प्रश्न - *टेंशन बहुत है, लेकिन टेंशन कारण मैं आपको नहीं बता सकती। क्या करूँ व कैसे करूँ कुछ भी समझ नहीं आ रहा*
उत्तर - आत्मीय बेटी, तुम्हारे हाथ में केवल तुम्हारे विचार, चिंतन व कर्म हैं। यदि दूसरे के विचार चिंतन व कर्म बदलने की नाकाम कोशिश करोगी तो चिंतित रहोगी। भविष्य को लेकर आशंकित रहोगी तो भी चिंतित ही रहोगी।
टेंशन - तनाव यह कहता है कि आपको क्या कब कैसे और क्यों करना है यह क्लियर नहीं है। अमुक अपेक्षित लाभ न हुआ तो दूसरे क्या कहेंगे, व मज़ाक उड़ाएंगे इसलिए आप चिंतित होंगी तो कभी सुखी नहीं रह पाएंगी।
इस संसार में कोई पूर्ण सुखी नहीं है, और न ही कोई पूर्ण दुःखी है। क्योंकि भगवान की इस सृष्टि में सन्तुलन के लिए सुख व दुःख, दिन व रात, मीठा व नमकीन, चटक व सादा सब का अस्तित्व है।
मान लो आपको मीठा पसन्द है, आप भूखे हो, अब मैं आपको दस बारह गुलाब जामुन दूँ खाने को तो दो चार के बाद आप ऊब जाएंगे, क्योंकि मीठा पसन्द तो है लेकिन अब स्वाद बदलने के लिए नमकीन चाहिए, क्यों? कभी सोचा है? क्यों 24 घण्टे व 365 दिन मीठा खाकर नहीं जी सकते?
मान लो आपके बिजनेस में बहुत काम हैं और आपको दिन के 12 घण्टे कम पड़ रहे हैं, ओके जादू से तीन गुना दिन 35 घण्टे कर दिया जाय तो क्या 35 घण्टे ऑफिस में काम कर सकोगे? नहीं नहीं आराम भी तो चाहिए बोलोगे, रात का वेसब्री से इंतज़ार करोगे।
एक बुढ़िया माता बीमार रहती थीं, बेटे बहु उन्हें अत्यंत कष्ट देते थे, जंगल से लकड़ी बीनकर लाना पड़ता था। उन्होंने कहा विधाता कैसी घृणित जिंदगी दी है, इससे अच्छा होता कि तू मुझे मौत दे दे। तुरन्त यमदूत प्रकट हुए, बोले माते आपके प्रारब्ध कठिन है तो भोगने पड़ेंगे। लेकिन यदि इस जन्म में नहीं भोगना चाहती तो चलें देहत्याग कर दें, विधाता ने आपकी मौत मंजूर कर ली है। बुढ़िया माता ने कहा अरे न भाई मैं अभी मरना नहीं चाहती, अरे मैं तो विधाता से मदद लकड़ी का गट्ठर उठाने के लिए मांग रही थी।।गट्ठर उठा दो मैं झटपट घर जाऊं बहु व बेटे इंतज़ार कर रहे होंगे।यमदूत बुढ़िया माता के जाने के बाद अपनी हंसी रोक नहीं पाए। 🤣😂😂😂
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जो कर सकती हो करो, जो नहीं कर सकती उसे ईश्वर पर छोड़ दो। टेंशन लेकर कोई बड़ा महान कार्य कर रही हो यह भ्रम जितनी जल्दी हो मन से निकाल दो। क्योंकि तुम्हारे टेंशन लेने से कुछ भी ठीक नहीं होने वाला, तुम्हारे टेंशन न लेने से कुछ भी बिगड़ने नहीं वाला। रात के डिनर की टेंशन लेने से वो खुद पककर तैयार नहीं होगा, टेंशन न लेने से भी वो खुद पककर तैयार नहीं होगा। अपितु रात के डिनर में क्या बनाओगी उसकी कार्य योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करने पर भोजन पकाने पर डिनर तैयार होगा व भूख रात को स्वयं की व परिवार की मिटेगी।
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मनःस्थिति बदलो, सकारात्मक चिंतन करो कि क्या स्वयं कर सकती हो और क्या नहीँ इस पर फोकस करो।
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पति यदि नशा करते हैं, तो उन्हें यह मत बोलो कि नशा छोड़ दो, अपितु प्रेम से यह बोलो कि सुनो सुबह साथ में यज्ञ कर लो और ध्यान फिर बाहर जाओ। डायलॉग बदलो।
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यदि कोई कम्पटीशन की तैयारी कर रही हो तो दिमाग से बोलो हमें सबसे बेस्ट प्रदर्शन करना है, दस लाख विद्यार्थियों से कुछ पोस्ट के लिए पढ़ाई की रेस में दौड़ना है। जीते तो ठीक नहीं जीते तो कुछ और कर लेंगे। इतना भरोसा स्वयं पर है कुछ न कुछ तो बेस्ट कर लेंगे।
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ससुराल वाले कष्ट दे रहे हैं, यदि केवल मौखिक गालियाँ दे रहे हैं, तो समझो कि इनके भीतर गन्दगी भरी है जो बाहर इनके मुंह से निकल रही है। अब मान लो घर के बाहर नाला बह रहा है तो जैसे नाक बंद करके निकल जाते हैं वैसे ही मुंह से निकलने वाले गन्दे नालो को इग्नोर करते हुए निकल लो।
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पति या पत्नी में जो भी कुसंस्कारी है उसकी वजह उसकी बचपन से मिली परवरिश है। धैर्य व समझदारी से जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय करो और उनके कुसंस्कारों का इलाज डॉक्टर बनकर करो, दोषारोपण में और नित्य झगड़े करके टाइम बर्बाद मत करो। इससे कोई लाभ नहीँ होने वाला।
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यदि पति का किसी दूसरी स्त्री से सम्बन्ध है, तो अगेन उससे लड़ोगे-झगड़ोगे उससे कोई लाभ नहीं होगा। तलाक तक बात पहुंचेगी। या तो उसे स्वयं छोड़ दो, या जप-तप-ध्यान व स्वाध्याय से उसे अध्यात्म में प्रेम से प्रवेश करवाओ। यदि उसकी आत्मचेतना जगी तो स्वयं सत्य पथ का अनुसरण करेगा।
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क्रोधी पति या पत्नी है, अगेन उससे लड़कर कोई फ़ायदा नहीं। मौन हो जाओ, जब वह गुस्से के कड़वे शब्द बोल रहे हों मन ही मन गायत्री मंत्र व शांति मन्त्र बोलो। गुस्सा एक मानसिक व्याधि है जिसका उपचार जरूरी है, प्रतिकार नहीं।
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यदि जीवनसाथी किन्ही कारणवश आपके प्रेम को अस्वीकार करते हुए आपको तलाक दे रहा है। तो भी उससे लड़ने झगड़ने व अपशब्द बोलने का कोई फायदा नहीं। अपितु दिमाग चलाकर सही वकील ढूंढकर इसे निपटाने की आवश्यकता है। जॉब कर रहे हो तो ठीक, नहीं तो भरण पोषण का क्लेम निश्चिन्त होकर करें। अकेले जिंदगी कैसे व्यतीत होगी उसकी कार्य योजना बनाएं। जिसने तय कर लिया तो वो जाएगा ही, कोई भी चमत्कार एक रात में उसका मन परिवर्तन नहीं कर सकता। एक दिन की बरसात में भीगना काफी है सर्दी जुकाम के लिए, लेकिन ठीक होने में कम से कम पांच दिन लग ही जाते हैं चाहे कोई भी डॉक्टर से दवा लें।
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रिश्ता निभाने की जिसे इच्छा होगी व कई गलतियां आपकी माफ कर देगा, लेकिन जिसने रिश्ता न निभाने का ठाना है वो आपकी छोटी सी गलती को भी तिल का ताड़ बनाएगा ही। अतः रिश्ते में आप केवल अपने हिस्से के व्यवहार व स्वभाव को तय कर सकते हैं दूसरे के हिस्से को रिमोट से नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
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पति यदि कम कमाई कर रहे हैं, व ढीले ढाले स्वभाव के हैं तो भविष्य को सोच सोच कर टेंशन में खून मत जलाइये व न ही लड़ाई झगड़े से उन्हें ठीक करने की बेवकूफ़ी अपनाईये। उत्तम यह होगा स्वयं जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय कीजिये साथ ही उन्हें भी प्रेरित कीजिये। घर में महापुरुषों की जीवनियां उन्हें पढ़ने को दीजिये व स्वयं पढ़िए। सशक्त विचार जब लगातार मन मे प्रवेश करेंगे तो परिवर्तन होगा। इनके साथ कैसे आगे जीवन चलाना है इस पर फोकस कीजिये, यदि इनमें परिवर्तन न हुआ तो क्या करना है इस पर विचार कीजिए।
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बच्चा यदि नहीं पढ़ रहा तो उस पर चिखिये चिल्लाईये मत। उसे नित्य किसी न किसी महापुरुष की कहानी पढ़ने को प्रेरित कीजिए। गायत्री जप-ध्यान-स्वाध्याय से जोड़िए। कुछ घण्टे मौन करवाइये। घर में यज्ञ में शामिल कीजिये, दिमागी कूड़ा छटेगा तो स्वयंमहापुरुषों से प्रेरित हो पढ़ने लगेगा।
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यदि आप किसी से प्रेम करती हैं व परिवार वाले अस्वीकार कर रहे हैं, तो 100% विवाह में सभी कोई प्रशन्न जादू से नहीं होने वाले। कोई न कोई पार्टी नाराज होगी। बिना टेंशन के प्रेम विवाह सम्भव नहीं है। किसे टेंशन देना है यह तय कर लें, प्रेमी को या पिता को? जिसे भी दें टेंशन दोगे, दोनो ही परिस्थिति में आप व्यथित होंगी ही। अतः युद्ध हो या प्रेम विवाह, बिना आघात के नहीं जीता जा सकता। यदि आघात नहीं चाहिए, तो बुद्धि के घोड़े दौड़ाइये व बीच का मार्ग चतुराई से सन्धि का निकालिये। किसी भी परिस्थिति में टेंशन लेकर समय बर्बाद मत कीजिये।
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कारण टेंशन का कोई भी हो, उसके निवारण पर कार्य कीजिये। लोग क्या कहेंगे, लोग मज़ाक उड़ाएंगे इत्यादि सोचना बेवकूफ़ी है। प्रधामनंत्री का भी लोग मज़ाक उड़ाते है, सार्वजनिक कार्टून बनाते है। तो क्या प्रधानमंत्री पद से त्याग पत्र दे दे या अपना काम करे व सबको इग्नोर करे?
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कुछ पुस्तक पढ़िए:-
1- मानसिक संतुलन
2- निराशा को पास न फटकने दें
3- हारिये न हिम्मत
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- तेजस्विता, प्रखरता एवं मनस्विता
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - आत्मीय बेटी, तुम्हारे हाथ में केवल तुम्हारे विचार, चिंतन व कर्म हैं। यदि दूसरे के विचार चिंतन व कर्म बदलने की नाकाम कोशिश करोगी तो चिंतित रहोगी। भविष्य को लेकर आशंकित रहोगी तो भी चिंतित ही रहोगी।
टेंशन - तनाव यह कहता है कि आपको क्या कब कैसे और क्यों करना है यह क्लियर नहीं है। अमुक अपेक्षित लाभ न हुआ तो दूसरे क्या कहेंगे, व मज़ाक उड़ाएंगे इसलिए आप चिंतित होंगी तो कभी सुखी नहीं रह पाएंगी।
इस संसार में कोई पूर्ण सुखी नहीं है, और न ही कोई पूर्ण दुःखी है। क्योंकि भगवान की इस सृष्टि में सन्तुलन के लिए सुख व दुःख, दिन व रात, मीठा व नमकीन, चटक व सादा सब का अस्तित्व है।
मान लो आपको मीठा पसन्द है, आप भूखे हो, अब मैं आपको दस बारह गुलाब जामुन दूँ खाने को तो दो चार के बाद आप ऊब जाएंगे, क्योंकि मीठा पसन्द तो है लेकिन अब स्वाद बदलने के लिए नमकीन चाहिए, क्यों? कभी सोचा है? क्यों 24 घण्टे व 365 दिन मीठा खाकर नहीं जी सकते?
मान लो आपके बिजनेस में बहुत काम हैं और आपको दिन के 12 घण्टे कम पड़ रहे हैं, ओके जादू से तीन गुना दिन 35 घण्टे कर दिया जाय तो क्या 35 घण्टे ऑफिस में काम कर सकोगे? नहीं नहीं आराम भी तो चाहिए बोलोगे, रात का वेसब्री से इंतज़ार करोगे।
एक बुढ़िया माता बीमार रहती थीं, बेटे बहु उन्हें अत्यंत कष्ट देते थे, जंगल से लकड़ी बीनकर लाना पड़ता था। उन्होंने कहा विधाता कैसी घृणित जिंदगी दी है, इससे अच्छा होता कि तू मुझे मौत दे दे। तुरन्त यमदूत प्रकट हुए, बोले माते आपके प्रारब्ध कठिन है तो भोगने पड़ेंगे। लेकिन यदि इस जन्म में नहीं भोगना चाहती तो चलें देहत्याग कर दें, विधाता ने आपकी मौत मंजूर कर ली है। बुढ़िया माता ने कहा अरे न भाई मैं अभी मरना नहीं चाहती, अरे मैं तो विधाता से मदद लकड़ी का गट्ठर उठाने के लिए मांग रही थी।।गट्ठर उठा दो मैं झटपट घर जाऊं बहु व बेटे इंतज़ार कर रहे होंगे।यमदूत बुढ़िया माता के जाने के बाद अपनी हंसी रोक नहीं पाए। 🤣😂😂😂
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जो कर सकती हो करो, जो नहीं कर सकती उसे ईश्वर पर छोड़ दो। टेंशन लेकर कोई बड़ा महान कार्य कर रही हो यह भ्रम जितनी जल्दी हो मन से निकाल दो। क्योंकि तुम्हारे टेंशन लेने से कुछ भी ठीक नहीं होने वाला, तुम्हारे टेंशन न लेने से कुछ भी बिगड़ने नहीं वाला। रात के डिनर की टेंशन लेने से वो खुद पककर तैयार नहीं होगा, टेंशन न लेने से भी वो खुद पककर तैयार नहीं होगा। अपितु रात के डिनर में क्या बनाओगी उसकी कार्य योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करने पर भोजन पकाने पर डिनर तैयार होगा व भूख रात को स्वयं की व परिवार की मिटेगी।
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मनःस्थिति बदलो, सकारात्मक चिंतन करो कि क्या स्वयं कर सकती हो और क्या नहीँ इस पर फोकस करो।
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पति यदि नशा करते हैं, तो उन्हें यह मत बोलो कि नशा छोड़ दो, अपितु प्रेम से यह बोलो कि सुनो सुबह साथ में यज्ञ कर लो और ध्यान फिर बाहर जाओ। डायलॉग बदलो।
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यदि कोई कम्पटीशन की तैयारी कर रही हो तो दिमाग से बोलो हमें सबसे बेस्ट प्रदर्शन करना है, दस लाख विद्यार्थियों से कुछ पोस्ट के लिए पढ़ाई की रेस में दौड़ना है। जीते तो ठीक नहीं जीते तो कुछ और कर लेंगे। इतना भरोसा स्वयं पर है कुछ न कुछ तो बेस्ट कर लेंगे।
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ससुराल वाले कष्ट दे रहे हैं, यदि केवल मौखिक गालियाँ दे रहे हैं, तो समझो कि इनके भीतर गन्दगी भरी है जो बाहर इनके मुंह से निकल रही है। अब मान लो घर के बाहर नाला बह रहा है तो जैसे नाक बंद करके निकल जाते हैं वैसे ही मुंह से निकलने वाले गन्दे नालो को इग्नोर करते हुए निकल लो।
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पति या पत्नी में जो भी कुसंस्कारी है उसकी वजह उसकी बचपन से मिली परवरिश है। धैर्य व समझदारी से जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय करो और उनके कुसंस्कारों का इलाज डॉक्टर बनकर करो, दोषारोपण में और नित्य झगड़े करके टाइम बर्बाद मत करो। इससे कोई लाभ नहीँ होने वाला।
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यदि पति का किसी दूसरी स्त्री से सम्बन्ध है, तो अगेन उससे लड़ोगे-झगड़ोगे उससे कोई लाभ नहीं होगा। तलाक तक बात पहुंचेगी। या तो उसे स्वयं छोड़ दो, या जप-तप-ध्यान व स्वाध्याय से उसे अध्यात्म में प्रेम से प्रवेश करवाओ। यदि उसकी आत्मचेतना जगी तो स्वयं सत्य पथ का अनुसरण करेगा।
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क्रोधी पति या पत्नी है, अगेन उससे लड़कर कोई फ़ायदा नहीं। मौन हो जाओ, जब वह गुस्से के कड़वे शब्द बोल रहे हों मन ही मन गायत्री मंत्र व शांति मन्त्र बोलो। गुस्सा एक मानसिक व्याधि है जिसका उपचार जरूरी है, प्रतिकार नहीं।
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यदि जीवनसाथी किन्ही कारणवश आपके प्रेम को अस्वीकार करते हुए आपको तलाक दे रहा है। तो भी उससे लड़ने झगड़ने व अपशब्द बोलने का कोई फायदा नहीं। अपितु दिमाग चलाकर सही वकील ढूंढकर इसे निपटाने की आवश्यकता है। जॉब कर रहे हो तो ठीक, नहीं तो भरण पोषण का क्लेम निश्चिन्त होकर करें। अकेले जिंदगी कैसे व्यतीत होगी उसकी कार्य योजना बनाएं। जिसने तय कर लिया तो वो जाएगा ही, कोई भी चमत्कार एक रात में उसका मन परिवर्तन नहीं कर सकता। एक दिन की बरसात में भीगना काफी है सर्दी जुकाम के लिए, लेकिन ठीक होने में कम से कम पांच दिन लग ही जाते हैं चाहे कोई भी डॉक्टर से दवा लें।
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रिश्ता निभाने की जिसे इच्छा होगी व कई गलतियां आपकी माफ कर देगा, लेकिन जिसने रिश्ता न निभाने का ठाना है वो आपकी छोटी सी गलती को भी तिल का ताड़ बनाएगा ही। अतः रिश्ते में आप केवल अपने हिस्से के व्यवहार व स्वभाव को तय कर सकते हैं दूसरे के हिस्से को रिमोट से नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
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पति यदि कम कमाई कर रहे हैं, व ढीले ढाले स्वभाव के हैं तो भविष्य को सोच सोच कर टेंशन में खून मत जलाइये व न ही लड़ाई झगड़े से उन्हें ठीक करने की बेवकूफ़ी अपनाईये। उत्तम यह होगा स्वयं जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय कीजिये साथ ही उन्हें भी प्रेरित कीजिये। घर में महापुरुषों की जीवनियां उन्हें पढ़ने को दीजिये व स्वयं पढ़िए। सशक्त विचार जब लगातार मन मे प्रवेश करेंगे तो परिवर्तन होगा। इनके साथ कैसे आगे जीवन चलाना है इस पर फोकस कीजिये, यदि इनमें परिवर्तन न हुआ तो क्या करना है इस पर विचार कीजिए।
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बच्चा यदि नहीं पढ़ रहा तो उस पर चिखिये चिल्लाईये मत। उसे नित्य किसी न किसी महापुरुष की कहानी पढ़ने को प्रेरित कीजिए। गायत्री जप-ध्यान-स्वाध्याय से जोड़िए। कुछ घण्टे मौन करवाइये। घर में यज्ञ में शामिल कीजिये, दिमागी कूड़ा छटेगा तो स्वयंमहापुरुषों से प्रेरित हो पढ़ने लगेगा।
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यदि आप किसी से प्रेम करती हैं व परिवार वाले अस्वीकार कर रहे हैं, तो 100% विवाह में सभी कोई प्रशन्न जादू से नहीं होने वाले। कोई न कोई पार्टी नाराज होगी। बिना टेंशन के प्रेम विवाह सम्भव नहीं है। किसे टेंशन देना है यह तय कर लें, प्रेमी को या पिता को? जिसे भी दें टेंशन दोगे, दोनो ही परिस्थिति में आप व्यथित होंगी ही। अतः युद्ध हो या प्रेम विवाह, बिना आघात के नहीं जीता जा सकता। यदि आघात नहीं चाहिए, तो बुद्धि के घोड़े दौड़ाइये व बीच का मार्ग चतुराई से सन्धि का निकालिये। किसी भी परिस्थिति में टेंशन लेकर समय बर्बाद मत कीजिये।
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कारण टेंशन का कोई भी हो, उसके निवारण पर कार्य कीजिये। लोग क्या कहेंगे, लोग मज़ाक उड़ाएंगे इत्यादि सोचना बेवकूफ़ी है। प्रधामनंत्री का भी लोग मज़ाक उड़ाते है, सार्वजनिक कार्टून बनाते है। तो क्या प्रधानमंत्री पद से त्याग पत्र दे दे या अपना काम करे व सबको इग्नोर करे?
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कुछ पुस्तक पढ़िए:-
1- मानसिक संतुलन
2- निराशा को पास न फटकने दें
3- हारिये न हिम्मत
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- तेजस्विता, प्रखरता एवं मनस्विता
🙏🏻श्वेता, DIYA
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