Monday 26 August 2019

प्रश्न- *दुनियाँ में अनेक धार्मिक संगठन हैं, फिर उनकी भी अनेक शाखाएं है, उदाहरण हिंदुओं में भी अनेक धार्मिक संगठन है जो एक दूसरे की बुराई करते हैं और अलग अलग देवताओ को पूजते हैं, ऐसे में किसका अनुसरण करें? कृपया बताएं*

प्रश्न- *दुनियाँ में अनेक धार्मिक संगठन हैं, फिर उनकी भी अनेक शाखाएं है, उदाहरण हिंदुओं में भी अनेक धार्मिक संगठन है जो एक दूसरे की बुराई करते हैं और अलग अलग देवताओ को पूजते हैं,  ऐसे में किसका अनुसरण करें? कृपया बताएं*

उत्तर - आत्मीय बहन, सनातन धर्म की मूल विचार धारा से जुड़े धार्मिक संगठन कभी किसी के विरुद्ध नहीं बोलते, क्योंकि जब सनातन धर्म के अस्तित्व का उद्भव हुआ था तब कोई अन्य धार्मिक संगठन व सम्प्रदाय उतपन्न ही नहीं हुए थे।

सनातन धर्म एक वट वृक्ष है और अन्य धर्म उनकी डालियाँ। जो धार्मिक संगठन एक डाली के ज्ञान में पारंगत हुए वो दूसरी डाली के ज्ञान को हेय अल्पबुद्धि का परिचय देते हुए बताने लगे।

एक डाली दूसरी डाली की वैसे ही बुराई करती है जैसे एक ही घर के दो बच्चे लड़ते हैं और स्वयं को श्रेष्ठ बताते हैं। एक ही मार्ग की विभिन्न  *टूर एन्ड ट्रेवेल* एजेंसी स्वयं को बेस्ट बताती हैं।

मंजिल अध्यात्म की एक ही है, ईश्वर की मूल सत्ता व शक्ति केंद्र एक ही है। उस तक ही पहुंचना है। रास्तों की सुगमता व कठिनता के कारण उन में विरोधाभास हो सकता है। वाहन की स्पीड व सुविधा के कारण वाहन में विरोधाभास हो सकता है।

*उदाहरण* - यदि अपनी मम्मी से मिलने जाना है तो ध्यान मम्मी से मिलन पर केंद्रित कीजिये, मार्ग व वाहन का चयन अपनी सुविधा, धन, समय के अनुसार कर लीजिए।

इसी तरह अध्यात्म मार्ग व कर्मकांड वाहन के चयन में उलझकर मत रह जाइये, परमात्मा से मिलन रूपी मंजिल पर ध्यान केंद्रित कीजिये। जो राह व वाहन आपको समझ मे आये उसे चुन लीजिये औऱ अनवरत अध्यात्म पथ पर आगे बढिये। मंजिल तक जरूर पहुंचेंगे। वह मिलन आनन्ददायक होगा।

जीसस, पैगम्बर, बुद्ध, महावीर इत्यादि ने कभी नहीं कहा कि केवल उन्हें पूजो और केवल उनका अनुसरण करो। बल्कि उन्होंने तो स्वयं को भगवान का पुत्र माना व सबको उस शक्ति से जुड़ने को कहा। लेकिन जिन शिष्यों ने उनपर ग्रन्थ लिखे, उन्होंने अपनी श्रद्धा के अनुसार केवल उन्हें पूजने की नसीहत दी और केवल उन्हें ही अनुसरण करने को मोक्ष और स्वर्ग का मार्ग बताया।

सनातन धर्म किसी काल्पनिक स्वर्ग के लिए अध्यात्म से जुड़ने को नही कहता, सनातन धर्म नर से नारायण बनने की प्रक्रिया है। चेतना का रूपांतरण है। स्वयं को पूर्णता प्रदान करने की विधा है। स्वयं देवता बनो और जहाँ हो वहीँ स्वर्ग बसाओ यही सनातन धर्म की मूल परम्परा, लक्ष्य व उद्देश्य है। स्वयं के अंतर्जगत में शांति सुकून ऐश्वर्य स्थापित करने की विधा है। यहाँ सभी के लिए नर से नारायण बनने का द्वार सदैव खुला है।

इसी बात को युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं - *मनुष्य में देवत्व का उदय व धरती पर स्वर्ग का अवतरण* ।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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