प्रश्न - *गायत्री मंत्र का चलते फिरते या यात्रा करते समय जीभ चलाते हुए जाप करना व्यर्थ है या इसका कोई फल मिलेगा??????*
उत्तर- आत्मीय भाई, मंत्र वह ध्वनि है जो अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनती है। यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक तरंगात्मक ऊर्जा से व्याप्त है जिसके दो प्रकार हैं - नाद (शब्द) एवं प्रकाश। आध्यात्मिक धरातल पर इनमें से कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र मात्र वह ध्वनियाँ नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते हैं, या मुँह से बोलते हैं। यह ध्वनियाँ तो मंत्रों का लौकिक स्वरुप भर हैं।
गायत्री मंत्र जप जब पूजन स्थल पर जपें तो उपांशु (होठ हिले मग़र आवाज़ पास बैठे व्यक्ति को सुनाई न दे) विधि से करें।
जब यज्ञादि करें तो ज़ोर से गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए करें। मन्त्र का नाद अग्नि के प्रकाश में मिलकर अनन्य लाभ देता है।
यात्रा या चलते फ़िरते यदि जीभ हिलाते हुए जप करेंगे तो नाद ध्वनि अन्य लोगो द्वारा बोली गयी ध्वनि में मिलकर अपना अस्तित्व खो देगी। जबकि मौनमानसिक में किसी अन्य की बोली ध्वनि हमारे भीतर चल रहे मौन मानसिक जप का अस्तित्व खण्डित नहीं कर पाती। यदि ट्रेन यात्रा की बोगी में या रोड पर गाड़ी में यात्रा के दौरान आप अकेले हो और आसपास कोई न हो तो होठ हिलाते हुए जप कर सकते हो। बस ध्यान रहे कि किसी अन्य मानव की ध्वनि आपके मन्त्र जप की ध्वनि में मिले न कम से कम इतनी दूरी हो।
अन्य समय चलते उठते बैठते या कोई भी कार्य करते हुए मौन मानसिक जप करना चाहिए। अर्थात जप में न जीभ हिलनी चाहिए और न ही आवाज बाहर आनी चाहिए। मन ही मन जप होना चाहिए।इस तरह के जप कभी भी कहीं भी किये जा सकते हैं। कोई नियम पालन की आवश्यकता नहीं होती।।अशौच और सूतक के वक्त भी मौन मानसिक जप कर सकते हैं।
मौन मानसिक जप में सूक्ष्म ध्वनियां निकलती हैं, जिन्हें हम अपने भीतर सुनते हैं। इस प्रक्रिया से ब्रेन के अनावश्यक विचारों की सफाई होती है, दिमाग का कुहरा छंटता है। मौनमानसिक जप से उत्पन्न शक्ति प्रवाह नाड़ी तन्तुओं की तीलियों के सहारे सूक्ष्म चक्रों और दिव्य ग्रन्थियों तक पहुंचता है और उन्हें झकझोर कर जगाने, खड़ा करने में संलग्न होता है। जो इन जागृत चक्रों द्वारा रहस्यमयी सिद्धियों के रूप में साधक को मिलती है। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि यदि जपयोग को विधिवत् साधा गया होगा तो उसका सत्परिणाम उत्पन्न होगा ही। जप में शब्दों की पुनरावृत्ति होते रहने से उच्चारण का एक चक्र-व्यूह—सर्किल बनता है। जो दिव्य उर्जा उतपन्न करता है।
पातंजलि के *सादृश्य व आन्तर्य* का सिद्धांत मौनमानसिक जप पर भी लागू होता है। मौनमानसिक जप से नकारात्मकता ऊर्जा दूर हटती है और ब्रह्मांड में व्याप्त सकारात्मक ऊर्जा जप कर रहे व्यक्ति की ओर आकृष्ट होती है। ऊर्जा चेतन है अतः मौन मानसिक जप में चेतन स्तर को झंकृत करना आसान होता है।
गायत्री मंत्र के मौन मानसिक जप से उतना ही पुण्य लाभ मिलता है जितना कि उपांशु जप से मिलता है। अतः जब जैसे वक्त मिले मौन मानसिक गायत्री जप करें, इस मौन मानसिक जप में अन्य कोई कर्मकाण्डीय मर्यादा जैसे षट कर्म, देव् आह्वाहन, भोग, पुष्प अर्पण, आसन पर बैठकर इत्यादि के पालन की जरूरत नहीं होती। इसे चलते फिरते उठते बैठते लेटते सोते सूतक इत्यादि में कभी भी कहीं भी जपकर पुण्यलाभ लिया जा सकता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय भाई, मंत्र वह ध्वनि है जो अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनती है। यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक तरंगात्मक ऊर्जा से व्याप्त है जिसके दो प्रकार हैं - नाद (शब्द) एवं प्रकाश। आध्यात्मिक धरातल पर इनमें से कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र मात्र वह ध्वनियाँ नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते हैं, या मुँह से बोलते हैं। यह ध्वनियाँ तो मंत्रों का लौकिक स्वरुप भर हैं।
गायत्री मंत्र जप जब पूजन स्थल पर जपें तो उपांशु (होठ हिले मग़र आवाज़ पास बैठे व्यक्ति को सुनाई न दे) विधि से करें।
जब यज्ञादि करें तो ज़ोर से गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए करें। मन्त्र का नाद अग्नि के प्रकाश में मिलकर अनन्य लाभ देता है।
यात्रा या चलते फ़िरते यदि जीभ हिलाते हुए जप करेंगे तो नाद ध्वनि अन्य लोगो द्वारा बोली गयी ध्वनि में मिलकर अपना अस्तित्व खो देगी। जबकि मौनमानसिक में किसी अन्य की बोली ध्वनि हमारे भीतर चल रहे मौन मानसिक जप का अस्तित्व खण्डित नहीं कर पाती। यदि ट्रेन यात्रा की बोगी में या रोड पर गाड़ी में यात्रा के दौरान आप अकेले हो और आसपास कोई न हो तो होठ हिलाते हुए जप कर सकते हो। बस ध्यान रहे कि किसी अन्य मानव की ध्वनि आपके मन्त्र जप की ध्वनि में मिले न कम से कम इतनी दूरी हो।
अन्य समय चलते उठते बैठते या कोई भी कार्य करते हुए मौन मानसिक जप करना चाहिए। अर्थात जप में न जीभ हिलनी चाहिए और न ही आवाज बाहर आनी चाहिए। मन ही मन जप होना चाहिए।इस तरह के जप कभी भी कहीं भी किये जा सकते हैं। कोई नियम पालन की आवश्यकता नहीं होती।।अशौच और सूतक के वक्त भी मौन मानसिक जप कर सकते हैं।
मौन मानसिक जप में सूक्ष्म ध्वनियां निकलती हैं, जिन्हें हम अपने भीतर सुनते हैं। इस प्रक्रिया से ब्रेन के अनावश्यक विचारों की सफाई होती है, दिमाग का कुहरा छंटता है। मौनमानसिक जप से उत्पन्न शक्ति प्रवाह नाड़ी तन्तुओं की तीलियों के सहारे सूक्ष्म चक्रों और दिव्य ग्रन्थियों तक पहुंचता है और उन्हें झकझोर कर जगाने, खड़ा करने में संलग्न होता है। जो इन जागृत चक्रों द्वारा रहस्यमयी सिद्धियों के रूप में साधक को मिलती है। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि यदि जपयोग को विधिवत् साधा गया होगा तो उसका सत्परिणाम उत्पन्न होगा ही। जप में शब्दों की पुनरावृत्ति होते रहने से उच्चारण का एक चक्र-व्यूह—सर्किल बनता है। जो दिव्य उर्जा उतपन्न करता है।
पातंजलि के *सादृश्य व आन्तर्य* का सिद्धांत मौनमानसिक जप पर भी लागू होता है। मौनमानसिक जप से नकारात्मकता ऊर्जा दूर हटती है और ब्रह्मांड में व्याप्त सकारात्मक ऊर्जा जप कर रहे व्यक्ति की ओर आकृष्ट होती है। ऊर्जा चेतन है अतः मौन मानसिक जप में चेतन स्तर को झंकृत करना आसान होता है।
गायत्री मंत्र के मौन मानसिक जप से उतना ही पुण्य लाभ मिलता है जितना कि उपांशु जप से मिलता है। अतः जब जैसे वक्त मिले मौन मानसिक गायत्री जप करें, इस मौन मानसिक जप में अन्य कोई कर्मकाण्डीय मर्यादा जैसे षट कर्म, देव् आह्वाहन, भोग, पुष्प अर्पण, आसन पर बैठकर इत्यादि के पालन की जरूरत नहीं होती। इसे चलते फिरते उठते बैठते लेटते सोते सूतक इत्यादि में कभी भी कहीं भी जपकर पुण्यलाभ लिया जा सकता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
Mene padha hai ke ratri ko gayatri mansik jap nahi karna chahia varna nukshan hota hai kya ye sahi hai?
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