प्रश्न - *गर्भधारण में कॉम्प्लेसिटी है, समस्या है? कौन सा ध्यान करें?*
उत्तर- आत्मीय बहन, नित्य बलिवैश्व यज्ञ में निम्नलिखित तीन और आहुतियां जोड़ दें:-
ॐ अग्नये पावकाय स्वाहा,
ॐ आदित्यै स्वाहा,
ॐ प्रजापतये स्वाहा।
साथ ही नित्य उपासना क्रम में यह निम्नलिखित ध्यान जोड़ दें:-
उपासना के बाद सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं व थोड़ा जल बचा के उसे पेट मे लगाकर आँचल या चुन्नी फैलाकर सन्तान मांगे। जन्मी सन्तान को श्रेष्ठ कार्य मे लगाएंगे वचन दें।
फिर कमरे में अपने जाएं और एक रुमाल में सूर्य को चढ़ाकर बचे जल से गीला कर लें। ठण्ड ज्यादा हो तो मात्र छिड़क लें और पेड़ू अर्थात नाभि के नीचे वाले भाग में रखकर उगते हुए सूर्य का ध्यान करें, 5 बार गायत्री मंत्र व 3 बार महामृत्युंजय मंत्र जपें, गर्भ पर दोनो हाथेली रख के ध्यान करें कि योनि मार्ग से सूर्य का तेज पेट के अंदर प्रवेश कर गया है। वह प्रकाश गर्भ के अंदर गर्भाधान में हो रही समस्याओं को क्योर कर रहा है। उस दिव्य प्रकाश ने गर्भ स्थल को सुसंतति पैदा करने के लिए पूर्णतयः स्वस्थ कर दिया है। वह प्रकाश अब दिव्य सन्तान के रूप में परिवर्तित होकर गर्भ में ठहर गया है। गर्भ नीली नीली रौशनी से प्रकाशित हो गया है। आप पूर्णतया स्वस्थ प्रशन्न दिव्य सन्तान को जन्म देने योग्य बन गयी है, सूर्य की कृपा हो गयी है। ऐसा ध्यान 15 मिनट लेटे लेटे गर्भ को दोनो हाथ से स्पर्श कर करना है। तीन बार ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति बोलकर पेट पर हाथ फेरकर उठ जाइये।
स्वयं के गर्भ पर दिन में कई बार नीली प्राणमय रौशनी चलते फिरते सोचिये। श्रेष्ठ सन्तान की माता बनने का मन ही मन अनुभव कीजिये।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर- आत्मीय बहन, नित्य बलिवैश्व यज्ञ में निम्नलिखित तीन और आहुतियां जोड़ दें:-
ॐ अग्नये पावकाय स्वाहा,
ॐ आदित्यै स्वाहा,
ॐ प्रजापतये स्वाहा।
साथ ही नित्य उपासना क्रम में यह निम्नलिखित ध्यान जोड़ दें:-
उपासना के बाद सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं व थोड़ा जल बचा के उसे पेट मे लगाकर आँचल या चुन्नी फैलाकर सन्तान मांगे। जन्मी सन्तान को श्रेष्ठ कार्य मे लगाएंगे वचन दें।
फिर कमरे में अपने जाएं और एक रुमाल में सूर्य को चढ़ाकर बचे जल से गीला कर लें। ठण्ड ज्यादा हो तो मात्र छिड़क लें और पेड़ू अर्थात नाभि के नीचे वाले भाग में रखकर उगते हुए सूर्य का ध्यान करें, 5 बार गायत्री मंत्र व 3 बार महामृत्युंजय मंत्र जपें, गर्भ पर दोनो हाथेली रख के ध्यान करें कि योनि मार्ग से सूर्य का तेज पेट के अंदर प्रवेश कर गया है। वह प्रकाश गर्भ के अंदर गर्भाधान में हो रही समस्याओं को क्योर कर रहा है। उस दिव्य प्रकाश ने गर्भ स्थल को सुसंतति पैदा करने के लिए पूर्णतयः स्वस्थ कर दिया है। वह प्रकाश अब दिव्य सन्तान के रूप में परिवर्तित होकर गर्भ में ठहर गया है। गर्भ नीली नीली रौशनी से प्रकाशित हो गया है। आप पूर्णतया स्वस्थ प्रशन्न दिव्य सन्तान को जन्म देने योग्य बन गयी है, सूर्य की कृपा हो गयी है। ऐसा ध्यान 15 मिनट लेटे लेटे गर्भ को दोनो हाथ से स्पर्श कर करना है। तीन बार ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति बोलकर पेट पर हाथ फेरकर उठ जाइये।
स्वयं के गर्भ पर दिन में कई बार नीली प्राणमय रौशनी चलते फिरते सोचिये। श्रेष्ठ सन्तान की माता बनने का मन ही मन अनुभव कीजिये।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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