प्रश्न - *दी, मैं बहुत मेहनत करता हूँ अपेक्षित सफलता व ख़ुशी नहीं मिलती। क्या करूँ?*
उत्तर- आत्मीय भाई,
एक कहानी सुनो, एक कृशकाय दुर्बल बीमार लकड़हारा जंगल में एक तपलीन साधू के चरणों मे गिरकर रोने लगा। बोला मैं कितनी भी मेहनत करूँ कभी मुझे दो रोटी से अतिरिक्त दिन में नहीं मिलता। आधे पेट ही भूखा बैचैन अशांत सोता हूँ।
सन्त ने ध्यान लगाकर देवदूत से पूँछा कि इस लकड़हारे के जीवन मे संकट क्यों? तब देवदूत ने कहा यह पिछले जन्म का दस्यु डाकू है, उम्रभर भर लोगों को लूटा। इसके पाप के दण्ड स्वरूप इसे दो रोटी नित्य मिलती है जिससे यह कृशकाय ही रहे व पुरानी दस्यु प्रवृत्ति में लूटपाट न कर सके। यह 40 वर्ष अभी और ऐसे ही तड़फते हुए जियेगा।
सन्त ने सबकुछ उस लकड़हारे को बताया, उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने कहा महाराज देवदूत से यह प्रार्थना कर दें जो मुझे उम्रभर मिलने वाला है वो टोटल आज के ही दिन दे दें। मुझे पापों की प्रायश्चित का कोई मन्त्र भी दे दें। बाकी उम्र मैं तड़फते हुए प्रायश्चित कर लूंगा। सन्त की प्रार्थना देवदूत ने स्वीकार ली। सन्त ने उसे गायत्री मंत्र की दीक्षा दी। घर लौटते वक्त लकड़हारे को स्वर्णमुद्रा से भरा एक लोटा मिला।
उसने समस्त पैसे से घी, सब्जी, गुड़ व आटा ख़रीदा। उसने सोचा पिछले जन्म के कुकर्म मैं पूरे तो मिटा नहीं सकता कुछ तो मिटा लूँ। पहले छीना था आज जो है वो सब दान करूंगा।
वो भगवती दुर्गा का भक्त था, अतः भगवती भोजनालय शुरू कर दिया, नित्य मन्त्र जपने लगा। जितने भूखे नङ्गे लोग थे, जितने साधु संत थे सबको न्योता दिया व भोजन प्रेम से करवाया, खुद भी पेटभर के खाकर चैन से सो गया। उसके पास कुल तीन दिन के लंगर का इंतज़ाम था। अतः जंगल गया लकड़ी काटी व शहर बेंच के जो पैसा मिला उससे भी सामान खरीद के पुनः लंगर किया और पेट भर के खाया। अब स्वस्थ शरीर हो गया तो ज्यादा लकड़ी काटता और बेंचता। फिर लकड़ी के खिलौने बना बना कर बेंचने लगा और शाम को लंगर लगाने लगा, अब धन होने से बीमारों का इलाज करवाता, प्रत्येक सप्ताह यज्ञ भी करता। इस तरह नित्य करते करते 6 वर्ष बीत गए।
एक बार वही जंगल वाले सन्त तीर्थयात्रा में डेढ़ सौ शिष्यों के साथ कही जा रहे थे। उन्हें भी एक लकड़ी के खिलौने बेंचने वाले सेठ के लंगर का न्योता आया। सन्त व उनके डेढ़ सौ शिष्यों ने भोजन किया। जब वो चलने को हुए तो सेठ ने पैर छुआ तो सन्त उसे पहचान नहीं पाए। लेकिन व लकड़हारा सेठ पहचान गया, उसने सन्त को धन्यवाद देते हुए समस्त कथानक बताया।
तब सन्त पुनः ध्यानस्थ हुए व देवदूत से पूँछा ऐसे कैसे हो गया? आपने तो इसे तड़फ तड़फ के मरने व अधपेट ही सोने का दण्ड दिया था। यह तो स्वस्थ है व धनी भी हो गया। तब देवदूत ने कहा, इसने अपनी किस्मत का अनाज दूसरे जरूरतमंदों को बांट दिया, दूसरों की भूख मिटाई। दुसरो को खुशियां बांटने लगा। बीमारों की सेवा करने लगा। पिछले जन्म में जितनो को लूट कर बद्दुआ ली थी, उससे कई गुना अधिक इस जन्म में दुआ कमा ली। अब जब यह देवता बन गया तो तन, मन, धन व सम्बन्ध चारो में बरक्कत हो गयी। अब यह बचे हुए जीवन में सुखी ही रहेगा क्योंकि यह देवता बन गया। जो नर से नारायण बनेगा उसको सौभाग्य लक्ष्मी जी की कृपा अवश्य मिलेगी।
भाई, जब हमारे प्रारब्ध से दुःख मिलेगा तो तन, मन, धन व सम्बन्ध को दुःखी व प्रताड़ित करेगा। इसी तरह जब पुण्यफ़ल मिलेगा तो तन, मन, धन व सम्बन्ध को सुखी व सफल बनाएगा।
स्वयं से प्रश्न करो कि क्या तुम अपनी कमाई का एक अंश (30 दिन की सैलरी में से कम से कम 1 दिन की सैलरी) दान करते हो। कोई श्रेष्ठ कार्य देवता बनकर निःस्वार्थ भाव से लोकहित करते हो? कितनी दुआएं कमाते हो?
यदि जीवन में दुआ नहीं कमाओगे तो खुशियां कैसे पाओगे? बस आज से अभी से भगवान के दोस्त बनने के लिए प्रयत्नशील हो जाओ। नर से नारायण बनने के लिए नित्य उपासना, साधना, आराधना, समयदान व अंशदान करो। यह क्रम एक वर्ष तक अपनाओ फ़िर एक वर्ष के बाद अपने अनुभव मुझसे शेयर करना। यदि तुम लाभान्वित हो जाओ देवता बनकर दुआ कमाने वाली इस विधिव्यवस्था से तो आगे लोगो को भी प्रेरित कर देना। मुझे यह स्कीम मेरी बहन *प्रज्ञा शुक्ला दी* ने बताई थी। यह स्कीम मैंने जीवन में अप्लाई किया और लाभान्वित हुई। कई सारे भाई बहनों को काउंसलिंग में और यज्ञ के दौरान बताया। जिन्होंने भी यह *नर से नारायण स्किम(विधिव्यवस्था) अपनाया* वो आज लाभान्वित हो रहे हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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