प्रश्न - *यज्ञ व पूजा सङ्कल्प के दौरान विवाहित स्त्रियाँ जन्म गोत्र की जगह पति के गोत्र को क्यों बोलती हैं, जबकि वो तो पति के गोत्र में जन्मी भी नहीं।*
उत्तर- आत्मीय बहन,
*गोत्र* मोटे तौर पर उन लोगों के समूह को कहते हैं जिनका वंश एक मूल पुरुष पूर्वज से अटूट क्रम में जुड़ा है। व्याकरण के प्रयोजनों के लिये पाणिनि में गोत्र की परिभाषा है ' *अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्'* (४.१.१६२), अर्थात 'गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली (एक साधु की) संतान्। गोत्र, कुल या वंश की संज्ञा है जो उसके किसी मूल पुरुष के अनुसार होती है। गोत्र को हिन्दू लोग लाखो हजारो वर्ष पहले पैदा हुए पूर्वजो के नाम से ही अपना गोत्र चला रहे हैंं।
हज़ारों वर्ष पहले बिना आधुनिक कम्प्यूटर व मशीनों की ठीक ठीक गणना करने वाले ऋषिगण मनुष्य के जीन्स सिस्टम को भी भलीभाँति जानते थे।जिसे आज वैज्ञानिक पृष्ठभूमि से भी सही ठहराया जा रहा है।
पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता, इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि स्त्री में गुणसूत्र xx होते है और पुरुष में xy होते है। इनकी सन्तति में माना की पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र)। इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्यू की माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही । और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र). यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है।
१. *xx गुणसूत्र* ;- xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री . xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है, तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है।
२. xy गुणसूत्र ;- xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र। पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्यू की माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९ ५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है।
तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्यू की y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है की यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है। बस इसी y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था।
वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र । (Y Chromosome and the Vedic Gotra System)
अब तक हम यह समझ चुके है की वैदिक गोत्र प्रणाली य गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है।
उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विधमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस y गुणसूत्र के मूल है। चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता है, इसलिए विवाह से पूर्व पिता के गोत्र से पहचान व विवाह विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है।
गोत्र वस्तुतः एक पहचान तो है ही, साथ ही कुल मर्यादा परम्परा का एक पैटर्न जो सदियों से चल रहा है उसका अनुपालन भी है। हिंदू धर्म में पति पत्नी दो शरीर व एक प्राण मानते हुए, उन्हें एक ही यूनिट माना जाता है। पति पर पत्नी को अधिकार तो मिलता ही है, साथ ही पति के घर, पति की सम्पत्ति, पति के गोत्र, पति के कुल सब पर उसका अधिकार हो जाता है।
आधुनिक कम्प्यूटर भाषा में पति लैपटॉप/डेस्कटॉप की तरह हार्डवेयर है और पत्नी ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर है। जो विवाह पद्धति द्वारा इंस्टॉल कर दी जाती है। बाहरी सारे कठोर कार्य पति करता है, भीतर के समस्त जटिल कॉम्लेक्स कार्य पत्नी करती है। दोनो एक दूसरे के पूरक हैं। कोई यहाँ कम या कोई ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है। दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं, बस हार्डवेयर को कम्पनी का गोत्र मिला है। सॉफ्टवेयर का भी गोत्र है पर अब वह हार्डवेयर की मुख्य पहचान से जुड़ी है।
अतः यज्ञ के दौरान सङ्कल्प में पत्नी पति के गोत्र को ही अपनी पहचान कहती है।
पति और पत्नी अपने गुरु से दीक्षित हैं तो स्वेच्छा से गुरु के गोत्र को भी धारण कर सकते हैं, उस गोत्र से भी अपनी पहचान जोड़ सकते हैं।
गुरु दीक्षा के बाद शिष्य दूसरा जन्म लेता है - जिसे द्विज कहते हैं। अतः यदि इच्छा हो तो गुरु का गोत्र यज्ञ के दौरान सङ्कल्प में बोल सकता है।
जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली एवं स्वयं का गोत्र ज्ञात न हों उन्हें काश्यपगोत्रीय माना जाता है।
गोत्रस्य त्वपरिज्ञाने काश्यपं गोत्रमुच्यते।यस्मादाह श्रुतिस्सर्वाः प्रजाः कश्यपसंभवाः।। (हेमाद्रि चन्द्रिका)
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय बहन,
*गोत्र* मोटे तौर पर उन लोगों के समूह को कहते हैं जिनका वंश एक मूल पुरुष पूर्वज से अटूट क्रम में जुड़ा है। व्याकरण के प्रयोजनों के लिये पाणिनि में गोत्र की परिभाषा है ' *अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्'* (४.१.१६२), अर्थात 'गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली (एक साधु की) संतान्। गोत्र, कुल या वंश की संज्ञा है जो उसके किसी मूल पुरुष के अनुसार होती है। गोत्र को हिन्दू लोग लाखो हजारो वर्ष पहले पैदा हुए पूर्वजो के नाम से ही अपना गोत्र चला रहे हैंं।
हज़ारों वर्ष पहले बिना आधुनिक कम्प्यूटर व मशीनों की ठीक ठीक गणना करने वाले ऋषिगण मनुष्य के जीन्स सिस्टम को भी भलीभाँति जानते थे।जिसे आज वैज्ञानिक पृष्ठभूमि से भी सही ठहराया जा रहा है।
पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता, इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि स्त्री में गुणसूत्र xx होते है और पुरुष में xy होते है। इनकी सन्तति में माना की पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र)। इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्यू की माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही । और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र). यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है।
१. *xx गुणसूत्र* ;- xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री . xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है, तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है।
२. xy गुणसूत्र ;- xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र। पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्यू की माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९ ५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है।
तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्यू की y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है की यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है। बस इसी y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था।
वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र । (Y Chromosome and the Vedic Gotra System)
अब तक हम यह समझ चुके है की वैदिक गोत्र प्रणाली य गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है।
उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विधमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस y गुणसूत्र के मूल है। चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता है, इसलिए विवाह से पूर्व पिता के गोत्र से पहचान व विवाह विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है।
गोत्र वस्तुतः एक पहचान तो है ही, साथ ही कुल मर्यादा परम्परा का एक पैटर्न जो सदियों से चल रहा है उसका अनुपालन भी है। हिंदू धर्म में पति पत्नी दो शरीर व एक प्राण मानते हुए, उन्हें एक ही यूनिट माना जाता है। पति पर पत्नी को अधिकार तो मिलता ही है, साथ ही पति के घर, पति की सम्पत्ति, पति के गोत्र, पति के कुल सब पर उसका अधिकार हो जाता है।
आधुनिक कम्प्यूटर भाषा में पति लैपटॉप/डेस्कटॉप की तरह हार्डवेयर है और पत्नी ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर है। जो विवाह पद्धति द्वारा इंस्टॉल कर दी जाती है। बाहरी सारे कठोर कार्य पति करता है, भीतर के समस्त जटिल कॉम्लेक्स कार्य पत्नी करती है। दोनो एक दूसरे के पूरक हैं। कोई यहाँ कम या कोई ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है। दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं, बस हार्डवेयर को कम्पनी का गोत्र मिला है। सॉफ्टवेयर का भी गोत्र है पर अब वह हार्डवेयर की मुख्य पहचान से जुड़ी है।
अतः यज्ञ के दौरान सङ्कल्प में पत्नी पति के गोत्र को ही अपनी पहचान कहती है।
पति और पत्नी अपने गुरु से दीक्षित हैं तो स्वेच्छा से गुरु के गोत्र को भी धारण कर सकते हैं, उस गोत्र से भी अपनी पहचान जोड़ सकते हैं।
गुरु दीक्षा के बाद शिष्य दूसरा जन्म लेता है - जिसे द्विज कहते हैं। अतः यदि इच्छा हो तो गुरु का गोत्र यज्ञ के दौरान सङ्कल्प में बोल सकता है।
जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली एवं स्वयं का गोत्र ज्ञात न हों उन्हें काश्यपगोत्रीय माना जाता है।
गोत्रस्य त्वपरिज्ञाने काश्यपं गोत्रमुच्यते।यस्मादाह श्रुतिस्सर्वाः प्रजाः कश्यपसंभवाः।। (हेमाद्रि चन्द्रिका)
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment