प्रश्न - *आज़कल कुछ पढ़े लिखे मानसिक विक्षिप्त लोग देवी-देवताओं की मूर्तियां जलाते हुए यूट्यूब पर वीडियो अपलोड कर रहे हैं, जिनमें से उत्तरप्रदेश के मड़ियाहूं का विक्षिप्त ज्ञानी भी है, मूर्ति पूजा को अंधविश्वास बता रहे हैं।*
उत्तर- विवेकानंद जी व युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने एक बात को बल देते हुए कहा है कि *जब तक हम ब्रह्माण्ड में व्याप्त परमात्म तत्व को मन में नहीं ग्रहण कर पाते, तब तक हमें मूर्तियों के सहारे ही उपासना करनी होती है*, ठीक उसी प्रकार जैसे भाषा का जब तक हम पूर्णतया ज्ञान न हो जाये, भाषा सीखने के लिए कलम-कॉपी का उपयोग करना उचित है। मूर्तिपूजा को लेकर विवाद पैदा करना उचित नहीं, क्योंकि जो परमात्म चेतना कण कण में है वह मूर्ति के कणों में भी विद्यमान है। अपनी श्रद्धा-विश्वास को उस मूर्ति में आरोपित कर उस परमात्म तत्व को अनुभूत किया जाता है। जैसे पुत्र के लिए पिता की तस्वीर मात्र कागज़ का टुकड़ा नहीं होती, वह पिता को अनुभूत व याद करने का माध्यम होती है, वह उस तस्वीर को उतनी ही इज्जत सम्मान देता है जितना वो पिता को देता है, यही नवाब के मूर्ति पूजा के सम्बंध में शंका समाधान करते हुए विवेकानंद जी ने बताया था।
भक्त के लिए भी पुत्र की तरह भगवान की मूर्ति व साक्षात भगवान में फर्क नहीं। उसकी श्रद्धा भावना उतनी ही जुड़ी हुई है और वह उतना ही भक्ति से लाभान्वित भी होता रहता है।
स्वामी विवेकानंद का चिंतन..
यदि कोई कहे कि प्रतीक, अनुष्ठान और विधियां सदैव रखने की चीजें हैं, तो उसका यह कहना गलत है, पर यदि वह कहे कि इन प्रतीकों और अनुष्ठानों द्वारा विकास की निम्न श्रेणियों में आत्मोन्नति में सहायता मिलती है, तो उसका कथन ठीक है। पर हां, आत्मोन्नति का अर्थ बुद्धि का विकास नहीं। किसी मनुष्य की बुद्धि कितनी ही विशाल क्यों न हो, पर आध्यात्मिक क्षेत्र में संभव है वह एक बालक या उससे भी गया-बीता हो। इसी क्षण आप इसकी परीक्षा कर सकते हैं। हममें से कितने ऐसे हैं, जिन्होंने सर्वव्यापित्व की कल्पना की है? हालांकि हम लोगों को सर्वव्यापी ईश्वर में ही विश्वास करना सिखाया गया है। यदि आप प्रयत्न करेंगे तो सर्व-व्यापकता के भाव के लिए आकाश या हरे-भरे विस्तृत मैदान की या समुद्र अथवा मरुस्थल की कल्पना करेंगे। पर ये सब भौतिक मूर्तियां हैं, जब तक आप सूक्ष्म को सूक्ष्म की ही तरह मन में नहीं ग्रहण कर सकते, तब तक इन आकारों के मार्ग से, इन भौतिक मूर्तियों के सहारे ही चलना होगा। फिर ये मूर्तियां चाहे दिमाग के भीतर हों या बाहर, उससे कोई अंतर नहीं पड़ता।
विवेकानंद जी व राजा का सम्वाद निम्नलिखित वीडियो में देखिए।
https://youtu.be/7VZZeR-0-Fg
मूर्ख विक्षिप्त व्यक्ति जिसे महानता का व्यामोह हो गया है कि जिस तरह वह भगवान की मूर्तियां जला रहा है, बस उतनी ही शिद्दत व महानता के साथ अपने घर के लोगों की तस्वीरों पर थूक कर आग लगा देने को बोलिये। आख़िर वो भी तो मात्र कागज़ का टुकड़ा ही तो है। उन फ़ोटो में उनके घरवाले थोड़े ही हैं। उसकी व उसके घरवालों की फ़ोटो लेकर कुत्ते की पॉटी साफ़ कीजिये, उस फ़ोटो में वो थोड़े ही है जो बुरा मानेगा।😇
🙏🏻इसे विस्तार से समझने के लिए प्रवचन माला में प्रकाशित पुस्तक -
📖 *पाठ पूजा का दर्शन समझें*
http://beta.literature.awgp.in/book/pathpooja_ka_darshan_bhee_samajhen/v1.28
निम्नलिखित अखण्डज्योति पत्रिका का आर्टिकल पढ़िये:-
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1958/May/v2.10
सूर्य विज्ञान, मन्त्र, यन्त्र व तंत्र विज्ञान का गुह्य ज्ञान-विज्ञान जानता है वह किसी भी निर्जीव वस्तु में चेतना प्रवाहित कर प्राणप्रतिष्ठा करके अभीष्ट सिद्धि कर सकता है।
जल, वायु, कोयला इत्यादि में विद्युत है और उससे घर में बल्ब जला कर रौशन किया जा सकता है। जिसने पुस्तकें पढ़ी है वह मानेगा और जो अनपढ़ होगा वो हँसी उड़ाएगा और बोलेगा मैं तो रोज पानी पीता हूँ मुझे तो कभी करंट नहीं लगा। रोज सांस लेता हूँ करंट नहीं लगा। रोज कोयला जलाता हूँ कभी करंट नहीं लगा। यह अंधविश्वास है कि जल, वायु और कोयले से अग्नि बन सकती है। इसी तरह अध्यात्म जगत के अनपढ़ को भी मूर्ति विज्ञान का महत्त्व समझ नहीं आता, वो भी इसे अंधविश्वास ही कहेंगे।😇
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- विवेकानंद जी व युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने एक बात को बल देते हुए कहा है कि *जब तक हम ब्रह्माण्ड में व्याप्त परमात्म तत्व को मन में नहीं ग्रहण कर पाते, तब तक हमें मूर्तियों के सहारे ही उपासना करनी होती है*, ठीक उसी प्रकार जैसे भाषा का जब तक हम पूर्णतया ज्ञान न हो जाये, भाषा सीखने के लिए कलम-कॉपी का उपयोग करना उचित है। मूर्तिपूजा को लेकर विवाद पैदा करना उचित नहीं, क्योंकि जो परमात्म चेतना कण कण में है वह मूर्ति के कणों में भी विद्यमान है। अपनी श्रद्धा-विश्वास को उस मूर्ति में आरोपित कर उस परमात्म तत्व को अनुभूत किया जाता है। जैसे पुत्र के लिए पिता की तस्वीर मात्र कागज़ का टुकड़ा नहीं होती, वह पिता को अनुभूत व याद करने का माध्यम होती है, वह उस तस्वीर को उतनी ही इज्जत सम्मान देता है जितना वो पिता को देता है, यही नवाब के मूर्ति पूजा के सम्बंध में शंका समाधान करते हुए विवेकानंद जी ने बताया था।
भक्त के लिए भी पुत्र की तरह भगवान की मूर्ति व साक्षात भगवान में फर्क नहीं। उसकी श्रद्धा भावना उतनी ही जुड़ी हुई है और वह उतना ही भक्ति से लाभान्वित भी होता रहता है।
स्वामी विवेकानंद का चिंतन..
यदि कोई कहे कि प्रतीक, अनुष्ठान और विधियां सदैव रखने की चीजें हैं, तो उसका यह कहना गलत है, पर यदि वह कहे कि इन प्रतीकों और अनुष्ठानों द्वारा विकास की निम्न श्रेणियों में आत्मोन्नति में सहायता मिलती है, तो उसका कथन ठीक है। पर हां, आत्मोन्नति का अर्थ बुद्धि का विकास नहीं। किसी मनुष्य की बुद्धि कितनी ही विशाल क्यों न हो, पर आध्यात्मिक क्षेत्र में संभव है वह एक बालक या उससे भी गया-बीता हो। इसी क्षण आप इसकी परीक्षा कर सकते हैं। हममें से कितने ऐसे हैं, जिन्होंने सर्वव्यापित्व की कल्पना की है? हालांकि हम लोगों को सर्वव्यापी ईश्वर में ही विश्वास करना सिखाया गया है। यदि आप प्रयत्न करेंगे तो सर्व-व्यापकता के भाव के लिए आकाश या हरे-भरे विस्तृत मैदान की या समुद्र अथवा मरुस्थल की कल्पना करेंगे। पर ये सब भौतिक मूर्तियां हैं, जब तक आप सूक्ष्म को सूक्ष्म की ही तरह मन में नहीं ग्रहण कर सकते, तब तक इन आकारों के मार्ग से, इन भौतिक मूर्तियों के सहारे ही चलना होगा। फिर ये मूर्तियां चाहे दिमाग के भीतर हों या बाहर, उससे कोई अंतर नहीं पड़ता।
विवेकानंद जी व राजा का सम्वाद निम्नलिखित वीडियो में देखिए।
https://youtu.be/7VZZeR-0-Fg
मूर्ख विक्षिप्त व्यक्ति जिसे महानता का व्यामोह हो गया है कि जिस तरह वह भगवान की मूर्तियां जला रहा है, बस उतनी ही शिद्दत व महानता के साथ अपने घर के लोगों की तस्वीरों पर थूक कर आग लगा देने को बोलिये। आख़िर वो भी तो मात्र कागज़ का टुकड़ा ही तो है। उन फ़ोटो में उनके घरवाले थोड़े ही हैं। उसकी व उसके घरवालों की फ़ोटो लेकर कुत्ते की पॉटी साफ़ कीजिये, उस फ़ोटो में वो थोड़े ही है जो बुरा मानेगा।😇
🙏🏻इसे विस्तार से समझने के लिए प्रवचन माला में प्रकाशित पुस्तक -
📖 *पाठ पूजा का दर्शन समझें*
http://beta.literature.awgp.in/book/pathpooja_ka_darshan_bhee_samajhen/v1.28
निम्नलिखित अखण्डज्योति पत्रिका का आर्टिकल पढ़िये:-
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1958/May/v2.10
सूर्य विज्ञान, मन्त्र, यन्त्र व तंत्र विज्ञान का गुह्य ज्ञान-विज्ञान जानता है वह किसी भी निर्जीव वस्तु में चेतना प्रवाहित कर प्राणप्रतिष्ठा करके अभीष्ट सिद्धि कर सकता है।
जल, वायु, कोयला इत्यादि में विद्युत है और उससे घर में बल्ब जला कर रौशन किया जा सकता है। जिसने पुस्तकें पढ़ी है वह मानेगा और जो अनपढ़ होगा वो हँसी उड़ाएगा और बोलेगा मैं तो रोज पानी पीता हूँ मुझे तो कभी करंट नहीं लगा। रोज सांस लेता हूँ करंट नहीं लगा। रोज कोयला जलाता हूँ कभी करंट नहीं लगा। यह अंधविश्वास है कि जल, वायु और कोयले से अग्नि बन सकती है। इसी तरह अध्यात्म जगत के अनपढ़ को भी मूर्ति विज्ञान का महत्त्व समझ नहीं आता, वो भी इसे अंधविश्वास ही कहेंगे।😇
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment