Saturday 19 October 2019

कविता - हे मेरे मन, उलझना बड़ा सरल है, सुलझना बड़ा कठिन है,

हे मेरे मन,
उलझना बड़ा सरल है,
सुलझना बड़ा कठिन है,
अशांत होना बड़ा सरल है,
शांत होना बड़ा मुश्किल है,
तू बहादुर बन,
थोड़ा कठिन चुन,
विपरीत परिस्थितियों में भी,
शांत होना सीख।

हे मेरे मन,
तू एक सॉफ्टवेयर है,
जो शरीर के हार्डवेयर में इंस्टॉल है,
तू आत्मा की
विद्युत ऊर्जा से चल रहा है,
आत्म ऊर्जा ख़त्म,
तो शरीर रूपी हार्डवेयर ऑफ़,
मन तेरा अस्तित्व भी ऑफ,
हार्डवेयर का तो तू ध्यान रखता है,
लेकिन अक्सर आत्म ऊर्जा के बिल का,
भुगतान भूल जाता है।

हे मेरे मन,
तू मेरा सच्चा मित्र बन,
और मेरे उद्धार की सोच,
ज़रा भागदौड़ कम कर,
सही दिशा की ओर सोच,
कभी ठहर कर,
थोड़ा ध्यान में बैठ,
मुझे मेरे अंतर्जगत में ले चल,
प्राणऊर्जा से मुझे रिचार्ज कर।

हे मन,
तू है मेरा दर्पण,
मेरे व्यक्तित्व की तू है झलक,
तू यदि शांत है तो,
मेरा व्यक्तित्व निखरेगा,
तू यदि उद्विग्न है तो,
मेरा व्यक्तित्व बिखरेगा,
पढ़ना भी मेरे मन,
तुझको ही है,
याद सब कुछ करना तुझको ही है,
जॉब भी मेरे मन,
तू ही करेगा,
व्यवसाय भी मेरा मन,
तू ही सम्हालेगा,
रिश्ते भी मेरे मन,
तू ही बनाएगा,
यह शरीर तो बस,
तेरा साथ निभायेगा।

हे मेरे मन,
तू मजबूत बन,
स्वयं में अदम्य साहस भर,
बुद्धि की तलवार में,
तेज धार कर,
मेरा हर वक़्त साथ दे तू,
मुझे मेरे मन सम्हाल ले तू।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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