प्रश्न - *यज्ञ, हवन एवं किसी भी शुभ कार्य में सङ्कल्प के प्रारम्भ में जो कालावधि(समयकाल व स्थान) का संस्मरण व उच्चारण किया जाता है उसे समझा दीजिये*
उत्तर - आत्मीय बेटे, सङ्कल्प की कालावधि को समझने के लिए आपको हिंदू धर्म की समय मापन इकाइयों को समझना पड़ेगा।
*कल्प* - हिन्दू समय चक्र की बहुत लम्बी मापन इकाई है। मानव वर्ष गणित के अनुसार ३६० दिन का एक दिव्य अहोरात्र होता है। इसी हिसाब से दिव्य १२००० वर्ष का एक चतुर्युगी होता है। *७१ चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है* और १४ मन्वन्तर/ १००० चतुरयुगी का एक कल्प होता है। यह शब्द का अति प्राचीन वैदिक हिन्दू ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है।
👇🏻
*परिचय*
*सृष्टिक्रम और विकास की गणना के लिए कल्प हिन्दुओं का एक परम प्रसिद्ध मापदंड है*। जैसे मानव की साधारण आयु सौ वर्ष है, वैसे ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की भी आयु सौ वर्ष मानी गई है, परंतु दोनों गणनाओं में बड़ा अन्तर है। *ब्रह्मा का एक दिन 'कल्प' कहलाता है, उसके बाद प्रलय होता है। प्रलय ब्रह्मा की एक रात है जिसके पश्चात् फिर नई सृष्टि होती है।*
चारों युगों के एक चक्कर को चतुर्युगी अथवा पर्याय कहते हैं। १‚००० चतुर्युगी अथवा पर्यायों का एक कल्प होता है। ब्रह्मा के एक मास में तीस कल्प होते हैं जिनके अलग-अलग नाम हैं, जैसे *श्वेतवाराह कल्प*, नीललोहित कल्प आदि। *प्रत्येक कल्प के १४ भाग होते हैं और इन भागों को 'मन्वंतर' कहते हैं।* प्रत्येक मन्वंतर का एक मनु होता है, इस प्रकार स्वायंभुव, स्वारोचिष् आदि १४ मनु हैं। प्रत्येक मन्वंतर के अलग-अलग सप्तर्षि, इद्रं तथा इंद्राणी आदि भी हुआ करते हैं। *इस प्रकार ब्रह्मा के आज तक ५० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, ५१वें वर्ष का प्रथम कल्प अर्थात् श्वेतवाराह कल्प प्रारंभ हुआ है। वर्तमान मनु का नाम 'वैवस्वत मनु' है और इनके २७ चतुर्युगी बीत चुके हैं,* २८ वें चतुर्युगी के भी तीन युग समाप्त हो गए हैं, चौथे अर्थात् कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है।
युगों की अवधि इस प्रकार है - सत्युग १७,२८,००० वर्ष; त्रेता १२,९६,००० वर्ष; द्वापर ८,६४,००० वर्ष और कलियुग ४,३२,००० वर्ष। *अतएव एक कल्प १००० चतुर्युगों के बराबर यानी चार अरब बत्तीस करोड़ (4,32,00,00,000) मानव वर्ष का हुआ।*
👇🏻
*विभाजन*
प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में मानव इतिहास को पाँच कल्पों में बाँटा गया है।
हमत् कल्प : १,०९,८०० वर्ष विक्रमीय पूर्व से आरम्भ होकर ८५,८०० वर्ष पूर्व तक
हिरण्य गर्भ कल्प : ८५,८०० विक्रमीय पूर्व से ६१,८०० वर्ष पूर्व तक
ब्राह्म कल्प : ६०,८०० विक्रमीय पूर्व से ३७,८०० वर्ष पूर्व तक
पाद्म कल्प : ३७,८०० विक्रम पूर्व से १३,८०० वर्ष पूर्व तक और
वराह कल्प : १३,८०० विक्रम पूर्व से आरम्भ होकर वर्तमान तक
*अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब "वैवस्वत" तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है।* सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से ५,६३० वर्ष पूर्व हुआ था।
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
*संकल्प का पौराणिक महत्व*
*हमारे पूर्वजों ने जहां खगोलीय गति के आधार पर काल का मापन किया । वहीं काल की अनंत यात्रा और वर्तमान समय तक उसे जोड़ना तथा समाज में सर्वसामान्य व्यक्ति को इसका ध्यान रहे इस हेतु एक अद्भुत व्यवस्था भी की थी।* जिसकी ओर साधारणतया हमारा ध्यान नहीं जाता है। हमारे देश में कोई भी कार्य होता हो चाहे वह भूमिपूजन हो, वास्तुनिर्माण का प्रारंभ हो गृह प्रवेश हो, जन्म, विवाह या कोई भी अन्य मांगलिक कार्य हो, वह करने के पहले कुछ धार्मिक विधि संपन्न की जाती है। उसमें सबसे पहले संकल्प कराया जाता है । यह संकल्प मंत्र यानी अनंत काल से आज तक की समय की स्थिति बताने वाला मंत्र है । इस दृष्टि से इस मंत्र के अर्थ पर हम ध्यान देंगे तो बात स्पष्ट हो जायेगी।-
🌺🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌺
*सङ्कल्प मन्त्र*
*ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया* - भगवान विष्णु को आदि पुरुष महापुरुष मानते हुए व उनकी आज्ञा से...
*प्रवर्तमानस्य* - उनके द्वारा प्रवर्तित अनंत कालचक्र में...
*अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्ररार्धे* - वर्तमान समय में ब्रह्मा का द्वितीय प्रहर चल रहा है।
*श्रीश्वेतवाराहकल्पे* - वर्तमान समय में जो *कल्प* चल रहा है उसका नाम श्रीश्वेतवाराह है,
*वैवस्वतमन्वन्तरे* - वर्तमान समय में जो मनु हैं उनका नाम *वैवश्वत* है,
*भूर्लोके* - हम जिस ग्रह में पूजन कर रहे हैं उसे भूलोक पृथ्वी कहते हैं,
*जम्बूद्वीपे* - हम जिस भारत मे रहते है उस द्वीप का नाम *जम्बूद्वीप* है ,
*भारतवर्षे , भरतखण्डे* - यह भारत वर्ष प्रतापी राजा भरत के द्वारा स्थापित है, इसलिए इसका नाम भारत वर्ष है, भरत जी की भूमि है।
*आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते* - जिस भारत में हम पूजन करने जा रहे हैं वह आर्यावर्त कहलाता है, उसके अंतर्गत यह भू खण्ड आता है।
कलियुगे कलि प्रथमचरणे
अर्थात् अभी कलियुग का प्रारंभिक समय है।
अमुक स्थाने – जहां पर कार्य संपन्न हो रहा है उस स्थान का नाम
*अमुक संवत्सरे* – संवत्सर का नाम उच्चारित किया जाता है, अंग्रेजो के ईसवीं सन में 57 वर्ष जोड़ देने पर विक्रमी सम्वत बन जाता है- वर्तमान अंग्रेजी वर्ष 2019 + 57 = 2076, इस तरह 2076 विक्रमी सम्वत हुआ।
अमुक अयने – उत्तरायन/दक्षिणायन का नाम उच्चारित किया जाता है।
अमुक ऋतौ – वसंत आदि छह ऋतु हैं उसका नाम लिया जाता है।
अमुक मासे – चैत्र आदि 12 मास हैं।
अमुक पक्षे – पक्ष का नाम (शुक्ल या कृष्ण पक्ष)
अमुक तिथौ – तिथि का नाम
अमुक वासरे – दिन का नाम
अमुक समये – दिन में कौन सा समय
उपरोक्त में अमुक के स्थान पर क्रमश : नाम बोलने पड़ते है ।
जैसे अमुक स्थाने : में जिस स्थान पर अनुष्ठान किया जा रहा है उसका नाम बोल जाता है ।
उदहारण के लिए दिल्ली स्थाने, ग्रीष्म ऋतौ आदि।
अमुक – व्यक्ति – अपना नाम, फिर पिता का नाम, गोत्र तथा किस उद्देश्य से कौन सा काम कर रहा है, यह बोलकर संकल्प करता है।
इस प्रकार जिस समय संकल्प करता है, सृष्टि आरंभ से उस समय तक का स्मरण सहज व्यवहार में भारतीय जीवन पद्धति में इस व्यवस्था के द्वारा आया है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बेटे, सङ्कल्प की कालावधि को समझने के लिए आपको हिंदू धर्म की समय मापन इकाइयों को समझना पड़ेगा।
*कल्प* - हिन्दू समय चक्र की बहुत लम्बी मापन इकाई है। मानव वर्ष गणित के अनुसार ३६० दिन का एक दिव्य अहोरात्र होता है। इसी हिसाब से दिव्य १२००० वर्ष का एक चतुर्युगी होता है। *७१ चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है* और १४ मन्वन्तर/ १००० चतुरयुगी का एक कल्प होता है। यह शब्द का अति प्राचीन वैदिक हिन्दू ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है।
👇🏻
*परिचय*
*सृष्टिक्रम और विकास की गणना के लिए कल्प हिन्दुओं का एक परम प्रसिद्ध मापदंड है*। जैसे मानव की साधारण आयु सौ वर्ष है, वैसे ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की भी आयु सौ वर्ष मानी गई है, परंतु दोनों गणनाओं में बड़ा अन्तर है। *ब्रह्मा का एक दिन 'कल्प' कहलाता है, उसके बाद प्रलय होता है। प्रलय ब्रह्मा की एक रात है जिसके पश्चात् फिर नई सृष्टि होती है।*
चारों युगों के एक चक्कर को चतुर्युगी अथवा पर्याय कहते हैं। १‚००० चतुर्युगी अथवा पर्यायों का एक कल्प होता है। ब्रह्मा के एक मास में तीस कल्प होते हैं जिनके अलग-अलग नाम हैं, जैसे *श्वेतवाराह कल्प*, नीललोहित कल्प आदि। *प्रत्येक कल्प के १४ भाग होते हैं और इन भागों को 'मन्वंतर' कहते हैं।* प्रत्येक मन्वंतर का एक मनु होता है, इस प्रकार स्वायंभुव, स्वारोचिष् आदि १४ मनु हैं। प्रत्येक मन्वंतर के अलग-अलग सप्तर्षि, इद्रं तथा इंद्राणी आदि भी हुआ करते हैं। *इस प्रकार ब्रह्मा के आज तक ५० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, ५१वें वर्ष का प्रथम कल्प अर्थात् श्वेतवाराह कल्प प्रारंभ हुआ है। वर्तमान मनु का नाम 'वैवस्वत मनु' है और इनके २७ चतुर्युगी बीत चुके हैं,* २८ वें चतुर्युगी के भी तीन युग समाप्त हो गए हैं, चौथे अर्थात् कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है।
युगों की अवधि इस प्रकार है - सत्युग १७,२८,००० वर्ष; त्रेता १२,९६,००० वर्ष; द्वापर ८,६४,००० वर्ष और कलियुग ४,३२,००० वर्ष। *अतएव एक कल्प १००० चतुर्युगों के बराबर यानी चार अरब बत्तीस करोड़ (4,32,00,00,000) मानव वर्ष का हुआ।*
👇🏻
*विभाजन*
प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में मानव इतिहास को पाँच कल्पों में बाँटा गया है।
हमत् कल्प : १,०९,८०० वर्ष विक्रमीय पूर्व से आरम्भ होकर ८५,८०० वर्ष पूर्व तक
हिरण्य गर्भ कल्प : ८५,८०० विक्रमीय पूर्व से ६१,८०० वर्ष पूर्व तक
ब्राह्म कल्प : ६०,८०० विक्रमीय पूर्व से ३७,८०० वर्ष पूर्व तक
पाद्म कल्प : ३७,८०० विक्रम पूर्व से १३,८०० वर्ष पूर्व तक और
वराह कल्प : १३,८०० विक्रम पूर्व से आरम्भ होकर वर्तमान तक
*अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब "वैवस्वत" तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है।* सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से ५,६३० वर्ष पूर्व हुआ था।
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
*संकल्प का पौराणिक महत्व*
*हमारे पूर्वजों ने जहां खगोलीय गति के आधार पर काल का मापन किया । वहीं काल की अनंत यात्रा और वर्तमान समय तक उसे जोड़ना तथा समाज में सर्वसामान्य व्यक्ति को इसका ध्यान रहे इस हेतु एक अद्भुत व्यवस्था भी की थी।* जिसकी ओर साधारणतया हमारा ध्यान नहीं जाता है। हमारे देश में कोई भी कार्य होता हो चाहे वह भूमिपूजन हो, वास्तुनिर्माण का प्रारंभ हो गृह प्रवेश हो, जन्म, विवाह या कोई भी अन्य मांगलिक कार्य हो, वह करने के पहले कुछ धार्मिक विधि संपन्न की जाती है। उसमें सबसे पहले संकल्प कराया जाता है । यह संकल्प मंत्र यानी अनंत काल से आज तक की समय की स्थिति बताने वाला मंत्र है । इस दृष्टि से इस मंत्र के अर्थ पर हम ध्यान देंगे तो बात स्पष्ट हो जायेगी।-
🌺🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌺
*सङ्कल्प मन्त्र*
*ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया* - भगवान विष्णु को आदि पुरुष महापुरुष मानते हुए व उनकी आज्ञा से...
*प्रवर्तमानस्य* - उनके द्वारा प्रवर्तित अनंत कालचक्र में...
*अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्ररार्धे* - वर्तमान समय में ब्रह्मा का द्वितीय प्रहर चल रहा है।
*श्रीश्वेतवाराहकल्पे* - वर्तमान समय में जो *कल्प* चल रहा है उसका नाम श्रीश्वेतवाराह है,
*वैवस्वतमन्वन्तरे* - वर्तमान समय में जो मनु हैं उनका नाम *वैवश्वत* है,
*भूर्लोके* - हम जिस ग्रह में पूजन कर रहे हैं उसे भूलोक पृथ्वी कहते हैं,
*जम्बूद्वीपे* - हम जिस भारत मे रहते है उस द्वीप का नाम *जम्बूद्वीप* है ,
*भारतवर्षे , भरतखण्डे* - यह भारत वर्ष प्रतापी राजा भरत के द्वारा स्थापित है, इसलिए इसका नाम भारत वर्ष है, भरत जी की भूमि है।
*आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते* - जिस भारत में हम पूजन करने जा रहे हैं वह आर्यावर्त कहलाता है, उसके अंतर्गत यह भू खण्ड आता है।
कलियुगे कलि प्रथमचरणे
अर्थात् अभी कलियुग का प्रारंभिक समय है।
अमुक स्थाने – जहां पर कार्य संपन्न हो रहा है उस स्थान का नाम
*अमुक संवत्सरे* – संवत्सर का नाम उच्चारित किया जाता है, अंग्रेजो के ईसवीं सन में 57 वर्ष जोड़ देने पर विक्रमी सम्वत बन जाता है- वर्तमान अंग्रेजी वर्ष 2019 + 57 = 2076, इस तरह 2076 विक्रमी सम्वत हुआ।
अमुक अयने – उत्तरायन/दक्षिणायन का नाम उच्चारित किया जाता है।
अमुक ऋतौ – वसंत आदि छह ऋतु हैं उसका नाम लिया जाता है।
अमुक मासे – चैत्र आदि 12 मास हैं।
अमुक पक्षे – पक्ष का नाम (शुक्ल या कृष्ण पक्ष)
अमुक तिथौ – तिथि का नाम
अमुक वासरे – दिन का नाम
अमुक समये – दिन में कौन सा समय
उपरोक्त में अमुक के स्थान पर क्रमश : नाम बोलने पड़ते है ।
जैसे अमुक स्थाने : में जिस स्थान पर अनुष्ठान किया जा रहा है उसका नाम बोल जाता है ।
उदहारण के लिए दिल्ली स्थाने, ग्रीष्म ऋतौ आदि।
अमुक – व्यक्ति – अपना नाम, फिर पिता का नाम, गोत्र तथा किस उद्देश्य से कौन सा काम कर रहा है, यह बोलकर संकल्प करता है।
इस प्रकार जिस समय संकल्प करता है, सृष्टि आरंभ से उस समय तक का स्मरण सहज व्यवहार में भारतीय जीवन पद्धति में इस व्यवस्था के द्वारा आया है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment