्ति, धैर्य और सात्विक मनोभूमि का निर्माण करके आध्यात्मिक लाभ उठाना चाहते हैं, उसमें जुनून और आवेश पैदा करने वाले तामसिक आहार लहसन प्याज बाधक होते हैं। दैनिक भोजन में भले लहसन प्याज खा लो, लेकिन जब भी अनुष्ठान करना उस वक्त मत खाना। व्रत में फलाहार इत्यादि लेना या सात्विक भोजन ले लेना।लहसन प्याज बड़े गरिष्ठ, उत्तेजक भी होते है और औषधीय गुणों से सम्पन्न भी होते है, इन्हें पचने में अधिक वक़्त, ऊर्जा और प्राणवायु की आवश्यकता पड़ती है। इनके सेवन से पेट मे भारीपन होता है, जिसके कारण मन भारी होता है। ध्यान करने हेतु हल्के पेट और हल्के मन की आवश्यकता होती है।*🙏🏻
पत्नी को जबरजस्ती लहसन प्याज़ बन्द करने को मत कहो, क्योंकि इससे उसे खाने की और ज्यादा ललक पैदा होगी। उसे नवरात्र व अन्य अनुष्ठान के वक्त सात्विक आहार के लिए प्रेरित करो।
दैनिक साधना में लहसन प्याज़ के प्रभाव से उत्तपन्न भावनात्मक आवेग और मानसिक उत्तेजना को पूर्णिमा के चाँद का ध्यान करते हुए एक माला चन्द्र गायत्री जप के नियन्त्रित किया जा सकता है।
चन्द्र गायत्री मंत्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात।*
सुबह व शाम जब सोने से पूर्व और नींद से जागने के पूर्व हम अल्फ़ा मानसिक तरंगों में होते हैं। उस वक्त जो संकल्प 5 बार नित्य दोहराओगे, वह पूर्ण होगा।
रोज़ बोलो जैसे सिंह का बेटा सिंह होता है, वैसे ही सर्वशक्तिमान परमात्मा का मैं बेटा जूनियर सर्वशक्तिमान हूँ, मैं शिष्य हूँ, मैं साधक हूँ। मेरे संकल्प प्रबल हैं। मैं लहसन प्याज के स्वाद से परे हूँ। मेरा मन पर पूर्ण नियंत्रण है। ऐसा छः महीने बोलें। संकल्प शक्ति का चमत्कार असर दिखायेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई,
प्याज और लहसन खाने से पाप और पुण्य का कोई लेना देना नहीं है। भगवान इसका सेवन करने वाले पर न प्रशन्न होते है और न हीं इसको खाने वालों पर क्रोधित होते हैं।
*आप केवल ब्राह्मण, जैन और साधनारत लोग क्यों प्याज और लहसुन नहीं खाते, इसे स्वस्थ मानसिकता से समझो*
प्याज और लहसुन के बिना कई लोगों को खाना बेस्वाद लगता होगा लेकिन साधक और ब्राह्मण इससे दूरी बनाकर चलते हैं। ब्राह्मण प्याज और लहसुन से परहेज क्यों करते हैं, ऐसा प्रश्न तुम्हारी तरह अनेक युवाओं के दिमाग में भी ये सवाल कभी न कभी कौंधता ही होगा। कुछ लोग इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हैं, लेकिन कुछेक इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी बताते हैं।
*फूड कैटगराइजेशन:*
आयुर्वेद में खाद्य पदार्थों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है - सात्विक, राजसिक और तामसिक। मानसिक स्थितियों के आधार पर इन्हें हम ऐसे बांट सकते हैं...
👉🏼 *सात्विक:* शांति, संयम, पवित्रता और मन की शांति जैसे गुण
👉🏼 *राजसिक:* जुनून और खुशी जैसे गुण
👉🏼 *तामसिक:* क्रोध, जुनून, अहंकार और विनाश जैसे गुण
👉🏼 *ये हैं वजह:*
👉🏼 *उत्तेजक खाद्य:* प्याज़ और लहसुन तथा अन्य ऐलीएशस (लशुनी) पौधों को राजसिक और तामसिक रूप में वर्गीकृत किया गया है। जिसका मतलब है कि ये जुनून और भावनात्मक आवेग में वृद्धि करते हैं।
*अशुद्ध उत्तेजक भावनाओ में वृद्धि*: कुछ लोगों का ये भी कहना है शास्त्र के अनुसार लहसुन, प्याज और मशरूम ब्राह्मणों के लिए निषिद्ध हैं, क्योंकि आमतौर पर ये अशुद्ध उत्तेजक भावनाएं और विचार बढ़ाते है। ब्राह्मणों को विचारों में पवित्रता और हृदय में शांति बनाए रखने की जरूरत होती है, क्योंकि वे देवताओं की पूजा करते हैं जोकि प्रकृति में सात्विक (शुद्ध) होते हैं।
*सनातन धर्म के अनुसार*: सनातन धर्म के वेद शास्त्रों के अनुसार प्याज और लहसुन जैसी सब्जियां प्रकृति प्रदत्त भावनाओं में सबसे निचले दर्जे की भावनाओं जैसे जुनून, उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देती हैं, जिस कारण अध्यात्मक के मार्ग पर चलने में बाधा उत्पन्न होती हैं और व्यक्ति की चेतना प्रभावित होती है। इस कराण इनका सेवन नहीं करना चाहिेए।
🙏🏻 *साधारण शब्दों में यह समझो कि भोजन के स्थूल भाग से शरीर और सूक्ष्म प्रभाव से मन का निर्माण होता है। नमक खाना कोई पाप नहीं होता। लेकिन खीर बनाते समय नमक का प्रयोग तो नहीं कर सकते है न...इसी तरह साधक जिस प्रकार की परमशान्ति, धैर्य और सात्विक मनोभूमि का निर्माण करके आध्यात्मिक लाभ उठाना चाहते हैं, उसमें जुनून और आवेश पैदा करने वाले तामसिक आहार लहसन प्याज बाधक होते हैं। दैनिक भोजन में भले लहसन प्याज खा लो, लेकिन जब भी अनुष्ठान करना उस वक्त मत खाना। व्रत में फलाहार इत्यादि लेना या सात्विक भोजन ले लेना।लहसन प्याज बड़े गरिष्ठ, उत्तेजक भी होते है और औषधीय गुणों से सम्पन्न भी होते है, इन्हें पचने में अधिक वक़्त, ऊर्जा और प्राणवायु की आवश्यकता पड़ती है। इनके सेवन से पेट मे भारीपन होता है, जिसके कारण मन भारी होता है। ध्यान करने हेतु हल्के पेट और हल्के मन की आवश्यकता होती है।*🙏🏻
पत्नी को जबरजस्ती लहसन प्याज़ बन्द करने को मत कहो, क्योंकि इससे उसे खाने की और ज्यादा ललक पैदा होगी। उसे नवरात्र व अन्य अनुष्ठान के वक्त सात्विक आहार के लिए प्रेरित करो।
दैनिक साधना में लहसन प्याज़ के प्रभाव से उत्तपन्न भावनात्मक आवेग और मानसिक उत्तेजना को पूर्णिमा के चाँद का ध्यान करते हुए एक माला चन्द्र गायत्री जप के नियन्त्रित किया जा सकता है।
चन्द्र गायत्री मंत्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात।*
सुबह व शाम जब सोने से पूर्व और नींद से जागने के पूर्व हम अल्फ़ा मानसिक तरंगों में होते हैं। उस वक्त जो संकल्प 5 बार नित्य दोहराओगे, वह पूर्ण होगा।
रोज़ बोलो जैसे सिंह का बेटा सिंह होता है, वैसे ही सर्वशक्तिमान परमात्मा का मैं बेटा जूनियर सर्वशक्तिमान हूँ, मैं शिष्य हूँ, मैं साधक हूँ। मेरे संकल्प प्रबल हैं। मैं लहसन प्याज के स्वाद से परे हूँ। मेरा मन पर पूर्ण नियंत्रण है। ऐसा छः महीने बोलें। संकल्प शक्ति का चमत्कार असर दिखायेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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