Friday, 30 August 2019

प्रश्न - *बहिन जी प्रणाम, कृपया सर्वधर्म समभाव के आधारभूत तत्व विषय पर नोटस भेजने की कृपा करे।*

प्रश्न - *बहिन जी प्रणाम, कृपया सर्वधर्म समभाव के आधारभूत तत्व विषय पर नोटस भेजने की कृपा करे।*

उत्तर - आत्मीय भाई,

हम सभी वैदिक सनातन धर्म की डालियाँ है, हम सबकी जड़ में वैदिक संस्कृति है। एक ही लक्ष्य है मानव जाति का कल्याण एवं भारतीय संस्कृति की घर घर मे स्थापना है। धर्म की स्थापना के तरीके अलग अलग हो सकते हैं, लेकिन लक्ष्य अलग नहीं है।

आइये हम सब अपने अपने तरीको के कॉमन पॉइंट्स ढूँढे जो एक दूसरे से मिलते हैं, और उन कॉमन वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के सूत्रों पर मिलकर काम करते हैं।

स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन व सभ्य समाज के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आइये एकजुट हो जाएं। भारत को विश्वगुरु बनाएं।

*"संस्कृति" का अर्थ है वह कृति- कार्य पद्धति जो संस्कार संपन्न हो*।। व्यक्ति की उच्छृंखल मनोवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित कर कैसे उसे संस्कारी बनाया जाय यह सारा अधिकार क्षेत्र संस्कृति के मूर्धन्यों का है एवं इसी क्षेत्र पर हमारे ऋषिगणों ने सर्वाधिक ध्यान दिया है ।।

भारतीय संस्कृति हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है ।। इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के- वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं ।। हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है ।। मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पायें, यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है ।। भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत, सुधारक, शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषी, ऋषि, महामानव, देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है ।। सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है ।।

भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठता, अपने साथ कड़ाई, औरों के प्रति उदारता, विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्याग, अनीतिपूर्ण नहीं- नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुता, स्वच्छता- शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालन, परिवार- व राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालन, अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस- मन्यु, पितरों की तृप्ति हेतु तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु स्थान- स्थान पर वृक्षारोपण कर हरीतिमा विस्तार तथा अवतारवाद का हेतु समझते हुए तदनुसार अपनी भूमिका निर्धारण सभी पक्षों का बड़ा ही तथ्य सम्मत- तर्क विवेचन पूज्यवर ने इसमें प्रस्तुत किया है ।।

वर्णाश्रम पद्धति हमारी संस्कृति की विशेषता है एवं समाज की सुव्यवस्था की एक सुदृढ़ आधार शिला है ।। आज इस संबंध में अनेकानेक भ्रान्तियाँ फैला दी गयी हैं पर वस्तुतः यह सारी विधि व्यवस्था मानवी जीवन को व उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों को एक निर्धारित क्रम में बाँधने के लिए बनी थीं ।। इसी सामाजिक पक्ष में संस्कृति के खान- पान, जाति- पाँति, ऊँच- नीच, भाषा वेश, गुण- कर्म की परिष्कार से समाज की आराधना जैसे अनेकानेक पक्ष आ जाते हैं इनका वर्णन विस्तार से हुआ है ।। गुरु, गायत्री, गंगा, गौ व गीता ये पाँच हमारी संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आधारस्तंभ माने जाते हैं ।। इनके प्रति श्रद्धा रख हम अपनी सांस्कृतिक गौरव गरिमा का अभवर्धन करते हैं एवं इनके माध्यम से अनेकानेक अनुदान भी दैनन्दिन जीवन में पाते हैं ।।

संक्षेप में,  हमारी भारतीय संस्कृति मनुष्य को निम्नलिखित बनाती है:-


*आस्तिक* - स्वयं पर और स्वयं को बनाने वाले परमात्मा पर भरोसा करना। सर्वशक्तिमान परमात्मा के हम सर्वशक्तिमान सन्तान हैं।

*धार्मिक* - धर्म अर्थात कर्तव्य पालन - स्वयं के प्रति, परिवार के प्रति समाज के प्रति व राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों और उत्तरदायित्व का पालन करना।

*गायत्री मन्त्र की दीक्षा* - श्रेष्ठता का वरण, सही मार्ग पर आरूढ़ रहना। स्वयं की बुद्धि में परमात्मा को धारण करना और उनके अनुशासन में श्रेष्ठ जीवन जीना। आत्म अनुशासन पालना और स्वयं के विचारों का प्रबंधन करना।

गौ, गंगा, गीता व गायत्री यह वह चार स्तम्भ हैं जिन पर भारतीय संस्कृति खड़ी है, इन चारों आधारों को मजबूत करने के लिए हम सबको एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए।

गायत्री व यज्ञ एक दूसरे के पूरक हैं, एक सद्बुद्ध व दूसरा क्रमशः सत्कर्म की प्रेरणा देता है। दोनो के ही वैज्ञानिक आधार व आधुनिक रिसर्च भी उपलब्ध है, AIIMS में, देवसंस्कृति विश्विद्यालय में औऱ देशविदेश में आयोजित प्रायोगिक रिसर्च सर्वत्र सिद्ध हो चुका है कि गायत्री मंत्र जप से बुद्धि का विकास होता है और अच्छे हार्मोन्स रिलीज़ होते हैं। यज्ञ से रोगोपचार व पर्यावरण प्रदूषण नियन्त्रण भी सिद्ध हो चुका है। यह मान्य चिकित्सा प्रणाली है।

चन्द्रयान 2 हो या मंगलयान हो, ISRO भारतीय ऋषि आर्यभट्ट व रामानुजम की गणित पर काम कर रहा है न कि NASA की नकल कर रहा है, NASA भी प्राचीन वैदिक ग्रंथो को पढ़कर उन सूत्रों पर कार्य कर रहा है। क्या हम सब मिलकर अपने बच्चों को आधुनिक विज्ञान व प्राचीन ज्ञान नहीं पढ़ा सकते? जिससे उनका बहुमुखी विकास हो, हमारा देश विश्व गुरु बने। देश हम सबका समूह है, देश को विश्व गुरु बनाने के लिए हम सभी को ज्ञान के मूल स्रोत से जुड़ना होगा। हमारे परमपूज्य युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य ने सभी वैदिक ग्रंथों का हिंदी भावार्थ विभिन्न पुस्तको में उपलब्ध करवा दिया है। हम सब मिलकर इन पुस्तकों को पढ़कर एक जुट होकर भारत के उत्थान में मदद कर सकते हैं। बच्चों को गौरान्वित महसूस करवा सकते है, उन्हें यह देवसंस्कृति भारतीय संस्कृति की धरोहर उनके हाथों में सौंप सकते है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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