Tuesday 24 September 2019

प्रश्न- *दी, जिन लोगों ने अपने पूर्वजों का "गया" तीर्थ में पिंडदान कर दिया है, क्या उन्हें पितृपक्ष में "श्राद्ध-तर्पण करना चाहिए या नहीं?*

प्रश्न- *दी, जिन लोगों ने अपने पूर्वजों का "गया" तीर्थ में पिंडदान कर दिया है, क्या उन्हें पितृपक्ष में "श्राद्ध-तर्पण करना चाहिए या नहीं?*

उत्तर - आत्मीय बहन, युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने वाङ्मय 16 - *मरणोत्तर जीवन: तथ्य एवं सत्य* में इस पर विस्तृत चर्चा की है। कि श्राद्ध शब्द श्रध्दा से बना है, जो श्रद्धा पूर्वक पूर्वजो की तृप्ति हेतु उपाय किये जाते हैं, उसे *श्राद्ध-तर्पण* कहते हैं।

हिन्दू धर्म मे किसी की मृत्यु के बाद क्रमशः उसी दिन चितारोहण,👉🏻 दसवें दिन शुद्धि,👉🏻 तेरहवें दिन तेरहवीं-अंत्येष्टि यज्ञ 👉🏻 मासिक उसी तिथि में दान पुण्य व वार्षिक मृत्यु तिथि पर बरखी/बरसी/प्रयाण दिवस मनाया जाता है। दिवंगत की मुक्ति के लिए हवन पूजन पिंडदान होता है।

जो व्यक्ति अपने पूर्वजों का पिंडदान *गया तीर्थ* या *शान्तिकुंज गायत्री तीर्थ* में करके आ जाता है। *उसे दिवंगत आत्मा की बरसी/वार्षिक मृत्यु तिथि पर होने वाले विधि-विधान को करने की आवश्यकता नहीं है*। ऐसी मान्यता है कि *गया तीर्थ* में भगवान जनार्दन के आशीर्वाद से व गयासुर राक्षस के तप से व *गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज* में माता गायत्री की कृपा से व युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव के तप से वह सामर्थ्य पितरों को मिल जाती है जिससे वो शोक मुक्त व तृप्त होकर पितर लोक तक जाने व वहाँ रहने हेतू स्थान प्राप्त कर लेती है। तब वह मृतक प्रेतात्मा से पितर बन जाती हैं। *बरसी(मृतक के मृत्युदिन) व पितृपक्ष दो अलग तिथि व विधान हैं उन्हें एक न समझें*। बरसी के दिन केवल उसी मृतक पितर को याद किया जाता है। केवल एक के लिये पूजन श्राद्ध तर्पण होता है।

पितृपक्ष के 15 दिन पितरों की तृप्ति, मुक्ति सद्गति की प्रार्थना के साथ  श्रद्धा अर्पित करने की है। वो हमारे अदृश्य सहायक बनते है।

लोग कन्फ्यूज़ हो जाते हैं पितर व मृतक में, इसलिए यह प्रश्न उठता है। मृतक का वार्षिक बरसी होती है, पितर की नहीं। मृतक को गया में या युग गायत्री तीर्थ में पिंडदान देते हैं, पितर को नहीं। चाहे उन्हें नया शरीर मिल गया हो या नहीं। दोनों ही कंडीशन में उनकी आत्मा के अकाउंट में पुण्य लाभ मिलेगा।

पितर में आपकी कई पीढ़ियों के पूर्वज है जो पितर लोक में निवास करते हैं। जिनकी मृत्यु तिथि भी आपको याद नहीं। 7 पीढ़ी के पितर तो डायरेक्ट असर दिखाते हैं, तीन पिता, तीन माता व एक आपके पितर।

अतः अशरीरी 7 पीढ़ियों के पितर की पितृपक्ष में पूजा व श्राद्ध-तर्पण अवश्य होगा, चाहे आपने या आपके पूर्वजो ने उनका गया तीर्थ या शान्तिकुंज तीर्थ में तर्पण किया हो या नहीँ।

पितृपक्ष की कृतयज्ञता की भावना से किया हुआ श्राद्ध व सूक्ष्म भाव तरंग तृप्तिदायक व शांतिकारक होती हैं। जो प्रकृति के कण कण को शांत व तुष्ट करती हैं। यह जीवित व मृत सबको तृप्त करती हैं, लेकिन अधिकांश भाग उनतक पहुँचता है जिनके नाम पर किया जाता है।

श्राद्ध-तर्पण के बाद ही नवरात्र पूजा फलवती होती है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...