प्रश्न - *दी वास्तविकता यह है कि जब जब हम हर बार उठने की कोशिश करते हैं, तो मदद को तो एक भी हाथ नहीं आता, गिराने को हज़ार हाथ आ जाते है। मनोबल तोड़ने को लोग खड़े रहते हैं। "नहीं, आप नहीं कर सकते, रहने दो बस" यही शब्द मुझे तोड़कर रख देते हैं। फिर भी प्रयासरत हूँ, 2 वर्ष हो गया अब नहीं होता मुझसे...😞😞*
उत्तर - जीवन के खेल के मैदान में चियर आपके लिए करने वाले, मनोबल बढ़ाने वाले केवल कुछ मुट्ठी भर लोग होते हैं - परम्पिता परमेश्वर, माता-पिता, सदगुरु, सन्त प्रकृति के अच्छे लोग इत्यादि
बाकी सब तो आपकी अपोज़िट टीम होती है, जो हूटिंग करके, चिढ़ा के, मनोबल तोड़ के आपको हराना चाहती है।
वास्तविकता मात्र शब्द है, कोई हकीकत नहीं। जैसी हमारी मनःस्थिति वही वस्तुतः बनती है हक़ीक़त। आपकी मनःस्थिति अच्छी है तो किसी के अप्रिय बोल आपको जीवन के खेल में प्रभावित नहीं कर सकते।
विपरीत परिस्थिति में कोई रिकॉर्ड तोड़ता है, कोई विपरीत परिस्थिति में स्वयं टूटता है।
इस संसार में केवल आत्मबल के सहारे ही जिया जा सकता है व विपत्तियों से लड़ा जा सकता है। आधी ग्लास भरी व आधी खाली है, रोना है तो ख़ाली के तरफ देखो, हंसना है तो भरा की तरफ देखो।
मेरी दृष्टि में जो मानसिक रूप से अपाहिज है वही वस्तुतः अपाहिज है। यदि बुद्धि चल रही है तो व्यक्ति कैसा भी शरीर हो जीवन चला सकता है।
जिस दिन आत्मबल टूटा जीवन छूट जाता है। जप,तप, ध्यान स्वाध्याय से आत्मबल प्राप्त होता है।
तुलसीदास जी कहते हैं:-
करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी।।
मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा।।
तपबल रचइ प्रपंच बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता।।
तपबल संभु करहिं संघारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा।।
तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी।।
सुनत बचन बिसमित महतारी। सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी।।
मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई। चलीं उमा तप हित हरषाई।।
प्रिय परिवार पिता अरु माता। भए बिकल मुख आव न बाता।।
तपना व संघर्षरत रहना ही जीवन है। यह सांसारिक जीव अपनों का ही भार नहीं उठाता फ़िर गैरों की तो बात वो बात भी नहीं करता।
फ़िल्म बनने से पहले स्क्रिप्ट बनती है, उसी तरह जीवन मिलने से पहले नियति लिखी जाती है। यह नियति वस्तुतः हमारे पूर्वजन्मों के कर्मफ़ल से प्रेरित होती है।
कल ही एक सत्य घटना बेटे को वांग्मय 57 - *तेजस्विता, प्रखरता, मनस्विता* से सुनाई थी। अमेरिका का ट्रक ड्राइवर दुर्घटना में दोनों आंख, एक कान पूरा खो चुका था। पैरालिसिस दुर्घटना के बाद जब हुआ तो दाहिना हाथ व दाहिना पैर अंग खो चुका था। तब भी वह भगवान को धन्यवाद देता अपने जीवन बचने के लिए व मशीन से घास काटने का काम करता। जब लोग पूँछते कैसे हो तो वह बोलता, परमात्मा ने मेरा दिमाग़ बचाये रखा इसके लिए धन्यवाद।
मेरा दिमाग़ जब तक चल रहा है मैं जीवन का आनन्द ले सकता हूँ। मैं जीवन हूँ। जीवित हूँ। यह मेरे लिए आनन्द की विषयवस्तु है।
लोग जब उसे डिमोटिवेट करते कि - *तुम यह नहीं कर सकते* - तब वह उन्हें धन्यवाद देता कि मुझे चुनौती देने के लिए धन्यवाद। फ़िर वह अक्ल लगाता व उसे करके दिखाता।
घास के लिए वह रस्सी बांधता घेरा चेक अंदाजे से करता वह खूबसूरती से घास काटता। पत्नी जब बाहर कार्य करने जाती तो घर के सारे कार्य कर देता। लोगों की समस्याएं सुलझाता व यथासम्भव मदद करता।
आत्मीय बेटी, तुम स्वयं से पूंछो कि लोगों के ताने तुम्हारे लिए *चुनौती* हैं या *समस्या*?
*समस्या* मनोगी तानों को तो टूट जाओगी।
*चुनौती* मनोगी तो कठिन से कठिन चुनौती लोगी। कुछ न कुछ बेहतर करती रहोगी, दिमाग़ चलाते रहोगी। अंतिम श्वांस तक दिमाग़ी रूप से सुपर एक्टिव हो जाओ। स्वयं पर और स्वयं को बनाने वाले पर भरोसा रखो। यह प्रायश्चित शरीर है इस शरीर से भी जीवन की रेस जीत लो।
किसी वृद्ध से कहो फ़ास्ट दौड़ो, तो कहेगा घुटनो में दर्द है। यदि उसके पीछे खूँखार शेर छोड़ दो तो वो वृद्ध युवा धावक का रिकॉर्ड दौड़ने में तोड़ देगा। ऐसा नहीं कि यह दौड़ने की क्षमता उसमें पहले नहीं थी, पहले भी थी मग़र *जीवन बचाने की बर्निंग डिज़ायर* ने वह असम्भव कार्य भी करवा दिया जो वह सोचता था कि वह न कर सकेगा।
*तुम्हारे पास बर्निंग डिज़ायर होना चाहिए कि अपने जैसों के लिए तुम प्रेरणा स्रोत बनो, तुम्हे देखकर लोग जीवन जीने की कला सीखें। मनःस्थिति बदलो परिस्थिति बदलने लगेगी।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - जीवन के खेल के मैदान में चियर आपके लिए करने वाले, मनोबल बढ़ाने वाले केवल कुछ मुट्ठी भर लोग होते हैं - परम्पिता परमेश्वर, माता-पिता, सदगुरु, सन्त प्रकृति के अच्छे लोग इत्यादि
बाकी सब तो आपकी अपोज़िट टीम होती है, जो हूटिंग करके, चिढ़ा के, मनोबल तोड़ के आपको हराना चाहती है।
वास्तविकता मात्र शब्द है, कोई हकीकत नहीं। जैसी हमारी मनःस्थिति वही वस्तुतः बनती है हक़ीक़त। आपकी मनःस्थिति अच्छी है तो किसी के अप्रिय बोल आपको जीवन के खेल में प्रभावित नहीं कर सकते।
विपरीत परिस्थिति में कोई रिकॉर्ड तोड़ता है, कोई विपरीत परिस्थिति में स्वयं टूटता है।
इस संसार में केवल आत्मबल के सहारे ही जिया जा सकता है व विपत्तियों से लड़ा जा सकता है। आधी ग्लास भरी व आधी खाली है, रोना है तो ख़ाली के तरफ देखो, हंसना है तो भरा की तरफ देखो।
मेरी दृष्टि में जो मानसिक रूप से अपाहिज है वही वस्तुतः अपाहिज है। यदि बुद्धि चल रही है तो व्यक्ति कैसा भी शरीर हो जीवन चला सकता है।
जिस दिन आत्मबल टूटा जीवन छूट जाता है। जप,तप, ध्यान स्वाध्याय से आत्मबल प्राप्त होता है।
तुलसीदास जी कहते हैं:-
करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी।।
मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा।।
तपबल रचइ प्रपंच बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता।।
तपबल संभु करहिं संघारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा।।
तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी।।
सुनत बचन बिसमित महतारी। सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी।।
मातु पितुहि बहुबिधि समुझाई। चलीं उमा तप हित हरषाई।।
प्रिय परिवार पिता अरु माता। भए बिकल मुख आव न बाता।।
तपना व संघर्षरत रहना ही जीवन है। यह सांसारिक जीव अपनों का ही भार नहीं उठाता फ़िर गैरों की तो बात वो बात भी नहीं करता।
फ़िल्म बनने से पहले स्क्रिप्ट बनती है, उसी तरह जीवन मिलने से पहले नियति लिखी जाती है। यह नियति वस्तुतः हमारे पूर्वजन्मों के कर्मफ़ल से प्रेरित होती है।
कल ही एक सत्य घटना बेटे को वांग्मय 57 - *तेजस्विता, प्रखरता, मनस्विता* से सुनाई थी। अमेरिका का ट्रक ड्राइवर दुर्घटना में दोनों आंख, एक कान पूरा खो चुका था। पैरालिसिस दुर्घटना के बाद जब हुआ तो दाहिना हाथ व दाहिना पैर अंग खो चुका था। तब भी वह भगवान को धन्यवाद देता अपने जीवन बचने के लिए व मशीन से घास काटने का काम करता। जब लोग पूँछते कैसे हो तो वह बोलता, परमात्मा ने मेरा दिमाग़ बचाये रखा इसके लिए धन्यवाद।
मेरा दिमाग़ जब तक चल रहा है मैं जीवन का आनन्द ले सकता हूँ। मैं जीवन हूँ। जीवित हूँ। यह मेरे लिए आनन्द की विषयवस्तु है।
लोग जब उसे डिमोटिवेट करते कि - *तुम यह नहीं कर सकते* - तब वह उन्हें धन्यवाद देता कि मुझे चुनौती देने के लिए धन्यवाद। फ़िर वह अक्ल लगाता व उसे करके दिखाता।
घास के लिए वह रस्सी बांधता घेरा चेक अंदाजे से करता वह खूबसूरती से घास काटता। पत्नी जब बाहर कार्य करने जाती तो घर के सारे कार्य कर देता। लोगों की समस्याएं सुलझाता व यथासम्भव मदद करता।
आत्मीय बेटी, तुम स्वयं से पूंछो कि लोगों के ताने तुम्हारे लिए *चुनौती* हैं या *समस्या*?
*समस्या* मनोगी तानों को तो टूट जाओगी।
*चुनौती* मनोगी तो कठिन से कठिन चुनौती लोगी। कुछ न कुछ बेहतर करती रहोगी, दिमाग़ चलाते रहोगी। अंतिम श्वांस तक दिमाग़ी रूप से सुपर एक्टिव हो जाओ। स्वयं पर और स्वयं को बनाने वाले पर भरोसा रखो। यह प्रायश्चित शरीर है इस शरीर से भी जीवन की रेस जीत लो।
किसी वृद्ध से कहो फ़ास्ट दौड़ो, तो कहेगा घुटनो में दर्द है। यदि उसके पीछे खूँखार शेर छोड़ दो तो वो वृद्ध युवा धावक का रिकॉर्ड दौड़ने में तोड़ देगा। ऐसा नहीं कि यह दौड़ने की क्षमता उसमें पहले नहीं थी, पहले भी थी मग़र *जीवन बचाने की बर्निंग डिज़ायर* ने वह असम्भव कार्य भी करवा दिया जो वह सोचता था कि वह न कर सकेगा।
*तुम्हारे पास बर्निंग डिज़ायर होना चाहिए कि अपने जैसों के लिए तुम प्रेरणा स्रोत बनो, तुम्हे देखकर लोग जीवन जीने की कला सीखें। मनःस्थिति बदलो परिस्थिति बदलने लगेगी।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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