Sunday, 4 August 2019

कविता - वासना दुष्पूर(कभी पूरी न हो सकने वाली) है।

*कविता - वासना दुष्पूर है।*

वासना दुष्पूर है,
दुष्पूर ही रहेगी,
यह अधूरी थी, अधूरी है,
और सबकी अधूरी ही रहेगी।

शहंशाओ की वासना,
कभी पूरी न हुई,
सेठ साहूकारों की वासना भी,
सदा अधूरी ही रही।

न किसी विवाहित जोड़े का,
अमर प्रेम किसी ने सुना है,
न किसी वेश्यागामी को तृप्त-संतुष्ट,
कभी किसी ने देखा है।

वासना एक घाव में जन्मी खुजली की तरह है,
खुजलाने पर मिली राहत के भ्रम की तरह है,
घाव और वासना का उपचार जरूरी है,
घाव ठीक करने के लिए मलहम,
और वासना रूपांतरण के लिए ध्यान जरुरी है।

वासना की बिन पेंदी की यह बाल्टी,
किसी भी हाल में भर न सकेगी,
वासना सदा दुष्पूर है,
सदा दुष्पूर ही रहेगी।

वासना की पूर्ति,
बड़ी शर्मनाक है,
वासना का दमन,
उतना ही ख़तरनाक है,
वासना की पूर्ति,
तृष्णा की आग और भड़कायेगा,
वासना का दमन,
मानसिक रोग-विक्षिप्तता को और बढ़ाएगा।

ध्यान केवल ईश्वरीय ध्यान ही,
इसके रूपांतरण का माध्यम है,
आत्मजागरण *कौन हूँ मैं*?
यह जानना ही समाधान है।

सत्साहित्य का स्वाध्याय,
आत्मजागरण में मदद करेगा,
होशपूर्वक जीने की राह,
स्वाध्याय ही प्रसस्त करेगा।

अंधेरे से प्रकाश की ओर बढ़े चलो,
असत्य से सत्य की ओर बढ़े चलो,
नित्य ध्यान करो, ध्यान करो, ध्यान करो,
और मृत्यु से अमरत्व की ओर  बढ़े चलो।

नित्य ध्यान के अभ्यास से ही,
आत्मजागरण हो सकेगा,
काम ऊर्जा का रूपांतरण,
केवल ध्यान ही कर सकेगा।

शांति सुकून व पूर्णता,
आत्मचेतना के जागरण से सम्भव होगा,
ईश्वरीय चेतना के मिलन से ही,
सच्ची पूर्णता का आभास होगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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