*षट चक्र ध्यान - प्राण ऊर्जा के संचार के लिए*
गुरुगीता में वर्णित मन्त्र जप से पूर्व का विनियोग, कर न्यास, हृदय न्यास, गुरु आह्वाहन, गायत्री माता का ध्यान व आह्वाहन करके कम से कम तीन माला गायत्री की जप लें।
अब निम्नलिखित पूरी ध्यान साधना के दौरान कमर सीधी व नेत्र बन्द रखें।
भावना कीजिये कि इड़ा पिंगला शुशुम्ना नाड़ियां एक्टिवेट हो गयी हैं।
*मूलाधार चक्र* - मेरुदंड के मूल में, सबसे नीचे। एक विद्युतीय करंट नीली रौशनी का मूलाधार से ऊपर क्रमशः आ रहा है।
*स्वाधिष्ठान चक्र* - मूलाधार से आकर नीली विद्युत करंट स्वाधिष्ठान चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।
*मणिपुर चक्र* - स्वाधिष्ठान से ऊपर आकर नीली विद्युत करंट मनिपुर चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।
*अनाहत चक्र* - मणिपुर से आकर नीली विद्युत करंट अनाहत चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।
*विशुद्धि चक्र* - अनाहत से आकर नीली विद्युत करंट विशुद्धि चक्र को एक्टिवेट कर दिया है, यह चक्र गले में स्थित है। यह जागृत हो गया, गला पूरा रौशनी से भर गया है। गला पूर्ण स्वस्थ हो गया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।
*आज्ञा चक्र* - विशुद्धि चक्र से आकर नीली विद्युत करंट आज्ञा चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है। आज्ञा चक्र मेरुदण्ड की समाप्ति पर भ्रूमध्य के पीछे है।
*सहस्त्रार चक्र* - आज्ञा चक्र से आकर नीली विद्युत करंट जैसे ही सहस्त्रार चक्र में पहुंचता है तो वह कमल की तरह खिल गया है। अब वहाँ सूर्य का प्रकाश जगमगा रहा है। वहां से करंट ऊपर उठ कर ब्रह्माण्ड से कनेक्ट हो गया है। मूलाधार से सहस्त्रार फिर ब्रह्माण्ड तक आपका कनेक्शन हो गया है। विद्युत प्रवाह पूरी रीढ़ की हड्डियों में और चक्रों में महसूस कीजिये। गायत्री के प्राण प्रवाह से स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस कीजिये। चार्ज होता हुआ स्वयं को महसूस कीजिये। ब्रह्माण्ड से प्राण प्रवाह आपके भीतर प्रवेश कर आपको निरोगी व स्वस्थ बना रहा है। प्राणवान बना रहा है।
स्वयं को हाल ही जन्मे स्वस्थ बच्चे की तरह चैतन्य और तरोताज़ा महसूस कीजिये। ऊर्जा का अनन्त प्राण प्रवाह आपकी नस नाड़ियों में बह रहा है। आप स्वस्थ पूर्णतया स्वस्थ व चैतन्य हो रहे हैं।
थोड़ी देर इस ध्यान में खोइए, धीरे धीरे दोनो हाथ रगड़िये, प्रभावी अंगों में ऊर्जा दीजिये और चेहरे पर लगा लीजिए।
नेत्र खोलकर थोड़ी देर भगवान को देखिए, फिर सहज होकर शांतिपाठ करके आराम से उठिए।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
गुरुगीता में वर्णित मन्त्र जप से पूर्व का विनियोग, कर न्यास, हृदय न्यास, गुरु आह्वाहन, गायत्री माता का ध्यान व आह्वाहन करके कम से कम तीन माला गायत्री की जप लें।
अब निम्नलिखित पूरी ध्यान साधना के दौरान कमर सीधी व नेत्र बन्द रखें।
भावना कीजिये कि इड़ा पिंगला शुशुम्ना नाड़ियां एक्टिवेट हो गयी हैं।
*मूलाधार चक्र* - मेरुदंड के मूल में, सबसे नीचे। एक विद्युतीय करंट नीली रौशनी का मूलाधार से ऊपर क्रमशः आ रहा है।
*स्वाधिष्ठान चक्र* - मूलाधार से आकर नीली विद्युत करंट स्वाधिष्ठान चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।
*मणिपुर चक्र* - स्वाधिष्ठान से ऊपर आकर नीली विद्युत करंट मनिपुर चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।
*अनाहत चक्र* - मणिपुर से आकर नीली विद्युत करंट अनाहत चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।
*विशुद्धि चक्र* - अनाहत से आकर नीली विद्युत करंट विशुद्धि चक्र को एक्टिवेट कर दिया है, यह चक्र गले में स्थित है। यह जागृत हो गया, गला पूरा रौशनी से भर गया है। गला पूर्ण स्वस्थ हो गया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है।
*आज्ञा चक्र* - विशुद्धि चक्र से आकर नीली विद्युत करंट आज्ञा चक्र को एक्टिवेट कर दिया है। अब वहाँ लाइट जल गई है। वहां से करंट ऊपर उठ रहा है। आज्ञा चक्र मेरुदण्ड की समाप्ति पर भ्रूमध्य के पीछे है।
*सहस्त्रार चक्र* - आज्ञा चक्र से आकर नीली विद्युत करंट जैसे ही सहस्त्रार चक्र में पहुंचता है तो वह कमल की तरह खिल गया है। अब वहाँ सूर्य का प्रकाश जगमगा रहा है। वहां से करंट ऊपर उठ कर ब्रह्माण्ड से कनेक्ट हो गया है। मूलाधार से सहस्त्रार फिर ब्रह्माण्ड तक आपका कनेक्शन हो गया है। विद्युत प्रवाह पूरी रीढ़ की हड्डियों में और चक्रों में महसूस कीजिये। गायत्री के प्राण प्रवाह से स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस कीजिये। चार्ज होता हुआ स्वयं को महसूस कीजिये। ब्रह्माण्ड से प्राण प्रवाह आपके भीतर प्रवेश कर आपको निरोगी व स्वस्थ बना रहा है। प्राणवान बना रहा है।
स्वयं को हाल ही जन्मे स्वस्थ बच्चे की तरह चैतन्य और तरोताज़ा महसूस कीजिये। ऊर्जा का अनन्त प्राण प्रवाह आपकी नस नाड़ियों में बह रहा है। आप स्वस्थ पूर्णतया स्वस्थ व चैतन्य हो रहे हैं।
थोड़ी देर इस ध्यान में खोइए, धीरे धीरे दोनो हाथ रगड़िये, प्रभावी अंगों में ऊर्जा दीजिये और चेहरे पर लगा लीजिए।
नेत्र खोलकर थोड़ी देर भगवान को देखिए, फिर सहज होकर शांतिपाठ करके आराम से उठिए।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment