प्रश्न- *दी, मैं अपनी पत्नी को युगनिर्माण मिशन में कैसे जोड़ूँ? वो मेरा कुछ भी सुनने को इस विषय मे तैयार ही नहीं है।*
उत्तर - आत्मीय भाई, विश्व का सबसे कठिन प्रश्न यह है।
आपका प्रश्न कुछ ऐसा है कि दिया पूँछे कि मैं मेरी तली के नीचे प्रकाश कैसे पहुँचाऊँ?
साधारण उत्तर है, दूसरे दीपक से मदद लो, इसी तरह पत्नी को समझाने के लिए दूसरे कार्यकर्ता बहनों की मदद लो। उसे कार्यक्रम में ले जाओ, जहां दूसरे भाई बहन उसका मार्गदर्शन करें। आप अपने तले के अंधेरे की परवाह न करते हुए दीप बनकर स्वयं युगनिर्माण करते हुए जग को रौशन करते रहिए।
*आइए इसे रामायण के एक दृष्टांत से समझते हैं:-*
भगवान शंकर ज्ञान शिरोमणि हैं, जगतगुरु हैं देवाधिदेव हैं। माता सती के साथ कुंभज ऋषि के आश्रम में श्रीराम कथा सत्संग का श्रवण किया। लौटते वक्त श्रीराम के दर्शन की भगवान शंकर की इच्छा हुई, तो दण्डकारण्य वन में उन्होंने वनवासी प्रभु श्रीराम के दूर से ही *सचिदानन्द प्रभु श्रीराम की जय* बोलकर धरती पर मत्था टेक कर प्रणाम किया। उस वक़्त श्रीराम नर लीला कर रहे थे, सीता का अपहरण हो चुका था। अतः वो नर लीला को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते थे, इसलिए समक्ष नहीं गये।
माता सती के मन में संदेह उपजा कि भगवान शंकर एक पत्नी के वियोग में रोने वाले वनवासी राजकुमार राम को प्रणाम क्यों किये?
भगवान शंकर ने अनेकों उदाहरण देकर, तथ्य तर्क प्रमाण व भक्ति मार्ग से समझाया। माता का संदेह दूर न हुआ। तब शंकर भगवान ने कहा स्वयं परीक्षा ले लो।
माता सती ने माता सीता का रूप बनाया और श्रीराम के समक्ष पहुंच गई। सोचा यदि साधारण मानव होगा तो मुझे पहचान न सकेगा। सती को सीता के रूप में देखते हुए प्रभु श्रीराम सब समझ गए। लक्ष्मण सहित उनके चरणों को प्रणाम करते हुए बोले हे माता जंगल मे आप अकेली क्यों है, पिता भगवान भोलेनाथ कहाँ है? सती माता घबरा गयीं और आंख बंद कर ली कुछ बोलते न बना। जैसे आंख खोली सभी तरफ श्रीराम जी, सीता जी, व लक्ष्मण जी दिखने लगे। वो और घबरा गई और जल्दी से शिव के समक्ष पहुंच गईं। घबराहट में अन्तर्यामी शंकर भगवान को सत्य न बता सकीं। आगे क्या हुआ आप जानते ही होंगे या रामायण पढ़ लेना।
जब शंकर भगवान सती को नहीं समझा पाए, यूनानी दार्शनिक अरस्तू हो या भारतीय प्रसिद्ध सन्त तुकाराम इत्यादि अनेक उदाहरण हैं जहाँ इतने ज्ञानी होते हुए भी पत्नी को समझा सकने में ये सब असफल हुए। दिया तले अंधेरा ही रहा। तो आगे स्वयं समझ लो😇
बच्चे के लिए उल्टा चलकर माता बच्चे को सीधा चलना सीखा देती है। भगवान लीलाएं रचकर मानव को जीवन प्रबन्धन सीखा देते हैं।
👉🏻वही पति अपने पत्नी को और वही पत्नी अपने पति को युगनिर्माण से जोड़ सकेगी जो खुले दिमाग के हों और आप को ज्ञानी मानते हों, जो जीवनसाथी एक दूसरे का सम्मान करते हों, आपकी बात पर भरोसा करते हों। अन्यथा सफ़लता मिलने में संदेह ही है।
👉🏻 *अब आपके पास दो रास्ते हैं*:-
1- *परीक्षा लेने को कहें(चैलेंज दें)*- पत्नी से कहें तुम 9 दिन अनुष्ठान शान्तिकुंज में करके स्वयं परीक्षा मिशन की क्यों नहीं ले लेती। युगऋषि के क्रांतिधर्मी 20 छोटी पुस्तकों का साहित्य पढ़कर परीक्षा ले लो। यग्योपैथी के रिसर्च पढ़कर रोगमुक्ति करता है उसकी परीक्षा ले लो। यदि तुम साबित कर दो कि इसमें नहीं जुड़ना चाहिए तो मैं युगनिर्माण मिशन छोड़ दूंगा। यदि मै सही साबित हुआ तो तुम इसमें जुड़ जाना।
2- *दीपक की तरह व्यवहार करें* - दिया तले अंधेरा, और युगनिर्माणि की पत्नी युगनिर्माणि नहीं बनी की पीड़ा को इग्नोर करते हुए। दीपक की तरह प्रकाश देने का कर्तव्य निर्वहन करते रहें। युगनिर्माण में भूमिका निभाते रहें। बाकी गुरुदेव पर छोड़ दें।
अपनी मर्जी जब न चले, तो भगवान की मर्ज़ी मानकर स्वीकार लें। जो होगा सब अच्छा होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, विश्व का सबसे कठिन प्रश्न यह है।
आपका प्रश्न कुछ ऐसा है कि दिया पूँछे कि मैं मेरी तली के नीचे प्रकाश कैसे पहुँचाऊँ?
साधारण उत्तर है, दूसरे दीपक से मदद लो, इसी तरह पत्नी को समझाने के लिए दूसरे कार्यकर्ता बहनों की मदद लो। उसे कार्यक्रम में ले जाओ, जहां दूसरे भाई बहन उसका मार्गदर्शन करें। आप अपने तले के अंधेरे की परवाह न करते हुए दीप बनकर स्वयं युगनिर्माण करते हुए जग को रौशन करते रहिए।
*आइए इसे रामायण के एक दृष्टांत से समझते हैं:-*
भगवान शंकर ज्ञान शिरोमणि हैं, जगतगुरु हैं देवाधिदेव हैं। माता सती के साथ कुंभज ऋषि के आश्रम में श्रीराम कथा सत्संग का श्रवण किया। लौटते वक्त श्रीराम के दर्शन की भगवान शंकर की इच्छा हुई, तो दण्डकारण्य वन में उन्होंने वनवासी प्रभु श्रीराम के दूर से ही *सचिदानन्द प्रभु श्रीराम की जय* बोलकर धरती पर मत्था टेक कर प्रणाम किया। उस वक़्त श्रीराम नर लीला कर रहे थे, सीता का अपहरण हो चुका था। अतः वो नर लीला को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते थे, इसलिए समक्ष नहीं गये।
माता सती के मन में संदेह उपजा कि भगवान शंकर एक पत्नी के वियोग में रोने वाले वनवासी राजकुमार राम को प्रणाम क्यों किये?
भगवान शंकर ने अनेकों उदाहरण देकर, तथ्य तर्क प्रमाण व भक्ति मार्ग से समझाया। माता का संदेह दूर न हुआ। तब शंकर भगवान ने कहा स्वयं परीक्षा ले लो।
माता सती ने माता सीता का रूप बनाया और श्रीराम के समक्ष पहुंच गई। सोचा यदि साधारण मानव होगा तो मुझे पहचान न सकेगा। सती को सीता के रूप में देखते हुए प्रभु श्रीराम सब समझ गए। लक्ष्मण सहित उनके चरणों को प्रणाम करते हुए बोले हे माता जंगल मे आप अकेली क्यों है, पिता भगवान भोलेनाथ कहाँ है? सती माता घबरा गयीं और आंख बंद कर ली कुछ बोलते न बना। जैसे आंख खोली सभी तरफ श्रीराम जी, सीता जी, व लक्ष्मण जी दिखने लगे। वो और घबरा गई और जल्दी से शिव के समक्ष पहुंच गईं। घबराहट में अन्तर्यामी शंकर भगवान को सत्य न बता सकीं। आगे क्या हुआ आप जानते ही होंगे या रामायण पढ़ लेना।
जब शंकर भगवान सती को नहीं समझा पाए, यूनानी दार्शनिक अरस्तू हो या भारतीय प्रसिद्ध सन्त तुकाराम इत्यादि अनेक उदाहरण हैं जहाँ इतने ज्ञानी होते हुए भी पत्नी को समझा सकने में ये सब असफल हुए। दिया तले अंधेरा ही रहा। तो आगे स्वयं समझ लो😇
बच्चे के लिए उल्टा चलकर माता बच्चे को सीधा चलना सीखा देती है। भगवान लीलाएं रचकर मानव को जीवन प्रबन्धन सीखा देते हैं।
👉🏻वही पति अपने पत्नी को और वही पत्नी अपने पति को युगनिर्माण से जोड़ सकेगी जो खुले दिमाग के हों और आप को ज्ञानी मानते हों, जो जीवनसाथी एक दूसरे का सम्मान करते हों, आपकी बात पर भरोसा करते हों। अन्यथा सफ़लता मिलने में संदेह ही है।
👉🏻 *अब आपके पास दो रास्ते हैं*:-
1- *परीक्षा लेने को कहें(चैलेंज दें)*- पत्नी से कहें तुम 9 दिन अनुष्ठान शान्तिकुंज में करके स्वयं परीक्षा मिशन की क्यों नहीं ले लेती। युगऋषि के क्रांतिधर्मी 20 छोटी पुस्तकों का साहित्य पढ़कर परीक्षा ले लो। यग्योपैथी के रिसर्च पढ़कर रोगमुक्ति करता है उसकी परीक्षा ले लो। यदि तुम साबित कर दो कि इसमें नहीं जुड़ना चाहिए तो मैं युगनिर्माण मिशन छोड़ दूंगा। यदि मै सही साबित हुआ तो तुम इसमें जुड़ जाना।
2- *दीपक की तरह व्यवहार करें* - दिया तले अंधेरा, और युगनिर्माणि की पत्नी युगनिर्माणि नहीं बनी की पीड़ा को इग्नोर करते हुए। दीपक की तरह प्रकाश देने का कर्तव्य निर्वहन करते रहें। युगनिर्माण में भूमिका निभाते रहें। बाकी गुरुदेव पर छोड़ दें।
अपनी मर्जी जब न चले, तो भगवान की मर्ज़ी मानकर स्वीकार लें। जो होगा सब अच्छा होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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