Friday, 11 October 2019

प्रश्न - *"जिनके भीतर जितने परिमाण में ईश्वरीय प्रयोजनों में सहयोगी बनने की तड़पन है, वह उतना ही दिव्यात्मा है"।* इसका मतलब समझा दीजिये।

प्रश्न - *"जिनके भीतर जितने परिमाण में ईश्वरीय प्रयोजनों में सहयोगी बनने की तड़पन है, वह उतना ही दिव्यात्मा है"।* इसका मतलब समझा दीजिये।

उत्तर- आत्मीय भाई,

ऐसे समझो -
जिसका गला जितना ज्यादा सूख रहा है, वह उतने अर्थों में प्यासा है।

जिसके अंदर जितनी पढ़ने की ललक व तड़फन है, व उतना ही पढ़ाकू है।

प्यासा होगा तो गला सूखेगा,
पढ़ाकू होगा तो पढ़ने को इच्छुक होगा,
दिव्यात्मा होगा तो ही ईश्वरीय कार्य करने को इच्छुक होगा।

जो जैसा भीतर से होगा वैसे ही कार्य करने को प्रेरित होगा।

दुष्टात्मा लूटपाट के लिए सहयोगी बनेगा,
दिव्यात्मा दान के लिए सहयोगी होगा।

दुष्टात्मा शैतानी प्रयोजन(कार्य) को करने हेतु तड़पेगा(जुनून के साथ इच्छुक होगा),

दिव्यात्मा दैवीय प्रयोजन(कार्य) को करने हेतु तड़पेगा(जुनून के साथ इच्छुक होगा)।

जीवात्मा की क़्वालिटी तय करेगी कि उसका झुकाव किस ओर होगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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