प्रश्न - *बड़े यज्ञादि अवसरों पर "सर्वतोभद्र चक्र" का पूजन किया जाता है। कहीं यह पूर्ण 57 होता है और कहीं लघु 33 होता है। इसके बारे में सरल शब्दों में जानकारी दीजिये यह क्या है व इसका महत्त्व क्या है?*
उत्तर - आत्मीय भाई,
*सर्वतोभद्र* शब्द का अर्थ होता है- हर तरह से कल्याणप्रद
युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव ने पुस्तक - *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान के पृष्ठ 6.31 से 6.45 तक* इस पर प्रकाश डाला है। सर्वतोभद्र एक पूर्ण (57 प्रधान देवी-देवताओं) एवं एक लघु (33 प्रधान देवी-देवताओं) की स्थापना का शास्त्रोक्त आसन है। यह सर्वतोभद्र चक्र मुख्यतः लाल, हरे, काले और सफ़ेद रंगों से रंगे चावलों से बनाया जाता है। इसका विस्तारपूर्वक वर्णन पुस्तक - *भद्र मार्तंड* में मिलता है। आवाहित सभी देवताओं को एक स्थान पर प्रतिष्ठित करने के लिए यह रंग बिरंगा गलीचा जहां शास्त्रोक्त एवं अनेक विशेषताओं सँयुक्त है, वहीं यह देखने मे बड़ा मनोहर व आकर्षक भी होता है।
*सर्वतोभद्र का परिचय*-
मंडल एवं यंत्र को देव द्वार भी कहा जाता है। सर्वतोभद्र मंडल मंगलप्रद एवं कल्याणकारी माना जाता है। यज्ञ यागादिक, देव प्रतिष्ठा, मांगलिक पूजा महोत्सव, अनुष्ठान इत्यादि देव कार्यों में सर्वतोभद्र मंडल का सर्वविध उपयोग किया जाता है। गणेश, अम्बिका, कलश, मातृका, वास्तु मंडल, योगिनी, क्षेत्रपाल, नवग्रह मंडल, वारुण मंडल आदि के साथ प्रमुखता से सर्वतोभद्र मंडल के मध्य प्रमुख देवता को स्थापित एवं प्रतिष्ठित कर उनकी विभिन्न पूजा उपचारों से पूजा करने का विधान धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है। सर्वतोभद्र मंडल के सामान्यतः कई अर्थ प्राप्त होते हैं। मंगलप्रद एवं कल्याणकारी सर्वतोभद्र मंडल एवं चक्र में सभी ओर ‘भद्र’ नामक कोष्ठक समूह होते हैं जो सर्वतोभद्र मंडल अथवा चक्र के नाम से जाने जाते हैं। इस मंडल में प्रत्येक दिशा में दो-दो भद्र बने होते हैं इस प्रकार यह मंगलकारी विग्रह अपने नाम को सर्वथा सार्थक करता है।
*यज्ञ एवं मांगलिक कार्यों में उपयोगिता*: -यज्ञ यागादिक कर्म, मांगलिक पूजा महोत्सवों, प्रतिष्ठा कर्म, आदि शुभकर्मों में विभिन्न मंडलों के साथ सर्वतोभद्र मंडल प्रमुखता से बनाया जाता है। मंडल की स्थापना के साथ ही इसमें उपर्युक्त देवताओं की वैदिक मंत्रों से प्रतिष्ठा तथा पूजा-अर्चना की जाती है। इससे साधक, उपासक एवं पूजक का सर्वविध कल्याण एवं मंगल होता है। भद्र मार्तण्डादि ग्रंथों में सर्वतोभद्र मंडल की ही प्रमुखता है जो सभी देवताओं के लिए उपयोग में आता है।
सर्वतोभद्र मंडल देवताओं का द्वार है, इसलिए इसे देवद्वार की संज्ञा दी गई है। प्राचीनकाल से लेकर आज तक गणेश यज्ञ, लक्ष्मी यज्ञ, यद्र यज्ञ, सूर्य यज्ञ, ग्रह शांति कर्म, पुत्ररेष्टि यज्ञ, शत्रुंजय यज्ञ, गायत्री यज्ञ, श्रीमद्भागवत महायज्ञ, चण्डी, नवचण्डी, शतचण्डी, सहस्र चण्डी, लक्षचण्डी, अयुत चण्डी, कोटिचण्डी आदि यज्ञों में भद्र मंडल का प्रयोग प्रमुखता से करने के पीछे सभी के कल्याण की भावना छिपी हुई है, इसीलिए इसे भद्र मंडल कहा जाता है। सनातन संस्कृति में जन्म से मृत्युपर्यंत षोडश संस्कार यज्ञ से प्रारंभ होते हैं और यज्ञ से ही समाप्त। अतः बिना भद्र मंडल के यज्ञ कर्म अधूरा है। भारत भूमि में यज्ञ की बड़ी महिमा है, इसलिए इसे श्रेष्ठ कर्म कहा गया है- यज्ञोवै श्रेष्ठकर्मः। प्राणियों की उत्पत्ति अन्न से होती है और अन्न समय पर वृष्टि होने से उत्पन्न होता है। सामयिक वृष्टि यज्ञ से होती है। यज्ञकर्म, यजमान और आचार्य के द्वारा धर्मशास्त्र विहित कर्मकाण्ड करने से होता है और भद्रमंडलादि देवता इसके प्रधान आधार है। भद्रमंडल का उपयोग यज्ञ कर्म में देवता विशेष की पूजा के साथ यजमान के कल्याण हेतु किया जाता है।
*आह्वाहन* - प्रत्येक देवता का एक एक वेद मन्त्र होता है, उसे उच्चारण करते हुए आह्वाहित करके पुष्प को जिस कोष्ठक में रखते हैं उसमें आवाहित देवता आसन ग्रहण कर लेते हैं। एक एक खाना(कोष्ठक) एक एक देवता का प्रतीक चिन्ह होता है।
*पूर्ण सर्वतोभद्र में देवताओ की स्थापना के स्थान* -
सर्वतोभद्रमंडल के 324 कोष्ठकों में निम्नलिखित 57 देवताओं की स्थापना की जाती है: 1. ब्रह्मा 2. सोम 3. ईशान 4. इन्द्र 5. अग्नि 6. यम 7. निर्ऋति 8. वरुण 9. वायु 10. अष्टवसु 11. एकादश रुद्र 12. द्वादश आदित्य 13. अश्विद्वय 14. सपैतृक-विश्वेदेव 15. सप्तयक्ष- मणिभद्र, सिद्धार्थ, सूर्यतेजा, सुमना, नन्दन, मणिमन्त और चन्द्रप्रभ। ये सभी देवता यजमान का कल्याण करने वाले बताये गये हैं। 16. अष्टकुलनाग 17. गन्धर्वाप्सरस – गन्धर्व $ अप्सरा देवता की एक जाति का नाम गंधर्व है। दक्ष सूता प्राधा ने प्रजापति कश्यप के द्वारा अग्रलिखित दस देव गंधर्व को उत्पन्न किया था- सिद्ध, पूर्ण, बर्हि, पूर्णायु, ब्रह्मचारी, रतिगुण, सुपर्ण, विश्वावसु, भानु और सुचन्द्र। अप्सरा- कुछ अप्सरायें समुद्र मंथन के अवसर पर जल से निकली थीं। जल से निकलने के कारण इन्हें अप्सरा कहा जाता है एवं कुछ अप्सरायें कश्यप प्रजापति की पत्नी प्रधा से उत्पन्न हुई हैं। अलम्बुशा, मिश्रकेशी, विद्युत्पर्णा, तिलोत्तमा, अरुणा, रक्षिता, रम्भा, मनोरमा, केशिनी, सुबाहु, सुरता, सुरजा और सुप्रिया हैं। 18. स्कंद 19. नन्दी 20 शूल 21. महाकाल – ये सभी देवताओं में श्रेष्ठ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्वयंभू रूप से अवतीर्ण हैं। 22. दक्षादि सप्तगण – भगवान शंकर के मुख्य गण कीर्तिमुख, श्रृंगी, भृंगी, रिटि, बाण तथा चण्डीश ये सात मुख्य गण हैं। 23. दुर्गा 24. विष्णु 25. स्वधा 26. मृत्यु रोग 27. गणपति 28. अप् 29. मरुदगण 30 पृथ्वी 31. गंगादि नंदी- यज्ञ यागादिक कर्म में देव कर्म प्राप्ति की योग्यता प्राप्त करने हेतु शुद्धता एवं पवित्रता हेतु गंगादि नदियों का आवाहन किया जाता है। सप्तगंगा में प्रमुख हैं- गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी। 32. सप्तसागर 33. मेरु 34. गदा 35. त्रिशूल 36. वज्र 37. शक्ति 38. दण्ड 39. खड्ग 40. पाश 41. अंकुश- ये अष्ट आयुष देव स्वरूप है और मानव के कल्याण के लिए विविध देवताओं के हाथों में आयुध के रूप में सुशोभित होते हैं। उत्तर, ईशान, पूर्व आदि आठ दिशाओं के सोम, ईशान, इन्द्रादि अधिष्ठाता देव हैं ये अष्ट आयुध। 42. गौतम 43. भारद्वाज 44. विश्वामित्र 45. कश्यप 46. जमदग्नि 47. वसिष्ठ 48. अत्रि – ये सात ऋषि हैं। भद्रमंडल में मातृकाओं की तरह इन ऋषियों की भी पूजा होती है। 49. अरुन्धती- महाशक्ति अरुन्धती सौम्य स्वरूपा होकर वंदनीया है। पहले ये ब्रह्मा की मानस पुत्री थीं। सोलह संस्कारों में प्रमुख विवाह के अवसर पर कन्याओं को इनका दर्शन कराया जाता है। 50. ऐन्द्री 51. कौमारी 52. ब्राह्मी 53. वाराही 54. चामुण्डा 55. वैष्णवी 56. माहेश्वरी तथा 57. वैनायकी – देवस्थान, यज्ञभाग की रक्षा हेतु अष्ट मातृकाओं का प्रार्दुभाव हुआ। भद्र मंडल परिधि में इन माताओं की स्थापना का विधान है।
*लघु-सर्वतोभद्र-मण्डल में 33 प्रधान प्रकार की श्रेणी(कोटि) के देवी-देवताओं की स्थापना* -
तेत्तीस देवताओ को तेत्तीस ईश्वरीय दिव्य शक्तियों से सम्बंधित मानना चाहिए:-
1- गणेश (विवेक) पीला
ॐ गणानां त्वा गणपति œ हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति œ हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति œ हवामहे, वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्। ॐ गणपतये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।।
2- गौरी (तपस्या) हरा
ॐ आयंगौः पृश्निरक्रमी, दसदन् मातरं पुरः। पितरञ्च प्रयन्त्स्वः॥ ॐ गौर्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
3- ब्रह्मा (निर्माण) लाल
ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्, विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः। स बुध्न्याऽ उपमाऽ अस्य विष्ठाः,सतश्च योनिमसतश्चवि वः॥
ॐ ब्रह्मणे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
4- विष्णु (ऐश्वर्य) सफेद
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे, त्रेधा निदधे पदम्। समूढमस्य पा œ सुरे स्वाहा। ॐ विष्णवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि ध्यायामि॥
5- रुद्र (दमन) लाल
ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ,उतो तऽ इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः॥ ॐ रुद्राय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
6- गायत्री (ऋतम्भरा प्रज्ञा) पीला
ॐ गायत्री त्रिष्टुब्जगत्यनुष्टुप्, पंक्त्या सह। बृहत्युष्णिहा ककुप्सूचीभिः, शम्यन्तु त्वा॥ ॐ गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
7- सरस्वती (बुद्धि- शिक्षा) लाल
ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः। ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
8- लक्ष्मी (समृद्धि) सफेद
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहो रात्रे, पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। इष्णन्निषाणामुम्मऽ इषाण, सर्वलोकं म ऽ इषाण। ॐ लक्ष्म्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
9- दुर्गा शक्ति (सङ्गठन) लाल
ॐ जातवेदसे सुनवाम सोमम्, अरातीयतो नि दहाति वेदः। स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा, नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः॥ ॐ दुर्गायै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
10- पृथ्वी (क्षमा) सफेद
ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽ, इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः। ॐ पृथिव्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
11- अग्नि (तेजस्विता) पीला
ॐ त्वं नो अग्ने वरुणस्य विद्वान्, देवस्य हेडो अव यासिसीष्ठाः। यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो, विश्वा द्वेषा œ सि प्र मुमुग्ध्यस्मत्। ॐ अग्नये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
12- वायु (गतिशीलता) सफेद
ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर œ, सहस्रिणीभिरुप याहि यज्ञम्। वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व, यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः। ॐ वायवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
1- इन्द्र (व्यवस्था) लाल
ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र œ, हवेहवे सुहव œशूरमिन्द्रम्। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रœ, स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः। ॐ इन्द्राय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
14- यम (न्याय )) सफेद
ॐ सुगन्नुपंथां प्रदिशन्नऽएहि, ज्योतिष्मध्येह्यजरन्नऽआयुः। अपैतु मृत्युममृतं मऽआगाद्, वैवस्वतो नो ऽ अभयं कृणोतु। ॐ यमाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
15- कुबेर (मितव्ययिता) काला
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने, नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान् कामकामाय मह्यम्। कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु। कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः। ॐ कुबेराय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
16- अश्विनीकुमार (आरोग्य) पीला
ॐ अश्विना तेजसा चक्षुः, प्राणेन सरस्वती वीर्यम्। वाचेन्द्रो बलेनेन्द्राय, दधुरिन्द्रियम्। ॐ अश्विनीकुमाराभ्यां नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
17- सूर्य (प्रेरणा) काला
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्त्तमानो, निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना, देवो याति भुवनानि पश्यन्॥ ॐ सूर्याय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
18- चन्द्रमा (शान्ति) लाल
ॐ इमं देवाऽ असपत्न œ, सुवध्वं महते क्षत्राय, महते ज्यैष्ठ्याय, महते जानराज्याय, इन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्यै, पुत्रमस्यै विशऽएष वोऽमी, राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना œ राजा। ॐ चन्द्रमसे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
19- मङ्गल (कल्याण) सफेद
ॐ अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्, पतिः पृथिव्याऽ अयम्। अपा œ रेता œ सि जिन्वति। ॐ भौमाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
20- बुध (सन्तुलन) हरा
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि, त्वमिष्टापूर्ते स œ सृजेथामयं च। अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्, विश्वे देवा यजमानश्च सीदत॥ ॐ बुधाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
21- बृहस्पति (अनुशासन) पीला
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो, अर्हाद्द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवसऋतप्रजात, तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये, त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा। ॐ बृहस्पतये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
22- शुक्र (संयम) हरा
ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं, ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रम्, पयः सोमं प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं, विपानœ शुक्रमन्धस, ऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥ ॐ शुक्राय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ -१९.७५
23- शनिश्चर (तितिक्षा) लाल
ॐ शन्नो देवीरभिष्टयऽ, आपो भवन्तु पीतये। शं योरभिस्रवन्तु नः। ॐ शनिश्चराय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
24- राहु (संघर्ष) पीला
ॐ कया नश्चित्रऽआ भुव, दूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता। ॐ राहवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
25- केतु (साहस) लाल
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे, पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः। ॐ केतवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ -२९.३७
26- गङ्गा (पवित्रता) सफेद
ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीम्, अपि यन्ति सस्रोतसः। सरस्वती तु पंचधा, सो देशेऽभवत्सरित्। ॐ गङ्गायै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि ध्यायामि॥
27- पितृ (दान) पीला
ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। अक्षन् पितरोऽमीमदन्त, पितरोतीतृपन्त पितरः, पितरः शुन्धध्वम्। ॐ पितृभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
28- इन्द्राणी (श्रमशीलता) सफेद
ॐ अदित्यै रास्नाऽसीन्द्राण्या उष्णीषः। पूषासि घर्माय दीष्व। ॐ इन्द्राण्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
29- रुद्राणी (वीरता) काला
ॐ या ते रुद्र शिवातनूः, अघोराऽपापकाशिनी। तया नस्तन्वा शन्तमया, गिरिशन्ताभिचाकशीहि। ॐ रुद्राण्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
30- ब्रह्माणी (नियमितता) पीला
ॐ इन्द्रा याहि धियेषितो, विप्रजूतः सुतावतः। उप ब्रह्माणि वाघतः। ॐ ब्रह्माण्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
31- सर्प (धैर्य) काला
ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि, तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः। ॐ सर्पेभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
32- वास्तु (कला) हरा
ॐ वास्तोष्पते प्रति जानीहि अस्मान्, स्वावेशो अनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व, शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे॥ ॐ वास्तुपुरुषाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
33- आकाश (विशालता) सफेद
ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। तया यज्ञं मिमिक्षतम्। उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां, त्वैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा।
ॐ आकाशाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई,
*सर्वतोभद्र* शब्द का अर्थ होता है- हर तरह से कल्याणप्रद
युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव ने पुस्तक - *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान के पृष्ठ 6.31 से 6.45 तक* इस पर प्रकाश डाला है। सर्वतोभद्र एक पूर्ण (57 प्रधान देवी-देवताओं) एवं एक लघु (33 प्रधान देवी-देवताओं) की स्थापना का शास्त्रोक्त आसन है। यह सर्वतोभद्र चक्र मुख्यतः लाल, हरे, काले और सफ़ेद रंगों से रंगे चावलों से बनाया जाता है। इसका विस्तारपूर्वक वर्णन पुस्तक - *भद्र मार्तंड* में मिलता है। आवाहित सभी देवताओं को एक स्थान पर प्रतिष्ठित करने के लिए यह रंग बिरंगा गलीचा जहां शास्त्रोक्त एवं अनेक विशेषताओं सँयुक्त है, वहीं यह देखने मे बड़ा मनोहर व आकर्षक भी होता है।
*सर्वतोभद्र का परिचय*-
मंडल एवं यंत्र को देव द्वार भी कहा जाता है। सर्वतोभद्र मंडल मंगलप्रद एवं कल्याणकारी माना जाता है। यज्ञ यागादिक, देव प्रतिष्ठा, मांगलिक पूजा महोत्सव, अनुष्ठान इत्यादि देव कार्यों में सर्वतोभद्र मंडल का सर्वविध उपयोग किया जाता है। गणेश, अम्बिका, कलश, मातृका, वास्तु मंडल, योगिनी, क्षेत्रपाल, नवग्रह मंडल, वारुण मंडल आदि के साथ प्रमुखता से सर्वतोभद्र मंडल के मध्य प्रमुख देवता को स्थापित एवं प्रतिष्ठित कर उनकी विभिन्न पूजा उपचारों से पूजा करने का विधान धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है। सर्वतोभद्र मंडल के सामान्यतः कई अर्थ प्राप्त होते हैं। मंगलप्रद एवं कल्याणकारी सर्वतोभद्र मंडल एवं चक्र में सभी ओर ‘भद्र’ नामक कोष्ठक समूह होते हैं जो सर्वतोभद्र मंडल अथवा चक्र के नाम से जाने जाते हैं। इस मंडल में प्रत्येक दिशा में दो-दो भद्र बने होते हैं इस प्रकार यह मंगलकारी विग्रह अपने नाम को सर्वथा सार्थक करता है।
*यज्ञ एवं मांगलिक कार्यों में उपयोगिता*: -यज्ञ यागादिक कर्म, मांगलिक पूजा महोत्सवों, प्रतिष्ठा कर्म, आदि शुभकर्मों में विभिन्न मंडलों के साथ सर्वतोभद्र मंडल प्रमुखता से बनाया जाता है। मंडल की स्थापना के साथ ही इसमें उपर्युक्त देवताओं की वैदिक मंत्रों से प्रतिष्ठा तथा पूजा-अर्चना की जाती है। इससे साधक, उपासक एवं पूजक का सर्वविध कल्याण एवं मंगल होता है। भद्र मार्तण्डादि ग्रंथों में सर्वतोभद्र मंडल की ही प्रमुखता है जो सभी देवताओं के लिए उपयोग में आता है।
सर्वतोभद्र मंडल देवताओं का द्वार है, इसलिए इसे देवद्वार की संज्ञा दी गई है। प्राचीनकाल से लेकर आज तक गणेश यज्ञ, लक्ष्मी यज्ञ, यद्र यज्ञ, सूर्य यज्ञ, ग्रह शांति कर्म, पुत्ररेष्टि यज्ञ, शत्रुंजय यज्ञ, गायत्री यज्ञ, श्रीमद्भागवत महायज्ञ, चण्डी, नवचण्डी, शतचण्डी, सहस्र चण्डी, लक्षचण्डी, अयुत चण्डी, कोटिचण्डी आदि यज्ञों में भद्र मंडल का प्रयोग प्रमुखता से करने के पीछे सभी के कल्याण की भावना छिपी हुई है, इसीलिए इसे भद्र मंडल कहा जाता है। सनातन संस्कृति में जन्म से मृत्युपर्यंत षोडश संस्कार यज्ञ से प्रारंभ होते हैं और यज्ञ से ही समाप्त। अतः बिना भद्र मंडल के यज्ञ कर्म अधूरा है। भारत भूमि में यज्ञ की बड़ी महिमा है, इसलिए इसे श्रेष्ठ कर्म कहा गया है- यज्ञोवै श्रेष्ठकर्मः। प्राणियों की उत्पत्ति अन्न से होती है और अन्न समय पर वृष्टि होने से उत्पन्न होता है। सामयिक वृष्टि यज्ञ से होती है। यज्ञकर्म, यजमान और आचार्य के द्वारा धर्मशास्त्र विहित कर्मकाण्ड करने से होता है और भद्रमंडलादि देवता इसके प्रधान आधार है। भद्रमंडल का उपयोग यज्ञ कर्म में देवता विशेष की पूजा के साथ यजमान के कल्याण हेतु किया जाता है।
*आह्वाहन* - प्रत्येक देवता का एक एक वेद मन्त्र होता है, उसे उच्चारण करते हुए आह्वाहित करके पुष्प को जिस कोष्ठक में रखते हैं उसमें आवाहित देवता आसन ग्रहण कर लेते हैं। एक एक खाना(कोष्ठक) एक एक देवता का प्रतीक चिन्ह होता है।
*पूर्ण सर्वतोभद्र में देवताओ की स्थापना के स्थान* -
सर्वतोभद्रमंडल के 324 कोष्ठकों में निम्नलिखित 57 देवताओं की स्थापना की जाती है: 1. ब्रह्मा 2. सोम 3. ईशान 4. इन्द्र 5. अग्नि 6. यम 7. निर्ऋति 8. वरुण 9. वायु 10. अष्टवसु 11. एकादश रुद्र 12. द्वादश आदित्य 13. अश्विद्वय 14. सपैतृक-विश्वेदेव 15. सप्तयक्ष- मणिभद्र, सिद्धार्थ, सूर्यतेजा, सुमना, नन्दन, मणिमन्त और चन्द्रप्रभ। ये सभी देवता यजमान का कल्याण करने वाले बताये गये हैं। 16. अष्टकुलनाग 17. गन्धर्वाप्सरस – गन्धर्व $ अप्सरा देवता की एक जाति का नाम गंधर्व है। दक्ष सूता प्राधा ने प्रजापति कश्यप के द्वारा अग्रलिखित दस देव गंधर्व को उत्पन्न किया था- सिद्ध, पूर्ण, बर्हि, पूर्णायु, ब्रह्मचारी, रतिगुण, सुपर्ण, विश्वावसु, भानु और सुचन्द्र। अप्सरा- कुछ अप्सरायें समुद्र मंथन के अवसर पर जल से निकली थीं। जल से निकलने के कारण इन्हें अप्सरा कहा जाता है एवं कुछ अप्सरायें कश्यप प्रजापति की पत्नी प्रधा से उत्पन्न हुई हैं। अलम्बुशा, मिश्रकेशी, विद्युत्पर्णा, तिलोत्तमा, अरुणा, रक्षिता, रम्भा, मनोरमा, केशिनी, सुबाहु, सुरता, सुरजा और सुप्रिया हैं। 18. स्कंद 19. नन्दी 20 शूल 21. महाकाल – ये सभी देवताओं में श्रेष्ठ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्वयंभू रूप से अवतीर्ण हैं। 22. दक्षादि सप्तगण – भगवान शंकर के मुख्य गण कीर्तिमुख, श्रृंगी, भृंगी, रिटि, बाण तथा चण्डीश ये सात मुख्य गण हैं। 23. दुर्गा 24. विष्णु 25. स्वधा 26. मृत्यु रोग 27. गणपति 28. अप् 29. मरुदगण 30 पृथ्वी 31. गंगादि नंदी- यज्ञ यागादिक कर्म में देव कर्म प्राप्ति की योग्यता प्राप्त करने हेतु शुद्धता एवं पवित्रता हेतु गंगादि नदियों का आवाहन किया जाता है। सप्तगंगा में प्रमुख हैं- गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी। 32. सप्तसागर 33. मेरु 34. गदा 35. त्रिशूल 36. वज्र 37. शक्ति 38. दण्ड 39. खड्ग 40. पाश 41. अंकुश- ये अष्ट आयुष देव स्वरूप है और मानव के कल्याण के लिए विविध देवताओं के हाथों में आयुध के रूप में सुशोभित होते हैं। उत्तर, ईशान, पूर्व आदि आठ दिशाओं के सोम, ईशान, इन्द्रादि अधिष्ठाता देव हैं ये अष्ट आयुध। 42. गौतम 43. भारद्वाज 44. विश्वामित्र 45. कश्यप 46. जमदग्नि 47. वसिष्ठ 48. अत्रि – ये सात ऋषि हैं। भद्रमंडल में मातृकाओं की तरह इन ऋषियों की भी पूजा होती है। 49. अरुन्धती- महाशक्ति अरुन्धती सौम्य स्वरूपा होकर वंदनीया है। पहले ये ब्रह्मा की मानस पुत्री थीं। सोलह संस्कारों में प्रमुख विवाह के अवसर पर कन्याओं को इनका दर्शन कराया जाता है। 50. ऐन्द्री 51. कौमारी 52. ब्राह्मी 53. वाराही 54. चामुण्डा 55. वैष्णवी 56. माहेश्वरी तथा 57. वैनायकी – देवस्थान, यज्ञभाग की रक्षा हेतु अष्ट मातृकाओं का प्रार्दुभाव हुआ। भद्र मंडल परिधि में इन माताओं की स्थापना का विधान है।
*लघु-सर्वतोभद्र-मण्डल में 33 प्रधान प्रकार की श्रेणी(कोटि) के देवी-देवताओं की स्थापना* -
तेत्तीस देवताओ को तेत्तीस ईश्वरीय दिव्य शक्तियों से सम्बंधित मानना चाहिए:-
1- गणेश (विवेक) पीला
ॐ गणानां त्वा गणपति œ हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति œ हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति œ हवामहे, वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्। ॐ गणपतये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।।
2- गौरी (तपस्या) हरा
ॐ आयंगौः पृश्निरक्रमी, दसदन् मातरं पुरः। पितरञ्च प्रयन्त्स्वः॥ ॐ गौर्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
3- ब्रह्मा (निर्माण) लाल
ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्, विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः। स बुध्न्याऽ उपमाऽ अस्य विष्ठाः,सतश्च योनिमसतश्चवि वः॥
ॐ ब्रह्मणे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
4- विष्णु (ऐश्वर्य) सफेद
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे, त्रेधा निदधे पदम्। समूढमस्य पा œ सुरे स्वाहा। ॐ विष्णवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि ध्यायामि॥
5- रुद्र (दमन) लाल
ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ,उतो तऽ इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः॥ ॐ रुद्राय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
6- गायत्री (ऋतम्भरा प्रज्ञा) पीला
ॐ गायत्री त्रिष्टुब्जगत्यनुष्टुप्, पंक्त्या सह। बृहत्युष्णिहा ककुप्सूचीभिः, शम्यन्तु त्वा॥ ॐ गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
7- सरस्वती (बुद्धि- शिक्षा) लाल
ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः। ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
8- लक्ष्मी (समृद्धि) सफेद
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहो रात्रे, पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। इष्णन्निषाणामुम्मऽ इषाण, सर्वलोकं म ऽ इषाण। ॐ लक्ष्म्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
9- दुर्गा शक्ति (सङ्गठन) लाल
ॐ जातवेदसे सुनवाम सोमम्, अरातीयतो नि दहाति वेदः। स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा, नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः॥ ॐ दुर्गायै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
10- पृथ्वी (क्षमा) सफेद
ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽ, इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः। ॐ पृथिव्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
11- अग्नि (तेजस्विता) पीला
ॐ त्वं नो अग्ने वरुणस्य विद्वान्, देवस्य हेडो अव यासिसीष्ठाः। यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो, विश्वा द्वेषा œ सि प्र मुमुग्ध्यस्मत्। ॐ अग्नये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
12- वायु (गतिशीलता) सफेद
ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर œ, सहस्रिणीभिरुप याहि यज्ञम्। वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व, यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः। ॐ वायवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
1- इन्द्र (व्यवस्था) लाल
ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र œ, हवेहवे सुहव œशूरमिन्द्रम्। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रœ, स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः। ॐ इन्द्राय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
14- यम (न्याय )) सफेद
ॐ सुगन्नुपंथां प्रदिशन्नऽएहि, ज्योतिष्मध्येह्यजरन्नऽआयुः। अपैतु मृत्युममृतं मऽआगाद्, वैवस्वतो नो ऽ अभयं कृणोतु। ॐ यमाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
15- कुबेर (मितव्ययिता) काला
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने, नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान् कामकामाय मह्यम्। कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु। कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः। ॐ कुबेराय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
16- अश्विनीकुमार (आरोग्य) पीला
ॐ अश्विना तेजसा चक्षुः, प्राणेन सरस्वती वीर्यम्। वाचेन्द्रो बलेनेन्द्राय, दधुरिन्द्रियम्। ॐ अश्विनीकुमाराभ्यां नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
17- सूर्य (प्रेरणा) काला
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्त्तमानो, निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना, देवो याति भुवनानि पश्यन्॥ ॐ सूर्याय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
18- चन्द्रमा (शान्ति) लाल
ॐ इमं देवाऽ असपत्न œ, सुवध्वं महते क्षत्राय, महते ज्यैष्ठ्याय, महते जानराज्याय, इन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्यै, पुत्रमस्यै विशऽएष वोऽमी, राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना œ राजा। ॐ चन्द्रमसे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
19- मङ्गल (कल्याण) सफेद
ॐ अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्, पतिः पृथिव्याऽ अयम्। अपा œ रेता œ सि जिन्वति। ॐ भौमाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
20- बुध (सन्तुलन) हरा
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि, त्वमिष्टापूर्ते स œ सृजेथामयं च। अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्, विश्वे देवा यजमानश्च सीदत॥ ॐ बुधाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
21- बृहस्पति (अनुशासन) पीला
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो, अर्हाद्द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवसऋतप्रजात, तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये, त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा। ॐ बृहस्पतये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
22- शुक्र (संयम) हरा
ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं, ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रम्, पयः सोमं प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं, विपानœ शुक्रमन्धस, ऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥ ॐ शुक्राय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ -१९.७५
23- शनिश्चर (तितिक्षा) लाल
ॐ शन्नो देवीरभिष्टयऽ, आपो भवन्तु पीतये। शं योरभिस्रवन्तु नः। ॐ शनिश्चराय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
24- राहु (संघर्ष) पीला
ॐ कया नश्चित्रऽआ भुव, दूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता। ॐ राहवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
25- केतु (साहस) लाल
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे, पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः। ॐ केतवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ -२९.३७
26- गङ्गा (पवित्रता) सफेद
ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीम्, अपि यन्ति सस्रोतसः। सरस्वती तु पंचधा, सो देशेऽभवत्सरित्। ॐ गङ्गायै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि ध्यायामि॥
27- पितृ (दान) पीला
ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। अक्षन् पितरोऽमीमदन्त, पितरोतीतृपन्त पितरः, पितरः शुन्धध्वम्। ॐ पितृभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
28- इन्द्राणी (श्रमशीलता) सफेद
ॐ अदित्यै रास्नाऽसीन्द्राण्या उष्णीषः। पूषासि घर्माय दीष्व। ॐ इन्द्राण्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
29- रुद्राणी (वीरता) काला
ॐ या ते रुद्र शिवातनूः, अघोराऽपापकाशिनी। तया नस्तन्वा शन्तमया, गिरिशन्ताभिचाकशीहि। ॐ रुद्राण्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
30- ब्रह्माणी (नियमितता) पीला
ॐ इन्द्रा याहि धियेषितो, विप्रजूतः सुतावतः। उप ब्रह्माणि वाघतः। ॐ ब्रह्माण्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
31- सर्प (धैर्य) काला
ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि, तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः। ॐ सर्पेभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
32- वास्तु (कला) हरा
ॐ वास्तोष्पते प्रति जानीहि अस्मान्, स्वावेशो अनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व, शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे॥ ॐ वास्तुपुरुषाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
33- आकाश (विशालता) सफेद
ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। तया यज्ञं मिमिक्षतम्। उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां, त्वैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा।
ॐ आकाशाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
इस भद्र मण्डल का निर्माता भद्र ऋषि को माना जाता है '
ReplyDeletePurnima vratophadya ke din starting se end tak ki saari poojan mantra with vidhi, and sankalp, Please.
ReplyDeleteबहुत ज्ञान वर्धक जानकारी
ReplyDeleteSir please book ka naam batayein.
ReplyDeleteधन्यवाद खुप छान माहिती दिली......
ReplyDeleteVery well explained... Thankyou for publishing Sarvatobhadra Mandalam
ReplyDeleteसर्वतो भद्र मण्डल का प्रार्थना हो तो प्रेषित करें ।
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