प्रश्न - *पूजन या पढ़ाई के वक्त मन में कामुक विचार परेशान करें, तो स्वयं को कैसे इससे बाहर लाएं, कृपया मार्गदर्शन करें..*
उत्तर - आत्मीय भाई, भगवान शिव ने काम देव को तीसरे नेत्र की अग्नि से उस वक्त जला कर राख कर दिया था जब उन्होंने शिव की समाधि को भंग करने का प्रयास किया था।
अतः सर्वप्रथम भगवान के समक्ष बैठ जाइए या जहां पढ़ाई कर रहे हैं वहां कमर सीधी, नेत्र बन्द, दोनों हाथ गोदी में और चेहरा थोड़ा आसमान की तरफ अर्थात ऊपर की ओर उठा हुआ हो। निम्नलिखित कल्पना करते हुए कामदेव को राख में बदलने वाले शिव का ध्यान करिये।
नेत्र बन्द किये हुए तीन बार जहां भौ के बीच तिलक लगाते हैं वहाँ अंगूठे से तिलक जैसे करते हैं वैसे रगड़िये फिंर हाथ गोदी में रख लीजिए। गुरूदेव से मन ही मन कामुकता से मुक्ति की प्रार्थना कीजिये। कल्पना कीजिये कि गुरूदेव सूक्ष्म शरीर से प्रकट हो गए, आपने उनके चरण छुए और उन्होंने तुम्हारे स्थूल शरीर से तुम्हारा सूक्ष्म शरीर बाहर निकाल दिया और साथ चलने का इशारा किया।
गुरूदेव आगे और तुम उनके पीछे हो। तुम स्वयं को हल्का व भारमुक्त रुई जैसा अनुभव कर रहे हो। हवा में उड़ते हुए आकाश मार्ग में कैलाश पहुंच गए।
गहरा नीले रंग का आसमान है, सर्वत्र बर्फ ही बर्फ है। एक हिम सिला पर शिव भगवान माता पार्वती के साथ बैठे हैं। गुरूदेव का सूक्ष्म शरीर भगवान शिव के भीतर प्रवेश कर तिरोहित हो गया। शिव व गुरूदेव एक हो गए, माता पार्वती जो श्वेत वस्त्रों में विराजमान थीं वो भी प्रकाश रूप में बदलकर शिव में समा गई, जितने गण व ऋषि वहां बैठे थे सब एक एक करके शिव में समाहित हो गए, मानो शिव यज्ञ हो और सब आहुति। अब तुम शिव को देख रहे हो।
शिव की लंबी जटाएं है, उनके सर पर चन्द्रमा और जटाओं में माता गंगा विराजमान हैं। माथे में त्रिपुंड एवं तीनो नेत्र अधखुले हैं। चेहरे पर हल्की मुस्कान और कान में कुंडल है। हाथों, कमर व गले मे रुद्राक्ष माला है। काला कोबरा नाग गले मे विराजमान है। शिव का गला विषपान के कारण नीला है। मृग की छाला पहने हैं, बाघ की छाल में बैठे हैं। शरीर पर विभूति है।।तुमने शिव के चरणों मे प्रणाम किया, शिव ने तुम्हे आशीर्वाद दिया, और साथ चलने को कहा।
शिव श्मशान पहुंचे, सर्वत्र लाशें जल रही है। उनकी लपट ऊंची ऊंची उठ रही है। श्मशान मानव देह का अंतिम पड़ाव है। एक चिता जो अभी अभी जलकर राख हुई है, शिव ने उस चिता की राख को अपनी देह में लगाया और फिंर अपनी देह में स्पर्श कर वही राख तुम्हारे माथे पर लगाया। तुमने भी शिव की तरह भभूत धारण किया। उसी श्मशान में शिव ने एक चट्टान पर तुम्हे बैठकर ध्यान करने का आदेश दिया व सामने की चट्टान पर स्वयं बैठ गए। उन्होंने तुम्हारे सर पर हाथ रखकर तुम्हारे अंदर के काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष को जलाकर राख कर दिया। आत्मा की अमरता व शरीर की नश्वरता का बोध जलती चिताओं को दिखाते हुए किया।
बताया यह शरीर ही शव है, इसे साधकर शिवत्व को पाओ। तुम अनुभव कर रहे हो कि शिव प्रकाश में बदल गए और अब शिव प्रकाश रूप में तुममें प्रवेश कर गए। अब तुममें ही शिव है।
शिवो$हम की अनुभूति से तुम भर गए हो। आत्मज्ञान से स्थिर चित्त हो। यह ध्यान 15 से 20 मिनट करो। उसके बाद पूजा करने या पढ़ने बैठो। पुनः कामुकता के विचार शिव आज्ञा से परेशान नहीं करेंगे।
📖 पुस्तक - आध्यात्मिक काम विज्ञान व 📖मानसिक सन्तुलन जरूर पढ़िये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, भगवान शिव ने काम देव को तीसरे नेत्र की अग्नि से उस वक्त जला कर राख कर दिया था जब उन्होंने शिव की समाधि को भंग करने का प्रयास किया था।
अतः सर्वप्रथम भगवान के समक्ष बैठ जाइए या जहां पढ़ाई कर रहे हैं वहां कमर सीधी, नेत्र बन्द, दोनों हाथ गोदी में और चेहरा थोड़ा आसमान की तरफ अर्थात ऊपर की ओर उठा हुआ हो। निम्नलिखित कल्पना करते हुए कामदेव को राख में बदलने वाले शिव का ध्यान करिये।
नेत्र बन्द किये हुए तीन बार जहां भौ के बीच तिलक लगाते हैं वहाँ अंगूठे से तिलक जैसे करते हैं वैसे रगड़िये फिंर हाथ गोदी में रख लीजिए। गुरूदेव से मन ही मन कामुकता से मुक्ति की प्रार्थना कीजिये। कल्पना कीजिये कि गुरूदेव सूक्ष्म शरीर से प्रकट हो गए, आपने उनके चरण छुए और उन्होंने तुम्हारे स्थूल शरीर से तुम्हारा सूक्ष्म शरीर बाहर निकाल दिया और साथ चलने का इशारा किया।
गुरूदेव आगे और तुम उनके पीछे हो। तुम स्वयं को हल्का व भारमुक्त रुई जैसा अनुभव कर रहे हो। हवा में उड़ते हुए आकाश मार्ग में कैलाश पहुंच गए।
गहरा नीले रंग का आसमान है, सर्वत्र बर्फ ही बर्फ है। एक हिम सिला पर शिव भगवान माता पार्वती के साथ बैठे हैं। गुरूदेव का सूक्ष्म शरीर भगवान शिव के भीतर प्रवेश कर तिरोहित हो गया। शिव व गुरूदेव एक हो गए, माता पार्वती जो श्वेत वस्त्रों में विराजमान थीं वो भी प्रकाश रूप में बदलकर शिव में समा गई, जितने गण व ऋषि वहां बैठे थे सब एक एक करके शिव में समाहित हो गए, मानो शिव यज्ञ हो और सब आहुति। अब तुम शिव को देख रहे हो।
शिव की लंबी जटाएं है, उनके सर पर चन्द्रमा और जटाओं में माता गंगा विराजमान हैं। माथे में त्रिपुंड एवं तीनो नेत्र अधखुले हैं। चेहरे पर हल्की मुस्कान और कान में कुंडल है। हाथों, कमर व गले मे रुद्राक्ष माला है। काला कोबरा नाग गले मे विराजमान है। शिव का गला विषपान के कारण नीला है। मृग की छाला पहने हैं, बाघ की छाल में बैठे हैं। शरीर पर विभूति है।।तुमने शिव के चरणों मे प्रणाम किया, शिव ने तुम्हे आशीर्वाद दिया, और साथ चलने को कहा।
शिव श्मशान पहुंचे, सर्वत्र लाशें जल रही है। उनकी लपट ऊंची ऊंची उठ रही है। श्मशान मानव देह का अंतिम पड़ाव है। एक चिता जो अभी अभी जलकर राख हुई है, शिव ने उस चिता की राख को अपनी देह में लगाया और फिंर अपनी देह में स्पर्श कर वही राख तुम्हारे माथे पर लगाया। तुमने भी शिव की तरह भभूत धारण किया। उसी श्मशान में शिव ने एक चट्टान पर तुम्हे बैठकर ध्यान करने का आदेश दिया व सामने की चट्टान पर स्वयं बैठ गए। उन्होंने तुम्हारे सर पर हाथ रखकर तुम्हारे अंदर के काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष को जलाकर राख कर दिया। आत्मा की अमरता व शरीर की नश्वरता का बोध जलती चिताओं को दिखाते हुए किया।
बताया यह शरीर ही शव है, इसे साधकर शिवत्व को पाओ। तुम अनुभव कर रहे हो कि शिव प्रकाश में बदल गए और अब शिव प्रकाश रूप में तुममें प्रवेश कर गए। अब तुममें ही शिव है।
शिवो$हम की अनुभूति से तुम भर गए हो। आत्मज्ञान से स्थिर चित्त हो। यह ध्यान 15 से 20 मिनट करो। उसके बाद पूजा करने या पढ़ने बैठो। पुनः कामुकता के विचार शिव आज्ञा से परेशान नहीं करेंगे।
📖 पुस्तक - आध्यात्मिक काम विज्ञान व 📖मानसिक सन्तुलन जरूर पढ़िये।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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