प्रश्न- *ध्यान धारणा करते हैं, तो मन भटकता है? ध्यान सिद्ध कैसे हो?*
उत्तर- ध्यान की धारणा में मात्र क्रमबद्ध कल्पना करना पर्याप्त नहीं है, प्रयत्न करना होगा कि कल्पना के साथ साथ सदृश्य भावनाएं मन में उठें, व अनुभूत हों।
उदाहरण - यदि माता गायत्री के माता स्वरूप का ध्यान कर रहे हो तो स्वयं को नंन्हे बालक स्वरूप में सोचो, कल्पना करो व अनुभूत करो। भले ही वर्तमान में आपकी उम्र प्रौढ़ ही क्यों न हो, नाती पोते ही क्यों न हो।
स्वयं के वर्तमान अस्तित्व को *मैं* को भूलकर ध्यान धारणा की कल्पित उम्र को ही अनुभूत होगी। फिर बच्चे को जैसे माँ के प्यार के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए, वैसे ही आपको गायत्री माता की ममता की छांव के अतिरिक्त कुछ न चाहिए होगा। माँ में ही मन खो जाएगा, मन नहीं भटकेगा।
निज प्रौढ़ता को भुलाकर शैशव का शरीर और भावना स्तर पर अनुभूत कर सकना सम्भव हुआ तो ही माता गायत्री भी अनुभूति भी होगी। ध्यान सधेगा व सिद्धि तक पहुंचेगा।
Reference - साधना से सिद्धि-2 , 10.8
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- ध्यान की धारणा में मात्र क्रमबद्ध कल्पना करना पर्याप्त नहीं है, प्रयत्न करना होगा कि कल्पना के साथ साथ सदृश्य भावनाएं मन में उठें, व अनुभूत हों।
उदाहरण - यदि माता गायत्री के माता स्वरूप का ध्यान कर रहे हो तो स्वयं को नंन्हे बालक स्वरूप में सोचो, कल्पना करो व अनुभूत करो। भले ही वर्तमान में आपकी उम्र प्रौढ़ ही क्यों न हो, नाती पोते ही क्यों न हो।
स्वयं के वर्तमान अस्तित्व को *मैं* को भूलकर ध्यान धारणा की कल्पित उम्र को ही अनुभूत होगी। फिर बच्चे को जैसे माँ के प्यार के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए, वैसे ही आपको गायत्री माता की ममता की छांव के अतिरिक्त कुछ न चाहिए होगा। माँ में ही मन खो जाएगा, मन नहीं भटकेगा।
निज प्रौढ़ता को भुलाकर शैशव का शरीर और भावना स्तर पर अनुभूत कर सकना सम्भव हुआ तो ही माता गायत्री भी अनुभूति भी होगी। ध्यान सधेगा व सिद्धि तक पहुंचेगा।
Reference - साधना से सिद्धि-2 , 10.8
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