Friday 11 October 2019

प्रश्न - *क्या एक जैसी उपासना विधि पालन करने पर, एक जैसी समयावधि में सबको एक जैसी सिद्धि व आत्मज्ञान प्राप्त होता है? जैसे यदि गुरुदेव के जैसे वही विधिव्यवस्था व विधान से साधना करने पर उतनी ही उपलब्धि मिलेगी?*

प्रश्न - *क्या एक जैसी उपासना विधि पालन करने पर, एक जैसी समयावधि में सबको एक जैसी सिद्धि व आत्मज्ञान प्राप्त होता है? जैसे यदि गुरुदेव के जैसे वही विधिव्यवस्था व विधान से साधना करने पर उतनी ही उपलब्धि मिलेगी?*

उत्तर- आत्मीय भाई,

सत्य एक अंजान पथ है, जिस पर चलकर उस परमात्मा तक कोई भी पहुंच सकता है। किसी धर्म-सम्प्रदाय विशेष से ही वो मिलेगा यह सोचना भ्रम है। गुरुदेव ने इस जन्म में गायत्री माता की उपासना का नियम अपनाया, पिछले जन्मों में माता काली की साधना की। मन्त्र गायत्रीमंत्र ही था, मार्ग ध्यान ही था। लेकिन अनेक अवतारों ने श्रीराम, श्रीकृष्ण, शिव, दुर्गा, बुद्ध, महावीर ने अन्य मार्ग अपनाए वो भी सफल रहे।

परमपूज्य गुरुदेव के स्थूल उपासना क्रम को हूबहू उतने दिनों तक कॉपी करने पर वही उपलब्धि आपको मिलेगी यह सोचना भ्रम है। हाँ एक शर्त पर आपको वही उपलब्धि मिल सकती है यदि आपका हृदय उतनी ही प्यार, ममता, करुणा और परमार्थ से भरा हो। शुरू में गुरुदेव ने गायत्री की साधना की अब वर्तमान में गायत्री गुरुदेव की साधना कर रही है। अद्भुत आश्चर्य है, किंतु यह सत्य है। भक्त जब स्वयं के *मैं* को मिटा देता है तो वो *वशिष्ठ* होता है, जब ईश्वर की तरह जन जन से प्रेम करता है तो वो *विश्वामित्र* बन जाता है। तब वह देवता बन जाता है, तब सिद्ध होता है।  परम्पपूज्य गुरुदेव का दर्शनमात्र भव बन्धन काट देता है।

परमपूज्य गुरुदेव के शब्दों में, मान लेना कोई अन्य गुरु तुम्हारे गुरु से श्रेष्ठ है, लेक़िन यह कभी मत मानना कि कोई अन्य मुझसे ज्यादा तुम्हें प्रेम कर सकता है।

आइये एक उदाहरण से समझते हैं:-
जे. कृष्णमूर्ति का जन्म 11 मई 1895 को आन्ध्र प्रदेश के एक छोटे-से कस्बे मदनापल्ली में एक धर्मपरायण परिवार में हुआ था। किशोरकाल में उन्हें थियोसॉफिकल सोसाइटी की अध्यक्ष डॉ. एनी बेसेंट द्वारा गोद ले लिया गया। कृष्णमूर्ति आगामी ‘विश्व-शिक्षक’ (‘वर्ल्ड टीचर’) होंगे, ऐसा श्रीमती बेसेंट और अन्य लोगों ने घोषित किया। थियोसॉफी के अनुयायी पहले ही किसी ‘विश्व-शिक्षक’ के आगमन की भविष्यवाणी कर चुके थे। कतिपय धर्मग्रन्थों में भी ऐसा वर्णित है कि मानवता के उद्धार के लिए समय-समय पर ‘विश्व-शिक्षक’ मनुष्य का रूप धारण करता है।

सन् 1922 में कृष्णमूर्ति किन्हीं गहरी आध्यात्मिक अनुभूतियों से होकर गुज़रे और उन्हें उस करुणा का स्पर्श हुआ--जैसा कि उन्होंने कहा--जो सारे दुःख-कष्टों को हर लेती है। इसके बाद आगे के साठ से भी अधिक वर्षों तक, जब तक कि 17 फरवरी 1986 को उनकी मृत्यु नहीं हो गयी, वे अनथक रूप से पूरी दुनिया का दौरा करते रहे--सार्वजनिक वार्ताएं तथा संवाद करते हुए, संभाषण और साक्षात्कार देते हुए, तथा लिखते और बोलते हुए। उन्होंने यह भूमिका सत्य के प्रेमी और एक मित्र के रूप में निभाई--गुरु के रूप में उन्होंने स्वयं को कभी नहीं रखा। उन्होंने जो भी कहा वह उनकी अंतर्दृष्टि का संप्रेषण था--वह महज़ किताबी या बौद्धिक ज्ञान पर आधारित नहीं था।

जब वो मैत्रेय के समक्ष सूक्ष्म शरीर से पहुँचे, तो वहां ऋषियों की संसद बैठी थी। उन्होंने कृष्णमूर्ति से पूँछा क्या तुम ऋषि संसद में प्रवेश के लिए तैयार हो?

तो क्या तुम स्वयं को मिटाकर परमात्मा को धारण करने को तैयार हो?

कृष्णमूर्ति ने कहा - हाँ मैं तैयार हूँ।

क्या तुम पूरे विश्व से, जन जन से प्रकृति के कण कण से परमात्मा की तरह प्रेम करने को तैयार हो?

कृष्णमूर्ति ने कहा - हाँ मैं तैयार हूँ।

तब ऋषियों ने उन्हें उस टीचर की तस्वीर दिखाई गई जिससे वो बचपन में अत्यंत नफ़रत करते थे, उसने निर्दयतापूर्वक हज़ारों बार कृष्णमूर्ति को पीटा था, शारीरिक व मानसिक यातना दी थी। क्योंकि कृष्णमूर्ति ध्यान में खो जाया करते थे, अतः दण्ड अक्सर पाते थे।

कृष्णमूर्ति ने कहा - हाँ मैं तैयार हूँ, जब मैं मिट गया, तो उस मैं से जुड़े अनुभव भी मिट गए। अब वो मुझमें है, तो मैं इस टीचर से भी उतना ही प्रेम करूंगा जितना परमात्मा सबसे करता है।

उनकी पात्रता सिद्ध हुई, वो चुन लिए गए।

ऐसे ही ऋषि संसद किसी को नहीं चुनती, अतः केवल साधना पद्धति की स्थूल कॉपी-नकल मत कीजिये, उनके अंतर्जगत व प्रेम भरे निष्छल हृदय की कॉपी कीजिये।

*"मैं" मिटाकर "वशिष्ठ" बनिये औऱ जिस व्यक्ति से आप सबसे ज्यादा घृणा हृदय की गहराईयों से करते हैं, जिसने आपको सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया है, उसे क्षमा करके परमात्मा की तरह प्रेम कीजिये, उतना प्रेम कीजिये जितना अपनी सन्तान को करते हैं, अपनी सन्तान व दूसरी सन्तान में भेद न दिखे, "विश्वामित्र" बनिये। समदृष्टि से जन जन को प्रेम कर सकें। यदि यह कर सके, तब आपकी साधना की सिद्धि सुनिश्चित है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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