प्रश्न - *दी, क्या यज्ञ में मन्त्र जपना जरूरी है? क्या मन्त्र आहुति करने हेतु कोई निश्चित क्रम में ही आहुति होमना चाहिए? कुछ लोग कहते हैं कि अंतिम आहुति महामृत्युंजय मंत्र ही होनी चाहिए।*
उत्तर- आत्मीय भाई,
यज्ञ में मन्त्र विज्ञान की विशिष्ट भूमिका है। बिना मन्त्र यज्ञ नहीं हो सकता। शब्द घन, द्रव तथा हवा में चक्रमण करता है जिसे तरंग कहते हैं। शब्द वेग 1100 फुट प्रति सेकंड का होता है। स्थूल शब्द को सूक्ष्मप्रकाश में परिवर्तित किया जा सकता है। जैसा मन्त्र के शब्द, ध्वनि व भाव होंगे वैसा ही अपेक्षित लाभ मिलेगा।
मंत्रो में चार प्रकार की शक्ति होती है:-
1- प्रामाण्य शक्ति - कर्तव्य बोध जागरण
2- फल प्रदान शक्ति- सकाम यज्ञ, मनोकामना पूर्ति, रोगोपचार इत्यादि
3- बहुलीकरण शक्ति - परमाणुओं में विष्फोट कर प्रचण्ड शक्ति का उत्पादन
4- आयातयामता शक्ति -अभिमंत्रित करने की शक्ति व उपयोग
मन्त्रशक्ति का विस्तृतिकरण करने के लिए एम्प्लीफ़ायर-ट्रांसमीटर दोनों कार्य यज्ञाग्नि द्वारा सम्पन्न होता है।
अपेक्षित लाभ के लिए यज्ञ में मन्त्र का सही ढंग से व लय में उच्चारण अनिवार्य है।
गायत्री मंत्र में हज़ार परमाणु बमों से भी अधिक शक्ति है, अश्वमेध यज्ञ में इसी शक्ति के कम्पन को यज्ञ द्वारा "नाभिकीय रसायन" बहुत दूर प्रज्ञात ब्रह्माण्ड तक व सृष्टि के कण कण तक पहुंचाने में समर्थ होता है। मानव जीन्स को भी यज्ञ से अपेक्षित प्रभावित किया जा सकता है।
विज्ञान भी सर्वसम्मति से स्वीकार करता है कि शब्द शक्ति से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक लहरें उतपन्न होती है, जो स्नायु प्रवाह पर वांछित प्रभाव डालकर उनकी सक्रियता बढ़ाती है और साथ साथ ही विकृत चिंतन को रोकती है व मनोविकारों को मिटाती है। पृथ्वी द्वारा छोड़ी चुम्बकीय विद्युत धाराओं को *शूमैंन्स रेजोनेंस* व मानवीय मष्तिष्क द्वारा छोड़ी चुम्बकीय विद्युत धाराओं को *ब्रेन वेव्स की तरंग* कहते हैं, गायत्री मंत्र शक्ति के कम्पन व यज्ञ से दोनों ही चेतन धाराओं को *इंटयून* करके उन्हें बड़े विस्तार से समग्र ब्रह्माण्ड में फैला देते हैं। प्राणशक्ति को प्रवाहित करने को उत्तरदायी *सिरोटोनिन* हार्मोन और *पीनियल ग्रन्थि* को गायत्री मंत्र व यज्ञ प्रभावित करके मानव देह में प्राण संचार की ऊर्जा बढा देता है, जो मनः सक्रियता और काया की स्फूर्ति के रूप में परिलक्षित होती है।
शब्द शक्ति का विष्फोट मन्त्र शक्ति की रहस्यमय प्रक्रिया है। परमाणु विस्फोट से उतपन्न होने वाला भयावह शक्ति की सबको जानकारी है, लेकिन मन्त्र के शब्द कम्पन कटकों का विष्फोट भी परमाणुओं के विखंडन की तरह ही हो सकता है यह बहुत कम लोगो को ही पता है। यह जानकारी तत्वदर्शी मनीषी ऋषि मुनियों को थी, इसलिए उन्होंने यज्ञ में उपात्मक और होमात्मक इत्यादि में कर्मकांड में मन्त्र की शब्द शक्ति से अभीष्ट स्फोट करवाया। मांत्रिक का कार्यक्षेत्र आकाश तत्व रहता है, क्योंकि शब्द वस्तुतः आकाश का ही विषय है। मन्त्र में दो वृत्त बनते हैं, पहला भाव वृत्त व दूसरा ध्वनि वृत्त बनता है। यह वृत्त किसी भी प्रकृति के तत्व व ग्रह नक्षत्रों तक को प्रभावित कर अभीष्ट सिद्ध करने की क्षमता रखते हैं। मन्त्र के स्फोट से उतपन्न भाव वृत्त मनुष्य के अंतरंग वृत्तियों को और शब्द ध्वनि वृत्त बहिरंग प्रवृत्तियों को आच्छादित करके मनचाहा अभीष्ट स्तर पर परिवर्तन कर सकती है।
मन्त्र और यज्ञ के प्रभाव को विस्तार से समझने के लिए मनोविज्ञान, वायु विज्ञान, आकाश विज्ञान, शब्द विज्ञान व विद्युत विज्ञान की सहायता लेनी पड़ेगी।
यज्ञ पर प्रकाशित दो वांग्मय 📖 *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान(25)*, *यज्ञ एक समग्र उपचार(26)* और *कर्मकांड भाष्कर* के अनुसार कोई भी पर्व पूजन हो या दैनिक साधना के दौरान यज्ञ हो या भेषज रोगोपचार के लिए यज्ञ हो। उसमें कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए:-
1- षट्कर्म, देव आह्वाहन से रक्षाविधान तक का उपक्रम जो कर्मकांड में वर्णित है सभी यज्ञ में समान रूप से शुरू में प्रथम क्रम में होगा।
2- यदि पर्व पूजन है तो पर्वपूजन के मन्त्र व सम्बन्धित देवता का आह्वान मन्त्र के साथ द्वितीय क्रम में होगा।
3- कोई सँस्कार इत्यादि है तो वह तृतीय क्रम में होगा।
4- अब यहां अग्निस्थापना से लेकर 7 आज्याहुति तक क्रम होगा।
5- यज्ञ में मन्त्र आहुति के क्रम की शुरुआत गायत्रीमंत्र से करें, जो भी जितनी संख्या में करना हो करें। यदि अकेले आहुति दे रहे हैं तो आहुति जितना मन्त्र बोलकर आहुति दी उतनी ही गिनी जाएगी व उतने का पुण्य लाभ मिलेगा। उदाहरण 11 आहुति दी तो 11 आहुति ही गिनी जाएगी। समूह में 10 लोग मिलकर यज्ञ में आहुति दे रहे हैं तो 10 लोगों में गुणन 11 मन्त्र आहुति का होगा। व प्रत्येक यज्ञ में सम्मिलित व्यक्ति को 110 आहुति के यज्ञ का पुण्य मिलेगा। यही नियम है।
6- मन्त्र आहुति में अगले क्रम में विभिन्न देवता के विभिन्न मन्त्र किसी भी क्रम में आगे पीछे जपकर आहुति दी जा सकती है।
7- मन्त्र आहुति में महामृत्युंजय मंत्र की आहुति शुरू में भी दे सकते हैं और अंत मे भी। इससे यज्ञ के नियम व लाभ में कोई अंतर नहीं पड़ेगा। किसी भी पुस्तक में गुरुदेव ने नियम नहीं बनाया है कि महामृत्युंजय मन्त्र अंत मे ही जपा जाएगा। लोगों की धारणा अंत में महामृत्युंजय मंत्र की इसलिए बनी हुई है क्योंकि कर्मकांड भाष्कर के दैनिक सरल हवन विधि में दिया है। लेकीन उन्हें यह समझना होगा वहाँ तो मात्र दो ही मन्त्र हैं गायत्री व महामृत्युंजय मंत्र। यदि गायत्रीमंत्र आहुति से पहले भी किसी अन्य देवी देवता के मन्त्र की आहुति देते हैं तो भी गायत्री माता नाराज नहीं होती।
8- आपने यज्ञ विधि में एक शब्द पढ़ा होगा - *एतत्कर्म प्रधान - श्री गायत्री देव्यै: नमः*। इस यज्ञ की मुख्य देवी गायत्री हैं इसलिए यज्ञ में प्रथम मन्त्र आहुति में हमने गायत्रीमंत्र लिया। यदि मान लो शिवरात्रि पर्व पर यज्ञ के मुख्य देवता शिव हैं - *एतत्कर्म प्रधान - महादेवाय नमः* तो मन्त्र आहुति का प्रारम्भ महामृत्युंजय मंत्र से होगा। या मान लो जन्माष्टमी है - *एतत्कर्म प्रधान - वासुदेवाय नमः* हैं तो मन्त्र आहुति का प्रारम्भ श्रीकृष्ण जी के मंत्र से होगा।
9- मन्त्र आहुति के बाद बाकी के स्विष्टकृत होम से लेकर विसर्जन तक कर्मकांड भाष्कर के अनुसार होगा।
10- आरती उसी देवता या देवी की यज्ञ के अंत मे होती है जो यज्ञ का प्रधान देवता शुरू में - *एतत्कर्म प्रधान* द्वारा घोषित हुआ था।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय भाई,
यज्ञ में मन्त्र विज्ञान की विशिष्ट भूमिका है। बिना मन्त्र यज्ञ नहीं हो सकता। शब्द घन, द्रव तथा हवा में चक्रमण करता है जिसे तरंग कहते हैं। शब्द वेग 1100 फुट प्रति सेकंड का होता है। स्थूल शब्द को सूक्ष्मप्रकाश में परिवर्तित किया जा सकता है। जैसा मन्त्र के शब्द, ध्वनि व भाव होंगे वैसा ही अपेक्षित लाभ मिलेगा।
मंत्रो में चार प्रकार की शक्ति होती है:-
1- प्रामाण्य शक्ति - कर्तव्य बोध जागरण
2- फल प्रदान शक्ति- सकाम यज्ञ, मनोकामना पूर्ति, रोगोपचार इत्यादि
3- बहुलीकरण शक्ति - परमाणुओं में विष्फोट कर प्रचण्ड शक्ति का उत्पादन
4- आयातयामता शक्ति -अभिमंत्रित करने की शक्ति व उपयोग
मन्त्रशक्ति का विस्तृतिकरण करने के लिए एम्प्लीफ़ायर-ट्रांसमीटर दोनों कार्य यज्ञाग्नि द्वारा सम्पन्न होता है।
अपेक्षित लाभ के लिए यज्ञ में मन्त्र का सही ढंग से व लय में उच्चारण अनिवार्य है।
गायत्री मंत्र में हज़ार परमाणु बमों से भी अधिक शक्ति है, अश्वमेध यज्ञ में इसी शक्ति के कम्पन को यज्ञ द्वारा "नाभिकीय रसायन" बहुत दूर प्रज्ञात ब्रह्माण्ड तक व सृष्टि के कण कण तक पहुंचाने में समर्थ होता है। मानव जीन्स को भी यज्ञ से अपेक्षित प्रभावित किया जा सकता है।
विज्ञान भी सर्वसम्मति से स्वीकार करता है कि शब्द शक्ति से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक लहरें उतपन्न होती है, जो स्नायु प्रवाह पर वांछित प्रभाव डालकर उनकी सक्रियता बढ़ाती है और साथ साथ ही विकृत चिंतन को रोकती है व मनोविकारों को मिटाती है। पृथ्वी द्वारा छोड़ी चुम्बकीय विद्युत धाराओं को *शूमैंन्स रेजोनेंस* व मानवीय मष्तिष्क द्वारा छोड़ी चुम्बकीय विद्युत धाराओं को *ब्रेन वेव्स की तरंग* कहते हैं, गायत्री मंत्र शक्ति के कम्पन व यज्ञ से दोनों ही चेतन धाराओं को *इंटयून* करके उन्हें बड़े विस्तार से समग्र ब्रह्माण्ड में फैला देते हैं। प्राणशक्ति को प्रवाहित करने को उत्तरदायी *सिरोटोनिन* हार्मोन और *पीनियल ग्रन्थि* को गायत्री मंत्र व यज्ञ प्रभावित करके मानव देह में प्राण संचार की ऊर्जा बढा देता है, जो मनः सक्रियता और काया की स्फूर्ति के रूप में परिलक्षित होती है।
शब्द शक्ति का विष्फोट मन्त्र शक्ति की रहस्यमय प्रक्रिया है। परमाणु विस्फोट से उतपन्न होने वाला भयावह शक्ति की सबको जानकारी है, लेकिन मन्त्र के शब्द कम्पन कटकों का विष्फोट भी परमाणुओं के विखंडन की तरह ही हो सकता है यह बहुत कम लोगो को ही पता है। यह जानकारी तत्वदर्शी मनीषी ऋषि मुनियों को थी, इसलिए उन्होंने यज्ञ में उपात्मक और होमात्मक इत्यादि में कर्मकांड में मन्त्र की शब्द शक्ति से अभीष्ट स्फोट करवाया। मांत्रिक का कार्यक्षेत्र आकाश तत्व रहता है, क्योंकि शब्द वस्तुतः आकाश का ही विषय है। मन्त्र में दो वृत्त बनते हैं, पहला भाव वृत्त व दूसरा ध्वनि वृत्त बनता है। यह वृत्त किसी भी प्रकृति के तत्व व ग्रह नक्षत्रों तक को प्रभावित कर अभीष्ट सिद्ध करने की क्षमता रखते हैं। मन्त्र के स्फोट से उतपन्न भाव वृत्त मनुष्य के अंतरंग वृत्तियों को और शब्द ध्वनि वृत्त बहिरंग प्रवृत्तियों को आच्छादित करके मनचाहा अभीष्ट स्तर पर परिवर्तन कर सकती है।
मन्त्र और यज्ञ के प्रभाव को विस्तार से समझने के लिए मनोविज्ञान, वायु विज्ञान, आकाश विज्ञान, शब्द विज्ञान व विद्युत विज्ञान की सहायता लेनी पड़ेगी।
यज्ञ पर प्रकाशित दो वांग्मय 📖 *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान(25)*, *यज्ञ एक समग्र उपचार(26)* और *कर्मकांड भाष्कर* के अनुसार कोई भी पर्व पूजन हो या दैनिक साधना के दौरान यज्ञ हो या भेषज रोगोपचार के लिए यज्ञ हो। उसमें कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए:-
1- षट्कर्म, देव आह्वाहन से रक्षाविधान तक का उपक्रम जो कर्मकांड में वर्णित है सभी यज्ञ में समान रूप से शुरू में प्रथम क्रम में होगा।
2- यदि पर्व पूजन है तो पर्वपूजन के मन्त्र व सम्बन्धित देवता का आह्वान मन्त्र के साथ द्वितीय क्रम में होगा।
3- कोई सँस्कार इत्यादि है तो वह तृतीय क्रम में होगा।
4- अब यहां अग्निस्थापना से लेकर 7 आज्याहुति तक क्रम होगा।
5- यज्ञ में मन्त्र आहुति के क्रम की शुरुआत गायत्रीमंत्र से करें, जो भी जितनी संख्या में करना हो करें। यदि अकेले आहुति दे रहे हैं तो आहुति जितना मन्त्र बोलकर आहुति दी उतनी ही गिनी जाएगी व उतने का पुण्य लाभ मिलेगा। उदाहरण 11 आहुति दी तो 11 आहुति ही गिनी जाएगी। समूह में 10 लोग मिलकर यज्ञ में आहुति दे रहे हैं तो 10 लोगों में गुणन 11 मन्त्र आहुति का होगा। व प्रत्येक यज्ञ में सम्मिलित व्यक्ति को 110 आहुति के यज्ञ का पुण्य मिलेगा। यही नियम है।
6- मन्त्र आहुति में अगले क्रम में विभिन्न देवता के विभिन्न मन्त्र किसी भी क्रम में आगे पीछे जपकर आहुति दी जा सकती है।
7- मन्त्र आहुति में महामृत्युंजय मंत्र की आहुति शुरू में भी दे सकते हैं और अंत मे भी। इससे यज्ञ के नियम व लाभ में कोई अंतर नहीं पड़ेगा। किसी भी पुस्तक में गुरुदेव ने नियम नहीं बनाया है कि महामृत्युंजय मन्त्र अंत मे ही जपा जाएगा। लोगों की धारणा अंत में महामृत्युंजय मंत्र की इसलिए बनी हुई है क्योंकि कर्मकांड भाष्कर के दैनिक सरल हवन विधि में दिया है। लेकीन उन्हें यह समझना होगा वहाँ तो मात्र दो ही मन्त्र हैं गायत्री व महामृत्युंजय मंत्र। यदि गायत्रीमंत्र आहुति से पहले भी किसी अन्य देवी देवता के मन्त्र की आहुति देते हैं तो भी गायत्री माता नाराज नहीं होती।
8- आपने यज्ञ विधि में एक शब्द पढ़ा होगा - *एतत्कर्म प्रधान - श्री गायत्री देव्यै: नमः*। इस यज्ञ की मुख्य देवी गायत्री हैं इसलिए यज्ञ में प्रथम मन्त्र आहुति में हमने गायत्रीमंत्र लिया। यदि मान लो शिवरात्रि पर्व पर यज्ञ के मुख्य देवता शिव हैं - *एतत्कर्म प्रधान - महादेवाय नमः* तो मन्त्र आहुति का प्रारम्भ महामृत्युंजय मंत्र से होगा। या मान लो जन्माष्टमी है - *एतत्कर्म प्रधान - वासुदेवाय नमः* हैं तो मन्त्र आहुति का प्रारम्भ श्रीकृष्ण जी के मंत्र से होगा।
9- मन्त्र आहुति के बाद बाकी के स्विष्टकृत होम से लेकर विसर्जन तक कर्मकांड भाष्कर के अनुसार होगा।
10- आरती उसी देवता या देवी की यज्ञ के अंत मे होती है जो यज्ञ का प्रधान देवता शुरू में - *एतत्कर्म प्रधान* द्वारा घोषित हुआ था।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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