Tuesday, 5 November 2019

प्रश्न - *गर्भस्थ शिशु से पिता गर्भसंवाद कैसे करें व गर्भस्थ शिशु को संस्कारित करने में पिता का उत्तरदायित्व क्या है?*

प्रश्न - *गर्भस्थ शिशु से पिता गर्भसंवाद कैसे करें व गर्भस्थ शिशु को संस्कारित करने में पिता का उत्तरदायित्व क्या है?*

उत्तर- आत्मीय भाई, यह बात साइंटिफिकली सिद्ध हो चुकी है कि गर्भाधान, गर्भावस्था से लेकर बच्चे जन्मने के समय तक पति-पत्नी के हृदय में जिस प्रकार के विचार होते हैं, उनके हृदय और अंतर्चक्षु के सम्मुख जो चित्र होता है, भावी शिशु उन सबके प्रतिबिम्ब को लेकर जन्म लेता है । भगवान श्रीकृष्ण ने व्रतपरायण रहकर साधना-उपासना करके रुक्मणि से चारूदेष्ण, शम्भु जैसे सुन्दर, पराक्रमी पुत्र उत्पन्न किये । क्योंकि माता पेट में गर्भ धारण करती है और पिता मष्तिष्क में गर्भ धारण करता है। पिता कछुए की तरह गर्भ से जुड़ा होता है।  कछुआ जोड़ा अंडा धरती पर देकर मीलों दूर चले जाते हैं पर मष्तिकीय तरंग से शिशु को पोषित करते हैं और ठीक अंडों से बच्चे के निकलते वक्त उसके नज़दीक पहुंच जाते हैं।

इसीतरह पिता घर से दूर ऑफिस में हो या दूसरे शहर या देश में जॉब के काऱण हो, मष्तिकीय तरंगों से सन्तान को पोषण देता है। जिनके पिता यह भाव तरंग नहीं देते वो बच्चे मानसिक रूप से गर्भ से ही व्यथित रहते हैं।

किसी भी महल की नींव जितनी मजबूत होती है उतना ही मजबूत महल बनता है । शिशु को महान बनाने के लिए सबसे मजबूत नींव माता का गर्भ है और पिता का मष्तिष्क है, जहाँ से उसके नये जीवन की शुरुवात होती है । अपनी वैदिक संस्कृति में मानव-जीवन को सुसंस्कारित करने के लिए गर्भाधान से मृत्युपर्यन्त सोलह संस्कारों का विधान है । महर्षि चरक ने कहा है : ‘संस्कारो हि गुणान्तराधानमुच्यते’ अर्थात पहले से विद्यमान दुर्गुणों को हटाकर उनकी जगह सद्गुणों का आधान कर देने का नाम संस्कार है ।

गर्भ से ही संस्कार की आवश्यकता क्यों ?

कच्ची मिटटी के बनते हुए बर्तन पर जो चित्र खींचा जाता है, वह दृढ़ता से अंकित हो जाता है । इसी तरह मनुष्य के बचपन या गर्भ में स्थित रहने पर जो संस्कार डाला जाता है, वह दृढ हो जाता है । संस्कारों से ही बच्चे सद्गुणी, उच्च, विचारवान, सदाचारी, सत्यकर्मपरायण, आदर्शपूर्ण, साहसी एवं संयमी बनेगें । बच्चों के ऐसा बनने पर परिवार, देश तथा समाज भी ऐसा ही बनेगा किन्तु बच्चों के संस्कारहीन होने से वे इन सभीको दूषित करेंगें ।
आज बढ़ते जा रहे चोरी, व्यभिचार, कलह, वैर, आंतकवाद, युद्ध आदि के पीछे संस्कारहीनता ही प्रमुख कारण दिखाई देता है । इसलिए अपनी वैदिक संस्कृति में संतान पर जन्म के पूर्व व गर्भ से ही संस्कार कराने का विधान है ।

तो ऐसे में गर्भ में ही करें बच्चों को अच्छे संस्कारों से युक्त इतिहास इस बात का साक्षी है कि माता-पिता के अच्छे संस्कारों, उनके आचरणों, उनकी प्रेरणाओं का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है । भरत, बालक ध्रुव, अभिमन्यु, वीर शिवाजी, परम् पूज्य गुरुदेव आदि सभी के जीवन में माता-पिता के आदर्श आचरणों का प्रबल प्रभाव पड़ा ।

पिता के रूप में जिम्मेदारी बहुत बड़ी है, क्योंकि भावनात्मक कनेक्शन जोड़े रखना, माता को संतुलित भोजन देना व उच्च विचारों का पोषण देना पिता की जिम्मेदारी है।

नित्य गर्भ का स्पर्श करके उसे शुभ वचन बोलना, घर से निकलते वक्त बोलकर जाना पापा ऑफिस जा रहे हैं, घर आकर उसे सूचित करना पापा आ गए हैं। रात को गर्भस्थ को कोई न कोई अच्छा आर्टिकल व महापुरुष की जीवनी सुनाना। जैसा गर्भस्थ को बनाना चाहते हैं उस सम्बन्ध में बातें करना। बच्चे को सुबह सुप्रभात-आपका दिन शुभ हो कहना, और नित्य रात को सोते समय शुभरात्रि-आप अच्छी चैन की नींद सोये कहना चाहिए।

माता-पिता दोनों को गर्भावस्था में रेप, लूटपाट, मारपीट, हिंसक, गन्दी राजनीति वाली, किसी डॉन पर बनी फिल्म व सीरियल नहीं देखने चाहिए।

आप दोनों के सुंदर विचार व चिंतन बालक के सुंदर मन का निर्माण करेंगे। अच्छे अच्छे चित्र व कल्पनायें उसके मन को विस्तार देंगी।

यूट्यूब पर सुंदर घूमने की दर्शनीय तीर्थ व स्थान देखें। अकबर बीरबल - तेनालीराम की कहानियां पढ़े। बुद्धि कुशलता के लिए हनुमानजी का जीवन चरित्र पढ़े क्यों हनुमानजी सदा सफल रहे। वीर शिवाजी, अर्जुन, अभिमन्यु, महाराणा प्रताप, लक्ष्मीबाई इत्यादि की कहानियां बोलते हुए बच्चे के समक्ष पढ़े। प्रज्ञा पुराण की तीनों खण्ड, चेतना की शिखरयात्रा, रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, योगिकथामृतम, सदा सफल हनुमान, प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशलं, व्यवस्था बुद्धि की गरिमा, सफलता के सात सूत्र साधन इत्यादि पुस्तकों को पढ़कर गर्भस्थ को सुनाइये। ध्यान रहे उस वक्त माता जगी हुई व चैतन्य होनी चाहिए। क्योंकि माता के कर्ण से ही बातें शिशु के कर्ण तक पहुंचेंगी।

नित्य एक माला गायत्री की गर्भस्थ शिशु के लिए जपिये और हाथ में जल लेकर ज़ोर से गायत्री मंत्र बोलते हुए माता के गर्भ में लगा के उसका पुण्य गर्भस्थ बच्चे को दे दें।

उससे बोलिये आप कन्या है या पुत्र, जो भी हैं हम आपके पिता आपको बहुत प्यार करते हैं। हम आपका इंतजार कर रहे हैं अपने नन्हे कदमो से हमारे जीवन को खुशियों से भर दो। हम आपके जीवन को खुशियों से भर देंगे।

🙏🏻पिता बनने का महान उत्तरदायित्व निभाइये🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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