*सङ्कल्प का कोई विकल्प नहीं होता*
*ब्रह्मचर्य* - का अर्थ यह नहीं कि संसार की समस्त स्त्रियाँ नज़र न आये, उन्हें बुर्के में ढँक दिया जाय या उनका कत्ल कर दिया जाय।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है कामुक दृष्टि बदल दी जाय, व प्रत्येक स्त्री माता का भाव आ जाये।
*ध्यान* - का अर्थ यह नहीं कि संसार से शोर मिटा दिया जाय। ध्यान का अर्थ है भीतर का कोलाहल शांत कर दिया जाय। भीतर के कर्ण बन्द करने की सामर्थ्य आ जाये। भीड़ में भी ध्यानस्थ गहन मौन व शांति अनुभव की जाय।
*पढ़ने में मन लगने* - का अर्थ यह नहीं कि कोई डिस्टर्ब ही न करे और सब सहयोग करें। पढ़ने में मन लगने का अर्थ यह कि दुनियाँ विरोध करे, हर कोई डिस्टर्ब करे, फिर भी आपका मन पढ़ाई से न डिगे। क्योंकि ज्ञान का महत्त्व आपको हृदय से समझ मे आ गया है।
*नशा छोड़ने* - का अर्थ यह नहीं कि आप कॉरपोरेट पार्टी में न जाएं या कॉलेज पार्टी में न जाएं। दुनियाँ की समस्त नशेड़ी को मार गिराएँ। दुनियाँ पिये फ़िर भी आपके मन में उसके प्रति कोई लगावन जगे। आपको हृदय से समझ आ जाये कि यह सर्वनाश व असुरत्व का मार्ग है,मैंने इसे त्याग दिया है।मुझे आत्मज्ञान इसकी तबाही का हो गया है। यह मुझे विचलित नहीं कर सकता।
*योगी* - बनने का अर्थ यह नहीं कि लौकिक जिम्मेदारी से भाग जाएं। अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करें। योगी बनने का अर्थ कमल बनकर सांसारिक कामना वासना के कीचड़ से ऊपर उठना। चेतना को उर्ध्वगामी बनाना। इनका कोई असर स्वयं प्रण होना। इनमें लिप्त न होना।जीने के लिए स्वास्थ्यकर खाना, स्वयं के कल्याण व संसार के कल्याण के लिए निरत हो जाना।
अब तप के लिए जंगल जाने की जरूरत नहीं, और हिंसक जीवों से भय समाप्त करके स्वयं की जांच पूरी करने के लिए जंगल में भटकने की जरूरत नहीं।, सभी हिंसक जीव मानव रूप में इर्दगिर्द है, यत्र तत्र सर्वत्र हैं। अतः घर गृहस्थी व जॉब में पर्याप्त पशु उपलब्ध हैं। यहीं तप करके स्वयं को साध के अपनी चेकिंग कर सकते हैं, कि कितने सिद्ध हुए? या अभी और तप करना बाकी है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
*ब्रह्मचर्य* - का अर्थ यह नहीं कि संसार की समस्त स्त्रियाँ नज़र न आये, उन्हें बुर्के में ढँक दिया जाय या उनका कत्ल कर दिया जाय।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है कामुक दृष्टि बदल दी जाय, व प्रत्येक स्त्री माता का भाव आ जाये।
*ध्यान* - का अर्थ यह नहीं कि संसार से शोर मिटा दिया जाय। ध्यान का अर्थ है भीतर का कोलाहल शांत कर दिया जाय। भीतर के कर्ण बन्द करने की सामर्थ्य आ जाये। भीड़ में भी ध्यानस्थ गहन मौन व शांति अनुभव की जाय।
*पढ़ने में मन लगने* - का अर्थ यह नहीं कि कोई डिस्टर्ब ही न करे और सब सहयोग करें। पढ़ने में मन लगने का अर्थ यह कि दुनियाँ विरोध करे, हर कोई डिस्टर्ब करे, फिर भी आपका मन पढ़ाई से न डिगे। क्योंकि ज्ञान का महत्त्व आपको हृदय से समझ मे आ गया है।
*नशा छोड़ने* - का अर्थ यह नहीं कि आप कॉरपोरेट पार्टी में न जाएं या कॉलेज पार्टी में न जाएं। दुनियाँ की समस्त नशेड़ी को मार गिराएँ। दुनियाँ पिये फ़िर भी आपके मन में उसके प्रति कोई लगावन जगे। आपको हृदय से समझ आ जाये कि यह सर्वनाश व असुरत्व का मार्ग है,मैंने इसे त्याग दिया है।मुझे आत्मज्ञान इसकी तबाही का हो गया है। यह मुझे विचलित नहीं कर सकता।
*योगी* - बनने का अर्थ यह नहीं कि लौकिक जिम्मेदारी से भाग जाएं। अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करें। योगी बनने का अर्थ कमल बनकर सांसारिक कामना वासना के कीचड़ से ऊपर उठना। चेतना को उर्ध्वगामी बनाना। इनका कोई असर स्वयं प्रण होना। इनमें लिप्त न होना।जीने के लिए स्वास्थ्यकर खाना, स्वयं के कल्याण व संसार के कल्याण के लिए निरत हो जाना।
अब तप के लिए जंगल जाने की जरूरत नहीं, और हिंसक जीवों से भय समाप्त करके स्वयं की जांच पूरी करने के लिए जंगल में भटकने की जरूरत नहीं।, सभी हिंसक जीव मानव रूप में इर्दगिर्द है, यत्र तत्र सर्वत्र हैं। अतः घर गृहस्थी व जॉब में पर्याप्त पशु उपलब्ध हैं। यहीं तप करके स्वयं को साध के अपनी चेकिंग कर सकते हैं, कि कितने सिद्ध हुए? या अभी और तप करना बाकी है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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