प्रश्न - *बेटा, मेरा दिल बहुत दुःखता है, जिन बच्चों के लिए मैंने पूरी उम्र मेहनत करते हुए गुजार दी, जॉब किया, कोई अपनी ख्वाइश पूरी नहीं की। इनके लिए रिश्तेदारी-नातेदारी नहीं निभाई। आज उन बच्चों के पास हमारे लिए वक़्त नहीं है। अब रिटायर हो गया हूँ और उन्हें हमारी भावनाओं का ख्याल नहीं है।*
उत्तर- आत्मीय बाबूजी चरण स्पर्श,
आपके बच्चे वही कर रहे हैं जो आपने उन्हें अपने आचरण से सिखाया है कि अपने बच्चों व अपनी फ़ैमिली के लिए समर्पित होकर जियो। रिश्तेदारी-नातेदारी व समाज से ऊपर परिवार व बच्चे हैं। आपकी तरह ही वो अपनी पत्नी व बच्चों के लिए कड़ा परिश्रम कर रहा है। जैसे आपने अपने बच्चों को समर्पित जीवन जिया वैसे ही वो भी जी रहा है।
आपने उन्हें समाज में रहना कभी सिखाया ही नहीं, सामाजिक उत्सव में पार्टिसिपेट नहीं करवाया। कभी उनके जन्मदिन इत्यादि अवसर में उन्हें अनाथालय नहीं ले गए और उनके हाथों से दान इत्यादि लोकहित करवाया नहीं। परपीड़ा शमन हेतु कुछ कर गुजरने का भाव दिया ही नहीं। उन्हें अध्यात्म से जोड़ा नहीं। आपने बच्चों के सामने अपने माता-पिता के लिए कैसे जिया जाता है, उनकी केयर कैसे की जाती है। यह सब सिखाया नहीं, तो आपके बच्चे वो सब नहीं सीखे। जैसे आप एकल परिवार में केंद्रित जीवन जिये वैसे ही बच्चे एकल परिवार में केंद्रित हूबहू वही जीवनपथ पर चल रहे हैं जिस पर आप चले।
अतः अब शोक मत कीजिये, और प्रकृति के नियम को समझने की कोशिश कीजिये। एक सत्य घटना सुनिए।
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
एक गांव में नगर सेठ था, वह जब बूढ़ा हुआ तो पुत्रवधु से रोज किचकिच होती। बहु ने बेटे से कहा या तो यह बुड्ढा रहेगा यह मैं रहूँगी। मैं बच्चों को लेकर मायके जा रही हूँ, तब तक नहीं लौटूंगी जबतक इस बुड्ढे का तुम स्थायी इंतज़ाम नहीं कर देते, मुझमें और पिता में से किसी एक को चुन लो। बहु को बेटे ने खूब मनाया मगर वो न मानी। तब बाप को एक दिन अकेले गाड़ी में बिठाकर गांव के बाहर वीरान बंजर भूमि जो कि उन्हीं की थी वहां ले गया। वृद्ध पिता ने बेटे से कहा - रुको, मुझे दफ़नाने से पहले मेरी अंतिम इच्छा है कि तुम मुझसे मेरे पाप सुन लो। मैं बहु की गलती नहीं कहूंगा, क्योंकि तुम्हारी माँ भी इसी तरह एक दुष्ट स्त्री थी। तुम्हारी दादी व परदादी भी दुष्ट स्त्रियां थी, तुम्हारी माँ भी बच्चों को लेके मायके चली गयी थी, तब उसके लिए मैंने अपने पिता को मारकर उस खूंटे के नीचे गाड़ दिया था। तुम मुझे अकेले लेकर आये हो लेकिन मैं अपने ड्राइवर के साथ आया था जो हमारा पुस्तैनी ड्राइवर था, वो हम सभी के पाप का गवाह था, मरते वक़्त उसने मुझे यह बात बताई। तो मुझे समेत तुम्हारे दादा, परदादा इत्यादि सब पापी थे। मैं बहुत पछताया लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी। कुछ महीने पहले ही सब पता चला, मैं यहां आया था सबकी लाश मैंने खोदी और उनका अंतिम संस्कार किया। मैं बनारस का टिकट व इंतज़ाम सब करके आया हूँ वो देखो उधर दूसरी किराए की गाड़ी मेरा इंतज़ार कर रही है। तुम सोच रहे होंगे सबकुछ जानते हुए मैं तुम्हारे साथ क्यों आया। इसलिए क्योंकि तुम्हें मैं पाप से बचाने व भविष्य से आगाह करने आया हूँ। चलता हूँ, पिता दूसरी गाड़ी में बैठकर बनारस चला गया। बेटा घण्टों वहीं बैठकर रोता रहा, फ़िर घर आया बिजनेस का सारा इंतज़ाम करके घर से वह बनारस पिता के पीछे गया। इधर महीनों बीत गए बहु जो गुस्से में गयी थी पति के फोन का इंतज़ार कर रही थी। तभी बेल बजी और तलाक़ के पेपर सामने थे, साथ में पत्र था उसमें लिखा था, मैने पिता को चुन लिया है। बहु के पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई। मायके वाले ताने मारने लगे कि क्या हुआ पति लेने क्यों नहीं आ रहा। बच्चे बार बार पिता को पूंछने लगे। पासा उल्टा पड़ गया, वो घर पति से मिलने आई तो नौकरों ने बताया कि छोटे साहब तो बड़े साहब के साथ बनारस रहते हैं, यहां महीने में दो बार आते हैं हिसाब लेकर चले जाते हैं। बहु ने नौकरों से पति का अड्र्स लिया व बच्चों सहित बनारस गई। ससुर व पति से माफ़ी माँगी। दोनो को साथ लेकर वापस घर आई।
🙏🏻 अतः बाबूजी, जो वक़्त आपके पास बचा है, उसे अपनी गलतियों को सुधारते हुए गुजारिये। पेंशन का कुछ अंश से गरीब सरकारी स्कूल के बच्चों व झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को पढ़ाते हुए गुजारिये। मानसिक सन्यास लीजिये व पुत्र-पौत्र मोह का त्याग कीजिये। उन्हें दोष मत दीजिये क्योंकि वो वही कर रहे हैं जो उन्होंने उम्रभर आपको करते देखा है।
नए अच्छे कर्म कीजिये, इन कर्मो का प्रभाव आपके बच्चों पर पड़ेगा। शायद वो भी सुधर जाएं और वह गलती न करें जो आपने उम्रभर की। उनकी आंनद की खोज पूरी हो। नज़दीकी शक्तिपीठ जाकर यज्ञ में सम्मिलित होइए व स्वाध्याय कीजिये।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय बाबूजी चरण स्पर्श,
आपके बच्चे वही कर रहे हैं जो आपने उन्हें अपने आचरण से सिखाया है कि अपने बच्चों व अपनी फ़ैमिली के लिए समर्पित होकर जियो। रिश्तेदारी-नातेदारी व समाज से ऊपर परिवार व बच्चे हैं। आपकी तरह ही वो अपनी पत्नी व बच्चों के लिए कड़ा परिश्रम कर रहा है। जैसे आपने अपने बच्चों को समर्पित जीवन जिया वैसे ही वो भी जी रहा है।
आपने उन्हें समाज में रहना कभी सिखाया ही नहीं, सामाजिक उत्सव में पार्टिसिपेट नहीं करवाया। कभी उनके जन्मदिन इत्यादि अवसर में उन्हें अनाथालय नहीं ले गए और उनके हाथों से दान इत्यादि लोकहित करवाया नहीं। परपीड़ा शमन हेतु कुछ कर गुजरने का भाव दिया ही नहीं। उन्हें अध्यात्म से जोड़ा नहीं। आपने बच्चों के सामने अपने माता-पिता के लिए कैसे जिया जाता है, उनकी केयर कैसे की जाती है। यह सब सिखाया नहीं, तो आपके बच्चे वो सब नहीं सीखे। जैसे आप एकल परिवार में केंद्रित जीवन जिये वैसे ही बच्चे एकल परिवार में केंद्रित हूबहू वही जीवनपथ पर चल रहे हैं जिस पर आप चले।
अतः अब शोक मत कीजिये, और प्रकृति के नियम को समझने की कोशिश कीजिये। एक सत्य घटना सुनिए।
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एक गांव में नगर सेठ था, वह जब बूढ़ा हुआ तो पुत्रवधु से रोज किचकिच होती। बहु ने बेटे से कहा या तो यह बुड्ढा रहेगा यह मैं रहूँगी। मैं बच्चों को लेकर मायके जा रही हूँ, तब तक नहीं लौटूंगी जबतक इस बुड्ढे का तुम स्थायी इंतज़ाम नहीं कर देते, मुझमें और पिता में से किसी एक को चुन लो। बहु को बेटे ने खूब मनाया मगर वो न मानी। तब बाप को एक दिन अकेले गाड़ी में बिठाकर गांव के बाहर वीरान बंजर भूमि जो कि उन्हीं की थी वहां ले गया। वृद्ध पिता ने बेटे से कहा - रुको, मुझे दफ़नाने से पहले मेरी अंतिम इच्छा है कि तुम मुझसे मेरे पाप सुन लो। मैं बहु की गलती नहीं कहूंगा, क्योंकि तुम्हारी माँ भी इसी तरह एक दुष्ट स्त्री थी। तुम्हारी दादी व परदादी भी दुष्ट स्त्रियां थी, तुम्हारी माँ भी बच्चों को लेके मायके चली गयी थी, तब उसके लिए मैंने अपने पिता को मारकर उस खूंटे के नीचे गाड़ दिया था। तुम मुझे अकेले लेकर आये हो लेकिन मैं अपने ड्राइवर के साथ आया था जो हमारा पुस्तैनी ड्राइवर था, वो हम सभी के पाप का गवाह था, मरते वक़्त उसने मुझे यह बात बताई। तो मुझे समेत तुम्हारे दादा, परदादा इत्यादि सब पापी थे। मैं बहुत पछताया लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी। कुछ महीने पहले ही सब पता चला, मैं यहां आया था सबकी लाश मैंने खोदी और उनका अंतिम संस्कार किया। मैं बनारस का टिकट व इंतज़ाम सब करके आया हूँ वो देखो उधर दूसरी किराए की गाड़ी मेरा इंतज़ार कर रही है। तुम सोच रहे होंगे सबकुछ जानते हुए मैं तुम्हारे साथ क्यों आया। इसलिए क्योंकि तुम्हें मैं पाप से बचाने व भविष्य से आगाह करने आया हूँ। चलता हूँ, पिता दूसरी गाड़ी में बैठकर बनारस चला गया। बेटा घण्टों वहीं बैठकर रोता रहा, फ़िर घर आया बिजनेस का सारा इंतज़ाम करके घर से वह बनारस पिता के पीछे गया। इधर महीनों बीत गए बहु जो गुस्से में गयी थी पति के फोन का इंतज़ार कर रही थी। तभी बेल बजी और तलाक़ के पेपर सामने थे, साथ में पत्र था उसमें लिखा था, मैने पिता को चुन लिया है। बहु के पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई। मायके वाले ताने मारने लगे कि क्या हुआ पति लेने क्यों नहीं आ रहा। बच्चे बार बार पिता को पूंछने लगे। पासा उल्टा पड़ गया, वो घर पति से मिलने आई तो नौकरों ने बताया कि छोटे साहब तो बड़े साहब के साथ बनारस रहते हैं, यहां महीने में दो बार आते हैं हिसाब लेकर चले जाते हैं। बहु ने नौकरों से पति का अड्र्स लिया व बच्चों सहित बनारस गई। ससुर व पति से माफ़ी माँगी। दोनो को साथ लेकर वापस घर आई।
🙏🏻 अतः बाबूजी, जो वक़्त आपके पास बचा है, उसे अपनी गलतियों को सुधारते हुए गुजारिये। पेंशन का कुछ अंश से गरीब सरकारी स्कूल के बच्चों व झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को पढ़ाते हुए गुजारिये। मानसिक सन्यास लीजिये व पुत्र-पौत्र मोह का त्याग कीजिये। उन्हें दोष मत दीजिये क्योंकि वो वही कर रहे हैं जो उन्होंने उम्रभर आपको करते देखा है।
नए अच्छे कर्म कीजिये, इन कर्मो का प्रभाव आपके बच्चों पर पड़ेगा। शायद वो भी सुधर जाएं और वह गलती न करें जो आपने उम्रभर की। उनकी आंनद की खोज पूरी हो। नज़दीकी शक्तिपीठ जाकर यज्ञ में सम्मिलित होइए व स्वाध्याय कीजिये।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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