कविता - *बचा लो घर परिवार*
अहंकार की खटाई,
जहाँ रिश्तों में समाई,
वहाँ रिश्तों में मिठास,
न ढूंढने से मिलेगी भाई।
लड़की जब न थी कमाने वाली,
आर्थिक वज़ह थी तब सर झुकाने वाली,
लेकिन अब तो वो कमा रही हैं भाई,
फ़िर क्यों आर्थिक वज़ह से,
उसका सर झुकेगा भाई?
पहले क़ानून व्यवस्था थी अस्तव्यस्त,
मायके में भाई व ससुराल में पति था रक्षक,
अब कानून सर्वत्र है भाई,
अब स्त्री कानून मजबूर नहीं है भाई,
फिर क्यों सुरक्षा की वजह से,
उसका सर झुकेगा भाई?
पहले स्त्री की कोई पहचान नहीं थी,
जन्मी तब अमुक पिता की पुत्री,
व्याही तब अमुक की पत्नी,
सन्तान जन्मते ही अमुक की माता,
तब उसका अस्तित्व नहीं था भाई,
बिना अस्तित्व के मरती थी भाई,
अब नए जमाने मे,
उसका एक नाम व अस्तित्व है भाई,
फ़िर पहचान के लिए,
क्यों उसका सर झुकेगा भाई?
पुरुष को जन्म से मिले वही पुराने कुसंस्कार,
पत्नी पर तुम्हारा है जन्म सिद्ध अधिकार,
मांगो दहेज़ सिर्फ इसलिए कि तुम पुरुष हो,
दिखाओ रौब सिर्फ़ इसलिए कि तुम जन्मे पुरुष हो,
घर बसाने में पुराने नियम न चलेंगे,
नए नियमों को हम कब समझेंगे?
भूल गए कि जमाना बदल गया है भाई,
फ़िर पुराने कुसंस्कारो से कैसे घर बसेगा भाई?
लड़कियों को मिलने लगी है मंथरा से नसीहतें,
घर तोड़ने व तबाह करने वाली नसीहतें,
पुरूष ने सदा से नारी पर अत्याचार किया है,
उन अत्याचारों का बदला लेने को तूने जन्म लिया है।
भूल जा प्रेम प्यार,
मत कर अपने बच्चों की परवाह,
बन कर बला,
कर दे ससुराल वालों को तबाह।
रिश्तों में पुराने व नए सोच की,
एक कोल्ड वार चल रही है,
वर्चस्व दिखाने की,
एक अंधी दौड़ चल रही है।
सास पुराने ज़माने वाली,
दुहाई दे रही है,
हम सब सहते थे,
बहुएं लेकिन मुँह खोल रही हैं।
बेटे माता व पत्नी के बीच पीस रहे हैं,
स्वयं की सोच को नहीं अपग्रेड कर रहे हैं,
पत्नियां पुरूष के प्रति हृदय में ज़हर पाल रही हैं,
न जाने क्यों विरोधाभास के बहकावे में आ रही हैं।
त्याग दो पतियों परिवार के दिए कुसंस्कार,
त्याग दो पत्नियों मन्थरा के दी हुई सलाह,
बन जाओ मित्र व एक दूसरे के पूरक,
जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करने में करो पहल,
त्याग के अहंकार, अपना के मधुर व्यवहार,
बसा लो अपना प्यारा - सुनहरा घर परिवार।
*पुस्तक- "भाव सम्वेदना की गंगोत्री" पढ़ लो,*
*पुस्तक- "गृहस्थ एक तपोवन"* से,
गृहस्थी के सूत्र सीख लो,
धरती पर एक ऐसा आदर्श परिवार बसाये,
जो धरती का सुखमय-प्रेममय स्वर्ग कहलाये।
🙏🏻श्वेता, DIYA
अहंकार की खटाई,
जहाँ रिश्तों में समाई,
वहाँ रिश्तों में मिठास,
न ढूंढने से मिलेगी भाई।
लड़की जब न थी कमाने वाली,
आर्थिक वज़ह थी तब सर झुकाने वाली,
लेकिन अब तो वो कमा रही हैं भाई,
फ़िर क्यों आर्थिक वज़ह से,
उसका सर झुकेगा भाई?
पहले क़ानून व्यवस्था थी अस्तव्यस्त,
मायके में भाई व ससुराल में पति था रक्षक,
अब कानून सर्वत्र है भाई,
अब स्त्री कानून मजबूर नहीं है भाई,
फिर क्यों सुरक्षा की वजह से,
उसका सर झुकेगा भाई?
पहले स्त्री की कोई पहचान नहीं थी,
जन्मी तब अमुक पिता की पुत्री,
व्याही तब अमुक की पत्नी,
सन्तान जन्मते ही अमुक की माता,
तब उसका अस्तित्व नहीं था भाई,
बिना अस्तित्व के मरती थी भाई,
अब नए जमाने मे,
उसका एक नाम व अस्तित्व है भाई,
फ़िर पहचान के लिए,
क्यों उसका सर झुकेगा भाई?
पुरुष को जन्म से मिले वही पुराने कुसंस्कार,
पत्नी पर तुम्हारा है जन्म सिद्ध अधिकार,
मांगो दहेज़ सिर्फ इसलिए कि तुम पुरुष हो,
दिखाओ रौब सिर्फ़ इसलिए कि तुम जन्मे पुरुष हो,
घर बसाने में पुराने नियम न चलेंगे,
नए नियमों को हम कब समझेंगे?
भूल गए कि जमाना बदल गया है भाई,
फ़िर पुराने कुसंस्कारो से कैसे घर बसेगा भाई?
लड़कियों को मिलने लगी है मंथरा से नसीहतें,
घर तोड़ने व तबाह करने वाली नसीहतें,
पुरूष ने सदा से नारी पर अत्याचार किया है,
उन अत्याचारों का बदला लेने को तूने जन्म लिया है।
भूल जा प्रेम प्यार,
मत कर अपने बच्चों की परवाह,
बन कर बला,
कर दे ससुराल वालों को तबाह।
रिश्तों में पुराने व नए सोच की,
एक कोल्ड वार चल रही है,
वर्चस्व दिखाने की,
एक अंधी दौड़ चल रही है।
सास पुराने ज़माने वाली,
दुहाई दे रही है,
हम सब सहते थे,
बहुएं लेकिन मुँह खोल रही हैं।
बेटे माता व पत्नी के बीच पीस रहे हैं,
स्वयं की सोच को नहीं अपग्रेड कर रहे हैं,
पत्नियां पुरूष के प्रति हृदय में ज़हर पाल रही हैं,
न जाने क्यों विरोधाभास के बहकावे में आ रही हैं।
त्याग दो पतियों परिवार के दिए कुसंस्कार,
त्याग दो पत्नियों मन्थरा के दी हुई सलाह,
बन जाओ मित्र व एक दूसरे के पूरक,
जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करने में करो पहल,
त्याग के अहंकार, अपना के मधुर व्यवहार,
बसा लो अपना प्यारा - सुनहरा घर परिवार।
*पुस्तक- "भाव सम्वेदना की गंगोत्री" पढ़ लो,*
*पुस्तक- "गृहस्थ एक तपोवन"* से,
गृहस्थी के सूत्र सीख लो,
धरती पर एक ऐसा आदर्श परिवार बसाये,
जो धरती का सुखमय-प्रेममय स्वर्ग कहलाये।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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