प्रश्न - *दी, मेरा चालीस दिन का अनुष्ठान चल रहा है, मेरे ससुर जी का देहांत हो गया, मै अकेला दामाद हूँ तो जाना अनिवार्य है क्या व कैसे करूँ? वहाँ भोजन करना पड़ेगा।*
उत्तर- आत्मिय भाई,
भगवान व गुरु हमारे परमपिता व मार्गदर्शक सत्ता है, अंतर्यामी हैं। तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन की अनिवार्यता समझते हैं। अतः दुविधा में मत पड़ो और एक पत्र अनुष्ठान से जितने दिन के लिए जा रहे हो भगवान को निम्नलिखित तरीक़े से लिखो।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
हे परमपूज्य गुरुदेव एवं माता गायत्री,
आपके श्रीचरणों में प्रणाम,
मेरा 40 दिन का अनुष्ठान का संकल्प <यहाँ तारीख डालो> तारीख से चल रहा था जो <यहाँ तारीख डालो> तारीख को पूर्ण होना था। मेरे ससुर का देहांत हो गया है मुझे उनके अंत्येष्टि सँस्कार की लौकिक जिम्मेदारी निभाने जाना है। मैं <यहाँ तारीख डालो> को वहाँ जा रहा हूँ और <यहाँ तारीख डालो> को लौट रहा हूँ। अतः कुल इतने दिनों तक अनुष्ठान से छुट्टी की अर्जी स्वीकार कीजिये। अनुष्ठान के पूर्ण होने की तारीख व पूर्णाहुति दिन उतने दिन आगे बढ़ाने की अनुमति दें।
पुनः <यहाँ तारीख डालो> से मैं पुनः यह अनुष्ठान जहां से छोड़ा है वो पूरा करूँगा।
आपका पुत्र
<यहां अपना नाम लिखो>
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
यह पत्र कलावे से बांधकर और कुछ अक्षत के दाने उस पर रखकर देव स्थापना फोटो के समक्ष रखकर चले जाओ।
लौकिक जिम्मेदारी वहाँ के नियम अनुसार निभाकर, गंगा स्नान व यज्ञादि कर्म के बाद तय किये दिन तक लौटकर आ जाना।
तो घर आकर नहाधोकर पूजन के पास का पत्र खोलकर धागा व अक्षत तुलसी माता के जड़ में चढ़ा देना। पत्र दीपक की लौ से भष्म कर देना या पत्र को गमले की मिट्टी में दबा देना।
बचे हुए अनुष्ठान के दिन व जप, व्रत, तप व उतने दिन आगे बढ़ाकर कम्प्लीट कर लेना, व पूर्णाहुति यज्ञ कर देना।
भगवान भाव के भूखे हैं, अंतर्यामी है, इमर्जेंसी समझते हैं। भगवान से भयग्रस्त न हों, भगवान माता स्वरूप है वो भक्त उनका बच्चा है व उनके मन की पीड़ा समझते हैं। भगवान का जप-तप-अनुष्ठान प्रेम पूर्वक श्रद्धा-विश्वास से करें। सब शुभ होगा। ईश्वरीय चेतना से हर वक्त जुड़े रहें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मिय भाई,
भगवान व गुरु हमारे परमपिता व मार्गदर्शक सत्ता है, अंतर्यामी हैं। तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन की अनिवार्यता समझते हैं। अतः दुविधा में मत पड़ो और एक पत्र अनुष्ठान से जितने दिन के लिए जा रहे हो भगवान को निम्नलिखित तरीक़े से लिखो।
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हे परमपूज्य गुरुदेव एवं माता गायत्री,
आपके श्रीचरणों में प्रणाम,
मेरा 40 दिन का अनुष्ठान का संकल्प <यहाँ तारीख डालो> तारीख से चल रहा था जो <यहाँ तारीख डालो> तारीख को पूर्ण होना था। मेरे ससुर का देहांत हो गया है मुझे उनके अंत्येष्टि सँस्कार की लौकिक जिम्मेदारी निभाने जाना है। मैं <यहाँ तारीख डालो> को वहाँ जा रहा हूँ और <यहाँ तारीख डालो> को लौट रहा हूँ। अतः कुल इतने दिनों तक अनुष्ठान से छुट्टी की अर्जी स्वीकार कीजिये। अनुष्ठान के पूर्ण होने की तारीख व पूर्णाहुति दिन उतने दिन आगे बढ़ाने की अनुमति दें।
पुनः <यहाँ तारीख डालो> से मैं पुनः यह अनुष्ठान जहां से छोड़ा है वो पूरा करूँगा।
आपका पुत्र
<यहां अपना नाम लिखो>
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
यह पत्र कलावे से बांधकर और कुछ अक्षत के दाने उस पर रखकर देव स्थापना फोटो के समक्ष रखकर चले जाओ।
लौकिक जिम्मेदारी वहाँ के नियम अनुसार निभाकर, गंगा स्नान व यज्ञादि कर्म के बाद तय किये दिन तक लौटकर आ जाना।
तो घर आकर नहाधोकर पूजन के पास का पत्र खोलकर धागा व अक्षत तुलसी माता के जड़ में चढ़ा देना। पत्र दीपक की लौ से भष्म कर देना या पत्र को गमले की मिट्टी में दबा देना।
बचे हुए अनुष्ठान के दिन व जप, व्रत, तप व उतने दिन आगे बढ़ाकर कम्प्लीट कर लेना, व पूर्णाहुति यज्ञ कर देना।
भगवान भाव के भूखे हैं, अंतर्यामी है, इमर्जेंसी समझते हैं। भगवान से भयग्रस्त न हों, भगवान माता स्वरूप है वो भक्त उनका बच्चा है व उनके मन की पीड़ा समझते हैं। भगवान का जप-तप-अनुष्ठान प्रेम पूर्वक श्रद्धा-विश्वास से करें। सब शुभ होगा। ईश्वरीय चेतना से हर वक्त जुड़े रहें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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