प्रश्न - *सवा लाख के जप के साथ चन्द्रायण करना चाहती हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो क्या खाना है, कितना जप करना है, कौन सा ध्यान व कौन सी पुस्तक का स्वाध्याय करना है।*
उत्तर -जीवन को साधनामय बनाने के शुभ सङ्कल्प के लिए बधाई स्वीकार करें।
तप की ऊर्जा यदि भावनात्मक विकारों का शमन नहीं किया तो विकारों को बढ़ा देगी। जैसे बिजली से हीटर भी चलता है और एयरकंडीशनर भी, उसी तरह तप भी एक ऊर्जा है। अतः यदि आप स्वभावतः क्रोधी हुई तो यह क्रोध की पॉवर बढ़ा देगा। यदि आप घृणा से भरकर किसी को गाली देंगी तो यह उसकी पावर भी बढा देगा। तब फ़ायदा कम व नुकसान ज्यादा होगा।
ऐसा होगा मानो *अंधी आटा पीसे मेहनत करके व कुत्ता खाये जाए* , तप की मेहनत क्रोध व घृणा रूपी कुत्ता खा जाएगा।
🙏🏻 अतः पहले जल लेकर सङ्कल्प पूर्वक सन्यास लीजिये। जिनका बुरा आपने जाने अनजाने में किया है उन आत्माओ से गुरुदेव की सूक्ष्म उपस्थिति व साक्षी में क्षमा माँगिये। जिन्होंने आपको जाने अनजाने में दुःख कष्ट पीड़ा दी है उन्हें आप क्षमा कर दीजिए। सभी रिश्तों के भावनात्मक लगाव से मानसिक मुक्ति ले लीजिए। आज से पड़ोसी के बेटे व आपके बेटे में फर्क नहीं हो। बहु, बेटे, पति के कुवचन व गालियां भी आपको विचलित न करें। गली के कुत्ते के भोंकने व इन सब के गाली में फर्क समझ नहीं आना चाहिए। कुत्ते को क्षमा करें व इनको भी क्षमा करें। स्वयं कुत्तो की तरह कोई भी अपशब्द मुंह से न निकाले। क्योंकि वह नर-पशु है और आप नर से नारायण बनने की चेतना की शिखर यात्रा शुरू करने जा रही हैं। नर-नारायण गाली नहीं देते, अपशब्द नहीं बोलते। वो तो बुद्ध की तरह प्रेम, सेवा व करुणा बरसाते हैं।
परमहंस बालक योगी बनिये, जो मिल जाये खा लीजिये, जिह्वा पर विजय प्राप्त कीजिये।
यदि उपरोक्त शर्त क्षमा की मंजूर हो तभी यह तप फलित होगा, अन्यथा सब व्यर्थ जाएगा।
आइए *मैं* को मिटाकर *ईश्वर* बनने के लिए बढ़े, भगवान *भक्ति-भाव, श्रद्धा-विश्वास* में मिलते हैं। अतः उनपर विश्वास कर यह यात्रा प्रारंभ कीजिये। जो आसानी से सधे वह नियम अपना लीजिये।
*अनुष्ठान का नाम - *चांद्रायण साधना*🙏
*पूर्णिमा से पूर्णिमा तक*🙏
*पापों के प्रायश्चित्त के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वोपरि वर्णन किया गया है*।
प्रायश्रित्त शब्द प्रायः+चित्त शब्दों से मिल कर बना है। इसके दो अर्थ होते है।
प्रायः पापं विजानीयात् चित्तं वै तद्विशोभनम्।
प्रायोनाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते॥
(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि। प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।
(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय। प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।
दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना। तप का यही उद्देश्य भी है। चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है। चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना। इस महाव्रत के कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं -
(1) *पिपीलिका मध्य चान्द्रायण*।
एकैकं ह्रासयेत पिण्डं कृष्ण शुलेच वर्धवेत।
उपस्पृशंस्त्रिषवणमेतच्चान्द्रायणं स्मृतम्॥
अर्थात्- पूर्णमासी को 15ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए। चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे। इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज
(2) *यव मध्य चान्द्रायण* -
प्तमेव विधि कृत्स्न माचरेद्यवमध्यमे।
शक्ल पक्षादि नियतश्चरंश्चान्द्रायणं व्रतम्॥
अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें। फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे। इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज
(3) *यति चान्द्रायण*
अष्टौ अष्टौ समश्नीयात् पिण्डन् माध्यन्दिने स्थिते।
नियतात्मा हविष्याशी यति चान्द्रायणं स्मृतम्॥
अर्थात्- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें। इसे यति चांद्रायण कहते है। इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज
(4) *शिशु चान्द्रायण*
बतुरः प्रातरश्नीयात् पिण्डान् विप्रः समाहितः।
चतुरोऽख्त मिते सूर्ये शुशुचान्द्रायणं स्मृतम्॥
अर्थात्- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें। इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज
(5) *मासपरायण* - चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का(दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें। भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज या 10 माला या 5 माला रोज
👇🏻तिथि की वृद्धि तथा क्षय हो जाने पर ग्रास की भी बुद्धि तथा कमी हो जाती है। ग्रास का प्रमाण मोर के अड्डे, मुर्गी के अड्डे, तथा बड़े आँवले के बराबर माना गया है। बड़ा आँवला और मुर्गी के अंडे के बराबर प्रमाण तो साधारण बड़े ग्रास जैसा ही है। परन्तु मोर का अंडा काफी बड़ा होता है। एक अच्छी बाटी एक मोर के अंडे के बराबर ही होती है। इतना आहार लेकर तो आसानी से रहा जा सकता है। पिण्ड शब्द का अर्थ ग्रास भी किया जाता है और गोला भी। गोला से रोटी बनाने की लोई से अर्थ लिया जाता हैं यह बड़ी लोई या मोर के अंडे क प्रमाण निर्बल मन वाले लोगों के लिए भले ही ठीक हो। पर साधारणतः पिण्ड का अर्थ ग्रास ही लिया जाता है।
शाम को रोटी के साथ लौकी की सब्जी या दाल लें। सब्जी एवं दाल में केवल शुद्ध घी, सेंधा नमक, जीरा, धनिया और टमाटर डाल सकते हैं। एक वक़्त यदि ग्रास वाला भोजन ले रहे हैं दो दूसरे समय किसी एक फ़ल का रसाहार लें या दूध लें या छाछ लें।
जल कम से कम 6 से 8 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है। अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।
चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए। ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है। मन्त्र जप एक बार मे पूरा नहीं जपना है, कई बार में बैठ बैठ कर सुविधानुसार जप लें।
यदि वृद्ध हैं तो कुर्सी में साफ कम्बल बिछा को ऐसे बिछाए कि कुर्सी से नीचे पैर तक फैला हो। उस पर बैठने से पूर्व कमर में छोटी सोफे की साफ तकिया का सहारा ले लें। कुर्सी में बैठकर कमर सीधी करके जप कर लें। पैर कम्बल पर ही होना चाहिए।
बाथरूम या अन्य कारण से उठना पड़े तो अच्छे से हाथ पैर धोकर पुनः बैठे।
*ध्यान* - *ध्यान में नित्य सुबह गंगा नदी में स्नान करें, उगते हुए सूर्य को गंगा जल का अर्घ्य दें, गंगा जी के किनारे शंकर भगवान को गंगा जल का अर्घ्य दें, फ़िर थोड़ी देर वहीं बैठ कर जप करें। उसके ततपश्चात शान्तिकुंज गुरुधाम आएं व समाधि के दर्शन करें, फिर यज्ञ में सम्मिलित हों। ततपश्चात सप्तर्षि मंदिर के दर्शन करें और उनका आशीर्वाद लें। फिर माता गायत्री के दर्शन करें, वहाँ बैठी बहनों से चरणामृत रूपी आशीर्वाद लें व उसे पी लें। नल में हाथ धोएं व तुलसी माता को मंदिर के पास प्रणाम करें। आगे अखण्डज्योति दर्शन को जाएं वहाँ दर्शन करके फिर गुरुदेव के कमरे में उनके दर्शन हेतु प्रवेश करें। नीली दिव्य रौशनी और कमल की दिव्य खुशबु से रूम भरा है। गुरुदेव अखण्डज्योति लिख रहे हैं और बेड पर बैठी माता जी लोगो के प्रश्नों के उत्तर लिख रही हैं। आप माता के चरणों मे प्रणाम करते हैं तो माता आपके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए आपका हालचाल लेती हैं। आप अपना दुःख दर्द उन्हें सुनाते हो वो समाधान देती हैं। फिर आप गुरुदेव के चरणों मे प्रणाम करते हो, गुरुदेव अपने दाहिने चरण से आपके मष्तिष्क भूमध्य जहां तिलक व बिंदी लगाते हैं वहाँ स्पर्श करते हैं गुरु की प्राण चेतना आपके भीतर प्रवेश कर जाती है। आपके भीतर एक दिव्य साधक का जन्म होता है। इस ध्यान में खो जाइये, आगे कल्पना जोड़ते जाइये।*
*पुस्तक का नाम स्वाध्याय के लिए* -
📖 अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार,
📖 ईश्वर कौन है कहां है और कैसा है
📖 उपासना के दो चरण- जप और ध्यान
📖साधना में प्राण आ जाये तो कमाल हो जाये
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
*अनुष्ठान* - *एक मास* में एक *सवा लाख गायत्री मंत्र जप* अनुष्ठान करें या *कम से कम तीन 24 हज़ार* के अनुष्ठान करें तो उत्तम है। इतना न सधे तो कम से *कम दो 24 हज़ार के* या *एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।*
यदि जप तप ध्यान प्राणायाम योग और स्वाध्याय सन्तुलित हुआ तो कमज़ोरी लगने का कोई सवाल ही उतपन्न न होगा। लेकिन यदि इसमें व्यतिक्रम हुआ अर्थात व्रत हुआ बाकी न हुआ किसी कारण वश किसी दिन तो कमज़ोरी आ सकती है। तो ऐसी अवस्था मे ग्लूकोज़ पानी पी लें या किसी फल का रसाहार ले लें। फलों के रसों का सेवन आवश्यकतानुसार कर लें।
प्रत्येक ग्रास का प्रथम गायत्री से अनुमंत्रण करे फिर ॐ। भूः। भूवः। स्वः। महः। जनः। तपः। सत्यं। यशः। श्रीः। अर्क। ईट। ओजः । तेजः। पुरुष। धर्म। शिवः इनके प्रारम्भ में ‘ॐ’ और अन्तः ‘नमः स्वाहा’ संयुक्त करके उस मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रास का भक्षण करें यथा- ‘ॐ सत्यं नमः स्वाहा’। ऊपर पंद्रह मंत्र लिखे हैं। इसमें से उतने ही प्रयोग होंगे जितने कि ग्रास भक्षण किये जायेंगे, जैसे चतुर्थी तिथि को चार ग्रास लेने हैं तो (1) ॐ नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (3) ॐ भुवः नमः स्वाहा (4) ॐ स्वः नमः स्वाहा इन चार मंत्रों के साथ एक एक ग्रास ग्रहण किया जायगा।
व्रत की समाप्ति पर *मां भगवती भोजनालय में दान दें* तथा सत्साहित्य में *हारिये न हिम्मत* और *मन्त्रलेखन पुस्तिका* ज्ञान दान में बांटे है।
*Reference Article* - http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/November/v2.14
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर -जीवन को साधनामय बनाने के शुभ सङ्कल्प के लिए बधाई स्वीकार करें।
तप की ऊर्जा यदि भावनात्मक विकारों का शमन नहीं किया तो विकारों को बढ़ा देगी। जैसे बिजली से हीटर भी चलता है और एयरकंडीशनर भी, उसी तरह तप भी एक ऊर्जा है। अतः यदि आप स्वभावतः क्रोधी हुई तो यह क्रोध की पॉवर बढ़ा देगा। यदि आप घृणा से भरकर किसी को गाली देंगी तो यह उसकी पावर भी बढा देगा। तब फ़ायदा कम व नुकसान ज्यादा होगा।
ऐसा होगा मानो *अंधी आटा पीसे मेहनत करके व कुत्ता खाये जाए* , तप की मेहनत क्रोध व घृणा रूपी कुत्ता खा जाएगा।
🙏🏻 अतः पहले जल लेकर सङ्कल्प पूर्वक सन्यास लीजिये। जिनका बुरा आपने जाने अनजाने में किया है उन आत्माओ से गुरुदेव की सूक्ष्म उपस्थिति व साक्षी में क्षमा माँगिये। जिन्होंने आपको जाने अनजाने में दुःख कष्ट पीड़ा दी है उन्हें आप क्षमा कर दीजिए। सभी रिश्तों के भावनात्मक लगाव से मानसिक मुक्ति ले लीजिए। आज से पड़ोसी के बेटे व आपके बेटे में फर्क नहीं हो। बहु, बेटे, पति के कुवचन व गालियां भी आपको विचलित न करें। गली के कुत्ते के भोंकने व इन सब के गाली में फर्क समझ नहीं आना चाहिए। कुत्ते को क्षमा करें व इनको भी क्षमा करें। स्वयं कुत्तो की तरह कोई भी अपशब्द मुंह से न निकाले। क्योंकि वह नर-पशु है और आप नर से नारायण बनने की चेतना की शिखर यात्रा शुरू करने जा रही हैं। नर-नारायण गाली नहीं देते, अपशब्द नहीं बोलते। वो तो बुद्ध की तरह प्रेम, सेवा व करुणा बरसाते हैं।
परमहंस बालक योगी बनिये, जो मिल जाये खा लीजिये, जिह्वा पर विजय प्राप्त कीजिये।
यदि उपरोक्त शर्त क्षमा की मंजूर हो तभी यह तप फलित होगा, अन्यथा सब व्यर्थ जाएगा।
आइए *मैं* को मिटाकर *ईश्वर* बनने के लिए बढ़े, भगवान *भक्ति-भाव, श्रद्धा-विश्वास* में मिलते हैं। अतः उनपर विश्वास कर यह यात्रा प्रारंभ कीजिये। जो आसानी से सधे वह नियम अपना लीजिये।
*अनुष्ठान का नाम - *चांद्रायण साधना*🙏
*पूर्णिमा से पूर्णिमा तक*🙏
*पापों के प्रायश्चित्त के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वोपरि वर्णन किया गया है*।
प्रायश्रित्त शब्द प्रायः+चित्त शब्दों से मिल कर बना है। इसके दो अर्थ होते है।
प्रायः पापं विजानीयात् चित्तं वै तद्विशोभनम्।
प्रायोनाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते॥
(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि। प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।
(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय। प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।
दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना। तप का यही उद्देश्य भी है। चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है। चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना। इस महाव्रत के कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं -
(1) *पिपीलिका मध्य चान्द्रायण*।
एकैकं ह्रासयेत पिण्डं कृष्ण शुलेच वर्धवेत।
उपस्पृशंस्त्रिषवणमेतच्चान्द्रायणं स्मृतम्॥
अर्थात्- पूर्णमासी को 15ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए। चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे। इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज
(2) *यव मध्य चान्द्रायण* -
प्तमेव विधि कृत्स्न माचरेद्यवमध्यमे।
शक्ल पक्षादि नियतश्चरंश्चान्द्रायणं व्रतम्॥
अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें। फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे। इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज
(3) *यति चान्द्रायण*
अष्टौ अष्टौ समश्नीयात् पिण्डन् माध्यन्दिने स्थिते।
नियतात्मा हविष्याशी यति चान्द्रायणं स्मृतम्॥
अर्थात्- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें। इसे यति चांद्रायण कहते है। इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज
(4) *शिशु चान्द्रायण*
बतुरः प्रातरश्नीयात् पिण्डान् विप्रः समाहितः।
चतुरोऽख्त मिते सूर्ये शुशुचान्द्रायणं स्मृतम्॥
अर्थात्- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें। इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज
(5) *मासपरायण* - चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का(दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें। भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।
*माला जप संख्या* - 42 माला रोज या 27 माला रोज या 15 माला रोज या 10 माला या 5 माला रोज
👇🏻तिथि की वृद्धि तथा क्षय हो जाने पर ग्रास की भी बुद्धि तथा कमी हो जाती है। ग्रास का प्रमाण मोर के अड्डे, मुर्गी के अड्डे, तथा बड़े आँवले के बराबर माना गया है। बड़ा आँवला और मुर्गी के अंडे के बराबर प्रमाण तो साधारण बड़े ग्रास जैसा ही है। परन्तु मोर का अंडा काफी बड़ा होता है। एक अच्छी बाटी एक मोर के अंडे के बराबर ही होती है। इतना आहार लेकर तो आसानी से रहा जा सकता है। पिण्ड शब्द का अर्थ ग्रास भी किया जाता है और गोला भी। गोला से रोटी बनाने की लोई से अर्थ लिया जाता हैं यह बड़ी लोई या मोर के अंडे क प्रमाण निर्बल मन वाले लोगों के लिए भले ही ठीक हो। पर साधारणतः पिण्ड का अर्थ ग्रास ही लिया जाता है।
शाम को रोटी के साथ लौकी की सब्जी या दाल लें। सब्जी एवं दाल में केवल शुद्ध घी, सेंधा नमक, जीरा, धनिया और टमाटर डाल सकते हैं। एक वक़्त यदि ग्रास वाला भोजन ले रहे हैं दो दूसरे समय किसी एक फ़ल का रसाहार लें या दूध लें या छाछ लें।
जल कम से कम 6 से 8 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है। अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।
चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए। ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है। मन्त्र जप एक बार मे पूरा नहीं जपना है, कई बार में बैठ बैठ कर सुविधानुसार जप लें।
यदि वृद्ध हैं तो कुर्सी में साफ कम्बल बिछा को ऐसे बिछाए कि कुर्सी से नीचे पैर तक फैला हो। उस पर बैठने से पूर्व कमर में छोटी सोफे की साफ तकिया का सहारा ले लें। कुर्सी में बैठकर कमर सीधी करके जप कर लें। पैर कम्बल पर ही होना चाहिए।
बाथरूम या अन्य कारण से उठना पड़े तो अच्छे से हाथ पैर धोकर पुनः बैठे।
*ध्यान* - *ध्यान में नित्य सुबह गंगा नदी में स्नान करें, उगते हुए सूर्य को गंगा जल का अर्घ्य दें, गंगा जी के किनारे शंकर भगवान को गंगा जल का अर्घ्य दें, फ़िर थोड़ी देर वहीं बैठ कर जप करें। उसके ततपश्चात शान्तिकुंज गुरुधाम आएं व समाधि के दर्शन करें, फिर यज्ञ में सम्मिलित हों। ततपश्चात सप्तर्षि मंदिर के दर्शन करें और उनका आशीर्वाद लें। फिर माता गायत्री के दर्शन करें, वहाँ बैठी बहनों से चरणामृत रूपी आशीर्वाद लें व उसे पी लें। नल में हाथ धोएं व तुलसी माता को मंदिर के पास प्रणाम करें। आगे अखण्डज्योति दर्शन को जाएं वहाँ दर्शन करके फिर गुरुदेव के कमरे में उनके दर्शन हेतु प्रवेश करें। नीली दिव्य रौशनी और कमल की दिव्य खुशबु से रूम भरा है। गुरुदेव अखण्डज्योति लिख रहे हैं और बेड पर बैठी माता जी लोगो के प्रश्नों के उत्तर लिख रही हैं। आप माता के चरणों मे प्रणाम करते हैं तो माता आपके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए आपका हालचाल लेती हैं। आप अपना दुःख दर्द उन्हें सुनाते हो वो समाधान देती हैं। फिर आप गुरुदेव के चरणों मे प्रणाम करते हो, गुरुदेव अपने दाहिने चरण से आपके मष्तिष्क भूमध्य जहां तिलक व बिंदी लगाते हैं वहाँ स्पर्श करते हैं गुरु की प्राण चेतना आपके भीतर प्रवेश कर जाती है। आपके भीतर एक दिव्य साधक का जन्म होता है। इस ध्यान में खो जाइये, आगे कल्पना जोड़ते जाइये।*
*पुस्तक का नाम स्वाध्याय के लिए* -
📖 अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार,
📖 ईश्वर कौन है कहां है और कैसा है
📖 उपासना के दो चरण- जप और ध्यान
📖साधना में प्राण आ जाये तो कमाल हो जाये
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
*अनुष्ठान* - *एक मास* में एक *सवा लाख गायत्री मंत्र जप* अनुष्ठान करें या *कम से कम तीन 24 हज़ार* के अनुष्ठान करें तो उत्तम है। इतना न सधे तो कम से *कम दो 24 हज़ार के* या *एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।*
यदि जप तप ध्यान प्राणायाम योग और स्वाध्याय सन्तुलित हुआ तो कमज़ोरी लगने का कोई सवाल ही उतपन्न न होगा। लेकिन यदि इसमें व्यतिक्रम हुआ अर्थात व्रत हुआ बाकी न हुआ किसी कारण वश किसी दिन तो कमज़ोरी आ सकती है। तो ऐसी अवस्था मे ग्लूकोज़ पानी पी लें या किसी फल का रसाहार ले लें। फलों के रसों का सेवन आवश्यकतानुसार कर लें।
प्रत्येक ग्रास का प्रथम गायत्री से अनुमंत्रण करे फिर ॐ। भूः। भूवः। स्वः। महः। जनः। तपः। सत्यं। यशः। श्रीः। अर्क। ईट। ओजः । तेजः। पुरुष। धर्म। शिवः इनके प्रारम्भ में ‘ॐ’ और अन्तः ‘नमः स्वाहा’ संयुक्त करके उस मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रास का भक्षण करें यथा- ‘ॐ सत्यं नमः स्वाहा’। ऊपर पंद्रह मंत्र लिखे हैं। इसमें से उतने ही प्रयोग होंगे जितने कि ग्रास भक्षण किये जायेंगे, जैसे चतुर्थी तिथि को चार ग्रास लेने हैं तो (1) ॐ नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (3) ॐ भुवः नमः स्वाहा (4) ॐ स्वः नमः स्वाहा इन चार मंत्रों के साथ एक एक ग्रास ग्रहण किया जायगा।
व्रत की समाप्ति पर *मां भगवती भोजनालय में दान दें* तथा सत्साहित्य में *हारिये न हिम्मत* और *मन्त्रलेखन पुस्तिका* ज्ञान दान में बांटे है।
*Reference Article* - http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/November/v2.14
🙏🏻श्वेता, DIYA
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