कविता - *आज का यह पल, आनन्द से जियो*
विवाद से बचो,
वर्तमान में जियो,
कल की यादों के खण्डहरों में मत घूमों,
वर्तमान में जियो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।
किसने क्या कब कहा,
किसने दिल दिया था दुःखा,
यह सोच सोच के,
वक़्त बर्बाद मत करो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।
भविष्य में क्या होगा,
यह सोच सोच के चिंतित मत रहो,
वर्तमान में सत्कर्मों के,
बीज नित्य बोते चलो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।
जो तुम्हारा भला नहीं चाहता,
उसकी तीखी बातों-टिप्पणियों की,
तुम परवाह मत करो,
उनके दिए तानों को,
तुम बिसार दो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।
नदी का जल जो बह गया,
वो लौट के नहीं आएगा,
हमारा जो समय बीत गया,
वो भी लौट के नहीं आएगा,
अच्छा होगा तुम,
गड़े मुर्दो को न उखाड़ो,
जो बात बीत गई,
उसे शीघ्रता बिसारो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।
रिश्तों की उलझनों के,
चक्रव्यूह में न उलझो,
किसी को सुधारने के,
चक्कर में न पड़ो,
स्वयं को कुशल बनाने में जुटो,
अपने हाथ से अपनी किस्मत लिखो,
निज दुःख के लिए,
किसी को दोष मत दो,
स्वयं के सुख के लिए,
स्वयं ही प्रयास करो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।
इस प्रकृति में देखो,
सभी यज्ञ कर रहे,
परमार्थ भाव से,
सभी कर्म रहे,
बादल व नदी,
जल स्वयं नहीं पीते,
वृक्ष वनस्पति भी,
देखो दूसरों के लिए ही जीते,
वही मनुष्य इस धरा पर,
इनकी तरह सुखी रह सकेगा,
जो निःश्वार्थ भाव से,
प्रेम-आत्मियता बाँट सकेगा,
जो निःस्वार्थ भाव से,
कर्म यज्ञ लोकहित कर सकेगा,
आज से ही मन से,
स्वार्थ भाव त्याग दो,
आज का यह पल,
आनन्द से जियो।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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