Thursday, 26 September 2019

कविता: मेरे बेटे - बस चलते रहना

*कविता: मेरे बेटे - बस चलते रहना*

मेरे बेटे,
तुम अपने पथ पर अडिग रहना,
अपने पैरों में अनवरत गति रखना,
जब तक मंजिल मिल न जाये,
बस तुम यूं ही पथ पर चलते रहना।

मेरे बेटे! बस अनवरत चलते रहना,
मंज़िल से पहले कभी मत रुकना।

प्रलय के झकोरों से तुम मत डरना,
बाढ़ के हलकोरों से तुम मत डरना,
उत्साह भरे वचनों को मन में दोहराते रहना,
आत्मविश्वास से भरे कदम बढ़ाते रहना।

मेरे बेटे! स्वयं पर विश्वास बनाये रखना,
और ईश्वर पर ध्यान लगाए रखना।

यदि थक कर तू लौट पड़ेगा,
यदि अंधड काल बवंडर से तू डरेगा,
तो जग हसाई का तू पात्र बनेगा,
आत्मा पर तेरी कायरता का बोझ चढ़ेगा,

मेरे बेटे! कायर बनकर कभी मत जीना,
आंधी तूफानों से कभी मत डरना।

यदि तू मिट गया चलते चलते,
मंजिल पथ तय करते करते,
तब तुझमें आत्म संतोष झलकेगा,
दुनियाँ के लिये तू मिशाल बनेगा,

मेरे बेटे! बस अनवरत चलते रहना,
मंज़िल से पहले कभी मत रुकना।

भगवान से,
स्वयं का युद्ध लड़ने की प्रार्थना मत करना,
उनसे धैर्य, साहस, वीरता व गीता का ज्ञान माँगना,
निज जीवन समर में स्वयं अर्जुन बन लड़ना,
बस सदा कृष्ण का केवल साथ माँगना।

मेरे बेटे! बस जीवन समर में डटे रहना,
कभी युद्ध में पीठ मत दिखाना,
जीवन समर छोड़ मत भागना,
बस जीवन समर में डटे रहना।

यदि मंज़िल मिल गयी तो विजयी होगे,
यदि राह में मिट गए तो शहीद होगे,
दोनों ही परिस्थितियों में वीर रहोगे,
दुनियाँ के लिए एक मिशाल बनोगे।

मेरे बेटे! बस अनवरत चलते रहना,
मंज़िल से पहले कभी मत रुकना।

🙏🏻श्वेता, DIYA

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 23 जनवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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