प्रश्न- *जब बिन पढ़ें हम पास नहीं हो सकते, फ़िर हम जप, ध्यान और स्वाध्याय क्यों करें?*
*जब हमारे तप करने से, हमारा जीवनसाथी सुधर नहीं सकता, तो फ़िर हम जप, ध्यान और स्वाध्याय क्यों करें?*
*जब हमारे जप-तप-ध्यान से हमारा जॉब व्यवसाय स्वतः चल नहीं सकता, तो फ़िर हम-जप-ध्यान-स्वाध्याय क्यों करें?*
उत्तर- आत्मीय बहन, मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दो:-
जल की बूंदों को तुमने घर की दीवारों में देखा है? नहीं न.. जल से घर नहीं बनता फिर घर के निर्माण में जल की आवश्यकता क्यों?...जल ने ही सीमेंट को जोड़ने में मदद की है न...
बिन गाड़ी के गूगल मैप या स्थान का मैप किसी को मंजिल तक नहीं पहुंचा सकता है?.. फ़िर मैप की आवश्यकता क्यों? दोनो जरूरी है न..
बिजली कनेक्शन लेने भर से घर ठंडा नहीं होता, एयरकंडीशनर भी लगाना पड़ता है। दोनों जरूरी है..है न...
जब कृष्ण भगवान पूरे महाभारत युद्ध में हथियार न उठाने का संकल्प लिया, युद्ध न लड़ने का संकल्प लिया, फिर भी अर्जुन ने उन्हें क्यों चुना?...क्या बिना कृष्ण की सहायता के अर्जुन युद्ध जीत सकता था क्या?..
अर्जुन यह भी तो कह सकता था, कृष्ण यदि तुम भगवान हो तो दुर्योधन व शकुनि को मेरे लिए सुधार दो। जब तुम शांति दूत में असफल रहे, दुर्योधन को सुधार न सके, तो मैं तुम्हें भगवान क्यों मानू?
मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है, यह स्वतन्त्रता अर्जुन के पास जितनी है उतनी ही दुर्योधन के पास भी है। भगवान की गीता जो समर्पित होकर सुनने को तैयार होगा, उसी तक यह ज्ञानमृत पहुंचेगा। दुर्योधन ने अपने अधिकारों का प्रयोग कर मना कर दिया तो भगवान ने वह ज्ञान वहाँ नहीं दिया।
आप भी अर्जुन व दुर्योधन की तरह स्वतंत्र हैं। चयन कर सकते हैं।
जीवन में सफलता के लिए अध्यात्म(जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय) व पुरुषार्थ(विभिन्न कार्य) दोनो जरूरी है।
यह सब समझने के लिये जिस बुद्धि की आवश्यकता है, उस सद्बुद्धि के लिए जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय किया जाता है। भगवान से अर्जुन की तरह ज्ञान माँगा जाता है जिससे मोह में बुद्धि न फंसे और जीवन समर व्यक्ति बुद्धिप्रयोग से जीत सके। पढ़ाई में मन न भटके, और पढ़ाई में मन लगे, बुद्धि तेज हो जिससे पढ़ने में मदद मिले। जीवनसाथी को हैंडल करने के लिए सद्बुद्धि मिले, गृहस्थ जीवन मे जीवन साथी की आकृति नहीं उसकी प्रकृति समझ सकें, उसको समझ के उसे सम्हाल सकें व उसके अंगारों के वचनों से स्वयं को बचा सकें इसलिए जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय करें। अतः बुद्धिरथ का सारथी परमात्मा को बनाना है तो जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय जरूर करें, साथ ही यह स्मरण रखें अर्जुन की तरह अपना जीवन युद्ध स्वयं के पुरुषार्थ से आपको स्वयं ही लड़ना होगा। अध्यात्म शक्ति देगा, उसका उपयोग पुरुषार्थ में स्वयं को ही करना पड़ेगा। बुद्धि से भैंस नियंत्रित होती है बल से नहीं। बुद्धि तेज कीजिये।
युगऋषि के साहित्य का स्वाध्याय आपका जीवन युद्ध नहीं लड़ेगा, युद्ध तो अर्जुन की तरह अपना आपको ही लड़ना है, यह स्वाध्याय भगवान कृष्ण की तरह आपके जीवन मे सहायक होगा, मोह से निकालेगा, मार्गदर्शन करेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
*जब हमारे तप करने से, हमारा जीवनसाथी सुधर नहीं सकता, तो फ़िर हम जप, ध्यान और स्वाध्याय क्यों करें?*
*जब हमारे जप-तप-ध्यान से हमारा जॉब व्यवसाय स्वतः चल नहीं सकता, तो फ़िर हम-जप-ध्यान-स्वाध्याय क्यों करें?*
उत्तर- आत्मीय बहन, मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दो:-
जल की बूंदों को तुमने घर की दीवारों में देखा है? नहीं न.. जल से घर नहीं बनता फिर घर के निर्माण में जल की आवश्यकता क्यों?...जल ने ही सीमेंट को जोड़ने में मदद की है न...
बिन गाड़ी के गूगल मैप या स्थान का मैप किसी को मंजिल तक नहीं पहुंचा सकता है?.. फ़िर मैप की आवश्यकता क्यों? दोनो जरूरी है न..
बिजली कनेक्शन लेने भर से घर ठंडा नहीं होता, एयरकंडीशनर भी लगाना पड़ता है। दोनों जरूरी है..है न...
जब कृष्ण भगवान पूरे महाभारत युद्ध में हथियार न उठाने का संकल्प लिया, युद्ध न लड़ने का संकल्प लिया, फिर भी अर्जुन ने उन्हें क्यों चुना?...क्या बिना कृष्ण की सहायता के अर्जुन युद्ध जीत सकता था क्या?..
अर्जुन यह भी तो कह सकता था, कृष्ण यदि तुम भगवान हो तो दुर्योधन व शकुनि को मेरे लिए सुधार दो। जब तुम शांति दूत में असफल रहे, दुर्योधन को सुधार न सके, तो मैं तुम्हें भगवान क्यों मानू?
मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है, यह स्वतन्त्रता अर्जुन के पास जितनी है उतनी ही दुर्योधन के पास भी है। भगवान की गीता जो समर्पित होकर सुनने को तैयार होगा, उसी तक यह ज्ञानमृत पहुंचेगा। दुर्योधन ने अपने अधिकारों का प्रयोग कर मना कर दिया तो भगवान ने वह ज्ञान वहाँ नहीं दिया।
आप भी अर्जुन व दुर्योधन की तरह स्वतंत्र हैं। चयन कर सकते हैं।
जीवन में सफलता के लिए अध्यात्म(जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय) व पुरुषार्थ(विभिन्न कार्य) दोनो जरूरी है।
यह सब समझने के लिये जिस बुद्धि की आवश्यकता है, उस सद्बुद्धि के लिए जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय किया जाता है। भगवान से अर्जुन की तरह ज्ञान माँगा जाता है जिससे मोह में बुद्धि न फंसे और जीवन समर व्यक्ति बुद्धिप्रयोग से जीत सके। पढ़ाई में मन न भटके, और पढ़ाई में मन लगे, बुद्धि तेज हो जिससे पढ़ने में मदद मिले। जीवनसाथी को हैंडल करने के लिए सद्बुद्धि मिले, गृहस्थ जीवन मे जीवन साथी की आकृति नहीं उसकी प्रकृति समझ सकें, उसको समझ के उसे सम्हाल सकें व उसके अंगारों के वचनों से स्वयं को बचा सकें इसलिए जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय करें। अतः बुद्धिरथ का सारथी परमात्मा को बनाना है तो जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय जरूर करें, साथ ही यह स्मरण रखें अर्जुन की तरह अपना जीवन युद्ध स्वयं के पुरुषार्थ से आपको स्वयं ही लड़ना होगा। अध्यात्म शक्ति देगा, उसका उपयोग पुरुषार्थ में स्वयं को ही करना पड़ेगा। बुद्धि से भैंस नियंत्रित होती है बल से नहीं। बुद्धि तेज कीजिये।
युगऋषि के साहित्य का स्वाध्याय आपका जीवन युद्ध नहीं लड़ेगा, युद्ध तो अर्जुन की तरह अपना आपको ही लड़ना है, यह स्वाध्याय भगवान कृष्ण की तरह आपके जीवन मे सहायक होगा, मोह से निकालेगा, मार्गदर्शन करेगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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