प्रश्न- *क्या लोगों का व्यवहार हमारे प्रति कैसा होगा यह हम पर निर्भर करता है? कुछ लोग कहते हैं कि लोग आपके साथ कैसा बर्ताव करते हैं, वह आपका प्रतिबिंब है..लेकिन कई बार..क्योंकि आप जिससे प्यार करते है वह आप आपको सिर्फ नफरत करे तो फिर गलती किसकी है?*
उत्तर- आत्मीय बहन, लोगों का व्यवहार हमारे साथ कैसा होगा यह 50% हम पर निर्भर करता है और 50% सामने वाले पर निर्भर करता है।
यदि आप करोड़पति हैं या दबंग हैं तो अधिकतर लोग आपसे अच्छा ही व्यवहार करेंगे, आपसे लोग काफी ईर्ष्या भी करेंगे, लेकिन इससे आपके मन के भाव का 50% कोई लेना देना नहीं है।
यदि आप दरिद्र हैं व कमज़ोर हैं, तो अधिकतर लोग आपसे बुरा ही व्यवहार करेंगे, आपको लोग काफी परेशान भी करेंगे, लेकिन इससे आपके मन के भाव का 50% कोई लेना देना नहीं है।
आप सन्त हैं कोई कम्पटीशन आपका लोगों से नहीं, तो लोग आपसे अच्छा व्यवहार करेंगे, लेकिन आपके समकक्ष सन्त आपसे ईर्ष्या कर सकते हैं, आपको नीचा दिखाने का प्लान भी कर सकते हैं। ध्यान रखिये कि सत्ता, पॉवर और सम्मान की लड़ाई केवल कॉरपोरेट में नहीं है यह धर्म क्षेत्र में भी पर्याप्त है। एक ही गुरु के शिष्य आपस मे लड़ते भिड़ते देखे जा सकते हैं।
परिवार के समस्त रिश्तों को देखें जो कहते हैं हम प्यार करते हैं वो वस्तुतः प्यार नहीं व्यापार करते हैं, स्वार्थ साधते हैं। माता-पिता पुत्र से बहुत प्यार करते है, लेकिन कभी पसन्द नहीं करती कि बेटा उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ प्रेम विवाह करे। पत्नी पति से बहुत प्यार करती है, लेक़िन कभी पसन्द नहीं करती क़ि पति माता-पिता को उससे ज्यादा प्रेम करे। यदि स्वार्थ न सधा तो माता-पिता सन्तान को घर से निकाल देते हैं, पत्नी पति को तलाक़ दे देती है।
भगवान श्री राम कितने भी अच्छे व मर्यादा पुरुषोत्तम हों रावण उनसे जलेगा ही, उनके साथ व्यवहार बुरा करेगा ही। अतः यहां राम के मन में कोई दुर्भाव न होते हुए भी उन्हें दुर्व्यवहार झेलना पड़ेगा।
जब लोग बुद्ध बनते हैं, समस्त सांसारिक वस्तुओं मान सम्मान धन वैभव सबका त्याग कर के, लोककल्याण में जुटते व स्वयं में पूर्ण और आत्मज्ञान से रौशन बनते हैं तभी हमारे मन के भाव से लोगों का हृदय परिवर्तित होता है। बुद्ध अंगुलि माल को अहिंसक बना सके, लेकिन बुद्ध उन लोगो को नहीं बदल सके जिन्होंने उन्हें जहर दिया, जीवन भर उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र करते रहे। दयानंद सरस्वती और विवेकानंद से लाखों लोग प्रभावित हुए मग़र उनके भी विरोधियों की कमी नहीं थी।
युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव के इतने सहृदय व दया के सागर होने के बावजूद उन्हें विरोध सहना पड़ा। अपने रिश्तेदार व अन्य धार्मिक संगठनों का दुर्व्यवहार सहना पड़ा। उन शिष्यों से भी विरोध मिला जो स्वार्थवश उनसे जुड़े थे, स्वार्थसिद्धि न होने पर विरोधी बन गए।
अतः उपरोक्त समस्त उदाहरण से यह सिद्ध होता है कि हमारे मन के भाव से सामने वाले प्रभाव पड़ता भी है और नहीं भी। 50-50 असर रहता है।
निर्मल मन व अच्छे स्वभाव के लोगों के साथ अच्छा व्यवहार मिलने की अधिक संभावना होती है, लेक़िन कोई दुर्व्यवहार नहीं करेगा यह सत्य नहीं है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय बहन, लोगों का व्यवहार हमारे साथ कैसा होगा यह 50% हम पर निर्भर करता है और 50% सामने वाले पर निर्भर करता है।
यदि आप करोड़पति हैं या दबंग हैं तो अधिकतर लोग आपसे अच्छा ही व्यवहार करेंगे, आपसे लोग काफी ईर्ष्या भी करेंगे, लेकिन इससे आपके मन के भाव का 50% कोई लेना देना नहीं है।
यदि आप दरिद्र हैं व कमज़ोर हैं, तो अधिकतर लोग आपसे बुरा ही व्यवहार करेंगे, आपको लोग काफी परेशान भी करेंगे, लेकिन इससे आपके मन के भाव का 50% कोई लेना देना नहीं है।
आप सन्त हैं कोई कम्पटीशन आपका लोगों से नहीं, तो लोग आपसे अच्छा व्यवहार करेंगे, लेकिन आपके समकक्ष सन्त आपसे ईर्ष्या कर सकते हैं, आपको नीचा दिखाने का प्लान भी कर सकते हैं। ध्यान रखिये कि सत्ता, पॉवर और सम्मान की लड़ाई केवल कॉरपोरेट में नहीं है यह धर्म क्षेत्र में भी पर्याप्त है। एक ही गुरु के शिष्य आपस मे लड़ते भिड़ते देखे जा सकते हैं।
परिवार के समस्त रिश्तों को देखें जो कहते हैं हम प्यार करते हैं वो वस्तुतः प्यार नहीं व्यापार करते हैं, स्वार्थ साधते हैं। माता-पिता पुत्र से बहुत प्यार करते है, लेकिन कभी पसन्द नहीं करती कि बेटा उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ प्रेम विवाह करे। पत्नी पति से बहुत प्यार करती है, लेक़िन कभी पसन्द नहीं करती क़ि पति माता-पिता को उससे ज्यादा प्रेम करे। यदि स्वार्थ न सधा तो माता-पिता सन्तान को घर से निकाल देते हैं, पत्नी पति को तलाक़ दे देती है।
भगवान श्री राम कितने भी अच्छे व मर्यादा पुरुषोत्तम हों रावण उनसे जलेगा ही, उनके साथ व्यवहार बुरा करेगा ही। अतः यहां राम के मन में कोई दुर्भाव न होते हुए भी उन्हें दुर्व्यवहार झेलना पड़ेगा।
जब लोग बुद्ध बनते हैं, समस्त सांसारिक वस्तुओं मान सम्मान धन वैभव सबका त्याग कर के, लोककल्याण में जुटते व स्वयं में पूर्ण और आत्मज्ञान से रौशन बनते हैं तभी हमारे मन के भाव से लोगों का हृदय परिवर्तित होता है। बुद्ध अंगुलि माल को अहिंसक बना सके, लेकिन बुद्ध उन लोगो को नहीं बदल सके जिन्होंने उन्हें जहर दिया, जीवन भर उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र करते रहे। दयानंद सरस्वती और विवेकानंद से लाखों लोग प्रभावित हुए मग़र उनके भी विरोधियों की कमी नहीं थी।
युगऋषि परम्पपूज्य गुरुदेव के इतने सहृदय व दया के सागर होने के बावजूद उन्हें विरोध सहना पड़ा। अपने रिश्तेदार व अन्य धार्मिक संगठनों का दुर्व्यवहार सहना पड़ा। उन शिष्यों से भी विरोध मिला जो स्वार्थवश उनसे जुड़े थे, स्वार्थसिद्धि न होने पर विरोधी बन गए।
अतः उपरोक्त समस्त उदाहरण से यह सिद्ध होता है कि हमारे मन के भाव से सामने वाले प्रभाव पड़ता भी है और नहीं भी। 50-50 असर रहता है।
निर्मल मन व अच्छे स्वभाव के लोगों के साथ अच्छा व्यवहार मिलने की अधिक संभावना होती है, लेक़िन कोई दुर्व्यवहार नहीं करेगा यह सत्य नहीं है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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