Friday, 4 October 2019

नवरात्रिध्यान - 9 दिन, नवरात्र

[04/10, 22:28] .: *माँ शैलपुत्री का ध्यान-प्रथम दिन*

भावना कीजिए कि आपका शरीर एक सुन्दर रथ है। उसमें मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार रूपी घोड़े जुते हैं। इस रथ में दिव्य तेजोमयी माता शैलपुत्री विराजमान हैं और घोड़ों की लगाम उसने अपने हाथ में थाम रखी है। जो घोड़ा बिचकता है वह चाबुक से उसका अनुशासन करती है और लगाम झटककर उसको सीधे मार्ग पर ठीक रीति से चलने में सफल पथ-प्रदर्शन करती है। घोड़े भी माता से आतंकित होकर उसके अंकुश को स्वीकार करते हैं।

आपका मन माता के अनुशासन में शांत हो गया है, हृदय में निर्मल भक्ति का सागर हिलोरे ले रहा है। आप नीले आकाश में सफ़ेद बादलो पर माँ शैलपुत्री के साथ विचरण कर रहे हैं। माँ आपको हिमालय की ऊंची चोटियों का दर्शन आसमान से करवा रही हैं। बड़े प्यार से अपना स्नेह आप पर लुटा रही हैं। आप बालक की तरह माँ का आँचल थामे हैं।

मानो तो माँ माँ है न मानो तो स्थूल स्त्री का शरीर मात्र है। इसी तरह जब तक भावना और ध्यान मातृशक्ति से एकाकर नहीं होगा, तब तक वह शक्ति चेतना में प्रवेश कर अपना प्रभाव नहीं दिखाएगी। माँ का गहन ध्यान ही माँ की शक्ति को हमारी चेतना में प्रवेश करवाएगा।

या देवी सर्वभूतेषु *माँ शैलपुत्री* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
[04/10, 22:28] .: *माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान- द्वितीय दिन*
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कमण्डल अर्थात् पात्रता विकसित करेंगें, माला अर्थात् मन का मनका फेरेंगे, पूरे दिन मन में माँ का मन्त्रोच्चार करेंगें, अपने मन में उठ रहे विचारों के प्रति होश में रहेंगे जागरूक रहेंगे।

ब्रह्म + चारिणी = ब्रह्ममय तपमय श्रेष्ठ आचरण करेंगे।

श्वेत वस्त्र अर्थात् पवित्रता धारण करेंगे, उज्जवल चरित्र का निर्माण करेंगे।

आज कण कण में ब्रह्म के दर्शन करते हुए खुली आँखों से ध्यान करेंगे। जो भी जीव, वनस्पति, व्यक्ति, कीट या पतंगा दिखे, जिसमें भी जीवन है उसमें ब्रह्म है। बिना ब्रह्म के जीवन सम्भव नहीं। श्वांस में प्राणवायु के रूप में ब्रह्म ही प्रवेश कर रहा है और हमें जीवनदान कर रहा है। कण कण में ब्रह्मदर्शन करते हुए नेत्र बन्द कर पूजा स्थली या किसी शांत स्थान पर कमर सीधी कर नेत्र बन्द कर बैठ जाएँ।

जो भी ध्वनि सुनाई दे बाहर की उसे इग्नोर कर भीतर का ब्रह्मनाद सुनने की कोशिश करें। झींगुर जैसी ध्वनि के बीच ब्रह्म नाद के शंख, बाँसुरी, ॐ की झंकार सुनने का प्रयत्न करें। स्वयं को हिमालय की छाया और माँ गंगा की गोद में अनुभव करें। गंगा का शांत शीतल जल और हिमालय की सफ़ेद आभा में भी गुंजरित ब्रह्मनाद सुने। कल्पना करें क़ि आप शिशु रूप में हो गए हैं कमल आसन में विराजमान माँ ब्रह्मचारिणी जगत जननी की गोद में हैं। माँ ओंकार की ध्वनि कर रही है जो आपके कानो को सुनाई दे रहा है, माँ प्यार से आपका सिर सहला रही हैं। फ़िर आपके आँखों पर हाथ रख आपको दिव्य दृष्टि प्रदान कर रही हैं, अब आप धीरे धीरे नेत्र खोल रहे हैं। अरे ये क्या प्रकृति के कण कण में माँ जगतजननी के आपको दिव्य दर्शन हो रहे हैं और कानों में ब्रह्मनाद सुनाई दे रहा है। इस ध्यान के क्षण में खो जाइये।

या देवी सर्वभूतेषु *माँ ब्रह्मचारिणी* रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
[04/10, 22:28] .: *माँ चन्द्रघण्टा का ध्यान-तृतीय दिन*

*या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।*

माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है।  इनके दस हाथ हैं।

पांच ज्ञानेन्द्रियाँ :- आँख  नाक जीभ  कान  त्वचा पांच कर्मेन्द्रियाँ :- हाथ (हस्त)  पैर(पाद)  जीभ(वाक्)  उपस्थ (मूत्र द्वार) गुदा(मलद्वार) इन्ही के समूह को दस इन्द्रियां भी कहा जाता है ।

माँ का स्वरूप कहता है क़ि चंद्रमा की तरह शीतल मस्तिष्क, घण्टे की तरह मधुर स्वर, दसों इन्द्रियों को नियंत्रित करके मनुष्य, सिंह जैसे जंगली जीव को वश में करके उस पर भी सवारी कर सकता है। अर्थात् घर के सदस्य हों, ऑफिस के सदस्य हों या समाज में अन्य कोई उसे हैंडल किया जा सकता है।

ध्यान - भावना कीजिये आसमान में पूर्ण शरद पूर्णिमा चाँद खिला हुआ है, गहरा नीले रंग का साफ़ आसमान तारों से भरा हुआ है। चाँद की दूधिया रौशनी हमारे पूरे शरीर पर पड़ रही है, मधुर मन्द वायु बह रही है। हिमालय के शुभ्र शिखर चन्द्रमा की रौशनी में और श्वेत और चमकीले लग रहे हैं। गंगा के शीतल जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिख रहा है। कानों में घण्टे का मधुर नाद गूँज रहा है। पूर्णिमा के चाँद की रौशनी में माँ भगवती सिंह में सवार होकर हमारे समक्ष आ गयी। हमें शिशु की तरह गोद में उठा कर, प्यार से सर सहलाते हुए सिंह पर बिठा लिया। माँ का सुन्दर स्वरूप देख के हम निहाल हो रहे हैं। आकाश मार्ग से चाँद की  रौशनि में हमें पूरे हिमालय और ब्रह्माण्ड के दर्शन करवा रही हैं। इस ध्यान में खो जाइये।
[04/10, 22:28] .: *माँ कुष्मांडा का ध्यान- चतुर्थ दिन*

*या देवी सर्वभूतेषु, माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः*।।

जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं।
इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

*ध्यान* - नीले आसमान में सुबह का सूर्योदय लालिमा लिए हो रहा है। सूर्य के अंदर से आकृति उभर रही है। माँ कुष्मांडा की मन्द मन्द खनकती हंसी हमारे कानों को सुनाई दे रहा है, और माँ की मुस्कान हमारे कष्ट हर रही है। हमारे अंदर असीम शांति और सुकून महसूस हो रहा है। माँ की अब स्पष्ट रूप दिख रहा है, अरे ये क्या माँ तो सिंह पर सवार हो अमृत कलश हाथ में लेकर हमारे पास ही आ रही हैं। माँ ने पहले शंखनाद किया फिर हमें दोनों हाथों से नल से जैसे पानी पीते हैं वो मुद्रा हाथ की बनाने को कहा, अब हमारे हाथों की अंजुली में माँ अमृत कलश से अमृत डाल रही हैं और हम अमृत पान कर रहे है। अमृत पीकर तृप्त हो रहे हैं। इस ध्यान में खो जाइये।
[04/10, 22:28] .: *स्कंदमाता का ध्यान -नवरात्रि पांचवा दिन*

स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।

*ध्यान* - मन को समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन हो जाइये। मन को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर करें, और समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए माता के दिव्यरुप का नेत्र बन्द कर ध्यान करें।

भावना करें, माँ की गोद में भगवान कार्तिकेय(स्कन्द) बैठे हैं, माँ सन्तान लक्ष्मी के रूप में आपके घर आई हैं। आप उन्हें आसन दे रहे हैं। उनके चरण धो रहे हैं। अपने हाथों से बनाई पुष्पो की माला और पुष्पो के आभूषण बनाके माँ को सजाइये। माँ को अपने हाथो से बनी खीर अपने हाथों से खिलाइये और माँ के आवभगत के इस ध्यान में खो जाइये

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
[04/10, 22:28] .: *नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है।*

 इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। 

*ध्यान* - माँ कात्यायनी का ध्यान दोनों भौं के बीच आज्ञा चक्र(जहाँ स्त्रियां बिंदी और पुरुष तिलक लगाते हैं) वहां करना चाहिए। भावना करें, आज्ञा चक्र में स्फुरण हो रहा है, कमल पुष्प खिल गया है। उस कमल पुष्प में माँ कात्यायनी विराज मान है। माँ के भीतर के प्रकाश से मन मष्तिष्क में प्रकाश ही प्रकाश हो गया है। पूरे शरीर में मानो हज़ारों वाट के बल्ब जितनी रौशनी निकल रही है। अपने रोम रोम से शक्ति का प्रकाश निकलता हुआ अनुभव कीजिये और इस ध्यान में खो जाइये।

प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।

*या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥*

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

इसके अतिरिक्त ऐसी मान्यता है जिन कन्याओ या लड़कों के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

शीघ्र और सुयोग्य जीवनसाथी से शीघ्र विवाह के लिये 40 दिन तक रोज 10 माला गायत्री मन्त्र और एक माला कात्यायनी मन्त्र की जपें। साथ ही तृतीया(शुक्ल पक्ष) का व्रत रखें, भोजन में तीन मीठी रोटी या परांठा चढ़ाएं। एक रोटी गाय को खिला दें, एक रोटी प्रसाद में बाँट दे और एक स्वयं ग्रहण कर लें।

गायत्री मन्त्र -
*ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

विवाह हेतु कात्यायनी मन्त्र -
 *ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।*
[04/10, 22:28] .: *कालरात्रि का ध्यान -नवरात्रि सातवां दिन*

*ध्यान* - आज माँ का आवाह्न मन में बसे जन्मजन्माँतर के उन विकारों के नाश के लिए करना है, जो हमें परेशान करके रखें है। भावना कीजिये हमारे विकारों, दोष, दुर्गुण, पाप को माँ कालरात्रि खड्ग के प्रहार से नष्ट कर रही हैं। हमें विकार मुक्त कर रही हैं। हमारे समस्त विकारों की कालिमा को नष्ट करके, हमें पवित्र और निर्मल बना रही हैं। माँ का यह ध्यान रात्रि सूर्यास्त के बाद करना उत्तम रहेगा।

माँ हमें निर्मल कर माँ गौरी के दिव्य रूप में परिवर्तित हो गयी, उसी तरह जैसे गन्दगी में पड़े बच्चे को माँ डाँट डपटकर साफ़ करती है, नहला धुलाकर साफ़ वस्त्र पहनाती है। फ़िर स्वयं स्वच्छ वस्त्र पहन लेती है।

भावना कीजिए क़ि माँ ने आपकी मन की गन्दगी साफ़ करके, आपको अंदर बाहर से पवित्र कर, माँ गौरी का रूप ले लिया है। और आपको अपनी गोद में लेकर प्यार कर रही हैं। इस ध्यान में खो जाइये।

या देवी सर्वभूतेषु, कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु, निद्रा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु, मातृ रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

ॐ भूर्भुवः स्वः क्लीं क्लीं क्लीं तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात क्लीं क्लीं क्लीं ॐ।
[04/10, 22:28] .: *नवरात्र का आठवां दिन - महागौरी का ध्यान*

*ध्यान* - नेत्र बन्द कर भावना कीजिये क़ि महागौरी गौर वर्ण हैं, श्वेत पुष्पों का श्रृंगार किया हुआ है, चांदनी की तरह दूधिया साड़ी में स्वर्ण मण्डित किनारा है। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।

भावना कीजिये क़ि माँ हमारी की चित्त वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश कर रही हैं। हमारा मन निर्मल हो रहा है। हम कषाय कल्मष से मुक्त हो रहे हैं। हम माता के श्री चरणों का पूजन कर रहे हैं, पहले जल से चरण धोकर, उसे पोंछ रहे हैं, चरणों में पुष्प अर्पित कर रहे हैं। हम नीचे बैठे हैं और माँ ने अपना दाहिना पैर हमारे सहस्त्रार दल के ऊपर हमारे सर पर रखा है। माँ के चरणों से निकलने वाली किरणों ने हमें बिलकुल पारदर्शी और चन्द्रमा की तरह श्वेत और चमकीला बना दिया है। हमारे अंग प्रत्यंगों से रौशनी निकल रही है। हम माँ के चरण स्पर्श से दिव्य, सुन्दर और गौरवर्ण चांदनी सी रौशनी लिए हुए हो गए हैं। इस ध्यान में खो जाइये।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
[04/10, 22:28] .: *नवरात्र का नवां दिन - सिद्धिदात्री का ध्यान*

*ध्यान* - नेत्र बन्द कर भावना कीजिये क़ि सिद्धिदात्री गौर वर्ण हैं,

माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर  आसीन  हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है।

  इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।

भावना कीजिये क़ि माँ हमारी की चित्त वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश कर रही हैं। हमारा मन निर्मल हो रहा है। हम कषाय कल्मष से मुक्त हो रहे हैं। हम माता के श्री चरणों का पूजन कर रहे हैं, पहले जल से चरण धोकर, उसे पोंछ रहे हैं, चरणों में पुष्प अर्पित कर रहे हैं। हम नीचे बैठे हैं और माँ ने अपना दाहिना पैर हमारे सहस्त्रार दल के ऊपर हमारे सर पर रखा है। माँ के चरणों से निकलने वाली किरणों ने हमें बिलकुल पारदर्शी और चन्द्रमा की तरह श्वेत और चमकीला बना दिया है। हमारे अंग प्रत्यंगों से रौशनी निकल रही है। हम माँ के चरण स्पर्श से दिव्य, सुन्दर और गौरवर्ण चांदनी सी रौशनी लिए हुए हो गए हैं। इस ध्यान में खो जाइये।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ सिद्धि दात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।

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