प्रश्न - *श्वेता बहन नवरात्रि को रात्रि ही क्यों कहा जाता है दिन क्यों नहीं?*
उत्तर- आत्मीय बहन,
बहन *नवरात्रि* सही शब्द नहीं है, *नवरात्र* सही शब्द है। नव का अर्थ होता है *नौ* और *रात्र* का अर्थ होता है *ज्ञान या ज्ञानोपदेश*। नौ ज्ञान की शक्तिधाराओ को स्वयं में जागृत करने का पर्व नवरात्र है। नौ देवियों के नौ स्वरूप इन्हीं शक्तिधाराओ का प्रतीक स्वरूप हैं, जिनसे ज्ञानार्जन करना होता है। *रात्र* से बना *रात्रि* शब्द सिद्धि का द्योतक है।
अध्यात्म में साधना की मुख्यतः तीन धाराएं हैं - मन्त्र, तंत्र, यन्त्र। योगी इनमें से किसी भी धारा पर योग सिद्ध कर सकता है। मन्त्र केवल सूर्य रश्मियों की उपस्थिति में ही मुंह के अग्निचक्र से निकलकर प्रभावी बनते हैं। जैसे समुद्र के ज्वार-भाटे, औषधियों के रस और मानव मन के रस को चंद्रमा की उपस्थिति प्रभावित करती है, उसी तरह मन की ऊर्जा, मन्त्र ऊर्जा, प्रकाश संश्लेषण, यज्ञ ऊर्जा को सूर्य रश्मियाँ चाहिए। सूर्य रश्मियाँ सूर्योदय के दो घण्टे पहले पृथ्वी पर आ जाती हैं और सूर्यास्त के दो घण्टे बाद तक रहती हैं। इसलिए युगऋषि ने जप अनुष्ठान इसी अवधि में करने की आज्ञा दी है। पुस्तक - *नवरात्रि अनुष्ठान का विधिविधान* में सुबह 9 बजे के बाद और रात को 8 बजे के बाद की गायत्रीमंत्र अनुष्ठान की नवरात्रि साधना अर्थात मन्त्र जप माला के साथ निषिद्ध(मना) है। ध्यान व मौनमानसिक जप निरन्तर जब चाहें तब कर सकते हैं, रात को भी कर सकते हैं।
*नवरात्रि गायत्रीमंत्र अनुष्ठान का विधि-विधान* विस्तार से पढ़ने के लिए निम्नलिखित लिंक विजिट करें:-
http://literature.awgp.org/book/navaratri_parv_aur_gayatree_kee_vishesh_tap_sadhana/v1.2
नवरात्रि में गायत्रीमंत्र अनुष्ठान में जप कम से कम माला के साथ एक घण्टे और अधिक से अधिक 6 घण्टे ही जपा जाता है। एक घण्टे से कम जप अनुष्ठान में नहीं गिना जाता। 6 घण्टे से अधिक नवरात्रि में जपना निषिद्ध है।
यौगिक परम्परा में नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है क्योंकि *रात्रि* शब्द *सिद्धि* का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि *दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र* आदि उत्सवों को *रात में ही मनाने की अनुमति* है। यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। जैसे- नवदिन या शिवदिन। लेकिन हम ऐसा नहीं कहते। इन समयों में
सिद्धि और साधना की दृष्टि से नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि दिन में करते हैं। और योगियों की तरह कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या मौन मानसिक मंत्रो व बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
पढ़ना हो या ध्यान साधना दोनों को एकांत चाहिए। दिन में कोई न कोई डिस्टर्ब कर देता है या उन सबके बोलने व गृह कार्य से मन विचलित हो जाता है। रात्रि में एकांत होता है, कोई शोर शराबा नहीं होता, योगी साधक रात को अंतर्जगत में प्रवेश कर ध्यान का अभ्यास करते हैं। रात को भोगी सोते हैं और योगी जागते हैं।
पूरी रात मनाए जाने वाले इस रात्रि जागरण पर्व में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं। यौगिक परंपराओं में इन दिनों का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत सी संभावनाएँ मौजूद होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है। ‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब मैं कहता हूँ, ‘योग’, तो मैं किसी विशेष अभ्यास, मन्त्र या तंत्र की बात नहीं कर रही हूँ। इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है। महाशिवारात्रि हो या नवरात्रि की रात हो, योगी साधक को इसी का अनुभव पाने का अवसर घण्टों गहन ध्यान में डूबने पर देती है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय बहन,
बहन *नवरात्रि* सही शब्द नहीं है, *नवरात्र* सही शब्द है। नव का अर्थ होता है *नौ* और *रात्र* का अर्थ होता है *ज्ञान या ज्ञानोपदेश*। नौ ज्ञान की शक्तिधाराओ को स्वयं में जागृत करने का पर्व नवरात्र है। नौ देवियों के नौ स्वरूप इन्हीं शक्तिधाराओ का प्रतीक स्वरूप हैं, जिनसे ज्ञानार्जन करना होता है। *रात्र* से बना *रात्रि* शब्द सिद्धि का द्योतक है।
अध्यात्म में साधना की मुख्यतः तीन धाराएं हैं - मन्त्र, तंत्र, यन्त्र। योगी इनमें से किसी भी धारा पर योग सिद्ध कर सकता है। मन्त्र केवल सूर्य रश्मियों की उपस्थिति में ही मुंह के अग्निचक्र से निकलकर प्रभावी बनते हैं। जैसे समुद्र के ज्वार-भाटे, औषधियों के रस और मानव मन के रस को चंद्रमा की उपस्थिति प्रभावित करती है, उसी तरह मन की ऊर्जा, मन्त्र ऊर्जा, प्रकाश संश्लेषण, यज्ञ ऊर्जा को सूर्य रश्मियाँ चाहिए। सूर्य रश्मियाँ सूर्योदय के दो घण्टे पहले पृथ्वी पर आ जाती हैं और सूर्यास्त के दो घण्टे बाद तक रहती हैं। इसलिए युगऋषि ने जप अनुष्ठान इसी अवधि में करने की आज्ञा दी है। पुस्तक - *नवरात्रि अनुष्ठान का विधिविधान* में सुबह 9 बजे के बाद और रात को 8 बजे के बाद की गायत्रीमंत्र अनुष्ठान की नवरात्रि साधना अर्थात मन्त्र जप माला के साथ निषिद्ध(मना) है। ध्यान व मौनमानसिक जप निरन्तर जब चाहें तब कर सकते हैं, रात को भी कर सकते हैं।
*नवरात्रि गायत्रीमंत्र अनुष्ठान का विधि-विधान* विस्तार से पढ़ने के लिए निम्नलिखित लिंक विजिट करें:-
http://literature.awgp.org/book/navaratri_parv_aur_gayatree_kee_vishesh_tap_sadhana/v1.2
नवरात्रि में गायत्रीमंत्र अनुष्ठान में जप कम से कम माला के साथ एक घण्टे और अधिक से अधिक 6 घण्टे ही जपा जाता है। एक घण्टे से कम जप अनुष्ठान में नहीं गिना जाता। 6 घण्टे से अधिक नवरात्रि में जपना निषिद्ध है।
यौगिक परम्परा में नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है क्योंकि *रात्रि* शब्द *सिद्धि* का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि *दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र* आदि उत्सवों को *रात में ही मनाने की अनुमति* है। यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। जैसे- नवदिन या शिवदिन। लेकिन हम ऐसा नहीं कहते। इन समयों में
सिद्धि और साधना की दृष्टि से नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि दिन में करते हैं। और योगियों की तरह कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या मौन मानसिक मंत्रो व बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
पढ़ना हो या ध्यान साधना दोनों को एकांत चाहिए। दिन में कोई न कोई डिस्टर्ब कर देता है या उन सबके बोलने व गृह कार्य से मन विचलित हो जाता है। रात्रि में एकांत होता है, कोई शोर शराबा नहीं होता, योगी साधक रात को अंतर्जगत में प्रवेश कर ध्यान का अभ्यास करते हैं। रात को भोगी सोते हैं और योगी जागते हैं।
पूरी रात मनाए जाने वाले इस रात्रि जागरण पर्व में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं। यौगिक परंपराओं में इन दिनों का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत सी संभावनाएँ मौजूद होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है। ‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब मैं कहता हूँ, ‘योग’, तो मैं किसी विशेष अभ्यास, मन्त्र या तंत्र की बात नहीं कर रही हूँ। इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है। महाशिवारात्रि हो या नवरात्रि की रात हो, योगी साधक को इसी का अनुभव पाने का अवसर घण्टों गहन ध्यान में डूबने पर देती है।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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