Friday 11 October 2019

कविता - *प्यारी बेटी, नर्क की सृष्टि मत करना*

कविता - *प्यारी बेटी, नर्क की सृष्टि मत करना*

मेरी प्यारी बेटी,
तुम्हारे हाथों में,
सृष्टि करने की शक्ति है,
तुम चाहो तो घर को स्वर्ग बना दो,
तुम चाहो तो घर को नर्क बना दो,

मेरी विनती है,
नरक की सृष्टि मत करना,
ध्यान-स्वाध्याय से विवेक जगाकर,
स्वर्ग की ही सृष्टि करते रहना।

मेरी प्यारी बेटी,
तुम यदि गंगा बन गई तो,
पापियों को भी तार दोगी,
बिगड़े घर वालों को भी सम्हाल लोगी,
प्यार सम्वेदना से सूखे हृदयों में भी,
आत्मियता की हरियाली ला दोगी,
उन्हें भी इंसान बना दोगी।

मेरी विनती है,
गन्दा नाला मत बनना,
घर को प्रदूषित मत करना,
निज हृदय में भाव-सम्वेदना जगाकर,
भाव सम्वेदना की गंगोत्री बहाते रहना।

मेरी प्यारी बेटी,
यह शरीर नश्वर है,
आत्मा अजर अमर है,
शरीर सराय है,
आत्मा अनन्त यात्री है,
केवल रूप सज्जा में मत उलझना,
आत्म सज्जा पर भी ध्यान देना,
आत्म उद्धार के लिए भी प्रयास करते रहना,

मेरी विनती है,
शरीर की सुंदरता पर घमण्ड मत करना,
आत्म जागरण करके,
अपनी शाश्वत पहचान प्राप्त करना।

मेरी प्यारी बेटी,
पति स्वभाव से अच्छा है,
तो भगवत कृपा है,
पति स्वभाव से बुरा है,
तो अत्यधिक भगवत कृपा है,
निज कर्मफ़ल व भगवत कृपा को स्वीकारना,
पति के जीवन का उद्धार करना,
प्रेम-सम्वेदना-बुद्धिकुशलता से,
उसके भीतर का देवता जागृत करना।

मेरी विनती है,
पति के भीतर का राक्षस,
कड़वे वचनों से जागृत मत करना,
मीठे वचनों व बुद्धिकुशलता से,
पति के भीतर देवत्व जागृत करना।

मेरी प्यारी बेटी,
इतिहास गवाह है,
द्रौपदी के कटु वचन,
*अंधे का बेटा अंधा*,
महाभारत युद्ध का बीज बना,
द्रौपदी चीरहरण से लेकर,
पांडव अपमान का कारण बना,
अपनी जिह्वा के अस्त्र को,
साधना से बहुत सम्हालना,
क्रोध में भी वचन सम्हाल के बोलना,
शब्द की चाकू से रोगी का ऑपरेशन जब भी करना,
ध्यान रहे उसके मन का घाव खुला मत रखना,
आत्मियता से मन की सिलाई करना,
प्रेम का मरहम अंत में लगा देना।

मेरी विनती है,
यदि मुंह के शब्दों को सम्हाल न सको तो,
मौन रहने की कोशिश करना,
क्रोध में निर्णय मत लेना,
प्रेम में कोई वचन मत देना।

मेरी प्यारी बेटी,
बिना सीमेंट के,
केवल ईंटो से घर नहीं बन सकता,
बिना मातृत्व व प्रेम के गुण के,
घर-परिवार नहीं बस सकता,
पाश्चत्य सोच से,
केवल घर उजड़ सकता है,
कोर्ट कचहरी में,
न्याय मिल सकता है,
लेकिन घर-परिवार नहीं बस सकता,
धरती का स्वर्ग परिवार नहीं बन सकता।

मेरी विनती है,
पाश्चत्य सोच है,
तो भारतीय परिवार व्यवस्था में,
विवाह ही मत करो,
आज़ाद ख्यालों के साथ,
अकेले जीवन व्यतीत करो,
आज़ादी को एन्जॉय करो,
समझौते के बंधन में मत पड़ो।

मेरी प्यारी बेटी,
प्रत्येक जीव निर्वस्त्र जन्मता है,
खाली हाथ धरती पर जन्म लेता है,
कोई सांसारिक सामान वो साथ नहीं लाता,
जाते वक़्त ख़ाली हाथ ही जाता है,
कोई सामान साथ नहीं ले जाता,
भगवान केवल गुण देता है,
पक्षी को उड़ने का,
मछली को तैरने का,
हिंसक जीवों को शिकार का,
शाकाहारी जीवों को चरने का,
मनुष्य को सोचने समझने का,
पुरुषार्थ व बुद्धि से कुछ भी करने का,
गुण को निरन्तर अभ्यास से,
हुनर बनाना पड़ता है,
दुनियां में अपनी मेहनत से,
अपनी पहचान बनाना पड़ता है।
भगवान किसी को भी,
भोजन व संसाधन की होम डिलिवरी नहीं करता,
बिन पुरुषार्थ कुछ नहीं देता,
बिना पढ़े कभी पास नहीं करता।

मेरी विनती है,
भगवान को मनोकामना पूर्ति की दुकान मत समझना,
अंधी भक्ति मत करना,
अर्जुन बन अपना जीवन युद्ध स्वयं लड़ना,
भगवान से केवल उनका साथ माँगना,
अपने गुणों को हुनर में बदलने के लिए,
नित्य उपासना-साधना-आराधना अवश्य करना।


मेरी प्यारी बेटी,
कम्पनी किसी को,
उसकी योग्यता से ज्यादा सैलरी नहीं देती,
इंसान की औकात,
उसके बैंक का बैलेंस तय करती है,
छोटी सोच और पैर की मोच,
हमें आगे बढ़ने नहीं देती,
दोषारोपण करने की आदत,
स्वयं को कभी सुधरने नहीं देती,
तुम यदि सुखी हो,
तो यह भी तुम्हारा कर्मफ़ल है,
तुम यदि दुःखी हो,
तो यह भी तुम्हारा कर्मफ़ल है,
दुःख को सुख में बदलने के लिए,
तुम आज जितनी प्रयासरत हो,
यही तुम्हारा भविष्यफल है।

मेरी विनती है,
दोषारोपण में समय व्यर्थ मत करना,
विवेक से परिस्थिति का अवलोकन करना,
जो ठीक कर सको उसे ठीक कर देना,
जो ठीक न कर सको उसे सह लेना,
जो सहा न जाये उसे त्याग देना,
मुक्त तपस्वी सा आनन्दमय जीवन जीना,
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है,
यह ब्रह्म वाक्य हमेशा याद रखना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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