Wednesday, 23 October 2019

प्रश्न - 1 - *क्या स्त्रियों वेदों के अध्ययन व वेदमन्त्रों के उच्चारण का अधिकार है?* -स्त्रियों का गायत्रीमंत्र, यज्ञ, वेदाध्ययन, यग्योपवीत अधिकार सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

*स्त्रियों का गायत्रीमंत्र, यज्ञ, वेदाध्ययन, यग्योपवीत अधिकार सम्बन्धी प्रश्नोत्तर*

प्रश्न - 1 - *क्या स्त्रियों वेदों के अध्ययन व वेदमन्त्रों के उच्चारण का अधिकार है?*

उत्तर - काशी हिंदू विश्व विद्यालय में पण्डित मदन मोहन मालवीय जी की अध्यक्षता में पूरे देश विदेश के प्रकाण्ड पंडितों का शास्त्रार्थ हुआ तथा वेदों के अध्ययन के प्राचीन ग्रंथो के इस सम्बंध में उल्लेख ढूढ़े गये एवं सर्व सम्मति व ध्वनिमत से प्रस्ताव - *22 अगस्त 1946* पारित हुआ। प्रथम वेदाध्ययन करने वाली छात्रा का नाम - *कुमारी कल्याणी देवी* था। तब से अब तक हज़ारों स्त्रियां वेद अध्ययन कर चुकी हैं। स्वयं वेदों में अनेक ऐसे सौभाग्य के मन्त्र हैं जो पति के दीर्घायु होने, घर गृहस्थी व सन्तान प्राप्ति के हैं। तथा कई ऐसे वेद मन्त्र हैं जिसे स्त्री ऋषिकाओ ने लिखा है।

प्रश्न - 2 - *क्या स्त्रियों को गायत्री मंत्र जप का अधिकार है?*

उत्तर- श्री सीता जी, द्रौपदी, सुग्रीव की पत्नी तारा, राधा जी, सती अनुसुइया, अपाला, घोषा जैसी अनेक स्त्रियों के उदाहरण हैं जो गायत्री जप करती थीं।  तब प्रश्न उठता है जब पहले गायत्री जप का अधिकार था तो फ़िर लोग यह  क्यों कहते हैं कि अब अधिकार नहीं। मध्यकाल के अंधकार युग में मुस्लिम आतंकियों के स्त्री चुराने व बालात्कार की घटना आम हो गयी थी। हिंदू राजा संगठित नहीं थे, यथा राजा तथा प्रजा। वो भी संगठित नहीं थे। गुरुकुल को सुरक्षा देने की जगह स्त्रियों को घर से बाहर निकलने पर ही प्रतिबंध लगा दिया। घूंघट में चेहरे ढँक दिए। शिक्षा का ही जब अधिकार बन्द कर दिया गया। तो वेद व मन्त्रो से भी उनको दूर कर दिया गया। लोभी व्यसनियों ने स्त्रियों के विरोध को कुचलने के लिए मनमाना संस्कृत में श्लोक लिखवाया और उनके हृदय में यह भय उपजा दिया कि यदि मन्त्र जपा तो अनिष्ट होगा, पति व पुत्र नहीं रहेंगे। इत्यादि इत्यादि। एक से अधिक स्त्रियों को बलवान रखने लगे जो सुरक्षा प्रदान कर सकें। क्योंकि स्त्री न शिक्षित थी न हथियार चला सकती थी तो दहेज़ प्रथा शुरू हुआ। क्योंकि पूरी उम्र सुरक्षा व खाना-खर्चा का वहन पुरुष को करना था।

अब थोड़ा अक्ल ख़र्च करके सोचो, जिस बर्तन की बनी खीर भगवान को भोग लग रही है, और उसी बर्तन को अपवित्र कहना उचित है। वृक्ष अपवित्र और उसका फल पवित्र ऐसा कभी हो सकता है? इसी तरह जिस स्त्री के रक्त-मांस से पुरुष पैदा हुआ, पुरुष पवित्र तो स्त्री अपवित्र किस तरह हुई?

प्रश्न -3- *क्या स्त्रियों को यज्ञ का अधिकार है?*

उत्तर- कोई भी धर्म ग्रन्थ उठा लो, सर्वत्र स्त्री व पुरुष यज्ञ करते मिलेंगे। श्री सीता जी की अनुपस्थिति में श्रीराम ने स्वर्ण की मूर्ति सीता जी का बनाकर अश्वमेध यज्ञ किया था। सभी ऋषि पत्नियां व गृहस्थ दैनिक यज्ञ करते थे। यह अधिकार है तभी तो यज्ञ के कर्मकांड में बताया जाता है कि यज्ञ के वक्त स्त्री किधर बैठेगी। यज्ञ का अधिकार न होता तो विवाह जो कि यज्ञ ही है, जिसके चारों ओर सात फेरे लिए जाते हैं, सम्भव ही नहीं होता है। क्योंकि हिन्दू धर्म में कोई भी सँस्कार हो वो बिना यज्ञ हो ही नहीं सकता।

प्रश्न - 4 - *क्या स्त्रियों को यग्योपवीत धारण करने का अधिकार है?*

उत्तर- जिस प्रकार मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा की हुई देव प्रतिमा  होती है, उसके समक्ष पूजन करना ज्यादा प्रभावशाली होता है। वैसे ही धागों की देवप्रतिमा यग्योपवीत(जनेऊ) होता है। तीन लड़ियां त्रिपदा गायत्री और 9 लड़े नवदुर्गा की नवशक्तियों का प्रतीक हैं। तीन गांठें गायत्री मन्त्र की तीन व्याहृतियाँ है, सबसे बड़ी वाली गांठ ब्रह्मग्रन्थि ॐ कार का प्रतिनिधित्व करती है।

जिस प्रकार मंदिर में भी पूजा किया जा सकता है और बिना मंदिर के भी पूजा किया जा सकता है। इसी तरह यग्योपवीत पहनकर भी साधना होती है और इसको पहने बिना भी जप हो सकता है।

यग्योपवीत पुरुषों के समान स्त्रियाँ भी पहन सकती हैं। रजोदर्शन(मासिक धर्म) की शुरुआत में उतार दें,मासिक धर्म की निवृत्ति के बाद जिस दिन से पुनः पूजन प्रारम्भ करें उस दिन नया धारण कर लें। अर्थात प्रत्येक महीने नया सूत्र धारण करना होगा।

प्रश्न - 5- *स्त्रियां मासिक धर्म में आती हैं तो अपवित्र होती हैं, तो वो भला गायत्री साधना कैसे कर सकती हैं?*

उत्तर- स्त्रियां 365 दिन नित्य मासिक धर्म मे नहीं होती। केवल प्रत्येक माह 5 दिन की छुट्टी में होती हैं क्योंकि शरीर थोड़ा अस्वस्थ होता है और ऊर्जा ग्रहण करने की स्थिति में नहीं होता, क्योंकि ऊर्जा भी पचाने के लिए  मांसपेशियों का रिलैक्स होना जरूरी है । जैसे पेट खराब हो तो गरिष्ठ नहीं खाया जा सकता। कठिन परिश्रम नहीं किया जा सकता। ठीक वैसे ही यह वक्त उनके आराम का है। अब दौड़ते हुए टोमेटो सूप तो नहीं पी सकते, इसी तरह शरीर यदि सफाई के कार्य में दौड़ रहा है तो उसे ऊर्जा ग्रहण व उसके पाचन में नहीं लगाया जा सकता। मग़र जो कार्य पाँच दिन का है उसके लिए बाकी बचे 25 दिन जिसमें शरीर ऊर्जा ग्रहण को तैयार है, साधना से वंचित क्यों किया जाय भला?

वैसे भी जो भाई यह कुतर्क करें कि मासिक धर्म में स्त्रियां अपवित्र होती हैं, तो उनसे कहें जब 9 महीने वही मासिक धर्म रुकता है तो उसी रक्त मांस से बेटी-बेटे रूपी सन्तान का सृजन होता है। यदि आपकी माँ अपवित्र है तो आप तो महा अपवित्र हैं। आपका तो स्पर्श भी नहीं किया जाना चाहिए और आपको भी गायत्री अधिकार नहीं होना चाहिए। जिसे अपवित्र कह रहे हो उसी से तो बने हो।

प्रश्न - 6- *क्या स्त्रियां पुरुष के बराबर धर्म क्षेत्र में अधिकार रखती हैं?*

उत्तर- शिव के 100% रूप के दो भाग 50% पुरूष व 50% प्रकृति बनी। शिव का अर्धनारीश्वर रूप इसी बात का प्रतीक है। अब एक ही बर्तन की आधी दही पवित्र और आधी अपवित्र कैसे हो सकती है? एक ही शक्ति के दो भाग में एक पवित्र व दूसरा अपवित्र कैसे हो सकता है? स्त्री पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं। गृहस्थ जीवन के सभी धर्म ऋण से उऋण होने के लिए स्त्री का साथ तो चाहिए ही।

प्रश्न - 7- *स्त्रियों के गायत्री अधिकार के सम्बंध में किन किन पुस्तकों में उल्लेख किया है?*

उत्तर- पुस्तकों के नाम:-
1- स्त्रियों के गायत्री अधिकार
2- गायत्री विषयक शंका समाधान
3- गायत्री महाविज्ञान
4- यत्र नारयन्ते पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता
5- यज्ञ का ज्ञान विज्ञान

प्रश्न - 8 - *क्या आप गायत्री जपती हैं? कब से? आपके गृहस्थ जीवन में इसका क्या प्रभाव है?*

उत्तर- हमारे माता पिता गायत्री जपते थे, हमारे पूरे खानदान में सभी स्त्रियाँ गायत्री जपती हैं। माता गायत्री की अनुकम्पा व कृपा से मैं जॉब करती हूँ, मेरे पति व बेटा स्वस्थ प्रशन्न है।वो दोनों भी गायत्री साधना करते हैं। हमारे गायत्री परिवार की हज़ारों स्त्रियां नियमित गायत्री जप कर रही हैं।

प्रश्न -9 - *क्या स्त्रियां जोर से मन्त्र उच्चारण कर सकती हैं?*
उत्तर- स्त्री हो या पुरूष किसी को भी पूजन स्थल, समूह जप उच्चारण और यज्ञ के अतिरिक्त जोर से मन्त्र नहीं बोलना चाहिए। दैनिक उपासना में और अनुष्ठान के वक्त उपांशु(होठ हिले मगर पड़ोस में बैठा व्यक्ति भी मन्त्र सुन न सके) ऐसे जपना चाहिए। अशुद्धि, सूतक, रजोदर्शन, घर से बाहर यात्रा के दौरान मात्र मौनमानसिक जप करना चाहिए। यज्ञ के दौरान गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण व लय के साथ जोर से बोलते हुए आहुति देनी चाहिए। स्कूलों में प्रेयर के वक़्त भी उच्चारण करते हुए मन्त्र बोलना चाहिए।

प्रश्न - 10 - *गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु है, उसी की फ़लित होती है। इसका फिर क्या आशय है?*

उत्तर- चिकित्सा क्षेत्र में सफलता डॉक्टर(चिकित्सक) को ही मिलेगा। यहां जो आशय है वही ब्राह्मण का भी आशय है। ब्राह्मण डिग्री उपाधि है जो कर्म द्वारा प्राप्त की जाती है। चिकित्सक स्त्री व पुरुष दोनों बन सकते हैं। उसी तरह ब्राह्मण स्त्री व पुरुष दोनों बन सकते हैं। चिकित्सक जन्म से नहीं बना जा सकता ठीक उसी तरह ब्राह्मण जन्म से नहीं बना जा सकता। चिकित्सक की सन्तान बिन पढ़े चिकित्सक नहीं बन सकता, उसी तरह ब्राह्मण की सन्तान बिन ब्राह्मणोचित जीवन क्रम अपनाए ब्राह्मण स्वयं को घोषित नहीं कर सकती।

*चिकित्सक* - औषधियों का गहन अध्ययन कर उसकी विधिवत शिक्षा लेना व उस ज्ञान का पीड़ित मानवता की सेवा के लिए प्रयोग करना।

*ब्राह्मण* - वेदों व धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन करना, उस ज्ञान से पीड़ित मानवता की सेवा करना व उन्हें मुक्ति का मार्ग बताना। अपनी चेतना को ब्रह्म में रमाना और चरित्र-चिंतन-व्यवहार-आचरण से लोगों को शिक्षण देना।

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*देखिये एकांत में बैठकर कुछ प्रश्न स्वयं से पूँछिये व चिंतन कीजिये, आपका अन्तःकरण आपको उत्तर देगा*:-

1- जो भोजन पका सकता है तो उसे खाने का अधिकार क्यों नहीं होगा? जब स्त्रियां वेदमंत्रों की रचना कर सकती हैं तो भला उन्हें वेद का अधिकार क्यों नहीं होगा?

2- यदि स्त्रियों को वेद व यज्ञ का अधिकार नहीं होता तो समस्त षोडश सँस्कार व यज्ञ में पत्नी भला कैसे सम्मिलित होती?

3- स्त्रियां यदि अपवित्र होती तो नवरात्र में कन्या पूजन क्यों होता? धर्मग्रन्थ में *यत्र नारयन्ते पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता* क्यों कहा जाता? माता पूजनीय कैसे होती? अर्धांगिनी प्रत्येक धर्म कर्म में साथ कैसे होती?

4- स्त्री को यदि यज्ञ का अधिकार नहीं होता तो भला विवाह में वेदमन्त्र बोलकर यज्ञ कैसे करती? पुरुषों का तो कभी विवाह ही नहीं होता।

5- यदि स्त्रियों को वेद का अधिकार नहीं होता तो यज्ञ आदि ऋषि याज्ञवल्कय व वेदज्ञाता मैत्रेयी का शास्त्रार्थ कैसे सम्भव हुआ?

6- अनुसुइया, अरुंधति, मदालसा, मैत्रेयी, घोषा, अपाला, अहिल्या वेदज्ञाता स्त्रियां थीं। यदि स्त्रियों को वेद का अधिकार नहीं होता तो ये वेदज्ञाता कैसे बनी?

7- क्या नारी को अध्यात्म में अयोग्य ठहरा कर उससे उतपन्न सन्तान को अध्यात्म के योग्य भला किस तरह मान सकते हो?

8- जिस मासिक धर्म को अपवित्र बताकर स्त्रियों को कोषते हो और अध्यात्म के अयोग्य ठहराते हो, उसी मासिक धर्म के रुकने से 9 महीने में उसी गर्भ में उसी रक्त व मांस से जन्मी पुरुष सन्तान पवित्र कैसे????

9- जब अन्य जीव वनस्पति में नर मादा का कोई भेद नहीं। फिर मनुष्य किस हक से भेद करता है?

10- सरस्वती, लक्ष्मी, काली को पूजने वाले स्त्री को अध्यात्म के अयोग्य कैसे ठहरा सकते हैं भला?

11- जब स्त्रियों को वेदों का अधिकार नहीं था तो उनके लिए वेदमन्त्र वेदों में क्यों लिखे गए?

उपरोक्त प्रश्न स्वयं से पूँछिये उत्तर आपको आपका अन्तःकरण अवश्य देगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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