Sunday, 17 November 2019

*हे अनन्त यात्री मोह न करो

*हे अनन्त यात्री मोह न करो*

मोह करूँ मैं किसका,
मेरे मरने के बाद,
मेरे अपने ही मुझे चिता में जला देंगे।

गुरुर करूँ मैं किसका,
मेरे मरने के बाद,
मुझे छूने के बाद लोग हाथ धो लेंगे।

इकट्ठा क्यों करूँ धन इतना,
मेरे मरने के बाद,
साथ तो कुछ ले जा न सकूँगा।

मकान क्यों बड़ा करूँ इतना,
मेरे मरने के बाद,
यहाँ कुछ दिन भी तो न रह सकूँगा।

मुट्ठी भर राख की,
मेरी औक़ात है मेरे भाई,
भिखारी हो या राजा,
किसी की राख में,
कोई फ़र्क़ न ढूंढ सकेगा भाई।

तू ही बता किस बात का गुरुर करूँ?
तू ही बता किस बात का मोह करूँ?
शरीर से जुड़े रिश्ते शरीर के साथ जलेंगे,
मेरे अपने भी मुझे जलाने से न हिचकेंगे।

मेरा रात को कोई नाम लेना न पसन्द करेगा,
मेरी तस्वीर भी मेरे अपनों में रात को भय भरेगा,
मुझे भूलकर मेरे अपने जीवन में,
वैसे ही आगे बढ़ जाएंगे,
जैसे मैं ख़ुद मेरे माता पिता को भूलके,
सारी उम्र जिया भाई।

यह यात्रा है स्मरण रख भाई,
तू भी, किसी गुरुर में मत अकड़ भाई,
तू भी, किसी मोह में मत जकड़ भाई,
उस परमात्मा का स्मरण रख भाई,
उसकी जिसमें ख़ुशी हो वही कर भाई।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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