Monday, 16 September 2019

कविता - मन की इंजीनियरिंग का विज्ञान- गर्भ सँस्कार*

*मन की इंजीनियरिंग का विज्ञान- गर्भ सँस्कार*

मन शरीर के साथ भी,
शरीर के छोड़ने के बाद भी,
साथ रहता है,
साथ चलता है,
चिता में मन नहीं जलता है,
मन तो जीवात्मा के साथ ही रहता है।

हमारी अच्छी या बुरी आदतें,
हमारे अच्छे या बुरे दृष्टिकोण,
हमारी पसन्द या ना पसंद,
सबकुछ यह मन स्टोर करता है,
यही मन फिर हमारा,
अच्छा या बुरा व्यक्तित्व गढ़ता है।

नये जन्म में,
नए शरीर में,
पुराने संस्कारों के बीज,
साथ लिए,
यह भी जन्मता है,
उन बीजों को,
शनै: शनै: वृक्ष बनाता है,
मानव व्यक्तित्व में,
वहीं गुण कर्म स्वभाव को उभारता है।

गर्भ सँस्कार द्वारा,
इसी मन को तो,
हम संस्कारित करते हैं,
बुरे संस्कारो को,
अच्छे संस्कारों से बदलते हैं,
अच्छे संस्कारो को,
खाद पानी देते हैं,
मन की पुनः इंजीनियरिंग करते हैं,
सकारात्मक गुण कर्म स्वभाव,
गर्भस्थ में उभारते हैं।

हम अंतर्यामी नहीं कि,
गर्भस्थ आत्मा के साथ लाये,
मन को ठीक तरह से जान सकें,
गर्भस्थ आत्मा के व्यक्तित्व को,
पहचान सकें,
अतः उत्तम यह है कि,
उत्तम संस्कारों से,
गर्भस्थ मन को ओतप्रोत कर दें,
पुराने संस्कारो का,
यथासम्भव निष्कासन कर दें,
नए अच्छे संस्कारों का,
मन में बीजारोपण कर दें।

अतः अनुरोध है कि,
प्रत्येक गर्भिणी तक,
यह सन्देश पहुंचा दें,
गर्भस्थ शिशु के,
मन की इंजीनियरिंग का ज्ञान विज्ञान,
प्रत्येक गर्भिणी समझा दें,
गर्भ से ही देवमानव गढ़ने की,
विधिव्यवस्था सिखला दें।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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