Wednesday, 7 August 2019

कविता - *माँ, मुझे पढ़ना है*

कविता - *माँ, मुझे पढ़ना है*

माँ, मुझे नित्य कुछ अच्छा पढ़ना है,
मुझे नित्य कुछ नया सीखना है,
माँ मुझे नित्य कुछ अच्छा पढ़ना है,
मुझे अपने ज्ञान श्रोत से जुड़ना है।

माँ मुझे नित्य कुछ अच्छा पढ़ना है...

माँ, यदि पैर चलेगा नहीं,
तो यह ख़राब हो जाएगा,
माँ, यदि दिमाग़ पढ़ेगा नहीं,
तो यह दिमाग़ भी खराब हो जाएगा।

माँ, यदि खाऊंगा नहीं,
तो शक्तिहीन हो जाऊंगा,
माँ, यदि पढूंगा नहीं,
तो बुद्धिहीन बन जाऊँगा।

माँ, शरीर का भोजन अन्न है,
मन का भोजन ज्ञान है,
और माँ, ज्ञान का स्त्रोत विचार है,
विचार का स्रोत ये क़िताब है।

माँ, यदि खेलूँगा नहीं,
तो चुस्त दुरुस्त न रह पाऊँगा,
माँ, वैसे ही पढूँगा नहीं,
तो अस्त व्यस्त हो जाऊंगा।

माँ, शिक्षा ही मुझे बुद्धिमान बनाएगी,
ये किताबें ही मुझे जीवन मे राह दिखाएगी,
महापुरुषों और ज्ञानियों के विचारों से,
यह किताबें ही परिचय करवाएंगी।

मेरे जीवन की सफ़लता का रास्ता,
इन किताबों से होकर ही गुज़रेगा,
ऋषियों के ज्ञान को पढ़कर ही,
भीतर के ज्ञान का श्रोत मिलेगा।

माँ, सभी सफल व्यक्तियों की,
सच्ची मित्र किताब है,
सबके नित्य किताब पढ़ने का,
सङ्कल्प समान है।

माँ, मेरी भी सच्ची मित्र,
अब किताब है,
संसार रूपी समुद्र का,
यह जहाज है।

माँ मुझे अंतर्द्वंद्व का,
महाभारत जीतना है,
कृष्ण की गीता का,
नित्य स्वाध्याय करना है।

वो हथियार बिना उठाये,
मुझे जीवन में विजय दिला देंगे,
गीता के नित्य स्वाध्याय से,
वो मेरा बुद्धिरथ सम्हाल लेंगे।

माँ मुझे नित्य कुछ अच्छा पढ़ना है,
मुझे कुछ नित्य नया सीखना है,
माँ मुझे नित्य कुछ अच्छा पढ़ना है,
मुझे अपने ज्ञान श्रोत से जुड़ना है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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