प्रश्न - *पूजा करते समय बाल क्यों बांधने चाहिए, और सर ढक कर पूजा क्यों करते हैं क्या सर ढकना आवश्यक है?*
उत्तर - आत्मीय बेटे, यह शरीर रूपी रंग महल के दस दरवाज़े :-
' रंग महल के दस दरवाजे , कौन सी खिड़की खुली थी सैंया निकस गए , मैं ना लड़ी थी! '
इन्हीं दस दरवाजों में से किसी से आत्मा शरीर में प्रवेश करती है और इन्हीं से निकलती भी है।
ये नौ द्वार हैं- दो चक्षु द्वार , दो नसिका द्वारा , दो श्रोत द्वार , मुख , वायु व उपस्थ द्वार। दसवां दरवाज़ा है शिखा द्वार जो कि सहस्रार दल के पास है। विचारों के प्रवेश व निकलने का यही द्वार है। कुछ ग्रन्थ जन्मे बच्चे में जो मष्तिष्क में पोला स्पर्श स्थल होता है उसे ही दसवां द्वार कहते है। वहाँ हड्डी की लेयर बहुत हल्की होती है और जन्म के कई दिनों बाद भरती है।
इस शरीर से देवत्व भी प्राप्त किया जा सकता है और असुरत्व भी , इसी से स्वर्ग को जाया जा सकता है और इसी के द्वारा नरक को , यही सन्मार्ग की ओर ले जाता है और यही कुमार्ग पर। इंद्रियों की साधना हमें ऊर्ध्वगामी बना देती है और इनका अनियंत्रण हमें अधोगामी बना देता है।
सहस्रार को आमतौर पर शुद्ध चेतना का चक्र माना जाता है। हो सकता है इसकी भूमिका कुछ हद तक पीयूष ग्रंथि ग्रंथि जैसी हो, जो तमाम अंत:स्रावी प्रणाली के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए एमैन्युल हार्मोन स्रावित करती है और साथ में अध:श्चेतक के जरिए केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से भी जुड़ती है। माना जाता है कि चेतक का चेतना के दैहिक आधार में मुख्य भूमिका होती है। इसका प्रतीक कमल की एक हजार पंखुडि़यां हैं और यह सिर के शीर्ष पर अवस्थित होता है। सहस्रार बैंगनी रंग का प्रतिनिधित्व करती है और यह आतंरिक बुद्धि और दैहिक मृत्यु से जुड़ी होती है। सहस्रार का आतंरिक स्वरूप कर्म के निर्मोचन से, दैहिक क्रिया ध्यान से, मानसिक क्रिया सार्वभौमिक चेतना और एकता से और भावनात्मक क्रिया अस्तित्व से जुड़ा होता है।
भगवान की पूजा में दसों द्वार में मुख्य सर को कपड़े से ढँक दिया जाता है, नेत्रों को बंद करके ध्यानस्थ होते हैं, जिससे विचारों के प्रवेश को रोका जा सके। एकाग्रता पाने में मदद मिले।
बिखरे अस्तव्यस्त बाल विचारों के अनर्गल प्रवेश का द्वार होते हैं, एकाग्रता भंग करने वाले होते हैं। बालो को बांधकर उन्हें एकाग्र होने का संदेश दिया जाता है।
आप पूजन या पढ़ाई के वक़्त स्वयं एक प्रयोग करके देखें, तीन दिन खुले बालों में सर खोलकर ध्यान या पढ़ाई करने की कोशिश करें। नेक्स्ट तीन दिन बालों में अच्छे से कंघी करके उन्हें बांधकर व सर पर कोई कपड़ा या गायत्रीमंत्र का दुपट्टा/उपवस्त्र रखकर ध्यान या पढ़ाई करें। आप पाएंगे कि खुले बाल व सिर में ध्यान ज्यादा भटका व बंधे बाल व ढँके सर में ध्यान या पढ़ाई करने में मन अपेक्षाकृत ज्यादा एकाग्र हुआ।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - आत्मीय बेटे, यह शरीर रूपी रंग महल के दस दरवाज़े :-
' रंग महल के दस दरवाजे , कौन सी खिड़की खुली थी सैंया निकस गए , मैं ना लड़ी थी! '
इन्हीं दस दरवाजों में से किसी से आत्मा शरीर में प्रवेश करती है और इन्हीं से निकलती भी है।
ये नौ द्वार हैं- दो चक्षु द्वार , दो नसिका द्वारा , दो श्रोत द्वार , मुख , वायु व उपस्थ द्वार। दसवां दरवाज़ा है शिखा द्वार जो कि सहस्रार दल के पास है। विचारों के प्रवेश व निकलने का यही द्वार है। कुछ ग्रन्थ जन्मे बच्चे में जो मष्तिष्क में पोला स्पर्श स्थल होता है उसे ही दसवां द्वार कहते है। वहाँ हड्डी की लेयर बहुत हल्की होती है और जन्म के कई दिनों बाद भरती है।
इस शरीर से देवत्व भी प्राप्त किया जा सकता है और असुरत्व भी , इसी से स्वर्ग को जाया जा सकता है और इसी के द्वारा नरक को , यही सन्मार्ग की ओर ले जाता है और यही कुमार्ग पर। इंद्रियों की साधना हमें ऊर्ध्वगामी बना देती है और इनका अनियंत्रण हमें अधोगामी बना देता है।
सहस्रार को आमतौर पर शुद्ध चेतना का चक्र माना जाता है। हो सकता है इसकी भूमिका कुछ हद तक पीयूष ग्रंथि ग्रंथि जैसी हो, जो तमाम अंत:स्रावी प्रणाली के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए एमैन्युल हार्मोन स्रावित करती है और साथ में अध:श्चेतक के जरिए केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से भी जुड़ती है। माना जाता है कि चेतक का चेतना के दैहिक आधार में मुख्य भूमिका होती है। इसका प्रतीक कमल की एक हजार पंखुडि़यां हैं और यह सिर के शीर्ष पर अवस्थित होता है। सहस्रार बैंगनी रंग का प्रतिनिधित्व करती है और यह आतंरिक बुद्धि और दैहिक मृत्यु से जुड़ी होती है। सहस्रार का आतंरिक स्वरूप कर्म के निर्मोचन से, दैहिक क्रिया ध्यान से, मानसिक क्रिया सार्वभौमिक चेतना और एकता से और भावनात्मक क्रिया अस्तित्व से जुड़ा होता है।
भगवान की पूजा में दसों द्वार में मुख्य सर को कपड़े से ढँक दिया जाता है, नेत्रों को बंद करके ध्यानस्थ होते हैं, जिससे विचारों के प्रवेश को रोका जा सके। एकाग्रता पाने में मदद मिले।
बिखरे अस्तव्यस्त बाल विचारों के अनर्गल प्रवेश का द्वार होते हैं, एकाग्रता भंग करने वाले होते हैं। बालो को बांधकर उन्हें एकाग्र होने का संदेश दिया जाता है।
आप पूजन या पढ़ाई के वक़्त स्वयं एक प्रयोग करके देखें, तीन दिन खुले बालों में सर खोलकर ध्यान या पढ़ाई करने की कोशिश करें। नेक्स्ट तीन दिन बालों में अच्छे से कंघी करके उन्हें बांधकर व सर पर कोई कपड़ा या गायत्रीमंत्र का दुपट्टा/उपवस्त्र रखकर ध्यान या पढ़ाई करें। आप पाएंगे कि खुले बाल व सिर में ध्यान ज्यादा भटका व बंधे बाल व ढँके सर में ध्यान या पढ़ाई करने में मन अपेक्षाकृत ज्यादा एकाग्र हुआ।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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