प्रश्न - *यदि किसी रिश्तेदार की मृत्यु के तेरहवीं में जा रहे हों, और पास ही अन्य रिश्तेदार के सदस्य रहते हों तो क्या हमें उनके घर मिलने जाना चाहिए या नहीं?*
उत्तर - आत्मीय भाई, आप विषाद लेकर इस यात्रा में घर से पीड़ा बंटवाने के उद्देश्य से जा रहे हैं। उस जगह आप पीड़ायुक्त वचनों को सुनेंगे और वह आपके मन व हृदय में चाहे-अनचाहे प्रवेश करेगा। अतः जिस उद्देश्य से जा रहे हैं आपको उन्हीं के घर जाना चाहिए व वहाँ से वापस अपने घर आना चाहिए। अपना ध्यान उस घर के सदस्यों की पीड़ा निवारण में केंद्रित करते हुए जाएं। आते वक्त आत्मा की मुक्ति की प्रार्थना करते हुए आएं।
न जाते वक्त और न ही आते वक्त किसी अन्य रिश्तेदार के घर मिलने जाना चाहिए। आप यदि जाएंगे तो आप पीड़ा के भाव उसके घर में छोड़ेंगे जो सर्वथा अनुचित होगा। आपके उस रिश्तेदार के घर के अन्य सदस्य भी संकोच वश शायद आपको आने से रोक न पाएं, पर बाद में वो आपके ही रिश्तेदार को खरी खोटी सुनाएंगे। कि अमुक की मृत्यु के शोक में सम्मिलित होने जब आये थे तो यहां आने की क्या जरूरत थी? क्या इतनी समझ आप में नहीं कि आप किसलिए आये हो?
घर आकर जिस प्रकार स्नान करते हैं, वैसे ही विचारों में व्याप्त विषाद को धोने के लिए कम से कम 30 माला 5 दिन के भीतर जपकर उस आत्मा की मुक्ति के लिए जप लें, साथ ही ध्यान व स्वाध्याय करें।
हम गृहस्थ हैं तो गृहस्थी के नियम हम सबको पालन करने पड़ते हैं, हम सभी को पता है आत्मा न मरती है न जन्म लेती है। लेकिन द्रोणाचार्य जैसा ज्ञानी से ज्ञानी भी अपनों की मृत्यु से विचलित हो जाता है। अतः लोक मर्यादा का अनुपालन करें।
किसी भी रिश्तेदार से अन्य किसी अवसर पर मिलने जाएं। विवेक से काम करें व सुखी रहें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - आत्मीय भाई, आप विषाद लेकर इस यात्रा में घर से पीड़ा बंटवाने के उद्देश्य से जा रहे हैं। उस जगह आप पीड़ायुक्त वचनों को सुनेंगे और वह आपके मन व हृदय में चाहे-अनचाहे प्रवेश करेगा। अतः जिस उद्देश्य से जा रहे हैं आपको उन्हीं के घर जाना चाहिए व वहाँ से वापस अपने घर आना चाहिए। अपना ध्यान उस घर के सदस्यों की पीड़ा निवारण में केंद्रित करते हुए जाएं। आते वक्त आत्मा की मुक्ति की प्रार्थना करते हुए आएं।
न जाते वक्त और न ही आते वक्त किसी अन्य रिश्तेदार के घर मिलने जाना चाहिए। आप यदि जाएंगे तो आप पीड़ा के भाव उसके घर में छोड़ेंगे जो सर्वथा अनुचित होगा। आपके उस रिश्तेदार के घर के अन्य सदस्य भी संकोच वश शायद आपको आने से रोक न पाएं, पर बाद में वो आपके ही रिश्तेदार को खरी खोटी सुनाएंगे। कि अमुक की मृत्यु के शोक में सम्मिलित होने जब आये थे तो यहां आने की क्या जरूरत थी? क्या इतनी समझ आप में नहीं कि आप किसलिए आये हो?
घर आकर जिस प्रकार स्नान करते हैं, वैसे ही विचारों में व्याप्त विषाद को धोने के लिए कम से कम 30 माला 5 दिन के भीतर जपकर उस आत्मा की मुक्ति के लिए जप लें, साथ ही ध्यान व स्वाध्याय करें।
हम गृहस्थ हैं तो गृहस्थी के नियम हम सबको पालन करने पड़ते हैं, हम सभी को पता है आत्मा न मरती है न जन्म लेती है। लेकिन द्रोणाचार्य जैसा ज्ञानी से ज्ञानी भी अपनों की मृत्यु से विचलित हो जाता है। अतः लोक मर्यादा का अनुपालन करें।
किसी भी रिश्तेदार से अन्य किसी अवसर पर मिलने जाएं। विवेक से काम करें व सुखी रहें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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