प्रश्न - *दी, बच्चों के अंदर शुभ-सँस्कार बचपन से कैसे आरोपित करें? सब कहते हैं अच्छे सँस्कार दो, मगर सँस्कार देना कैसे है कोई नहीं बताता। मेरी बेटी 3 माह की है और मुझे उसमें शुभ सँस्कार आरोपित करना है, मैं चैतन्य तो हूँ मग़र करूँ कैसे समझ नहीं आ रहा। कृपया सरलता से बच्चे के मष्तिष्क में सँस्कार प्रवेश कराने की मनोवैज्ञानिक तकनीक समझा दीजिये।*
उत्तर - आत्मीय बहन, आज तो एक जागरूक माता ने सबसे कठिन व सबसे जरूरी प्रश्न पूँछा है। चलिए पहले विज्ञापन एजेंसी की मनोवैज्ञानिक तकनीक समझते हैं कि वो हमारे दिमाग को किस तरह प्रोग्राम करते हैं कि हम उनके प्रोडक्ट खरीदने पर विवश हो जाते हैं।
*हमारे दिमाग़ में तीन स्तर के नेटवर्क कार्य करते हैं*:-
1- चौकीदार नेटवर्क(भावनाओं-इमोशनल से प्रेरित)
2- गूगल सर्च की तरह जानकारी इकट्ठा करने वाला नेटवर्क
3- निर्णय लेने वाला नेटवर्क (बुद्धिकुशलता, सही-गलत का सटीक लॉजिक बहुत कुछ)
विज्ञापन एजेंसी आपके इमोशन से खेलती हैं, वह त्योहारों में विज्ञापन इमोशनल बनाकर प्रोडक्ट खरीदने को प्रेरित करती हैं। लड़कों के समस्त प्रोडक्ट घड़ी से लेकर गाड़ी तक, डीओ से लेकर टाई-सूट तक उसमें लड़की जरूर दिखाते हैं। लड़की के प्रति इमोशन एक मछली का चारा है, फ़िर इस चारे से पुरुषों का दिमाग़ पकड़ते हैं वह प्रोडक्ट के जाल में उन्हें फंसा देते हैं। इसी तरह लड़कियों की ख्वाइशों सुंदर बनने की, जरूरतों उच्च पद, पुरुष मॉडल का मछली का चारा डाला जाता है। जैसे ही लड़की का दिमाग़ कांटे में फंसा प्रोडक्ट के जाल में लड़कियां फंस जाती है। इसे यह समझिए कि कलेक्टर ऑफिस में कलेक्टर के नौकर को पकड़ना उसे सेट करवा के अपना कार्य करवाना।
गुरुकुल में धर्मगुरु भी इसी पद्धति से शिष्यों के अंदर विचार प्रवेश करवाते हैं, दुनियाँ के आतंकी भी इसी प्रक्रिया को अपनाते हैं,मोटिवेशनल स्पीकर भी यही प्रक्रिया से जीवन बदलते हैं। क्योंकि मार्ग सबसे सरल यही है।
इसे कहते हैं *विचारों के सम्प्रेषण की कला* अर्थात *अपनी बात दूसरे के दिमाग़ में डालने की कला* । अतः डियर आपको भी बच्चे के इमोशन से ज्ञान पहुंचाने की कला में माहिर होना होगा। उसको पहले रुचिकर कुछ बता के ध्यान आकृष्ट करके फिर ज्ञान का प्रवेश उसके दिमाग मे करवाना होगा।
अब आप एक आधुनिक माता है, जिसके पास आधुनिक टेक्नोलॉजी व प्राचीन दिव्य संस्कारों का ख़ज़ाना है।
*सम्प्रेषण की कला से शुभ सँस्कार बाल मन में प्रवेश करवाने की मनोवैज्ञानिक तकनीक*
यह स्पष्ट है कि विज्ञापन प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कहता है, उसी तरह शुभ सँस्कार भी प्रतीकों के माध्यम से दीजिये। आप कभी हास्य के माध्यम से, कभी लय के माध्यम से, कभी -कभी भय उत्पन्न करके भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करिये। विज्ञापन की तरह संस्कारों की कलात्मकता एवं सृजनात्मकता इस बात में निहित है कि यह परिस्थितियों को नये नजरिये से देखने की कोशिश करते हुए शुभ सँस्कार परोसिये।
जिस तरह एक कवि बिम्बों के माध्यम से अपनी भावनाऒं को अभिव्यक्त करता है। उसी प्रकार शुभ संस्कारों को भी प्रतिकात्मक रूप से मानवीय इच्छाओं, भावनाओं एवं कामनाओं का स्पर्श करता है।
*पहले यह तय कीजिये कि किस उम्र वर्ग के बच्चे को आप सम्बोधित कर रहे हैं?*
1- अपेक्षित उम्र अनुसार भाषा एवं शैली का चयन कीजिये।
2- कौन से शब्द हैं, जो सुझाव दे रहे हैं? उसको दोहरा दीजिये।
3- कल्पनाओं में सँस्कार की चित्र एवं रंग व्यवस्था कैसी है?
4- ये चित्र एवं रगं क्या अभिव्यक्त करना चाहते है?
5- कहानी, कविता, प्रेरक प्रसंग, नाटक, एक्टिविटी, महापुरुषों की जीवनियां इत्यादि रुचिकर तरीक़े से प्रस्तुत करें।
6- ध्वनि, लय एवं प्रकाश की कलात्मकता एवं उनमें निहित अर्थ को इस तरह प्रस्तुत कीजिये कि बच्चे उसे ग्रहण करने में रुचि दिखाएं।
7- स्वास्थ्यकर भोजन भी बच्चे को देने से पहले स्वादिष्ट तरीक़े से बनाये व शानदार सजावट के साथ परोसें।
इस तरह आप विज्ञापन का अन्दाज समझने की कोशिश करेंगे तो संस्कारो को आरोपित करने की कला को भी समझ जाएंगे। सँस्कार ऐसे दीजिये कि भविष्य में आपके बच्चे को कोई बहका न पायें, अपितु अपने आसपास के परिदृश्य एवं मानव मन की आपके बच्चे में समझ गहरी हो। सही व गलत का निर्णय लेने हेतु बच्चा चैतन्य व जागरूक रहे।
सँस्कार सम्प्रेषण की एक संपूर्ण कला है व एक मनोवैज्ञानिक तकनीक है। इसपर कार्य कीजिये।
*वांग्मय 57 - मनस्विता प्रखरता और तेजस्विता* पढ़ो व रुचिकर कहानी सुनाने के तरीक़े से उन घटनाओं को अभी से नित्य बच्चे को सुनाओ। उसका अचेतन मन रजिस्टर करने लगेगा।
मिशन के प्रेरक गीत सुंदर व रूचिकर तरीक़े से उसे गाकर याद करवाओ।
दिमाग़ लगाओ और कोई सदवाक्य उसके समक्ष बार बार दोहराओ।
तुम माँ हो और जब तक बच्चा 5 वर्ष का नहीं हो जाता तबतक , तुम्हारा प्यार और स्नेह भरा स्पर्श ही काफी है बच्चे का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में और कहानियों कविताओं के माध्यम से उसके भीतर शुभ सँस्कार आरोपित कर सकते हो।
5 वर्ष से नित्य कठिनाई बढ़ेगी मग़र बिना हिम्मत हारे आप प्रयत्न रत रहें। बच्चे की पसन्द नापसंद रुचियों पर पैनी नज़र रखें और कुशल माली की तरह बच्चे के व्यक्तित्व से खरपतवार उखाड़ती रहें व शुभ सँस्कार आरोपित करती रहें।
पुस्तक - *बाल सँस्कार इस तरह चलाये व बाल निर्माण की कहानियां भी पढ़ लीजिये।*
मनुष्य जिस चीज़ का संकल्प लेता है वह उसे येन केन प्रकारेण हासिल कर लेता है। आपका शुभ सङ्कल्प आपको सफल अवश्य बनाएगा, आप अपने बच्चे को संस्कारी बनाने में सफल जरूर होंगी।
जो काम हम नित्य करते व उसके लिए चिंतन मनन करते हैं उसमें हम दक्ष हो जाते हैं। इसी तरह रोज सँस्कार देने के इस कार्य को करती रहोगी तो इसमें भी तुम दक्ष हो जाओगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, आज तो एक जागरूक माता ने सबसे कठिन व सबसे जरूरी प्रश्न पूँछा है। चलिए पहले विज्ञापन एजेंसी की मनोवैज्ञानिक तकनीक समझते हैं कि वो हमारे दिमाग को किस तरह प्रोग्राम करते हैं कि हम उनके प्रोडक्ट खरीदने पर विवश हो जाते हैं।
*हमारे दिमाग़ में तीन स्तर के नेटवर्क कार्य करते हैं*:-
1- चौकीदार नेटवर्क(भावनाओं-इमोशनल से प्रेरित)
2- गूगल सर्च की तरह जानकारी इकट्ठा करने वाला नेटवर्क
3- निर्णय लेने वाला नेटवर्क (बुद्धिकुशलता, सही-गलत का सटीक लॉजिक बहुत कुछ)
विज्ञापन एजेंसी आपके इमोशन से खेलती हैं, वह त्योहारों में विज्ञापन इमोशनल बनाकर प्रोडक्ट खरीदने को प्रेरित करती हैं। लड़कों के समस्त प्रोडक्ट घड़ी से लेकर गाड़ी तक, डीओ से लेकर टाई-सूट तक उसमें लड़की जरूर दिखाते हैं। लड़की के प्रति इमोशन एक मछली का चारा है, फ़िर इस चारे से पुरुषों का दिमाग़ पकड़ते हैं वह प्रोडक्ट के जाल में उन्हें फंसा देते हैं। इसी तरह लड़कियों की ख्वाइशों सुंदर बनने की, जरूरतों उच्च पद, पुरुष मॉडल का मछली का चारा डाला जाता है। जैसे ही लड़की का दिमाग़ कांटे में फंसा प्रोडक्ट के जाल में लड़कियां फंस जाती है। इसे यह समझिए कि कलेक्टर ऑफिस में कलेक्टर के नौकर को पकड़ना उसे सेट करवा के अपना कार्य करवाना।
गुरुकुल में धर्मगुरु भी इसी पद्धति से शिष्यों के अंदर विचार प्रवेश करवाते हैं, दुनियाँ के आतंकी भी इसी प्रक्रिया को अपनाते हैं,मोटिवेशनल स्पीकर भी यही प्रक्रिया से जीवन बदलते हैं। क्योंकि मार्ग सबसे सरल यही है।
इसे कहते हैं *विचारों के सम्प्रेषण की कला* अर्थात *अपनी बात दूसरे के दिमाग़ में डालने की कला* । अतः डियर आपको भी बच्चे के इमोशन से ज्ञान पहुंचाने की कला में माहिर होना होगा। उसको पहले रुचिकर कुछ बता के ध्यान आकृष्ट करके फिर ज्ञान का प्रवेश उसके दिमाग मे करवाना होगा।
अब आप एक आधुनिक माता है, जिसके पास आधुनिक टेक्नोलॉजी व प्राचीन दिव्य संस्कारों का ख़ज़ाना है।
*सम्प्रेषण की कला से शुभ सँस्कार बाल मन में प्रवेश करवाने की मनोवैज्ञानिक तकनीक*
यह स्पष्ट है कि विज्ञापन प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कहता है, उसी तरह शुभ सँस्कार भी प्रतीकों के माध्यम से दीजिये। आप कभी हास्य के माध्यम से, कभी लय के माध्यम से, कभी -कभी भय उत्पन्न करके भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करिये। विज्ञापन की तरह संस्कारों की कलात्मकता एवं सृजनात्मकता इस बात में निहित है कि यह परिस्थितियों को नये नजरिये से देखने की कोशिश करते हुए शुभ सँस्कार परोसिये।
जिस तरह एक कवि बिम्बों के माध्यम से अपनी भावनाऒं को अभिव्यक्त करता है। उसी प्रकार शुभ संस्कारों को भी प्रतिकात्मक रूप से मानवीय इच्छाओं, भावनाओं एवं कामनाओं का स्पर्श करता है।
*पहले यह तय कीजिये कि किस उम्र वर्ग के बच्चे को आप सम्बोधित कर रहे हैं?*
1- अपेक्षित उम्र अनुसार भाषा एवं शैली का चयन कीजिये।
2- कौन से शब्द हैं, जो सुझाव दे रहे हैं? उसको दोहरा दीजिये।
3- कल्पनाओं में सँस्कार की चित्र एवं रंग व्यवस्था कैसी है?
4- ये चित्र एवं रगं क्या अभिव्यक्त करना चाहते है?
5- कहानी, कविता, प्रेरक प्रसंग, नाटक, एक्टिविटी, महापुरुषों की जीवनियां इत्यादि रुचिकर तरीक़े से प्रस्तुत करें।
6- ध्वनि, लय एवं प्रकाश की कलात्मकता एवं उनमें निहित अर्थ को इस तरह प्रस्तुत कीजिये कि बच्चे उसे ग्रहण करने में रुचि दिखाएं।
7- स्वास्थ्यकर भोजन भी बच्चे को देने से पहले स्वादिष्ट तरीक़े से बनाये व शानदार सजावट के साथ परोसें।
इस तरह आप विज्ञापन का अन्दाज समझने की कोशिश करेंगे तो संस्कारो को आरोपित करने की कला को भी समझ जाएंगे। सँस्कार ऐसे दीजिये कि भविष्य में आपके बच्चे को कोई बहका न पायें, अपितु अपने आसपास के परिदृश्य एवं मानव मन की आपके बच्चे में समझ गहरी हो। सही व गलत का निर्णय लेने हेतु बच्चा चैतन्य व जागरूक रहे।
सँस्कार सम्प्रेषण की एक संपूर्ण कला है व एक मनोवैज्ञानिक तकनीक है। इसपर कार्य कीजिये।
*वांग्मय 57 - मनस्विता प्रखरता और तेजस्विता* पढ़ो व रुचिकर कहानी सुनाने के तरीक़े से उन घटनाओं को अभी से नित्य बच्चे को सुनाओ। उसका अचेतन मन रजिस्टर करने लगेगा।
मिशन के प्रेरक गीत सुंदर व रूचिकर तरीक़े से उसे गाकर याद करवाओ।
दिमाग़ लगाओ और कोई सदवाक्य उसके समक्ष बार बार दोहराओ।
तुम माँ हो और जब तक बच्चा 5 वर्ष का नहीं हो जाता तबतक , तुम्हारा प्यार और स्नेह भरा स्पर्श ही काफी है बच्चे का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में और कहानियों कविताओं के माध्यम से उसके भीतर शुभ सँस्कार आरोपित कर सकते हो।
5 वर्ष से नित्य कठिनाई बढ़ेगी मग़र बिना हिम्मत हारे आप प्रयत्न रत रहें। बच्चे की पसन्द नापसंद रुचियों पर पैनी नज़र रखें और कुशल माली की तरह बच्चे के व्यक्तित्व से खरपतवार उखाड़ती रहें व शुभ सँस्कार आरोपित करती रहें।
पुस्तक - *बाल सँस्कार इस तरह चलाये व बाल निर्माण की कहानियां भी पढ़ लीजिये।*
मनुष्य जिस चीज़ का संकल्प लेता है वह उसे येन केन प्रकारेण हासिल कर लेता है। आपका शुभ सङ्कल्प आपको सफल अवश्य बनाएगा, आप अपने बच्चे को संस्कारी बनाने में सफल जरूर होंगी।
जो काम हम नित्य करते व उसके लिए चिंतन मनन करते हैं उसमें हम दक्ष हो जाते हैं। इसी तरह रोज सँस्कार देने के इस कार्य को करती रहोगी तो इसमें भी तुम दक्ष हो जाओगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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