Monday 26 August 2019

प्रश्न - *श्वेता बेटा, मेरे पतिदेव स्वयं चिकित्सक हैं और उन्हें "कैंसर" डिटेक्ट हुआ है। मुर्झा से गये हैं, गुमसुम रहते हैं, जिंदगी रिपोर्ट आने के बाद थम सी गयी है। तुम्हारा नम्बर मेरी एक पेशेंट ने दिया है। कृपया बताओ क्या करूँ*

प्रश्न - *श्वेता बेटा, मेरे पतिदेव स्वयं चिकित्सक हैं और उन्हें "कैंसर" डिटेक्ट हुआ है। मुर्झा से गये हैं, गुमसुम रहते हैं, जिंदगी रिपोर्ट आने के बाद थम सी गयी है। तुम्हारा नम्बर मेरी एक पेशेंट ने दिया है। कृपया बताओ क्या करूँ*

उत्तर- नमस्ते आँटी, रोगों की समस्त जड़ पेट व मन में होती है। मन में जमीं गांठो के कारण कैंसर शरीर की कोशिकाओं का विद्रोह है।

एलोपैथी इलाज के साथ साथ अंकल जी का *"यग्योपैथी"* द्वारा इलाज़ करवाइये, एक बार *युगतीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार जाइये व डॉक्टर वंदना से वहाँ देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार परिसर में मिलकर कैंसर की हवन सामग्री ले लीजिये*। उससे हवन कीजिये। *औषधीय युक्त मन्त्रऊर्जा की तरंग उनके मष्तिष्क कोशों में पहुंच के उनकी मन की गांठो को खोलेगी, मन के रिलैक्स होते ही विद्रोही सेल शरीर को सहयोग देने लगेंगे। पुनः जीवन के अस्तित्व को स्वस्थ करने के लिए औषधियों को स्वीकारने लगेंगे।*

कीमोथेरेपी विद्रोह को दबाने के लिए सैन्य प्रयोग है, यग्योपैथी विद्रोह को सन्धि व मित्रता द्वारा विद्रोह खत्म करने की विधि है।

👉🏻 *अंकल के मन के इलाज़ व उन्हें मोटिवेट करने के लिए निम्नलिखित बातें समझाएं।*

आशा ही जीवन है और निराशा ही मौत है। हमने व तुमने चिकित्सक जीवन में देखा कि आशावादी व्यक्ति क्लिनिकल कठिनाई के बाद भी बच गया और निराशावादी साधारण क्लिनिकल परिस्थिति में भी मर गया। कुछ घटनाओं से इसे समझिए:-

👉🏻 एक बार यमराज ने दस हज़ार व्यक्तियों की आत्माओं को लाने के लिए यमदूत भेजा। यमदूत बीस हज़ार से ज्यादा ले आया। पूछने पर दूत ने बताया कि महामारी पैदा करके मैंने मात्र दस हज़ार व्यक्तियों को आपके आदेशानुसार मारा। लेकिन अतिरिक्त दस हज़ार से ज्यादा भयभीत होकर, साहस व सन्तुलन गंवाकर बेमौत मर गए। लेकिन मेरे द्वारा मृत्यु फांस फेंके जाने पर भी कुछ दृढ़ मनोबल, अदम्य साहस, मानसिक सन्तुलन व प्रचण्ड ईश्वर विश्वास के साथ भीषण महामारी में भी नहीं मरे। वो अभी भी जीवित हैं।

अब तय आप करो कि भयभीत होकर समय से पहले जल्दी मरना है या मिलकर अदम्य साहस व प्रचण्ड ईश्वर विश्वास से इस महामारी से बहादुरी से लड़ना है।

👉🏻 सन 1981, इंग्लैंड में "पैट्रिक मेरी" नामक महिला को सीने का कैंसर हुआ। परीक्षण के वक्त पता चला कि कैंसर इतना फ़ैल चुका है कि बचना नामुमकिन है। अधिक से अधिक छः महीने बचे हैं। डॉक्टर ने कहा कैंसर परीक्षण की मशीन "कैट स्केनिंग" एक ही इंग्लैंड में मौजूद है, इसलिए प्रतीक्षा करनी पड़ी आपको। यदि हमारे शहर में कई मशीन होती तो आप जैसे कई लोग रोग का पता शुरुआती स्तर पर पता करके बच सकते थे।

महिला ने विचार किया, मैं तो मर रही हूँ। लेकिन छः महीने में यदि मैं तीन करोड़ विभिन्न शो करके कमा लूँ या डोनेशन मिल जाये तो कम से कम दो मशीनें कैंसर स्केनिंग की और लग जायेगी और हज़ारो की जान बच सकती है।  टेलिविजन व अन्य प्रचार प्रसार, शो व डोनेशन के माध्यम से दो मशीनें खरीद के हॉस्पिटल में इंस्टाल करवा दी। वह लोगों को कैंसर से जीवन बचाने के इस मुहिम इतनी तन्मय-तल्लीन व मनोयोग से जुट गई कि उसे स्वयं के शरीर व बीमारी का ध्यान ही न रहा। संकल्पित कार्य पूरा करने की ख़ुशी मना रही थी तो उसकी पुरानी दोस्त ने स्वास्थ्य पूंछा। जिस रोग वो भुलाए बैठी थी उसका पुनः परीक्षण करवाया तो कैंसर रोग नदारद था। रोग का नामोनिशान उसके शरीर में नहीं था।

इस घटना ने सिद्ध किया कि औषधियों, ऑपरेशन व चिकित्सक की कुशलता से ज्यादा मनोबल व सङ्कल्प बल ज्यादा प्रभावी है। बशर्ते उसे उभारा जा सके। अब आप तय करो कि आपको हमारे लिए स्वस्थ होना है तो मनोबल बढ़ाने में जुटिये।

👉🏻 जर्मनी के लेफ्टिनेंट कर्ट एंजिल जो कि विंग कमांडर थे, जुलाई 1957 में एक जहाज पर थे जिसमें आग लग गयी और पैराशूट काम नहीं कर रहा था। 1500 फीट की ऊंचाई से बिना पैराशूट से उन्होंने अपने आत्मबल के सहारे छलांग लगा दी, और अपने मन से कहा मैं बिना प्रयास किये नहीं हार मान सकता। जलकर मरने में कोई बहादुरी नहीं, कूदकर प्रयास किया तो मरा तो यह अफसोस नहीं होगा कि मैंने प्रयास नहीं किया। अधिक गति से गिरने के कारण पृथ्वी पर दो फीट गहरे धंस गए। उन्हें जब हॉस्पिटल लाया गया तब सीने की पसली व रीढ़ की हड्डी टूट चुकी थी, एक फेफड़ा फट गया था, गुर्दे खराब हो चुके थे, दर्द असहय था। जब डॉक्टर ने कहा बचना मुश्किल है तो एंजिल ने कहा जब इतनी ऊंचाई से कूदने में मैंने हार नहीं मानी तो आप इलाज में हार मत मानो। मैं बिना प्रयास किये मर नहीं सकता। वो दो महीने मृत्यु से लड़कर बच गए।

👉🏻 अरुणिमा सिन्हा का अप्रैल 2011 को लखनऊ से dehradun जाते समय उसके बैग और सोने की चेन खींचने के प्रयास में कुछ अपराधियों ने बरेली के निकट पदमवाती एक्सप्रेस से अरुणिमा को बाहर फेंक दिया था, जिसके कारण वह अपना एक पैर गंवा बैठी थी। उसने मनोबल से न सिर्फ़ मृत्यु पर विजय पाई अपितु एक नकली टांग से एवरेस्ट विजय की। अब आप तय करो मनोबल से इतिहास रचना है या टूटे मनोबल से रोग का रोना रोना है। आप एक तुच्छ रोग से हार नहीं सकते, मैं जानती हूँ आप विजेता है।

👉🏻 *कुछ तो कर यूँ ही मत मर,मरते दम तक प्रयास कर, विजेता की मौत मर* - एक रानी अपने पुत्र को एक ही मन्त्र देकर बड़ा किया "कुछ कर यूँ ही मत मर", "मरते दम तक प्रयास कर, विजेता की मौत मर"। राजकुमार जब राजा बना तो प्रत्येक युद्ध मे अजेय रहा। अन्य देश के राजाओं ने कहा इसे युद्ध मे हरा नहीं सकते। छल प्रयोग करो, रसोइया को और उनके दरबारी को रिश्वत देकर, बेहोशी की दवा देकर हाथ पैर बंधवा के गहन जंगल की एक अंधेरी गुफा में तड़फ तड़फ के मरने के लिए बंद कर दिया। जब बेहोशी से राजा उठा, तो देखा न जाने वो कहाँ है। समझ गया लेकिन करे तो क्या करे। तभी माता की बात याद आयी - *कुछ कर यूँ ही मत मर* , अतः वो रस्सी को काटने के लिए अनवरत नुकीले पत्थर से काटने लगा 4 घण्टे में रस्सी कटी तो जहरीले सर्प ने डस लिया। दूसरी विपत्ति में भी उसने मनोबल बनाये रखा और कमर की कटार निकाल के सर्प डंस का हिस्सा काटकर निकाल दिया। अब एक और नया दर्द और गुफा के पत्थर को धकेलना वो भी भूखा प्यासा। उसने कपड़ा फाड़ के घाव का रिश्ता खून बन्द किया और लहूलुहान होते हुए भी अनवरत प्रयास से उसने पत्थर को हिला दिया गुफा से बाहर निकला। पुनः सेना खड़ी की और राज्य पर अधिकार प्राप्त किया।

उपरोक्त सभी कथानक दो पुस्तकों - 📖 *युग की मांग प्रतिभा परिष्कार* और 📖 *मनस्विता, प्रखरता और तेजस्विता* (वांगमय 57) से आपको सुनाया। इन्हें ऑनलाइन मंगवा लीजिये और स्वयं पढ़िए तथा अंकल जी को पढवाईये:-

https://www.awgpstore.com/

आप मेरे फेसबुक पेज से समस्या समाधान की पोस्ट सीरीज से जुड़ जाइये

https://m.facebook.com/sweta.chakraborty.DIYA/?ref=bookmarks

शान्तिकुंज जाने से पहले ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा लीजियेगा, यदि शिविर अटेंड कर सकें तो और भी अच्छा रहेगा। तीर्थ चेतना भी लाभ देती है:-

http://www.awgp.org/social_initiative/shivir

अंत मे डॉक्टर अंकल से बोलिये- नहीं पता कि हमारे पास कितना समय है? लेकिन जितना समय है क्या उस प्रत्येक पल में जीवन को पूर्णता से जी सकते हैं क्या? प्रत्येक पल सुखद स्मृतियो से भर सकते हैं क्या? जीवन लम्बा उदास जीने से अच्छा, छोटा मग़र आनन्द से भरा होना चाहिए।

आत्मा अनन्त यात्री है, जीवन एक सराय है। यह यात्रा सुखद होगी या दुःखद यह हमारी मनःस्थिति तय करती है।

सुबह खाली पेट एक चम्मच नींबू का रस पानी के साथ पियें, साथ ही उन निम्बू के छिलको की चटनी बनाकर खा लीजिये। ऑर्गेनिक हल्दी का सेवन कीजिए। इन दो उपाय से कैंसर बढ़ना रुकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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