*नवरात्रि अनुष्ठान सम्बन्धी जिज्ञासा व समाधान*
प्रश्न - *दी, क्या नवरात्रि अनुष्ठान में नित्य शाप विमोचन करना अनिवार्य है? क्योंकि सुना है बिना शाप विमोचन के गायत्री साधना सफ़ल नहीं होती।*
उत्तर- आत्मीय बहन,
यह सत्य है कि जो शाप- विमोचन की विधि पूरी करके गायत्री साधना करेगा, उसका प्रयत्न सफल होगा और शेष लोगों का श्रम निरर्थक जाएगा।
लेकिन इस पौराणिक उपाख्यान में एक भारी रहस्य छिपा हुआ है, जिसे न जानने वाले केवल ‘शापमुक्ताभव’२ मन्त्रों को दुहराकर यह मान लेते हैं कि हमारी साधना शापमुक्त हो गयी।२(परम्परागत साधना में गायत्री मन्त्र- साधना करने वालों को उत्कीलन करने की सलाह दी गई है। उसमें साधक निर्धारित मन्त्र पढक़र ‘शापमुक्ताभव’ कहता है।)
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*वसिष्ठ का अर्थ है*- ‘विशेष रूप से श्रेष्ठ गायत्री साधना में जिन्होंने विशेष रूप से श्रम किया है, जिसने सवा करोड़ जप किया होता है, उसे वसिष्ठ पदवी दी जाती है। रधुवंशियों के कुल गुरु सदा ऐसे ही वसिष्ठ पदवीधारी होते थे। रघु, अज, दिलीप, दशरथ, राम, लव- कुश आदि इन छ: पीढिय़ों के गुरु एक वसिष्ठ नहीं बल्कि अलग- अलग थे, पर उपासना के आधार पर इन सभी ने वसिष्ठ पदवी को पाया था। वसिष्ठ का शाप मोचन करने का तात्पर्य यह है कि इस प्रकार के वसिष्ठ से गायत्री साधना की शिक्षा लेनी चाहिए, उसे अपना पथ- प्रदर्शक नियुक्त करना चाहिए।
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*विश्वामित्र का अर्थ है*- संसार की भलाई करने वाला, परमार्थी, उदार, सत्पुरुष, कर्त्तव्यनिष्ठ। गायत्री का शिक्षक केवल वसिष्ठ गुण वाला होना ही पर्याप्त नहीं है, वरन् उसे विश्वामित्र गुण वाला भी होना चाहिए। कठोर साधना और तपश्चर्या द्वारा बुरे स्वभाव के लोग भी सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। रावण वेदपाठी था, उसने बड़ी- बड़ी तपश्चर्याएँ करके आश्चर्यजनक सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। इस प्रकार वह वसिष्ठ पदवीधारी तो कहा जा सकता है, पर विश्वामित्र नहीं; क्योंकि संसार की भलाई के, धर्माचार्य एवं परमार्थ के गुण उनमें नहीं थे। स्वार्थी, लालची तथा संकीर्ण मनोवृत्ति के लोग चाहे कितने ही बड़े सिद्ध क्यों न हों, शिक्षण किये जाने योग्य नहीं, यही दुहरा शाप विमोचन है।
जिसने वसिष्ठ और विश्वामित्र गुण वाला पर्थ- प्रदर्शक, गायत्री- गुरु प्राप्त कर लिया, उसने दोनों शापों से गायत्री को छुड़ा लिया। उनकी साधना वैसा ही फल उपस्थित करेगी, जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है।यह कार्य सरल नहीं है, क्योंकि एक तो ऐसे व्यक्ति मुश्किल से मिलते हैं जो वसिष्ठ और विश्वामित्र के गुणों से सम्पन्न हों। यदि मिलें भी तो हर किसी का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेने को तैयार नहीं होते, क्योंकि उनकी शक्ति और सामर्थ्य सीमित होती है और उससे वे कुछ थोड़े ही लोगों की सेवा कर सकते हैं।
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हम सबका सौभाग्य यह है कि हमारे सद्गुरु युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य - *वशिष्ठ भी है क्योंकि उन्होंने 24 लाख के 24 महापुरश्चरण किये हैं, तो टोटल 5 करोड़ 76 हज़ार तो अनुष्ठान में जप किया है। तथा अश्वमेध यज्ञ श्रृंखला व अनेक कुंडीय यज्ञ में लाखों यज्ञ आहुतियां भी।* वशिष्ठ की उपाधि तो सवा करोड़ गायत्री जप से ही मिल जाती है, लेकिन गुरुदेव ने तो कई करोड़ जप एक ही जीवन मे किया।
*वो विश्वामित्र भी हैं - क्योंकि पूरा जीवन लोककल्याण के लिए जिया। स्वयं तपकर 3200 से ज्यादा लोकहित युगसाहित्य का सृजन किया।*
*वो ब्रह्मऋषि भी हैं - क्योंकि सृजन कर रहे हैं, युगनिर्माण सप्त आंदोलन व शत सूत्रीय कार्यक्रम के माध्यम से जन जन का कल्याण कर रहे हैं।*
*सबसे बड़ा सौभाग्य उन्होंने समर्पित निर्मल शिष्यों की साधना को सम्हालने का वचन दिया है।*
🙏🏻 *अतः यदि गुरु से दीक्षित हैं और जप से पूर्व श्रद्धा भरे अन्तःकरण से गुरु आह्वाहन करते हैं, लोकहित भावना मन मे है तो शाप विमोचन गुरु आह्वाहन व उनके श्री चरणों के ध्यान से स्वतः हो जाएगा। षट कर्म, गुरु आह्वाहन व माँ गायत्री के आह्वाहन व पंचोपचार पूजन के बाद जप कर लें। नवरात्रि समेत समस्त अनुष्ठान निश्चयत: सफल होगा।*
यदि गुरु से दीक्षित नहीं है, तो एक तरह से आप बिना मार्गदर्शक के समुद्र में तैरना स्वयं के प्रयास से शुरू कर रहे हैं। अतः विशेष सावधानी बरतें। समस्त तर्पण, मार्जन, शाप विमोचन करने के बाद ही जप करें।
नोट:- आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि केवल गायत्री हो नहीं, दुनियाँ की समस्त देवियों व देवताओं की शक्ति साधना ब्रह्मा, वशिष्ठ व विश्वामित्र जी द्वारा शापित व कीलित है, सर्वत्र इनका विमोचन, उत्कीलन करना अनिवार्य है, रिफरेंस के लिए दुर्गाशप्तशती व अन्य देवी देवता के पाठ अनुष्ठान विधि को देखें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
*Reference Article*: http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v9.16
प्रश्न - *दी, क्या नवरात्रि अनुष्ठान में नित्य शाप विमोचन करना अनिवार्य है? क्योंकि सुना है बिना शाप विमोचन के गायत्री साधना सफ़ल नहीं होती।*
उत्तर- आत्मीय बहन,
यह सत्य है कि जो शाप- विमोचन की विधि पूरी करके गायत्री साधना करेगा, उसका प्रयत्न सफल होगा और शेष लोगों का श्रम निरर्थक जाएगा।
लेकिन इस पौराणिक उपाख्यान में एक भारी रहस्य छिपा हुआ है, जिसे न जानने वाले केवल ‘शापमुक्ताभव’२ मन्त्रों को दुहराकर यह मान लेते हैं कि हमारी साधना शापमुक्त हो गयी।२(परम्परागत साधना में गायत्री मन्त्र- साधना करने वालों को उत्कीलन करने की सलाह दी गई है। उसमें साधक निर्धारित मन्त्र पढक़र ‘शापमुक्ताभव’ कहता है।)
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*वसिष्ठ का अर्थ है*- ‘विशेष रूप से श्रेष्ठ गायत्री साधना में जिन्होंने विशेष रूप से श्रम किया है, जिसने सवा करोड़ जप किया होता है, उसे वसिष्ठ पदवी दी जाती है। रधुवंशियों के कुल गुरु सदा ऐसे ही वसिष्ठ पदवीधारी होते थे। रघु, अज, दिलीप, दशरथ, राम, लव- कुश आदि इन छ: पीढिय़ों के गुरु एक वसिष्ठ नहीं बल्कि अलग- अलग थे, पर उपासना के आधार पर इन सभी ने वसिष्ठ पदवी को पाया था। वसिष्ठ का शाप मोचन करने का तात्पर्य यह है कि इस प्रकार के वसिष्ठ से गायत्री साधना की शिक्षा लेनी चाहिए, उसे अपना पथ- प्रदर्शक नियुक्त करना चाहिए।
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*विश्वामित्र का अर्थ है*- संसार की भलाई करने वाला, परमार्थी, उदार, सत्पुरुष, कर्त्तव्यनिष्ठ। गायत्री का शिक्षक केवल वसिष्ठ गुण वाला होना ही पर्याप्त नहीं है, वरन् उसे विश्वामित्र गुण वाला भी होना चाहिए। कठोर साधना और तपश्चर्या द्वारा बुरे स्वभाव के लोग भी सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। रावण वेदपाठी था, उसने बड़ी- बड़ी तपश्चर्याएँ करके आश्चर्यजनक सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। इस प्रकार वह वसिष्ठ पदवीधारी तो कहा जा सकता है, पर विश्वामित्र नहीं; क्योंकि संसार की भलाई के, धर्माचार्य एवं परमार्थ के गुण उनमें नहीं थे। स्वार्थी, लालची तथा संकीर्ण मनोवृत्ति के लोग चाहे कितने ही बड़े सिद्ध क्यों न हों, शिक्षण किये जाने योग्य नहीं, यही दुहरा शाप विमोचन है।
जिसने वसिष्ठ और विश्वामित्र गुण वाला पर्थ- प्रदर्शक, गायत्री- गुरु प्राप्त कर लिया, उसने दोनों शापों से गायत्री को छुड़ा लिया। उनकी साधना वैसा ही फल उपस्थित करेगी, जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है।यह कार्य सरल नहीं है, क्योंकि एक तो ऐसे व्यक्ति मुश्किल से मिलते हैं जो वसिष्ठ और विश्वामित्र के गुणों से सम्पन्न हों। यदि मिलें भी तो हर किसी का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेने को तैयार नहीं होते, क्योंकि उनकी शक्ति और सामर्थ्य सीमित होती है और उससे वे कुछ थोड़े ही लोगों की सेवा कर सकते हैं।
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हम सबका सौभाग्य यह है कि हमारे सद्गुरु युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य - *वशिष्ठ भी है क्योंकि उन्होंने 24 लाख के 24 महापुरश्चरण किये हैं, तो टोटल 5 करोड़ 76 हज़ार तो अनुष्ठान में जप किया है। तथा अश्वमेध यज्ञ श्रृंखला व अनेक कुंडीय यज्ञ में लाखों यज्ञ आहुतियां भी।* वशिष्ठ की उपाधि तो सवा करोड़ गायत्री जप से ही मिल जाती है, लेकिन गुरुदेव ने तो कई करोड़ जप एक ही जीवन मे किया।
*वो विश्वामित्र भी हैं - क्योंकि पूरा जीवन लोककल्याण के लिए जिया। स्वयं तपकर 3200 से ज्यादा लोकहित युगसाहित्य का सृजन किया।*
*वो ब्रह्मऋषि भी हैं - क्योंकि सृजन कर रहे हैं, युगनिर्माण सप्त आंदोलन व शत सूत्रीय कार्यक्रम के माध्यम से जन जन का कल्याण कर रहे हैं।*
*सबसे बड़ा सौभाग्य उन्होंने समर्पित निर्मल शिष्यों की साधना को सम्हालने का वचन दिया है।*
🙏🏻 *अतः यदि गुरु से दीक्षित हैं और जप से पूर्व श्रद्धा भरे अन्तःकरण से गुरु आह्वाहन करते हैं, लोकहित भावना मन मे है तो शाप विमोचन गुरु आह्वाहन व उनके श्री चरणों के ध्यान से स्वतः हो जाएगा। षट कर्म, गुरु आह्वाहन व माँ गायत्री के आह्वाहन व पंचोपचार पूजन के बाद जप कर लें। नवरात्रि समेत समस्त अनुष्ठान निश्चयत: सफल होगा।*
यदि गुरु से दीक्षित नहीं है, तो एक तरह से आप बिना मार्गदर्शक के समुद्र में तैरना स्वयं के प्रयास से शुरू कर रहे हैं। अतः विशेष सावधानी बरतें। समस्त तर्पण, मार्जन, शाप विमोचन करने के बाद ही जप करें।
नोट:- आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि केवल गायत्री हो नहीं, दुनियाँ की समस्त देवियों व देवताओं की शक्ति साधना ब्रह्मा, वशिष्ठ व विश्वामित्र जी द्वारा शापित व कीलित है, सर्वत्र इनका विमोचन, उत्कीलन करना अनिवार्य है, रिफरेंस के लिए दुर्गाशप्तशती व अन्य देवी देवता के पाठ अनुष्ठान विधि को देखें।
🙏🏻श्वेता, DIYA
*Reference Article*: http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v9.16
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