युगऋषि कहते हैं कि - स्त्री पुरूष एक ही शक्ति के दो भाग हैं, एक दूसरे के पूरक। समान महत्त्व रखते हैं।
प्रत्येक पुरुष में भी स्त्री तत्व होता है, प्रत्येक स्त्री में भी पुरुष तत्व होता है, बस स्त्री में स्त्रीतत्व ज्यादा होता है और पुरुष में पुरुष तत्व ज्यादा होता है।
सृष्टि के निर्माण के हेतु शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया। शिव स्वयं पुल्लिंग के तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक हैं । पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं। जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनाएँ अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाए। तब अपने समस्या के सामाधान के हेतु वो शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा के समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश दिया।
शक्ति के बिना शिव शव है और शिव के बिना शक्ति अस्तित्व हीन है। प्रकृति व पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं।
🙏🏻श्वेता, DIYA
प्रत्येक पुरुष में भी स्त्री तत्व होता है, प्रत्येक स्त्री में भी पुरुष तत्व होता है, बस स्त्री में स्त्रीतत्व ज्यादा होता है और पुरुष में पुरुष तत्व ज्यादा होता है।
सृष्टि के निर्माण के हेतु शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया। शिव स्वयं पुल्लिंग के तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक हैं । पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं। जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनाएँ अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाए। तब अपने समस्या के सामाधान के हेतु वो शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा के समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश दिया।
शक्ति के बिना शिव शव है और शिव के बिना शक्ति अस्तित्व हीन है। प्रकृति व पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं।
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