Sunday, 4 August 2019

कविता - तय कर लो, चयन कर लो

*कविता - तय कर लो, चयन कर लो*

तय कर लो, चयन कर लो,
किस्मत का रोना रोना है,
या कुछ कर गुजरना है,
तय कर लो, चयन कर लो,
समस्या गिनना है,
या समाधान खोजना है।

तय कर लो, चयन कर लो...

कब मुसीबत नहीं थीं,
किसी इंसान के जीवन में,
कब सब ठीक था,
हर किसी के जीवन मे,
पाषाण युग से अब तक,
जीवन संघर्ष ही तो बना हुआ है,
धरती को वीरों ने ही भोगा,
क्या यह सत्य तू भूल गया है।

तय कर लो, चयन कर लो,
बहादुरी से संघर्ष लड़ना है,
या पीठ दिखा के भागना है...

जीवन में सबके कुछ न कुछ कमी है,
जीवन में सबके कुछ न कुछ बेहतर तो भी है,
कभी ख़ुशी तो कभी आँखें नम भी है,
आधी ग्लास भरी और आधी ग्लास खाली भी है।

तय कर लो, चयन कर लो,
आधी भरी ग्लास लेकर सुखी होना है,
या आधी ग्लास का देखकर रोना है।

जैसी दृष्टि होगी,
वैसी ही आसपास सृष्टि होगी,
जैसी विचारधारा होगी,
वैसी ही तुम्हारी जीवनधारा होगी,

तय कर लो, चयन कर लो,
अच्छे नजरिए से दुनियाँ देखना है,
या अपने ख़राब नजरिये का दोष,
दुनियाँ व दूसरों पर मढ़ना है।

बिल्ली से सुरक्षित पिजड़े में तोता है,
बिना कुछ मेहनत उसे भोजन मिलता है,
सर्कस का शेर भी बैठे बैठे खाता है,
रिंग मास्टर के इशारों पर करतब दिखाता है,
जंगल में शेर व तोता मेहनत करता है,
असुरक्षित संघर्षरत चुनौती भरा,
लेकिन आज़ादी का जीवन जीता है।

तय कर लो, चयन कर लो,
पिजड़े का तोता,
व सर्कस का शेर बनना है,
या आज़ाद जंगल का तोता,
व जंगल का शेर बनना है।

जंगल का शेर बनोगे,
तो जीवन मे संघर्ष को चुनोगे,
अपने कम्फर्ट ज़ोन को,
सदा सर्वदा के लिए अलविदा कहोगे,
बैठे बिठाए भोजन तो न मिलेगा,
संघर्ष ही संघर्ष जीवन में भी दिखेगा।
लेक़िन इस संघर्ष में आनन्द भी होगा,
आज़ादी व आत्मसम्मान का भाव भी होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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