प्रश्न - *दी, आज़कल प्रत्येक डॉक्टर अंडे खाने की सलाह देते हैं, कहते हैं प्रोटीन, ओमेगा 3 और फैटी एसिड होता है जो मनुष्य के लिए हितकारी है। उनकी सलाह मानकर मेरी गर्भवती भाभी भी शाकाहारी से अंडाहारी हो गयी है, कहती है गांधी जी ने भी अण्डे को मुर्गिफल व शाकाहारी कहा है।*
उत्तर - आत्मीय बहन, किसी राजनेता और बुद्धिजीवी डॉक्टर के कहने से ग़लत बात सही नहीं हो जाती। क्योंकि तुम्हारी भाभी स्वाध्यायी नहीं है इसलिए तथ्य से अनजान है।
आजकल देशी-विदेशी सज्जन शक्ति के लिए अंडे खाने की सलाह दिया करते हैं । उनकी व सो कॉल्ड अंग्रेजी के मानसिक गुलाम बुद्धिजीवियों डॉक्टर की राय में अंडे के समान पोषण करने वाले अन्य कोई पदार्थ नहीं हैं । गाँधी जी जैसे कुछ महानुभाव अंडे खाने में जीव हत्या नहीं समझते, फल से उसकी तुलना किया करते हैं ।
निम्नलिखित यूट्यूब वीडियो देखिये, जिसमें जापानी विद्यार्थियों ने अंडे से बच्चे को जन्म बिना मुर्गी के सेने से दिया है, खुद ही निर्णय कीजिये कि अंडे को शाकाहारी बोलने वाले कितना बड़ा सफेद झूठ बोल रहे हैं:-
https://youtu.be/IAJDTYUw0sk
वास्तव में अंडा मनुष्य के लिए हितकारी नहीं है, इस संबंध में कुछ विलायती डॉक्टरों ने कहा है कि *मुर्गी के मांस और अंडे में एक प्रकार की विषैली एल्व्यूमिन पाई जाती है, जो मनुष्य के जिगर और अंतड़ियों को खराब करती है और बहुत ही हानिकारक है* । अंडे में जरदी होती है, उसमें नमक, चूना, लोहा और विटामिन सभी पदार्थ रहते हैं । यह पदार्थ बच्चों के पोषण के लिए भगवान ने भर दिए हैं, उसे फोड़कर इंसान खाये ऐसा भगवान कतई नहीं चाहेगा ।
बहुत से लोगों ने यह समझ लिया है कि ये चीजें दूध की तरह खाने की हैं, किंतु यह उनकी भूल है
। *अंडे में जो प्रोटीन होता है, वह दूध के प्रोटीन से कम दर्जे का है, क्योंकि उसके पाचन में बड़ी कठिनाइयाँ आ पड़ती हैं* । अधिकतर तो वह सड़कर खाने के योग्य न रहकर हानिकारक भी हो जाती हैं । दूध तो रखा रहने पर जम जाता है और खस भी हो जाता है, परंतु अंडा खाने में खराब मालूम होता है और हानिकारक हो जाता है । इसके विपरीत खट्टा या जमाया हुआ दूध अधिकांश लोगों को ताजे दूध की अपेक्षा अधिक रुचिकर और सुपाच्य हो जाता है । दूध का यह गुण मिठास के कारण है, जो अंडे में होता ही नहीं । भोजन के साथ आधा सेर दूध, अंडे और मांस के बिना ही प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पहुँचा देता है । योरोपीय देशों में मक्खन निकालने के पश्चात मक्खनियाँ दूध प्राय: जानवरों को खिलाया या फैंक दिया जाता है । यदि यही दूध मनुष्य के खाने के काम में लिया जाए तो इस देश के लिए मांस से अधिक लाभदायक होगा ।
नौ औंस (साढ़े चार छटाँक) मक्खनियाँ दूध शरीर में इतना चूना तथा हड्डियाँ बनाने वाली सामग्री उत्पन्न कर देता है, जितना एक दर्जन अंडे नहीं कर पाते ।अंडे के खाने से पाचनतंत्र में सड़न उत्पन्न हो जाती है । इस सड़न से एक प्रकार के नशे जैसी स्थिति पैदा होती है । इससे जी मिचलाता है, सरदर्द, मुँह में दुर्गंध आना तथा दूसरी ऐसी अन्य बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं ।
। *अंडे में जो प्रोटीन होता है, वह दूध के प्रोटीन से कम दर्जे का है, क्योंकि उसके पाचन में बड़ी कठिनाइयाँ आ पड़ती हैं* । अधिकतर तो वह सड़कर खाने के योग्य न रहकर हानिकारक भी हो जाती हैं । दूध तो रखा रहने पर जम जाता है और खस भी हो जाता है, परंतु अंडा खाने में खराब मालूम होता है और हानिकारक हो जाता है । इसके विपरीत खट्टा या जमाया हुआ दूध अधिकांश लोगों को ताजे दूध की अपेक्षा अधिक रुचिकर और सुपाच्य हो जाता है । दूध का यह गुण मिठास के कारण है, जो अंडे में होता ही नहीं । भोजन के साथ आधा सेर दूध, अंडे और मांस के बिना ही प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पहुँचा देता है । योरोपीय देशों में मक्खन निकालने के पश्चात मक्खनियाँ दूध प्राय: जानवरों को खिलाया या फैंक दिया जाता है । यदि यही दूध मनुष्य के खाने के काम में लिया जाए तो इस देश के लिए मांस से अधिक लाभदायक होगा ।
नौ औंस (साढ़े चार छटाँक) मक्खनियाँ दूध शरीर में इतना चूना तथा हड्डियाँ बनाने वाली सामग्री उत्पन्न कर देता है, जितना एक दर्जन अंडे नहीं कर पाते ।अंडे के खाने से पाचनतंत्र में सड़न उत्पन्न हो जाती है । इस सड़न से एक प्रकार के नशे जैसी स्थिति पैदा होती है । इससे जी मिचलाता है, सरदर्द, मुँह में दुर्गंध आना तथा दूसरी ऐसी अन्य बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं ।
इसके विपरीत *दूध, बादाम, मूँगफली* आदि में अंडे से अधिक प्रोटीन होता है । *जितना दूध, बादाम आदि के प्रोटीन खाने पर आमाशय में पाचक रस बनता है, उतना अंडे के प्रोटीन से नहीं बनता* । अंडे की कच्ची सफेदी पर पाचक रसों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और दूसरे भोजनों के पचने में भी रुकावट उत्पन्न होती है । *वेटल क्रीक सिनेटोरियम के सुपरिन्टेंडेंट जान हरवे लाग साहब लिखते हैं- ''मांसाहारियों के सब बहाने सब प्रकार से एक-एक करके सभी लोप होते जा रहे हैं । यथार्थ में वर्तमान समय में उनका किसी प्रकार का कोई भी बहाना किसी भी दशा में स्वीकार करने के योग्य नहीं है*, जबकि अच्छे पौष्टिक और सात्विक पदार्थ खाने को मिल रहे हैं ।
*प्राचीन ऋषि मुनि, आयुर्वेद व आधुनिक रिसर्च - से सिद्ध होता है कि देसी घी, कच्ची, मूंगफली, सूरजमुखी, सरसों के तेल, राजमा में ओमेगा-3 काफी मात्रा में होता है।*
*सभी मानते हैं कि ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का बैलेंस जरूरी हमारे शरीर में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी ऐसिड इडबल ऑइल से पहुंचते हैं। शरीर में इनका संतुलन जरूरी होता है।*
*सभी मानते हैं कि ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का बैलेंस जरूरी हमारे शरीर में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी ऐसिड इडबल ऑइल से पहुंचते हैं। शरीर में इनका संतुलन जरूरी होता है।*
- ओमेगा-3 शरीर में कोशिकाओं को जोड़ता है वहीं ओमेगा-6 कोशिकाओं को तोड़ता है।
- अगर ओमेगा-3 कम होगा तो शरीर में कोशिकाओं के जुड़ने की प्रक्रिया कम होगी और बीमारियां ज्यादा होंगी।
अलसी के बीज या कच्चे तेल को खाइए, इससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल होगा और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहेगा। गर्भवती माता और बच्चे के जन्म के तुरंत बाद अलसी और गुड़ के लड्डू रामबाण स्वास्थ्यकर औषधि है।
*'भोजन स्वाद के लिए या पेट भरने के लिए ही नहीं है, वरन उसका उद्देश्य शरीर को ऐसे पोषक पदार्थ देना है जो निरोगता, स्फूर्ति एवं दीर्घजीवन प्रदान करते हुए मन-बुद्धि को भी स्वस्थ दिशा में विकसित करे । हर पदार्थ में स्थूल गुणों के साथ-साथ एक सूक्ष्म गुण भी होता है । खाद्य पदार्थों के जो स्थूल गुण हैं, उनका भला-बुरा प्रभाव शरीर पर पड़ेगा और उनके जो सूक्ष्म गुण होंगे, उनका प्रभाव मन-बुद्धि पर पड़ेगा । इसी कुप्रभाव को ध्यान में रखकर ऋषियों ने भक्ष्य-अभक्ष्य का निर्णय किया था ।*
जो अंडा खा रहा है खाये मगर कम से कम झूठ तो न बोले, किसी का धर्म भ्रष्ट करके उसे पतित तो न बनाये कि यह शाकाहारी है, और इसको खाने से लोग स्वस्थ रहेंगे। क्योंकि यदि यह पाप आप करेंगे तो इसका दण्ड आपको अवश्य मिलेगा । इसे स्वीकारते हुए खाएं कि इसमें विषैली एल्व्यूमिन पाई जाती है, जो मनुष्य के जिगर और अंतड़ियों को खराब करती है और बहुत ही हानिकारक है।
कृपया झूठ बोलना छोड़ दें और तथ्य तर्क प्रमाण से स्वीकारें कि अलसी, देसी घी, कच्ची, मूंगफली, सूरजमुखी, सरसों के तेल, राजमा में ओमेगा-3, फैटी एसिड व प्रोटीन इत्यादि अनेक पोषक तत्व हैं जो शाकाहारियों को अंडाहारियो से ज्यादा स्वस्थ बनाता है।
रीवा मध्यप्रदेश के एक डॉक्टर जो खुद चाइल्ड स्पेसलिस्ट हैं, पत्नी प्रसूति रोग विशेषज्ञ है और बच्चे को रोज अंडा खिलाती थीं। बच्चा बीमारी का घर है, मोटा और अक्ल से पैदल है। अतः डॉक्टर बेचारे अंग्रेजी बुक पढ़कर जो बने हैं वे जो बोल रहे हैं वह ब्रह्मवाक्य है ऐसा समझने की भूल न करें।
हमारे जैसे कई गायत्री परिजन और जो गायत्री परिवार से जुड़े डॉक्टर बहन हैं, उन्होंने गर्भावस्था में न अंडा खाया औऱ न ही अपने बच्चे को कभी अंडा नहीं खिलाया। अलसी, देसी घी, कच्ची, मूंगफली, सूरजमुखी, सरसों के तेल, राजमा, हरी सब्जी इत्यादी खाया व बच्चों को खिलाया। गायत्री मंत्र जप, ध्यान व स्वाध्याय गर्भावस्था के दौरान किया। हम सबके बच्चे स्वस्थ व प्रशन्न है, व बुद्धिमान पैदा हुए है।
राक्षस तक किसी भी पक्षी के या मुर्गी के बच्चे अंडे नहीं खाते थे, किसी भी धर्मग्रंथ में अंडे खाने का जिक्र तक नहीं है।
http://literature.awgp.org/book/Pranghatak_Vyasan/v3.13
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment