Friday, 18 October 2019

अहोई अष्टमी/अहोई आठे(कार्तिक कृष्णपक्ष अष्टमी- सन्तान लक्ष्मी व्रत)

*अहोई अष्टमी/अहोई आठे(कार्तिक कृष्णपक्ष अष्टमी- सन्तान लक्ष्मी व्रत)*
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कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी  के इस शुभ दिन सन्तान वाली माताएं अपने सभी सन्तानो के उज्जवल भविष्य, उनके शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक स्वास्थ्य और विकास के लिए, उनकी सद्बुद्धि और दीर्घायु जीवन के लिए माँ सन्तान लक्ष्मी(अहोई माता) का पूजन करती हैं। माता अपनी सन्तानों को देश का रक्षक, परिवार का संरक्षक और समाज का उद्धारक बनाने के लिए माँ सन्तान लक्ष्मी से मदद मांगती है।

*अहोई अष्टमी व्रत: पूजा मुहूर्त*

अष्टमी तिथि का प्रारंभ 21 अक्टूबर को सुबह 06:44 बजे से हो रहा है, जिसका समापन 22 अक्टूबर को सुबह 05:25 बजे हो रहा है।

*अहोई अष्टमी को पूजा मुहूर्त 21 अक्टूबर की शाम को 05:46 बजे से रात 07:02 बजे तक है।*


पति एक होता है अतः करवा चौथ में आकाश में एक चन्द्र दर्शन का महत्त्व होता है, और सन्तान एक से अधिक हो सकती हैं इसलिए इस व्रत में तारों के दर्शन का महत्त्व है।

प्राचीन काल में स्त्रियां पढ़ी लिखी नहीं होती थीं, इस दिन के महत्त्व को बताने हेतु स्याह(सेई) और साहूकार की बहु की कहानी गढ़ी गयी ताकि कहानी के माध्यम से पर्व को याद रखा जा सके। जैसे पञ्चतन्त्र की कहानियाँ गढ़ी गयी थीं। इस कारण एक ने कही दूसरे ने सुनी, कोई कुछ भूला तो कुछ का कुछ जुड़ता गया। तो विश्वास की जगह अन्धविश्वास की बातें भी व्रत में जुड़ गयी। सभी जातियों में अलग अलग तरीके से व्रत मनाया जाने लगा।

क्यूंकि स्मार्ट फ़ोन उपयोग में लाने वाली महिलाएं पढ़ी लिखी है अतः उनके लिए इस व्रत के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष को ही रखूँगी। सार्वभौम व्रत विधि बता रही हूँ। आपके लड़की हो या लड़का दोनों ही आपकी सन्ताने हैं अतः व्रत करें।

*व्रत विधि* - व्रत के एक दिन पूर्व कच्चे चावल थोड़े से पानी में भिगो लें। सुबह मिक्सी में एक छोटा चम्मच हल्दी के साथ पीस लें। घर के दरवाजे और पूजन घर में स्वास्तिक इससे बनाएं, साथ ही घर के समस्त सदस्य को इससे तिलक लगाएं। इससे घर और मष्तिष्क की नकारात्मक ऊर्ज़ा नष्ट होगी।

व्रत निर्जल, जलाहार, रसाहार, फलाहार करके किसी भी विधि रह सकते हैं। कारण यह होता है क़ि पेट में अन्न सारी प्राणऊर्जा को पाचन प्रक्रिया में ख़र्च कर देता है। इसलिए अन्न न खाने के कारण प्राणऊर्जा तप में लगती है और जिसके लिए व्रत किया जाता है उसको लाभान्वित करती है।

कलश स्थापना पूजन गृह में सुबह होगी, पीसे हल्दी मिले चावल के पेस्ट से ही कलश पर भी स्वास्तिक बनेगा। कलश के समक्ष कम से कम दो वक़्त या तीन वक़्त पूजन होगा। शाम को दीपयज्ञ के बाद कलश उठेगा और इसी से चन्द्र को अर्घ्य दिया जायेगा रात में।

सन्तान के लिए 10 माला गायत्री मन्त्र की , और जितनी सन्तान हों उतनी ही माला सन्तान लक्ष्मी मन्त्र की और महामृत्युंजय मन्त्र की जपनी है।

*उदाहरण* - किसी के दो सन्तान(बच्चे हैं) तो वो 10 गायत्री मन्त्र की, 2 सन्तान लक्ष्मी मन्त्र की, 2 महामृत्युंजय मन्त्र की जपेगा।

गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

महामृत्युंजय मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*

सन्तान लक्ष्मी मन्त्र - *ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि, तन्नो सन्तान लक्ष्मीः प्रचोदयात्*

शाम को जितनी सन्ताने हैं उतनी कटोरी में चावल की खीर का भोग लगाएं। यदि चांदी की चम्मच का ख़र्च वहन कर सकें तो सब कटोरी में चांदी की चम्मच डाल दें। एक अलग बड़े बर्तन में समस्त परिवार के लिए खीर का भोग लगेगा।

सन्तानो के हाथ में हल्दी और पीसे चावल से निम्नलिखित मन्त्र से तिलक करें-

*ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम् । आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥*

 ततपश्चात रक्षा सूत्र बांधे निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए-

*येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।*

एक मुख्य् दीपक सरसों के तेल का होगा, जिसमें चारो तरफ़ X के आकार में दो लम्बी बाती लगेगी। चार लौ एक ही दीपक में जलेंगी। इससे घर की नकारात्मकता का शमन होगा।

दीपयज्ञ हेतु 5 या 11 दीपक घी के जलाएंगे। एक एक दीपक घर का समस्त सदस्य जलायेगा। 5 गायत्री मन्त्र, 3 महामृत्युंजय मन्त्र, 3 चन्द्र गायत्री मन्त्र, 3 सन्तान लक्ष्मी मन्त्र सभी सदस्य मिलकर जपेंगे।

इसके बाद तीन बार हाथ में सभी परिवार जन पुष्प अक्षत लेकर सन्तान लक्ष्मी प्रार्थना मन्त्र जपें और मन्त्र के पश्चात् हथेली(अंजुली) में रक्षा पुष्प माँ लक्ष्मी के चरणों में अर्पित कर दें।- *या देवी सर्वभूतेषु, सन्तान लक्ष्मी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः*

 फ़िर शांतिपाठ के बाद सभी सन्तानो को पहले खीर की कटोरी में प्रसाद उनके हाथ देंकर निम्नलिखित मन्त्र से खीर अभिमन्त्रित करेंगे। कटोरी में उतनी ही खीर रखें जितना आपका बच्चा पूरा खा सके।

*ॐ पयः पृथ्वियां पय औषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥*

बच्चे माता पिता का चरण स्पर्श करेंगे, थोड़े पुष्प लेकर माता पिता अपनी सन्तानो पर पुष्पवर्षा करते हुए निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए आशीर्वाद देंगें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि।।*

खीर के प्रसाद को चन्द्र के समक्ष रात को थोड़ी देर के लिए रखना होगा। चन्द्र गायत्री मन्त्र तीन बार बोलकर अर्घ्य देंगें,

चन्द्र गायत्री मन्त्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि। तन्नः चन्द्रः प्रचोदयात्*

उसके बाद कलश के जल के एक एक बूँद खीर पर डालेंगे। अब खीर का प्रसाद और बचा हुआ जल लेकर भोजन कक्ष में आ जाएँ।

प्रत्येक कटोरी की खीर सन्तान खायेगी। और बड़े बर्तन में लगा खीर का भोग अन्य सदस्य को मिलेगा।

यदि आर्थिक स्थिति अच्छी है, तो चांदी के गोल या अर्ध चन्द्रमा के अंदर स्वास्तिक का लॉकेट बना के कम से कम एक महीने पहन लें। इससे मन शांत होगा, नकारात्मकता का शमन होगा और माँ सन्तान लक्ष्मी की कृपा होगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

पोस्ट लम्बी है, क्यूंकि पूजन विधि थोड़ी बड़ी है। कर्मकांण्ड प्रदीप्त से शठ कर्म और कलश पुजन मन्त्र पढ़ें।

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