Monday 11 November 2019

प्रश्न - *मृतसंजीवनी मन्त्र रोगनिवारण के लिए करना है, इस पर मार्गदर्शन कीजिये*

प्रश्न - *मृतसंजीवनी मन्त्र रोगनिवारण के लिए करना है, इस पर मार्गदर्शन कीजिये*

उत्तर- मृतसंजीवनी पूर्ण तभी बनता है, जब उसमें मृत्युन्जय मन्त्र + गायत्री मंत्र + महामृत्युंजय मंत्र के सभी शब्द मौजूद हों।

शास्त्रों में,पुराणों में और हिन्दू धर्म में भी दो महामंत्र गायत्री मंत्र और मृत्युंजय मंत्र का बहुत ही ज्यादा महत्त्व है| इन दोनों ही मंत्रो को बहुत बड़े मन्त्र माना जाता है, जो आपको सभी संकटों से मुक्त कर सकारात्मकता प्राणऊर्जा से भर देते है| लेकिन भारतीय शास्त्रों में ऐसे मन्त्र का उल्लेख भी है, जो इन दोनों ही मन्त्रों से शक्तिशाली है क्योंकि यह मंत्र गायत्री और महामृत्युंजय मंत्र दोनों से मिलकर बना है।  कहते है की इस मंत्र से मृत व्यक्ति को भी जीवित किया जा सकता है अर्थात इस मंत्र के सही जाप से बड़े से बड़े रोग और संकट से मुक्ति पाई जा सकती है। इस मंत्र का नाम है मृत संजीवनी मंत्र|

इंटरनेट में आपको कई तरह से मृत संजीवनी मन्त्र मिलेगा, इससे कन्फ्यूज़ न हो। गायत्री मंत्र व महामृत्युंजय मंत्र का कुछ जगह आंशिक मिलन करवा के जपते हैं क्योंकि सभी कठिन मन्त्र जप नहीं पाते।

*पूर्ण मृतसंजीवनी मन्त्र* -

*ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ त्र्यंबकं यजामहे ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान ऊँ धियो योन: प्रचोदयात ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ*

*संक्षिप्त मृत संजीवनी मन्त्र* -

*ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व:*
*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*
*ॐ स्व: भुव: भू: ऊँ स: जूं  हौं ऊँ*

जप से पूर्व गुरु आह्वाहन जरूर करें।
षट कर्म व घी का दीपक जलाएं।
जप घर के पूजन गृह या शिव मंदिर में ही करें।
जप के दौरान ब्रह्मचर्य पालन अनिवार्य है।
जप के दौरान स्वयं बनाया भोजन करें तो उत्तम है।
जप के बाद शांतिपाठ करके उठें।
मन्त्र उच्चारण शुद्ध हो यह ध्यान रखें।
मन्त्र होठ हिले मगर शब्द उच्चारण कोई सुन न सके ऐसा उपांशु जप करें।
जप में रुद्राक्ष की माला का ही प्रयोग करें। यदि रुद्राक्ष में हो तो तुलसी की माला का प्रयोग करें।
जप ऊनी कम्बल के आसन में पूर्व या उत्तर दिशा में करें।
शांतिपाठ अवश्य करें।

यदि अस्पताल जाना पड़े तो वहां मानसिक गुरु आह्वाहन करके मात्र मृतसंजीवनी मन्त्र का लेखन करें या मौन मानसिक जप करें।


*भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।*
*याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥*

*भावार्थ:*-श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥

श्रद्धा-विश्वास के बिना कोई भी मन्त्र फ़लित नहीं होता। अतः श्रद्धा-विश्वास से उपरोक्त में से पूर्ण या संक्षिप्त में से जो जप सकें, जप करें। भगवान शंकर व माता गायत्री की कृपा बनी रहेगी। रोगों से मुक्ति मिलेगी।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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