Wednesday 9 October 2019

प्रश्न - *मैं बहुत स्वभाव से बहुत चिड़चिड़ी हो गयी हूँ, क्या आध्यात्मिक प्रयास करूँ?*

प्रश्न - *मैं बहुत स्वभाव से बहुत चिड़चिड़ी हो गयी हूँ, क्या आध्यात्मिक प्रयास करूँ?*

उत्तर- आत्मीय बहन, जहां समस्या वहीं समाधान है।

जब हम दूसरों को बदलना चाहते हैं, परिस्थिति बदलना चाहते हैं जो कि सम्भव नहीं है, हमारे स्वभाव में चिड़चिड़ापन लाता है।

मन को समझाइये:-
जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करो,
गुलाब को कमल और कमल को गुलाब बनाने में मत समय व्यर्थ करो,
पक्षी को तैरना और मछली को उड़ाने में समय व्यर्थ मत करो,
लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह मत करो, लोगों का क्या है, वो कुछ न कुछ तो कहते ही रहते हैं, उन्हें इग्नोर करो।
जो जीवन में ठीक कर सकते हो उसे ठीक कर दो, जो जीवन में खुद ठीक न कर सको उसे बर्दास्त कर लो, सह लो। सच्चे दिल से प्रार्थनाएं करो।

 *निराशा, विषाद आदि को मनमें स्थान मत दो*

*जीवन में क्या नहीं है उसे गिनने की जगह जीवन में भगवान ने क्या क्या दिया है, उसका शुकराना, धन्यवाद, आभार परमात्मा को सतत देते रहो। आधी ग्लास ख़ाली व आधी भरी यह सबके जीवन का सत्य है। जो आधा भरा देख रहा है, वह सुखी है। जो आधा खाली देख रहा है वो दुःखी है। जो आधा हवा से और आधा जल से भरा दिखेगा वो आनन्दित रहेगा।*

मन में यह दृढ़ निश्चय करो कि मेरा भगवानके साथ नित्य सम्बन्ध है , भगवान की पूर्ण और अनन्त कृपा मुझ पर सदा - सर्वदा बरसती रहती है । भगवान की कृपा मेरा भगवान से अलग रहना देख ही नहीं सकती । इसलिये भगवानकी कृपा के बल से ही मैं इसी जीवन में निश्चय ही भगवान को प्राप्त करूँगा ।

🙏🏻 *भगवान का जीवन से शिक्षण लें*👇🏻
भगवान राम खेलने की उम्र में विश्वामित्र माँग के ले गए और तड़का व उसकी टीम वध में लगा दिया। विवाह में परशुरामजी जी के क्रोध का सामना करना पड़ा। नई नवेली पत्नी सीता के साथ सुखमय जीवन की शुरुआत भी न हो पाई कि जिस दिन राजतिलक होना था उस दिन वनवास मिल गया, जंगल की घनघोर त्रासदी में मीलों पदयात्रा, पत्नी को रावण चुरा ले गया, पत्नी वियोग सहा, घनघोर युद्ध किया, पत्नी लेकर घर पहुंचे कि पुनः राजनैतिक कारण से पुनः पत्नी वियोग, अपने बच्चे नहीं देख पाए। बच्चों से भी अनजाने में युद्ध किया व लगभग मार ही डाला था कि बाल्मीकि आ गए। एक पिता के लिए कितना दुःखद होता कि वो अपने बच्चों का हत्यारा हो जाता तो। पत्नी ने देह त्याग दिया। प्राणों से भी ज्यादा प्रिय भक्त लक्ष्मण उसे भी यमराज के कारण त्यागना पड़ा। अन्तत: जलसमाधि ली। पूरा जीवन कष्टों से भरा फिर भी मर्यादित, धैर्य व साहस के साथ रहे। मनःस्थिति विचलित न हुई जब जब परिस्थिति बिगड़ी। लोकहित जीते रहे। इसीलिए वो भगवान की तरह पूजे गए। सीता जी ने तो सुख क्या होता है कभी जाना ही नहीं। फिर भी धैर्य, साहस और श्रेष्ठ मनःस्थिति में रहीं। इसलिए देवी हैं।

🙏🏻 *भगवान कृष्ण के जीवन से शिक्षण लें* 👇🏻
भगवान कृष्ण जन्मते ही मां-बाप कारागार में, दूसरी माँ यशोदा के घर पले, पूतना इत्यादि अनेकों राक्षसों का जानलेवा हमला, 16 वर्ष में कंस वध, जिस राधा से प्रेम किया, उसी से विवाह न हुआ। अनेको राक्षसों से युद्ध मे छुड़ाई स्त्रियों को आश्रय देने के लिए कई सारे विवाह मजबूरी में किये। महाभारत युद्ध में सारथी बने और गीता का ज्ञान देकर अर्जुन का मोह भंग किया,  युद्ध जीता तो स्वयं के लिए कुछ नहीं लिया। पूरा यादव कुल परिवार उन्हीं के सामने लड़कर मर गया। अंततः पूर्वजन्म के बाली के तीर से मृत्यु का वरण किया। राधा जी ने ताउम्र सुख क्या है जाना ही नहीं, कृष्ण वियोग व उनकी भक्ति में जीवन काटा।

🙏🏻 *महापुरुषों का जीवन चरित्र पढ़े और उनसे शिक्षण लें कि किस तरह कठिन परिस्थितियों में वो धैर्य व साहस बनाये रखे।* 🙏🏻

हम इंसान भगवान की पूजा में कभी भी सद्बुद्धि और वर्तमान परिस्थिति से निपटने की कुशलता, धैर्य व साहस नहीं माँगते। श्रेष्ठ मनःस्थिति नहीं मांगते।

क्या माँगते है- भगवान हमारे जीवन के कष्टों को मिटा दो, फूलों भरी जीवन की राह बना दो, हमें बिन पढ़े पास करवा दो। हमारे पति को करोड़ पति टाटा-बिड़ला-अम्बानी जैसा बना दो। हमारी पत्नी को सुंदरता में ऐश्वर्या-हेमामालिनी-आलिया बना दो और साथ ही आज्ञाकारी सुसंस्कारी बना दो। बड़ा बंगला, गाड़ी दे दो। सरकारी जॉब दे दो, इत्यादि इत्यादि न जाने क्या क्या माँगते रहते हैं।

भूल जाते हैं कि प्रत्येक जीव अपनी किस्मत खुद लिखता है। हमारे कर्म ही  भाग्य/प्रारब्ध बनकर हमारे जीवन मे प्रकट होते हैं। जो भी जीवन में बदलाव करना है स्वयं को ही करना है।

घण्टों स्वाध्याय करके और ध्यान की गहराई में जाकर स्वयं के जीवन मे आगे क्या और कैसे करना है यह ढूंढना होगा। भगवान से बुद्धि, साहस, धैर्य मांगो।

भगवान समस्त जीव को बिना वस्त्र के  खाली हाथ ही पैदा करता है। सबको कुछ न कुछ ऐसी चीज़ देकर भेजता है कि वो अपना गुजारा कर सके। पक्षियों को उड़ने की, जलचर को तैरने की और मनुष्य को सोचने की शक्ति देकर भेजता है। इससे अधिक किसी की कोई मदद नहीं करता, किसी को भोजन होम डिलीवरी नहीं करता। सभी जीव अपनी अपनी मेहनत से खाते हैं, वर्तमान में जो जैसा है वो अपने पुरुषार्थ से है।

जन्म व मृत्यु के बीच का एक समय है जो इस धरती पर काटना है, जैसे एक यात्रा में हो बस अच्छी हो या खराब कुछ समय के लिए ही उसपर यात्रा करना है। उतरना सभी को है। संसार सभी को छोड़ना है। हम आत्मा रूपी यात्री है यह शरीर हमारा सराय है, छोड़कर जाना है। अतः ज्यादा टेंशन करने की क्या जरूरत है, जो ठीक कर सकते हो ठीक कर दो, जो न ठीक हो सके उसे सह लो। परिस्थिति की जगह मनःस्थिति बदल लो। स्वयं के अलावा किसी भी रिश्ते से अपेक्षा मत करो। दूसरे के जीवन से अपने जीवन की तुलना मत करो। चिड़चिड़ापन दूर हो जाएगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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